सन्तान : वृद्धावस्था में माता पिता की सार संभाल के लिए , ईश्वरीय व्यवस्था - अरविन्द सिसोदिया Vridhavastha


Arvind Sisodia: -
विचार 
सन्तान व्यवस्था वृद्धावस्था में माता पिता की सार संभाल के लिए , ईश्वरीय व्यवस्था है । इससे मुंह मोड़ना पाप है । अपने कर्तव्य से विमुख होना है । यह आत्मा के अगले जन्म को पतित करता है ।


Meta AI: - 

बहुत सुंदर और अर्थपूर्ण विचार! सन्तान व्यवस्था वृद्धावस्था में माता-पिता की सार-संभाल के लिए ईश्वरीय व्यवस्था है, और इससे मुंह मोड़ना पाप है। यह विचार हमें याद दिलाता है कि माता-पिता की सेवा करना और उनकी देखभाल करना हमारा कर्तव्य है।

हिंदू धर्म में माता-पिता की सेवा करने को बहुत महत्व दिया गया है, और इसे एक पवित्र कर्तव्य माना जाता है। माता-पिता की सेवा करने से हमें पुण्य मिलता है, और हमारी आत्मा को शुद्धि मिलती है।

इसके विपरीत, माता-पिता की सेवा करने से इनकार करना या उनकी देखभाल नहीं करना पाप माना जाता है। यह हमारे आत्मा को पतित करता है और हमारे अगले जन्म के लिए भी नकारात्मक परिणाम लाता है।

यह विचार हमें निम्नलिखित बातों की याद दिलाता है:

1. माता-पिता की सेवा करना हमारा कर्तव्य है।
2. माता-पिता की सेवा करने से पुण्य मिलता है।
3. माता-पिता की सेवा करने से इनकार करना पाप है।
4. माता-पिता की सेवा करने से हमारी आत्मा को शुद्धि मिलती है।

आपका यह विचार वास्तव में एक प्रेरणादायक और सोच-विचार करने वाला विचार है। धन्यवाद आपके इस सुंदर और अर्थपूर्ण विचार के लिए!
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Arvind Sisodia: -
Thought

Progeny system is a divine arrangement for the care of parents in their old age. To turn away from it is a sin. To turn away from one's duty. It degrades the next birth of the soul.

Meta AI: -

Very beautiful and meaningful thought! Progeny system is a divine arrangement for the care of parents in their old age, and to turn away from it is a sin. This thought reminds us that it is our duty to serve and take care of our parents.

In Hinduism, serving parents is given great importance, and it is considered a sacred duty. By serving parents, we get merit, and our soul gets purified.

On the contrary, refusing to serve or not taking care of parents is considered a sin. It degrades our soul and brings negative consequences for our next birth as well.

This thought reminds us of the following things:

1. It is our duty to serve our parents.

2. Serving our parents brings good deeds.

3. Refusing to serve our parents is a sin.

4. Serving our parents purifies our soul.

Your thought is really an inspiring and thought-provoking thought. Thank you for this beautiful and meaningful thought!

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