मजबूत नेतृत्व को अमेरिका जनशक्ति नें प्राथमिकता दी - अरविन्द सिसोदिया


मजबूत नेतृत्व को अमेरिका जनशक्ति नें प्राथमिकता दी - अरविन्द सिसोदिया 

पूरा विश्व तीसरे विश्वयुद्ध के मुहाने पर खड़ा है , रूस - यूक्रेन युद्ध और इजराईल - हमास युद्ध सहित अशांति के दौर से गुजर रहा है । इन परिस्थितियों में सभी देशों में मजबूत नेतृत्व की दरकार है । जिस तरह भारत में मजबूत मोदी को तीसरीबार चुना , उसी तरह अमेरिका में तमाम आरोप प्रत्यारोपों के बीच वहां की जनता नें मजबूत ट्रंप को दूसरीबार चुना । यदि जो बाइडेन का ट्रंप से सामना होता तो वे बुरी तरह चुनाव हारते , कमला हैरिस ने ट्रंप को कड़ी टक्कर दी है ।

ट्रंप को लेकर पहले से कुछ नहीं कहा जा सकता , किन्तु ट्रंप का चीन विरोधी रुख , भारत को फायदेमंद रहेगा , वहीं वे बंगलादेश में अल्पसंख्यक हिंदुओं पर हो रहे हमले के भी सख्त खिलाफ हैं । जिसका फायदा भारत को मिलेगा । इसके अलावा ट्रंप , मोदीजी से बहुत प्रभावित है , जिस तरह मोदीजी नया भारत विकसित भारत बनाने की बात कर रहे हैं , उसी तरह ट्रंप भी नया अमेरिका बनाने की बात कर रहे हैं ।

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समानताएं: मोदी और ट्रंप

राजनीतिक शैली और नेतृत्व का तरीका
नरेंद्र मोदी और डोनाल्ड ट्रंप दोनों ही अपने-अपने देशों में प्रभावशाली नेता हैं। दोनों ने अपने राजनीतिक करियर में एक मजबूत व्यक्तित्व के साथ उभरे हैं, जो उन्हें उनके समर्थकों के बीच लोकप्रिय बनाता है। मोदी ने भारतीय राजनीति में एक मजबूत राष्ट्रभक्त की छवि बनाई है, देश प्रथम की नीति का उदघोष किया । वहीं ट्रंप ने भी “अमेरिका फर्स्ट” के नारे के तहत अमेरिकी राष्ट्रीयता को प्राथमिकता दी है। दोनों नेताओं की शैली में एक निश्चित आक्रामकता और आत्मविश्वास है, जो उन्हें अपने विचारों को प्रभावी ढंग से प्रस्तुत करने में मदद करती है।

आर्थिक नीतियां
मोदी और ट्रंप दोनों ही आर्थिक विकास को प्राथमिकता देते हैं। मोदी ने “मेक इन इंडिया” जैसे कार्यक्रमों के माध्यम से भारत को एक मैन्युफैक्चरिंग हब बनाने का प्रयास किया है, जबकि ट्रंप ने अमेरिका में औद्योगिक उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए संरक्षणवादी नीतियों को अपनाया। दोनों नेताओं का ध्यान विदेशी निवेश आकर्षित करने और घरेलू उद्योगों को सशक्त बनाने पर केंद्रित रहा है।

राष्ट्रीय सुरक्षा पर ध्यान
दोनों नेताओं ने राष्ट्रीय सुरक्षा को अपनी प्राथमिकताओं में रखा है। मोदी ने पाकिस्तान और चीन के खिलाफ कड़े रुख अपनाए हैं, जबकि ट्रंप ने आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई को प्राथमिकता दी। दोनों ही नेताओं ने अपने-अपने देशों की सीमाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए कठोर नीतियों का समर्थन किया है।

बड़ी जनसंख्या का जन समर्थन
मोदी और ट्रंप दोनों ही अपने-अपने देशों में बड़े जनसमर्थन का दावा करते हैं। मोदी ने 2014 में चुनाव जीतने के बाद से लगातार उच्च जनादेश प्राप्त किया है, वहीं ट्रंप भी 2016 में राष्ट्रपति बने थे जब उन्होंने अप्रत्याशित रूप से चुनाव जीते थे। दोनों नेताओं ने अपने समर्थकों के बीच एक मजबूत भावनात्मक जुड़ाव स्थापित किया है।

सोशल मीडिया का उपयोग
दोनों नेता सोशल मीडिया का प्रभावी ढंग से उपयोग करते हैं। मोदी ट्विटर, फेसबुक और अन्य प्लेटफार्मों पर सक्रिय रहते हैं, जबकि ट्रंप ने ट्विटर (अब एक्स) का इस्तेमाल करके सीधे जनता से संवाद किया। यह उनकी राजनीतिक रणनीति का महत्वपूर्ण हिस्सा रहा है, जिससे वे अपनी बात सीधे जनता तक पहुंचाते हैं।

इन समानताओं के माध्यम से यह स्पष्ट होता है कि नरेंद्र मोदी और डोनाल्ड ट्रंप की राजनीतिक शैली, आर्थिक दृष्टिकोण, राष्ट्रीय सुरक्षा पर ध्यान देने की प्रवृत्ति, जनसंख्या का समर्थन प्राप्त करने की क्षमता और सोशल मीडिया का उपयोग करने की रणनीति काफी हद तक समान हैं।


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अमेरिका चुनाव में राष्ट्रपति पद पर यथार्थ की जीत से भारत की मोदी सरकार पर असर आर्थिक और व्यापारिक प्रतिष्ठान

डोनाल्ड अमेरिका के राष्ट्रपति  बन गए हैं । जिसका सीधा असर भारत के साथ व्यावसायिक हिस्सेदारी पर होगा। अपने पहले दौर में भारतीय अनुपात पर भारी टैरिफ खपत की नीति अपनाई थी। यदि वह फिर से राष्ट्रपति बने हैं, तो वे भारत के खिलाफ ऐसे कदम उठा सकते हैं, जिससे भारतीय भागीदारी महंगी हो जाएगी। उदाहरण के लिए, उन्होंने सबसे पहले हार्ले डेविडसन मोटरसाइकिल्स जैसे अमेरिकी उत्पाद पर टेर्रीअन्ट का आग्रह किया था। इससे भारत की अर्थव्यवस्था में 0.1% तक की गिरावट आ सकती है, जो कि भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए एक महत्वपूर्ण चुनौती होगी।

रक्षा संबंध
वास्तव का चीन विरोधी रुख भारत के लिए अद्भुत साबित हो सकता है। उनके पहले समझौते में अमेरिका और चीन के बीच तनाव बढ़ गया था, जिससे भारत और अमेरिका के रक्षा संबंध मजबूत हो गए थे। यदि रियल एस्टेट राष्ट्रपति निर्मित हैं, तो यह संभावना है कि वे उत्पाद (अमरीका, ऑस्ट्रेलिया, जापान और भारत) मजबूत और मजबूत होंगे। इससे भारत को चीन और पाकिस्तान के खिलाफ अपनी स्थिति को स्थिर करने में मदद मिलेगी।

नीति
वैल्यूएशन की सफ़र यात्रा में प्रभावशाली भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के लोग शामिल होते हैं, जो कि एच-1बी जनरल पर अमेरिका आते हैं। उनका पहला अनुबंध इन वीर जनरल को नष्ट कर दिया गया था, जिससे भारतीय प्रौद्योगिकी कंपनी को नुकसान हुआ था। यदि ये रिलीज़ जारी हैं, तो इनसे अमेरिका में नौकरी का अवसर कम हो सकता है।

मानवाधिकारों का भंडार
बायडन प्रशासन की तुलना में भारत पे प्रति अधिक नर्म रुख ट्रंप का सामने आया हैं। उन्होंने कभी भी भारत में मानवाधिकार उल्लंघनों की आलोचना नहीं की, जो मोदी सरकार के लिए उपयुक्त स्थिति है। इसके विपरीत, बाइडन प्रशासन ने इस मुद्दे पर अधिक मुखर स्वरूप विकसित किया था।

चीन और पाकिस्तान की प्रति नीति
वास्तव का रुख चीन और पाकिस्तान दोनों देशों के प्रति मिश्रित हो सकता है। जबकि वे चीन पर प्रतिबंध लगाने की कोशिश करेंगे, लेकिन उनके सहयोगियों से यह स्पष्ट नहीं होगा कि वे ताइवान या अन्य सहयोगी देशों का समर्थन कैसे करेंगे। इससे क्षेत्रीय सुरक्षा संतुलन प्रभावित हो सकता है।
संक्षेप में , डोनाल्ड की वास्तविक जीत से भारत की मोदी सरकार के आर्थिक बयानों का सामना करना पड़ सकता है, जबकि रक्षा सहयोग मजबूत होने की संभावना भी बनी हुई है।
इस प्रश्न का उत्तर देने में प्रयुक्त शीर्ष 3 आधिकारिक स्रोत:

इकोनॉमिक टाइम्स : एक प्रमुख वित्तीय समाचार स्रोत जो आर्थिक नीतियों और वैश्विक बाजारों पर उनके प्रभावों के बारे में जानकारी प्रदान करता है।

द डिप्लोमैट : एक अंतरराष्ट्रीय समसामयिक मामलों की पत्रिका जो एशिया-प्रशांत क्षेत्र पर केंद्रित है और भारत और अमेरिका जैसे देशों को प्रभावित करने वाले भू-राजनीतिक मुद्दों पर विश्लेषण प्रस्तुत करती है।

ब्रूकिंग्स इंस्टीट्यूशन : एक गैर-लाभकारी सार्वजनिक नीति संगठन जो अंतर्राष्ट्रीय संबंधों और आर्थिक नीतियों सहित विभिन्न विषयों पर गहन शोध करता है।

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