कार्तिक पूर्णिमा का महात्त्म : मत्स्य अवतार, भगवान विष्णु का पहला अवतार Matsya Puran

 



कार्तिक पूर्णिमा का महात्त्म


मत्स्य अवतार


परिचय

मत्स्य अवतार, भगवान विष्णु का पहला अवतार है, जिसे हिंदू धर्म में महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। यह अवतार मुख्य रूप से जल प्रलय के दौरान मानवता और वेदों की रक्षा के लिए जाना जाता है। मत्स्य का अर्थ संस्कृत में “मछली“ होता है, और इस कथा में भगवान विष्णु ने एक विशाल मछली का रूप धारण किया।


कथा का सारांश

कथा के अनुसार, एक समय पृथ्वी पर मनु नामक राजा थे, जो भगवान विष्णु के परम भक्त थे। एक दिन जब मनु नदी के किनारे सूर्य को अर्घ्य दे रहे थे, तभी एक छोटी मछली उनके हाथ में आ गई। मछली ने राजा से कहा कि उसे अपने कमंडल में रख लें क्योंकि वह बड़ी मछलियों द्वारा खाई जा सकती थी। राजा ने दया दिखाते हुए मछली को अपने कमंडल में रख लिया।


जैसे-जैसे समय बीता, मछली बढ़ने लगी और अंततः राजा ने उसे समुद्र में डाल दिया। उस मछली ने राजा को बताया कि सात दिनों बाद एक भयानक जल प्रलय आने वाला है और उन्हें एक बड़ी नाव बनानी होगी जिसमें सभी जीवों और सप्त ऋषियों को सुरक्षित रखा जा सके।


जब जल प्रलय आया, तो मत्स्य रूपी भगवान विष्णु ने अपनी विशालता से नाव को सुरक्षित स्थान पर पहुँचाया। उन्होंने वासुकि नाग की रस्सी से नाव को अपने सींग पर बांधकर इसे उच्च पर्वतों की ओर ले गए।


हयग्रीव का वध

मत्स्य अवतार की दूसरी महत्वपूर्ण कथा हयग्रीव नामक दानव से संबंधित है जिसने वेदों को चुरा लिया था। भगवान विष्णु ने मत्स्य रूप धारण कर हयग्रीव का वध किया और वेदों को पुनः ब्रह्मा जी को सौंप दिया। इस प्रकार मत्स्य अवतार केवल जल प्रलय से ही नहीं बल्कि धार्मिक ज्ञान की रक्षा करने वाले भी हैं।


संकेत और प्रतीकात्मकता

इस कथा में कई प्रतीकात्मक तत्व शामिल हैं। छोटी मछली का बड़ा होना यह दर्शाता है कि कमजोर व्यक्तियों की रक्षा करना आवश्यक है ताकि वे अपनी पूर्ण क्षमता तक पहुँच सकें। इसके अलावा, नाव निर्माण और जल प्रलय से बचाव मानवता के लिए सुरक्षा और संरक्षण का प्रतीक है।


इस प्रकार, मत्स्य अवतार न केवल एक धार्मिक कथा है बल्कि यह जीवन के विभिन्न पहलुओं जैसे संरक्षण, दया और ज्ञान की रक्षा करने की आवश्यकता पर भी प्रकाश डालती है।


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Matsya Puran: 

सृष्टि की रचना कैसे हुई ? 

मत्स्य पुराण में छिपा है इस प्रश्न का उत्तर


Matsya Puran: भगवान विष्णु (Lord Vishnu) के सभी अवतारों में सबसे पहला अवतार मत्स्य अवतार (Matsya Avatar) है. इसमें भगवान विष्णु ने मछली का रूप धारण कर दैत्य पुत्र से पुन: वेदों को प्राप्त किया था.



 सृष्टि की रचना कैसे हुई? मत्स्य पुराण में छिपा है इस प्रश्न का उत्तर

मत्स्य पुराण


Matsya Puran in Hindi: 

सनातन हिंदू धर्म में पुराणों का महत्वपूर्ण स्थान होता है. इनके जरिए ईश्वर के स्वरूप, उनकी लीलाओं और जीवन के सिद्धांतों का वर्णन मिलता है. हिंदू धर्म में कुल 18 महापुराण है, जिसका संकलन महर्षि वेद व्यास द्वारा किया गया है. सभी 18 महापुराण त्रिदेवों ब्रह्मा, विष्णु और महेश पर आधारित है जोकि त्रिदेवों में प्रत्येक को 6-6 पुराण समर्पित है.


बात करें मत्स्य पुराण (Matsya Puran) की तो इसका संबंध भगवान विष्णु (Lord Vishnu) के मत्स्य अवतार (Matsya Avatar)  से है. मान्यता है कि इस पुराण को सुनने या पढ़ने से भगवान विष्णु की कृपा से कीर्ति और आयु में वृद्धि होती और व्यक्ति के सभी पाप नष्ट होते हैं. मत्स्य पुराण में 14 हजार श्लोक और 291 अध्याय है. संसार से बुराई को खत्म करने के लिए भगवान विष्णु ने कई अवतार लिए, जिसमें मत्स्य अवतार भी एक है. इस अवतार को भगवान विष्णु का पहला अवतार माना जाता है. जानते हैं मत्स्य पुराण की कथा और इससे जुड़े महत्व के बारे में.


मत्स्य पुराण की कथा (Matsya Puran ki Katha)


एक बार मनु महाराज कृत माला नदी में स्नान करने गए. वे संध्यावंदन करते हुए सूर्य को अर्घ्य दे रहे थे तभी उनके हाथ में एक छोटी सी मछली आ गई. वो जैसे ही मछली को वापस नदी में छोड़ने जा रहे थे तभी मछली ने कहा,  महाराज मुझे यहां मत छोड़िए. यहां बड़े-बड़े जीव-जन्तु हैं जो मुझे खा जायेंगे. तब मनु महाराज ने मछली को कमण्डल में रख लिया और महल ले आए.


रातभर में मछली का आकार इतना अधिक बढ़ गया कि कमण्डल में रहने के लिए पर्याप्त स्थान नहीं बचा. इसके बाद मनु महाराज ने मछली को एक बड़े से घड़े से रखा. लेकिन अगले दिन मछली का आकार और बढ़ गया और घड़ा में भी स्थान कम पड़ने लगा. तब महाराज ने उसे तालाब में छोड़ दिया. लेकिन मछली इतनी बड़ी हो गई कि तालाब भी कम पड़ गया. अंत में मनु महाराज ने मछली को गंगा जी में छोड़ दिया, जिससे वह समुद्र में चली गयी. समुद्र में भी मछली का आकार निरंतर बढ़ रहा था.


आखिरकार मनु महाराज ने कहा, प्रभु मत्स्य रूप में हमें मोहित करने वाले आप कोई साधारण शक्ति तो नहीं हो सकते. आप तो सर्वशक्तिमान, सर्वव्यापी भगवान विष्णु ही हैं. आपने मत्स्य का यह रूप क्यों धारण किया बताने की कृपा करें प्रभु.


इस कारण भगवान विष्णु ने लिया मत्स्य रूप


तब मत्स्य रूपी भगवान विष्णु ने कहा, हे राजन! प्रलय का समय नजदीक है और शीध्र ही पूरी पृथ्वी जलमग्न होने वाली है. आप एक सुदृढ़ नौका बनाकर उसमें रस्सी बनाकर सवार हो जाएं और सप्तऋषियों के साथ में बीज, भूत, औषधि आदि को लेकर मेरी प्रतीक्षा करें. उस महाप्रलय में मैं ही आपके प्राणों की रक्षा करूंगा. तब उस प्रलय काल में मेरे सींग में अपनी नौका को बांधकर आप सुरक्षित ले जाना और सृष्टि की रचना करना.  मनु महाराज ने कहा- भगवन! यह प्रलय कब आएगा और मैं सभी जीवों की रक्षा कैसे कर सकूंगा?


मत्स्य के रूप में भगवान विष्णु ने कहा– आज से लेकर सौ वर्ष पृथ्वी पर वर्षा नहीं होगी. जिस कारण भयंकर अकाल आएगा और इस तपे हुए अंगार की वर्षा करने वाली सूर्य की सात किरणें जीवों का संहार करने में ग्रहण हो जाएंगी. पाताललोक से ऊपर उठकर संकर्षण के मुख से निकली हुई विषाग्नि और भगवान शिव के तीसरे नेत्र से निकली अग्नि भी तीनों लोकों को भस्म करती हुई भभक उठेगी. इस तरह सारी पृथ्वी जलकर राख का ढेर बन जाएगी


तब संवर्त, भीमनाद, द्रोण, चंड बलाहक, विद्युत्पताक और शौण जैसे सात प्रलयकारक मेघ हैं ये सभी अग्नि के द्रव से उत्पन्न हुए जल की घोर बारिश करके पृथ्वी को डुबा देंगे. उस समय तुम इस वेदरूपी नौका मे सवार होकर समस्त जीवों, बीजों और औषधियों को लाद देना और मेरे द्वारा प्रदान की गई रस्सी से इस नाव को मेरे सींग में बांध देना. इस समय सारा देव-समूह जलकर भस्म हो जायेगा. लेकिन मेरे प्रभाव के कारण तुम सुरक्षित रह जाओगे. इस प्रलय में तुम्हारे साथ इस नौका में मैं, सोम, सूर्य, चारों लोकों सहित ब्रह्मा, पुण्यतोया नर्मदा नदी, महर्षि मार्कडेय, शंकर, चारों वेद, पुराण और विश्व ये ही बचेंगे.


भगवान, मनु महाराज से कहते हैं- इस प्रलयकाल में जब इस तरह से सारी पृथ्वी डूब जाएगी तब तुम्हारे द्वारा ही फिर से सृष्टि का प्रारंभ होगा और मैं वेदों का प्रवर्तन करूंगा. यह कहकर भगवान विष्णु मत्स्य रूप में वहीं अन्तर्धान हो गए.


जब आया प्रलय का समय


इसके बाद भगवान के कहेनुसार बड़ी सी नौका तैयार की और इसमें बीजों तथा औषधियों को स्थापित किया गया. सप्तऋषियों की सहायता से उसे महासागर ले जाया गया. सृष्टि में प्रलय प्रारंभ हो चुका था और धीरे-धीरे चारों ओर जल ही जल हो गया. मनु महाराज भगवान के मत्स्य रूप का ध्यान करने लगे और भगवान विष्णु मत्स्य रूप धारण कर प्रकट हो गए. उनके मस्तक पर दो सींग थे. राजा ने सींग में रस्सी के द्वारा नौका बांधी. मत्स्य रूप में भगवान विष्णु ने प्रलय के समय नौका को ढोते हुए मुन महाराज की रक्षा की और उसी समय राजा सत्यव्रत और सप्तऋषियों को धर्मकथा सुनाई. यही धर्म मत्स्य पुराण के नाम से जानी जाती है.


ऐसे हुई फिर से सृष्टि की रचना 


प्रलय के अंत होने के समय भगवान ने हयग्रीव असुर को वध कर उससे वेद पुन: वापस लिए और ब्रह्माजी को सौंप दिया. इस तरह धीरे-धीरे जल का प्रवाह कम होने लगा और पृथ्वी दिखने लगी. राजा सत्यव्रत ने जो बीज, औषधि रखे थे उससे पूरा संसार भर गया. इसके बाद ब्रह्मा जी ने मानसी सृष्टि की रचना की. लेकिन उस सृष्टि का कोई परिणाम न देखकर दक्ष प्रजापति मैथुनी-सृष्टि से संसार का विकास करते हैं. यही राजा सत्यव्रत सातवें वैवश्वत मनु हुए, जिनका समय आज भी चल रहा है और हम सभी मनु की संतान हैं.

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 Arvind Sisodia: 

प्रलय के बाद पुनः प्रकृति सृजन की विश्वव्यापी कथाएं 

प्रलय के बाद पुनः प्रकृति सृजन की विश्वव्यापी कथाएं कई धर्मों और संस्कृतियों में पाई जाती हैं। इनमें से कुछ प्रमुख कथाएं हैं:

- *हिंदू धर्म*: हिंदू पुराणों के अनुसार, प्रलय के बाद ब्रह्मा सो जाते हैं और जब जागते हैं तो संसार का पुनः निर्माण करते हैं और युग का आरम्भ होता है ¹। इसके अलावा, मत्स्य अवतार की कथा भी प्रलय से जुड़ी है, जिसमें भगवान विष्णु ने मत्स्य के रूप में अवतार लिया और सत्यव्रत नामक राजा को प्रलय से बचाया था।

- *इस्लाम*: इस्लामी कथा में नूह नामक एक पैगंबर की कहानी है, जिन्होंने अल्लाह की आज्ञा से एक कश्ती बनाई और अपने अनुयायियों और जोड़े पशुओं को लेकर उसमें सवार हुए। सात दिन बाद प्रलय आया और धरती पापियों से पवित्र हो गई ¹।

- *आफ्रीकी कथाएं*: आफ्रीकी धर्मों में भी प्रलय की कथाएं पाई जाती हैं, जैसे कि योरुबा धर्म में ओलोडुमारे नामक देवता की कथा, जिन्होंने प्रलय के बाद संसार का पुनः निर्माण किया था।

- *नूह की कहानी*: नूह की कहानी बाइबिल में भी पाई जाती है, जहां यहोवा ने नूह को एक कश्ती बनाने की आज्ञा दी और सात दिन बाद प्रलय आया था ¹।

इन कथाओं में प्रलय के बाद पुनः प्रकृति सृजन की विश्वव्यापी कथाएं पाई जाती हैं, जो विभिन्न धर्मों और संस्कृतियों में प्रलय के महत्व को दर्शाती हैं।


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