शनि की साढ़े साती के बारे में संपूर्ण



पिछली बार मेष राशि को साढ़ेसाती फरवरी 16, 1996 को शुरू हुई थी जब शनि देव ने मीन राशि में प्रवेश किया था और वह 23 जुलाई, 2002 तक रही थी तब तक शनि देव वृषभ राशि में थे।

साढ़े साती जन्मकालीन चंद्रमा से जब शनि देव का गोचर एक राशि पूर्व होता है तब से शुरू हो जाती है या वह जन्म राशि की अगली राशि तक रहती है।

मेष राशि के लिए साढ़े साती जब शनि देव का गोचर मीन राशि में होता है तब शुरू होती है और जब तक शनि देव वृषभ राशि में रहते हैं तब तक रहती है।

मेष राशि वालों को अब साढ़ेसाती 25 मार्च 2025 को लगेगी और यह 31 मई 2032 तक रहेगी।
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शनि की साढ़ेसाती क्यों लगती है?

शनि एवं बाकी सभी ग्रह अपनी अपनी परिभ्रमण पथ में सदैव गतिमान रहते है। इसी पथ पर सभी राशियां होती है। इन राशियों पर ग्रहों के भ्रमण को ही गोचर कहते है। शनि के गोचर को थोड़ा बारीकी से देखा जाता है, क्योंकि यह कष्ट, बिमारी, दरिद्रता, तथा मृत्यु का प्रतीक है। इसलिए इसके गोचर को साढ़े-साती, ढय्या, कंटक, आदि नामो से जाना जाता है।

शनि एक राशि में लगभग ढाई साल तक रहता है। ऐसे में उसका एक राशि पर गोचर को ढय्या कहते है। लेकिन ज्योतीष शास्त्र में इसे अशुभ परिणाम के साथ चतुर्थ और अष्टम भाव के साथ जोड़ा जाता है। जब शनि चतुर्थ या अष्टम भाव के ऊपर से गुज़रे उसे ढय्या कहते है।

ऐसे ही जब शनि चन्द्रमा से द्वादश, चंद्रमा की राशि, तथा चंद्रमा से द्वितीय भाव के ऊपर से गुजरता है , इन तीन राशियो से गुजरने में उसे लगभग साढ़े सात साल लगते है। इसे ही सादे साती कहते है। यह भी अक्सर अशुभ फलों के साथ ही जोड़ी जाती है।

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शनि की साढ़ेसाती क्यों लगती है?

कुंडली मे हर ग्रह को अपनी प्रकृति के अनुसार कार्य दिया गया है।

शनि ग्रह को न्याय का कार्य दिया गया है। न्यायधीश का कार्य विना किसी भेद भाव के न्याय करना और दंड देना है। अब किसी व्यक्ति को दंड देने का कार्य दिया है तो लोग तो उससे डरेंगे ही।

अब आते है शनि की साढ़े साती क्यों लगती है। इसका कारण है कि सभी ग्रह ब्रमांड में जिसको 12 हिस्सो में या राशियों में बांटा गया है में भृमण करते है।

शनि को एक चक्कर यानी एक भृमण करने में 30 वर्ष लगते या यानी एक राशि मे ढाई वर्ष। जिस राशि मे चंद्रमा होता है उस राशि से एक स्थान पहले ओर एक स्थान वाद तक चंद्रमा के कारण शनि अपना फल देता है। ओर यह अवस्था हर व्यक्ति की जीवन मे तीन बार आती है।

बाल्यकाल में यह फल बच्चे को न मिल कर माता पिता को मिलता है या वच्चा थोड़ा बड़ा है तो पढ़ाई पर भी असर करता है। दुबारा यह  युवा अवस्था मे आती है और तीसरी वर्द्धवस्था में। दुतीय अवस्था में यह व्यक्ति के रोजगार पर ओर तृतीय में ये व्यक्ति के शरीर पर असर करती है।

शनि की साढ़े साती हमेशा ही दुखदाई नही होती है जो व्यक्ति शुभ आचरण करते है या जिनके कुंडली में शनि योगकारी है उनको यह दशा जाती अवस्था मे शुभ फल देकर जाती है व्यक्ति उस अवस्था मे वहूत उन्नति करता है।

लोग भले ही न माने, लेकिन मेरा मानना है कि शनि देव आडम्बर से मुक्त है । इन्हें वैराग्य पसंद है। उन्हें पूजा पाठ, चढ़ावा पसंद नही है बे केवल मेहनत करने, सद आचरण करने , माता पिता की सेवा और निर्धन ओर वंचित वर्ग की सेवा से खुश रहते है।

उन्हें ढोंग करने से सख्त नफरत है और उन व्यक्तियों को जो छोटे लोगों पर जुल्म करते है उनको पहले गलत कार्य खूब राहु के द्वारा करा के उसकी उन्नति कराते है फिर अपनी दशा में व्यक्ति को जेल भिजवा देते है।
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6 मार्च 1957 को मेष राशि में जन्मे जातक पर शनि की साढ़े साती की घटनाएं निम्नलिखित हैं:

- _1971-1978_: शनि की साढ़े साती की पहली घटना (जातक की आयु 14-21 वर्ष)
- _1998-2005_: शनि की साढ़े साती की दूसरी घटना (जातक की आयु 41-48 वर्ष)
- _2022-2029_: शनि की साढ़े साती की तीसरी घटना (जातक की आयु 65-72 वर्ष, वर्तमान में चल रही है)

यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि साढ़े साती का प्रभाव व्यक्तिगत रूप से अलग-अलग हो सकता है, और इसके लिए ज्योतिषी की सलाह लेना उचित होगा.
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नमस्कार,

पिछली बार मेष राशि को साढ़ेसाती फरवरी 16, 1996 को शुरू हुई थी जब शनि देव ने मीन राशि में प्रवेश किया था और वह 23 जुलाई, 2002 तक रही थी तब तक शनि देव वृषभ राशि में थे।

साढ़े साती जन्मकालीन चंद्रमा से जब शनि देव का गोचर एक राशि पूर्व होता है तब से शुरू हो जाती है या वह जन्म राशि की अगली राशि तक रहती है।

मेष राशि के लिए साढ़े साती जब शनि देव का गोचर मीन राशि में होता है तब शुरू होती है और जब तक शनि देव वृषभ राशि में रहते हैं तब तक रहती है।

मेष राशि वालों को अब साढ़ेसाती 25 मार्च 2025 को लगेगी और यह 31 मई 2032 तक रहेगी

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शनि की साढ़ेसाती क्यों लगती है?

शनि एवं बाकी सभी ग्रह अपनी अपनी परिभ्रमण पथ में सदैव गतिमान रहते है। इसी पथ पर सभी राशियां होती है। इन राशियों पर ग्रहों के भ्रमण को ही गोचर कहते है। शनि के गोचर को थोड़ा बारीकी से देखा जाता है, क्योंकि यह कष्ट, बिमारी, दरिद्रता, तथा मृत्यु का प्रतीक है। इसलिए इसके गोचर को साढ़े-साती, ढय्या, कंटक, आदि नामो से जाना जाता है।

शनि एक राशि में लगभग ढाई साल तक रहता है। ऐसे में उसका एक राशि पर गोचर को ढय्या कहते है। लेकिन ज्योतीष शास्त्र में इसे अशुभ परिणाम के साथ चतुर्थ और अष्टम भाव के साथ जोड़ा जाता है। जब शनि चतुर्थ या अष्टम भाव के ऊपर से गुज़रे उसे ढय्या कहते है।

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शनि की साढ़ेसाती क्यों लगती है?

कुंडली मे हर ग्रह को अपनी प्रकृति के अनुसार कार्य दिया गया है।

शनि ग्रह को न्याय का कार्य दिया गया है। न्यायधीश का कार्य विना किसी भेद भाव के न्याय करना और दंड देना है। अब किसी व्यक्ति को दंड देने का कार्य दिया है तो लोग तो उससे डरेंगे ही।

अब आते है शनि की साढ़े साती क्यों लगती है। इसका कारण है कि सभी ग्रह ब्रमांड में जिसको 12 हिस्सो में या राशियों में बांटा गया है में भृमण करते है।

शनि को एक चक्कर यानी एक भृमण करने में 30 वर्ष लगते या यानी एक राशि मे ढाई वर्ष। जिस राशि मे चंद्रमा होता है उस राशि से एक स्थान पहले ओर एक स्थान वाद तक चंद्रमा के कारण शनि अपना फल देता है। ओर यह अवस्था हर व्यक्ति की जीवन में आती है ।


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शनि की साढ़ेसाती यह एक बड़ा ही रोचक विषय है, क्योंकि जनमानस में बड़ी भ्रांतियां हैं। इसलिए मैं स्वयम चाहता हूँ कि ये भ्रांतियां दूर हों। इसीलिये इस बारे में मैं अपना अध्ययन आपके साथ साझा करते हुए प्रसन्नता का अनुभव कर रहा हूँ।

पहली बात यह है कि कुंडली में चंद्र जिस राशि में होता है वह आपकी 'राशि' कहलाती है। इसी चंद्रराशि से पिछली राशि में जब गोचर शनि प्रवेश करता है तब शनि की साढ़ेसाती का आरंभ होता है, शनि चूंकि एक राशि में लगभग ढाई वर्ष तक रहते है, इसलिए चंद्र की पिछली राशि के ढाई वर्ष, चंद्रराशी के ढाई वर्ष तथा चंद्रराशी की अगली राशि के ढाई वर्ष, ऐसे तीनों राशियों में कुल मिलाकर साढ़ेसात वर्षों तक शनि के इस गोचर भ्रमण काल को 'साढ़ेसाती' कहते हैं।

किंतु पूर्ण जानकारी के अभाव में इस 'साढ़ेसाती' को लेकर जनमानस में कई प्रकार की भयावह भ्रांतियां फैली हुई हैं। जैसे 'साढ़ेसाती' के दौर में सबकुछ चौपट हो जाता है, आदि।

वास्तविकता क्या है?

1. शनि की साढ़ेसाती सभी राशियों के लिए प्रतिकूल नहीं होती।

2.वृषभ एवम तुला इन शुक्र की राशियों के लिए चंद्रकुण्डली में शनि योगकारक होता है। तुला शनि की उच्च राशि भी है।

3. मकर एवम कुम्भ शनि की स्वराशियाँ हैं।

4. मिथुन एवं कन्या मित्र बुध की राशियां हैं।

इसलिए

वृषभ के लिए मेष राशि वाले पहले ढाई वर्ष

मिथुन के लिए कर्क राशिवाले अंतिम ढाई वर्ष

कन्या के लिए सिंह राशि वाले पहले ढाई वर्ष

तुला के लिए वृश्चिक राशिवाले अंतिम ढाई वर्ष

मकर के लिए धनु राशि वाले पहले ढाई वर्ष

कुम्भ के लिए मीन राशि वाले अंतिम ढाई वर्ष

इस प्रकार से हम देखते हैं कि उक्त राशियों में शनि की साढ़ेसाती का प्रायः केवल एक ढैया ही कुछ मानसिक चिंताएं देता है, शेष पांच साल नहीं।

इसी तरह से शेष राशियों में भी साढ़ेसाती की तीन राशियों में से शनि जब अपनी शत्रु, अधिशत्रु राशियों में भ्रमण करता है उसी कालखंड में मानसिक रूप से जातक के अहंकार को चुनौती देता है और मान-सम्मान आदि के मिथ्या मोह को भंग कर भगवान का स्मरण कराता है।

शनि की साढ़ेसाती का अध्ययन करने के संबंध में मेरे ज्योतिषगुरु गुरुवर्य श्री.व.दा.भट कहते हैं :-

1. शनि की साढ़ेसाती का अध्ययन करते समय, लग्नकुंडली में लग्नराशि कौन सी है देखें।

2. मूल शनि कौन से घर में है, कौन सी राशि में है यह अवश्य देखें।

3. साढ़ेसाती के दौरान चंद्र यदि गोचर ग्रहों की पापकर्तरी में होगा तो अधिक कष्टकारक होगा।

4. लग्नकुंडली में मूल राहू की स्थिति तथा राहू की गोचर स्थिति को भी देखना चाहिए।

5. साढ़ेसाती के दौरान शनि कौन से भाव मे तथा कौन से ग्रह के ऊपर से भ्रमण कर रहा है, इसको भी विचार में लें।

6. यह भी देखें कि साढ़ेसाती के दौरान जिस भाव में शनि भ्रमण कर रहा है, क्या उस भाव को बृहस्पति द्वारा कोई संरक्षण प्राप्त हो रहा है?

इस तरह से हम देखते हैं कि शनि की साढ़ेसाती को लेकर एकदम से भयभीत होने की आवश्यकता नहीं है। उपरोक्त मुद्दों के सर्वांगीण अध्ययन के पश्चात ही किसी नतीजे पर पहुंचना चाहिए।

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श्रीमान जी,

हमारे संस्कृती विशेषत: ज्योतिष शास्त्रमें शनी महाराज एक कठोर स्वभाव वाले ग्रह तथा न्यायिक ग्रह का मान दिया है | वास्तविक न्यायिक होनेसे ही वे कठोर लगते है |

मुख्यतः हमारे नव (९) ग्रह है, हर ग्रह की अपनी अपनी गती है | सब ग्रह १२ राशीयोंमें अपने अपने गतीसे संक्रमन करते है,सबसे धिमी गतीसे चलते है,शनी महाराज (शनै का मतलब ही धिमी), उनको एक राशीसे दुसरे राशीमें प्रवेश करने के लिए पूरे ढाई साल (30मास) लगते है, लेकीन वह जिस राशी में होते उस राशी की परिक्षा लेते है वह राशी की पूर्व राशी और उस राशीके पश्चात की राशी की भी परिक्षा शुरु होती है | अर्थात 2½ साल X 3=7½साल | साडेसात का साडेसाती शब्द बन गया |

१२राशीमें शनी महाराज गुजरते है, प्रत्येख जातक की भी एक चंद्र राशी होती है ,उसको यह साडेसात (साडेसाती का)वर्ष का अनुभव करना ही पडता है |



शनि या शनि की साढ़ेसाती से डरें नहीं । वैसे तो शनि शुद्र,अशुभ और क्रूर ग्रह है ।शनि आपके कर्मफल का दाता है । यह पूर्व जन्मों और वर्तमान कर्मों के फल से जुड़ा है।कर्म से ही बनतें हैं,आपके प्रारब्ध यानी-भोग । अतः शनि आपके कर्मों का न्यायाधीश है ।शनि नरक का अधिपति भी है ।अतः शनि आपकी अंतिम साँसों तक जुड़ा रहता है ।बेहतर है -अच्छे कर्म करते रहें ।

जहां तक शनि की साढ़ेसाती का सवाल है -यह हर सुख ,चैन छीन लेता है । बेहतर यही होता है ,बतौर टैक्स हम हर शनिवार को उनकी प्रिय वस्तुओं का दान करें, ताकि प्रारब्ध से मिला भोग कटता रहे । प्रभाव कम होता रहे ।शनि के दान में-लोहा,काला तिल, काला उरद, सरसों का तेल ,काला कपड़ा आदि शामिल है । हम साढेसाती के दौर में काला , नीले रंग का कम उपयोग करें ।रोजमर्रा उपयोग में आने वाली वस्तुएं -कलम, कंघी, तौलिया, टूथब्रश, अंडर गारमेंट्स और रूमाल आदि नीले ,काले रंग का इस्तेमाल न करें ।इस रंग से जुड़ी कोई भी दान हम गिफ्ट में न लें ।

शनि का दान करतें समय 11 बार ॐ शनैश्चराय नमः का जप करते हुए दान की वस्तुओं को स्पर्श करें और बोलें- हे!शनिदेव मेरे पूर्व और इस जन्म के अपराधों को क्षमा कर मुझे शुभता प्रदान करें , मैं यह दान इसी कृपा के लिए कर रहा/रही हूँ । शनि से जुड़े पौधे शमी या पीपल के पेड़ को प्रणाम करें ।

शनि की साढ़ेसाती 7 साल यानी ढाई साल सिर पर, फिर ढाई साल हृदय पर और अंत मे ढाई साल पैर पर होता है । ऐसी स्थिति में बुद्धि, मन ,और पैर के चक्र पर नियन्त्रण रखने के लिए ईश्वर की कृपा चाहिए । हम स्वयं में बेबस रहतें हैं ।ऐसी कृपा आपको भगवान शंकर, रुद्रावतार हनुमानजी की भावपूर्ण अराधना से प्राप्त होती है । भयंकर पीड़ा की स्थिति में पंचमुखी हनुमानजी के चरणों मे पीला सिन्दूर और ओर चमेली के तेल का लेप करते हुए, उसी समय शंख बजा दें ।फिर उस चंदन को अपने मस्तक या गले पर लगाएं । यदि व्यवसाय करते हों तो अपने गल्ले में लगाएं । शनिवार को हनुमानजी के सामने चमेली के तेल का दिया जलाएं । मंगलवार को महीने में एक बार खड़ाऊं, लाल लंगोट, रामनामी दुपट्टा, चमेली का तेल ,पीला सिन्दूर ,जनेऊ कपूर, धूप हनुमानजी के मंदिर में दान करते हुए बोलें -प्रभु इस कष्ट से उबारिये । मंगलवार को सुंदरकांड, बजरंगबाण या हनुमानचालीसा का पाठ करें । हनुमानजी सहज, बलशाली देवता हैं ।उनके लिए ग्रह कुछ भी नहीं है। बचपन में ग्रहों के राजा सूर्य को निगल लिया, शनि को बाजू में दबा लिया । वो भक्तों की जल्द सुनतें हैं ,बशर्ते उन्हें आप शबरी के जूठे बेर वाली भावना से पुकारें । सूर्य को निगलने के बाद ऋषि मुनियों ने उन्हें बल के लिए शापित कर दिया था यानी हनुमानजी को अपने बल का खुद एहसास नहीं होगा ।अतः उनसे प्रार्थना करने से पहले रामदरबार को प्रणाम करें और फिर उनके बलशाली रूप का धयान करें ।

मैंने कई कुंडलियों में देखा है ,शनि जिनके कारक ग्रह हैं उनका साढ़ेसाती में अनर्थ नहीं होता ,बस उनके कार्य धीमे हो जाते हैं ,अंत मे जाते-जाते शनि उनके सभी नुकसान की भरपाई कर देते हैं । अगर कुंडली में शनि अशुभ है,सूर्य और मंगल कारक ग्रह हैं तो उन्हें मजबूत करें।शनि मेष राशि में अशुभ होता है ।कुंडली मे छठे, अष्टम (विशेषकर)और द्वादश का शनि अपनी साढ़ेसाती के दौरान मृत्युतुल्य कष्ट देता है ।ये तीव्रतम प्रारब्ध है ।पूरी ईश्वर की कृपा चाहिए । अशुभ शनि पूरे जीवन परेशान करता है ।शनि सांसारिक चीजों से पूरी तरह तोड़ कर एकाकी बना देता है ।

ऐसा हम क्या करें -शनि की कृपा हमेशा हमपर बरसती रहे । शनि साधना ,धर्म का परिचायक बनकर सेवक भी है । विकलांगो, गरीबों की मदद करने पर शनि बेहद प्रसन्न होते हैं ।खासकर गरीब और असहाय महिलाओं को क्षमा करते हुए, उन्हें मदद कर जिंदगी का सही रास्ता दिखाएं ।गरीब लड़कियों की शादी में रुचि लें । ऐसा इसलिए कि महर्षि पराशर के अनुसार शनि और शुक्र दोनो एक दूसरे की दशा और अन्तर्दशा में साहचर्य नियम को निभाते हुए एक दूसरे का विशेष सहयोग करतें हैं । शुक्र हर सांसारिक सुख ,सम्मान और वैभव देता है ।शुक्र का विशेष प्रतीक महिला होती है ।इसलिए असहाय महिलाओं की मदद करते रहें । उन्हें अपमानित न करें। यदि आपने जीवन में इन आदर्शो को अपनाते हुए अपने कर्मों से साकार कर दिया तो शनि की विशेष कृपा आप पर बरसती रहेगी । फिर कैसा शनि या उसकी साढ़ेसाती से डर...?

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हिन्दू संस्कृति में जब भी नवग्रहों की बात आती है तो सबसे ज़्यादा प्रसिद्ध नाम शनि ग्रह का ही है। भारतीय ज्योतिष के अनुसार शनि की साढ़े साती का अर्थ एक ग्रह दशा है जो कि साढ़े सात वर्ष तक चलती है। जैसा कि हम सभी जानते ही हैं कि सूर्यमण्डल में मौजूद सभी ग्रह अपनी-अपनी गति से सूर्य की परिक्रमा करते हैं, इस परिक्रमा के ये ग्रह एक राशि से दूसरी राशि में भ्रमण करते रहते हैं। इन सब में सबसे धीमी गति शनि की ही होती है, इसलिए इसके प्रभाव और योग भी लंबे समय तक हमें प्रभावित करते हैं। और जब शनि ग्रह लग्न से बारहवीं राशि में प्रवेश करता है तो उस विशेष राशि से अगली दो राशि में गुजरते हुए अपना समय चक्र पूरा करता है। यह एक राशि से दूसरी राशि तक गोचर करने में ढाई वर्ष का समय लेता है, इस प्रकार जब यह एक राशि में मौजूद होता है तो एक पिछले तथा एक अगले ग्रह पर प्रभाव डालते हुए ये तीन गुणा, अर्थात साढ़े सात वर्ष की अवधि का काल साढ़े सात वर्ष का होता है। भारतीय ज्योतिष में इसे ही साढ़े साती के नाम से जाना जाता है। और जिस भी राशि में यह होता है उस राशि के नाम अनुसार कहा जाता है कि शनि की साढ़े चल रही है।

ऐसी स्थिति में व्यक्ति के सारे काम धीमे होने लगते है, मति भ्रम कि स्थिति बनने लगती है। आवश्यकता से अधिक समय खर्च होने लगता है, आलस आता है, काम में मन नही लगता, रचनात्मकता और स्किल धीमी हो जाती है, नेगेटिविटी कि तरफ दिमाग जाता है और कोई भी काम पूरा नहीं होता।

लोगों में एक भ्रम होता है कि शनि केवल अच्छी खासी ज़िंदगी को खराब करने के लिए ही बने है, जबकि ऐसा नहीं है। शनि देव की कृपा अगर हो जाए तो व्यक्ति के खराब से खराब जीवन में भी जीवन भर के लिए खुशियों की बहार आ जाती है। इसलिए किसी अच्छे व योग्य ज्योतिषी के परामर्श से शनि देव को प्रसन्न करने के लिए स्वच्छ भावना से उपाय किए जाने चाहिए।

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केवल गणितीय दृष्टि से देखा जाय, तो ज्यादा से ज्यादा 4 बार। दो साढें साती के बीच का समय 30 वर्ष का होता है। ऐसे में अगर कोई जातक साढे साती में ही पैदा हुआ हो तो, वह उसकी पहली साढे साती होगी, उसके बाद 30–30 सालो के हिसाब से देखे तो दूसरी 30 वर्ष की आयु में, तीसरी 60 वर्ष की आयु में, और चतुर्थ 90 वर्ष की आयु में। अब जन्म के समय जो सादे साती मिली वह मिलते ही खत्म तो नहीं हुई होगी। इसलिए यह समय भी थोड़ा आगे बढ़ेगा।

यह तीन या चार साढें साती सिर्फ तभी मिल सकती है जब कुंडली में शनि की स्तिथि शुभ हो और वह बलि हो , और जातक की पूर्ण आयु हो। अन्यथा तीसरी साढें साती तक जीवन चलना मुश्किल होता है।

कुछ ज्योतिषी जन्म के समय की साढ़े साती को पहली साढ़े साती नहीं मानते, लेकिन गणित की दृष्टि से ही सही होती तो वह भी साढ़े साती ही है ।

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शनि की साढ़ेसाती का निवारण क्या है?

शनि की साढ़ेसाती जीवन में एक चुनौतीपूर्ण समय मानी जाती है, जो व्यक्ति की कुंडली में शनि के गोचर के दौरान होती है। यह साढ़ेसाती तब शुरू होती है जब शनि व्यक्ति की जन्म राशि से पहले वाले, जन्म राशि के, और उसके बाद वाले तीन राशियों में से गुजरता है। कुल मिलाकर यह अवधि लगभग 7.5 वर्षों तक चलती है। इस दौरान व्यक्ति को जीवन में कई प्रकार की कठिनाइयों, संघर्षों और चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।

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एक उदाहरण से समझते हैं ।

महादशा ( मुख्य स्थिति, कंडीशन) आपके स्वास्थ्य की मुख्य स्थिति जैसी है अर्थात बचपन, जवानी , बुढ़ापा की तरह आप अपनी आयु एक क्रम में ही व्यतीत करेंगे । महादशा जन्म से ही आरम्भ हो जाती है और एजिंग प्रोसेस की तरह 120 साल (विंशोत्तरी में) धीरे धीरे चलती रहती है ।

19 साल की शनि महादशा को बुढापे की तरह कष्टकारी मान सकते हैं । लेकिन सबको जीवन में शनि महादशा मिले यह आवश्यक नहीं है , जिस तरह यह जरूरी नहीं है कि हर व्यक्ति बुढ़ापा भुगत के मरे।

महादशा स्वास्थ्य की तरह आपका व्यक्तिगत प्रभाव है लिवर, किडनी , ह्रदय की दशा की तरह । यही बात शनि अंतर्दशा के लिए छोटी अवधि की बीमारी वगैरह की तरह समझ सकते हैं ।


अब आते हैं गोचर प्रभाव पर ।

यह एक सामूहिक प्रभाव है ग्रह का वर्तमान मौसम की तरह । यह स्वास्थ्य की तरह एक व्यक्ति के लिए नहीं है । यह एक व्यक्ति समूह के लिए प्रभाव है आंधी, तूफान, बाढ़ , भूकंप की तरह । एक राशि समूह के लिए यह प्रभाव समान होगा । मौसम की तरह यह जल्दी जल्दी और सामूहिक रूप से आएगा ।

शनि साढ़ेसाती शनि का गोचर प्रभाव है जो एक चन्द्र राशि के व्यक्ति समूह को हर 30 साल में , साढ़े सात साल के लिए सबको मिलेगा , चाहे वह किसी भी महादशा में हों ।

इसलिए साढ़ेसाती शनि की महादशा में भी आती है और अन्य ग्रहों की महादशा में भी ।

कोई भी महादशा मानव जीवन में रिपीट होना मुश्किल है 120 साल का क्रम होने से , पर साढ़ेसाती हर 30 साल बाद रिपीट होगी साढ़ेसात साल के लिए ।

इसका अलावा दो बार ढैया भी होतीं हैं हर 30 साल में ढाई साल के लिए । इनका असर साढ़ेसाती के मुकाबले एक तिहाई होता है ।


उदाहरण के लिए एक बच्चा और एक बूढ़ा लें । बच्चे को चन्द्र महादशा में मान सकते हैं जिसका स्वास्थ्य अच्छा है , बूढ़े को शनि महादशा मान सकते हैं खराब स्वास्थ्य के कारण । दोनों अलग अलग स्वास्थ्य स्थिति में हैं । दोनों एक कार में जा रहे हैं और सड़क पर एक बड़ा एक्सीडेंट हो जाता है । यह एक्सीडेंट शनि के गोचर की तरह है जिसका स्वास्थ्य से कोई लेना देना नहीं है , इसमें समान रूप से सभी लोग नुकसान उठा सकते हैं ।

बच्चे और वृद्ध दोनों को फ्रैक्चर हो सकता है ।

बस बच्चे की दशा अच्छी होने से उसकी रिकवरी अच्छी हो जाएगी , वृद्ध को दोहरी मार पड़ेगी (शनि महादशा और शनि गोचर साढ़ेसाती दोनों एक साथ) ।

आंकड़ों के हिसाब से , दुनियां में लगभग एक तिहाई लोगों को शनि महादशा और शनि साढ़ेसाती से एक साथ रूबरू होना पड़ता है ।

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*शनि साढ़ेसाती,ढैय्या एवं शनि दशा के प्रभाव ,कब कष्टदायी होती है साढ़ेसाती ?*

क्या राजयोग भी देती हैं साढ़े साती ?

शनि का प्रभाव--जैमिनी ऋषि के अनुसार कलियुग में शनि का सबसे ज्यादा प्रभाव है। शनि ग्रह स्थिरता का प्रतीक है। कार्यकुशलता, गंभीर विचार, ध्यान और विमर्श शनि के प्रभाव में आते हैं। शनि शांत, सहनशील, स्थिर और दृढ़ प्रवृत्ति का होता है। उल्लास, आनंद, प्रसन्नता में गुण स्वभाव में नहीं है।

शनि को यम भी कहते हैं। शनि की वस्तुएं नीलम, कोयला, लोहा, काली दालें, सरसों का तेल, नीला कप़डा, चम़डा आदि है। यह कहा जा सकता है कि चन्द्र मन का कारक है तथा शनि बल या दबाव डालता है।

मेष राशि जहां नीच राशि है, वहीं शत्रु राशि भी और तुला जहां मित्र राशि है वहीं उच्च राशि भी है। शनि वात रोग, मृत्यु, चोर-डकैती मामला, मुकद्दमा, फांसी, जेल, तस्करी, जुआ, जासूसी, शत्रुता, लाभ-हानि, दिवालिया, राजदंड, त्याग पत्र, राज्य भंग, राज्य लाभ या व्यापार-व्यवसाय का कारक माना जाता है।

शनि की दृष्टि-- शनि जिस राशि में स्थित होता है उससे तृतीय, सप्तम और दशम राशि पर पूर्ण दृष्टि रखता है। ऐसा भी माना जाता है, कि शनि जहाँ बैठता है, वहां तो हानि नहीं करता, पर जहाँ-२ उसकी दृष्टि पड़ती है, वहां बहुत हानि होती है (हालाँकि वास्तविकता में यह भी देखना पड़ता है, कि बैठने/दृष्टि का घर शनि के मित्र ग्रह का है, या शत्रु ग्रह, आदि)

शनि की साढ़ेसाती तब शुरू होती है जब शनि गोचर में जन्म राशि से 12वें घर में भ्रमण करने लगता है, और तब तक रहती है जब वह जन्म राशि से द्वितीय भाव में स्थित रहता है। वास्तव में शनि जन्म राशि से 45 अंश से 45 अंश बाद तक जब भ्रमण करता है तब उसकी साढ़ेसाती होती है।

इसी प्रकार चंद्र राशि से चतुर्थ या अष्टम भाव में शनि के जाने पर ढैया आरंभ होती है। सूक्ष्म नियम के अनुसार जन्म राशि से चतुर्थ भाव के आरंभ से पंचम भाव की संधि तक और अष्टम भाव के आरंभ से नवम भाव की संधि तक शनि की ढैया होनी चाहिए।

साढ़ेसाती और ढैय्या हमेशा राशि - यानि कि जिस राशि में जन्म कुण्डली में चन्द्रमा स्थित होता है, उस से देखी जाती हैं.

भ्रम--शनि की साढ़े साती की शुरूआत को लेकर जहां कई तरह की विचारधाराएं मिलती हैं वहीं इसके प्रभाव को लेकर भी हमारे मन में भ्रम और कपोल कल्पित विचारों का ताना बाना बुना रहता है। जन-मानस में इसके बारे में बहुत सारे भ्रम भी व्याप्त हैं। यह किसी भी प्राणी को अकारण दंडित नहीं करता है। लोग यह सोच कर ही घबरा जाते हैं कि शनि की साढ़े साती शुरू हो गयी तो कष्ट और परेशानियों की शुरूआत होने वाली है। वास्तव में अलग अलग राशियों के व्यक्तियों पर शनि का प्रभाव अलग अलग होता है।

लक्षण और उपाय️

क्रोधित शनि के अवस्था में मिलते हैं ये संकेत, शनिदेव की स्थिति आपकी कुंडली में कैसी है उससे पता लगता है, लेकिन इसके अलावा जीवन में कुछ ऐसी घटनाएं भी घटित होती हैं जो ये बताने के लिए काफी हैं कि आपके ऊपर शनिदेव का कैसा प्रभाव है। इस लेख के जरिए आज हम आपको ये बताने जा रहे हैं कि अगर शनिदेव आपसे क्रोधित है तो आपको कैसे-कैसे संकेत प्राप्त हो सकते हैं।

पीपल️

अगर न्याय के देवता शनिदेव आपसे क्रोधित हैं तो आपके घर की बाहरी दीवार पर अपने आप पीपल का वृक्ष उगने लगता है। आप चाहे कितनी ही बार इउसे उखाड़ लें, वे फिर उगने लगेगा।

मकड़ियां️

दिन में कई बार सफाई करने के बावजूद, अगर आपके घर में मकड़ियां मौजूद हैं, उन्होंने अपना जाल बना रखा है तो यह इस बात का संकेत है कि शनिदेव किसी वजह से आपसे क्रोधित हैं। आपको उन्हें शांत और प्रसन्न करने के उपाय अवश्य करने चाहिए।

चिंटियां

जिस जातक से शनिदेव क्रोधित होते हैं उसके घर में चिंटियां अपना बसेरा बनाकर रहने लगती हैं। अकसर चिंटियां मीठे खाने पर आती हैं लेकिन इस मसलें में वह नमकीन भोजन को भी नहीं छोड़तीं। घर की सफाई करने के बाद भी चिंटियां वहीं रहती हैं, तो यह आपके लिए चेतावनी है कि आपको शनि देव को प्रसन्न करने की कोशिश करनी चाहिए।

पैतृक संपत्ति

शनिदेव के क्रोधित होने जैसे स्थिति पर व्यक्ति को संपत्ति से संबंधित मसलों में हार का सामना करना पड़ता है। उसके जीवन का एक लंबा समय संपत्ति की लड़ाई में बीत जाता है और फिर भी उसे सफलता नहीं मिलती। पैतृक संपत्ति को लेकर रिश्तेदारों से बहस हो सकती है। अगर आपके घर की दीवार बार-बार गिरती है, ठीक करवाने के बाद भी अगर वह स्थिर नहीं होती, कई बार तो घर दोबारा बनवाने की नौबत भी आ जाती है तो यह भी शनिदेव के क्रोध को ही दर्शाती है।

काली बिल्ली

काली बिल्लियों का घर में रहना और यही बच्चे देना, दो बिल्लियों का आपके घर में हमेशा लड़ते रहना, ये सब घर में शनिदेव के कुप्रभाव को दर्शाते हैं। दो बिल्लियों के घर में लड़ने से घर में क्लेश भी होते रहते हैं।

अन्य विस्तृत लक्षण--जिस प्रकार हर पीला दिखने वाला धातु सोना नहीं होता उस प्रकार जीवन में आने वाले सभी कष्ट का कारण शनि नहीं होता। आपके जीवन में सफलता और खुशियों में बाधा आ रही है तो इसका कारण अन्य ग्रहों का कमज़ोर या नीच स्थिति में होना भी हो सकता है। आप अकारण ही शनिदेव को दोष न दें फिर शनि के प्रभाव में कमी लाने हेतु आवश्यक उपाय करें।

ज्योतिषशास्त्र में बताया गया है कि शनि की साढ़ेसाती और ढैय्या आने के कुछ लक्षण हैं जिनसे आप खुद जान सकते हैं कि आपके लिए शनि शुभ हैं या प्रतिकूल।

जैसे घर, दीवार का कोई भाग अचानक गिर जाता है। घर के निर्माण या मरम्मत में व्यक्ति को काफी धन खर्च करना पड़ता है।

घर के अधिकांश सदस्य बीमार रहते हैं, घर में अचानक अग लग जाती है, आपको बार-बार अपमानित होना पड़ता है। घर की महिलाएं अक्सर बीमार रहती हैं, एक परेशानी से आप जैसे ही निकलते हैं दूसरी परेशानी सिर उठाए खड़ी रहती है। व्यापार एवं व्यवसाय में असफलता और नुकसान होता है। घर में मांसाहार एवं मादक पदार्थों के प्रति लोगों का रूझान काफी बढ़ जाता है। घर में आये दिन कलह होने लगता है। अकारण ही आपके ऊपर कलंक या इल्ज़ाम लगता है। आंख व कान में तकलीफ महसूस होती है एवं आपके घर से चप्पल जूते गायब होने लगते हैं, या जल्दी-जल्दी टूटने लगते हैं। इसके अलावा अकारण ही लंबी दूरी की यात्राएं करनी पड़ती है।

नौकरी एवं व्यवसाय में परेशानी आने लगती है। मेहनत करने पर भी व्यक्ति को पदोन्नति नहीं मिल पाती है। अधिकारियों से संबंध बिगड़ने लगते हैं और नौकरी छूट जाती है।

व्यक्ति को अनचाही जगह पर तबादला मिलता है। व्यक्ति को अपने पद से नीचे के पद पर जाकर काम करना पड़ता है। आर्थिक परेशानी बढ़ जाती है। व्यापार करने वाले को घाटा उठाना पड़ता है।

आजीविका में परेशानी आने के कारण व्यक्ति मानसिक तौर पर उलझन में रहता है। इसका स्वास्थ्य पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है।

व्यक्ति को जमीन एवं मकान से जुड़े विवादों का सामना करना पड़ता है।

सगे-संबंधियों एवं रिश्तेदारों में किसी पैतृक संपत्ति को लेकर आपसी मनमुटाव और मतभेद बढ़ जाता है। शनि महाराज भाइयों के बीच दूरियां भी बढ़ा देते हैं।

शनि का प्रकोप जब किसी व्यक्ति पर होने वाला होता है तो कई प्रकार के संकेत शनि देते हैं। इनमें एक संकेत है व्यक्ति का अचानक झूठ बोलना बढ़ जाना।

उपाय--

शनिदेव भगवान शंकर के भक्त हैं, भगवान शंकर की जिनके ऊपर कृपा होती है उन्हें शनि हानि नहीं पहुंचाते अत: नियमित रूप से शिवलिंग की पूजा व अराधना करनी चाहिए। पीपल में सभी देवताओं का निवास कहा गया है इस हेतु पीपल को आर्घ देने अर्थात जल देने से शनि देव प्रसन्न होते हैं। अनुराधा नक्षत्र में जिस दिन अमावस्या हो और शनिवार का दिन हो उस दिन आप तेल, तिल सहित विधि पूर्वक पीपल वृक्ष की पूजा करें तो शनि के कोप से आपको मुक्ति मिलती है। शनिदेव की प्रसन्नता हेतु शनि स्तोत्र का नियमित पाठ करना चाहिए।

शनि के कोप से बचने हेतु आप हनुमान जी की आराधाना कर सकते हैं, क्योंकि शास्त्रों में हनुमान जी को रूद्रावतार कहा गया है। आप साढ़े साते से मुक्ति हेतु शनिवार को बंदरों को केला व चना खिला सकते हैं। नाव के तले में लगी कील और काले घोड़े का नाल भी शनि की साढ़े साती के कुप्रभाव से आपको बचा सकता है अगर आप इनकी अंगूठी बनवाकर धारण करते हैं। लोहे से बने बर्तन, काला कपड़ा, सरसों का तेल, चमड़े के जूते, काला सुरमा, काले चने, काले तिल, उड़द की साबूत दाल ये तमाम चीज़ें शनि ग्रह से सम्बन्धित वस्तुएं हैं, शनिवार के दिन इन वस्तुओं का दान करने से एवं काले वस्त्र एवं काली वस्तुओं का उपयोग करने से शनि की प्रसन्नता प्राप्त होती है।

साढ़े साती के कष्टकारी प्रभाव से बचने हेतु आप चाहें तो इन उपायों से भी लाभ ले सकते हैं

शनिवार के दिन शनि देव के नाम पर व्रत रख सकते हैं।

नारियल अथवा बादाम शनिवार के दिन सर से 11 बार उत्तर कर जल में प्रवाहित कर सकते हैं।

नियमित 108 बार शनि की तात्रिक मंत्र का जाप कर सकते हैं स्वयं शनि देव इस स्तोत्र को महिमा मंडित करते हैं।

महामृत्युंजय मंत्र काल का अंत करने वाला है आप शनि की दशा से बचने हेतु किसी योग्य पंडित से महामृत्युंजय मंत्र द्वारा शिव का अभिषेक कराएं तो शनि के फंदे से आप मुक्त हो जाएंगे।

किसी शनिवार की शाम जूते का दान करें।

साढ़े साती शुभ लक्षण:-

शनि की ढईया और साढ़े साती का नाम सुनकर बड़े बड़े पराक्रमी और धनवानों के चेहरे की रंगत उड़ जाती है। शनि सभी व्यक्ति के लिए कष्टकारी नहीं होते हैं। शनि की दशा के दौरान बहुत से लोगों को अपेक्षा से बढ़कर लाभ-सम्मान व वैभव की प्राप्ति होती है। कुछ लोगों को शनि की इस दशा के दौरान काफी परेशानी एवं कष्ट का सामना करनाहोता है। देखा जाय तो शनि केवल कष्ट ही नहीं देते बल्कि शुभ और लाभ भी प्रदान करते हैं।


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