वृद्धजन समाज की अमूल्य विरासत होते हैं
अंतरराष्ट्रीय वृद्धजन दिवस, वृद्धजन समाज की धरोहर, करें सम्मान : रविन्द्र कुमार मनचन्दा
वरिष्ठ नागरिकों का सम्मान करना एवं उनके सम्बन्ध में चिंतन करना बहुत ही आवश्यक है। आज का वृद्ध समाज अत्यधिक कुंठा ग्रस्त है और सामान्यत: इस बात से सर्बाधिक दु:खी है कि जीवन का वृहत अनुभव होने के बाद भी कोई उनकी राय न तो लेना चाहता है और न ही उनकी राय को महत्व ही देता है।
वृद्ध जन दिवस मनाने का उद्देश्य अपने वृद्ध नागरिकों का सम्मान करना, उनके सम्बन्ध में चिंतन करना तथा उनकी मूलभूत सुविधाओं का ध्यान रखना हैं। अपने को समाज में एक तरह से निष्प्रयोज्य समझे जाने के कारण हमारा वृद्ध समाज सर्बाधिक दु:खी रहता है। वृद्ध समाज को इस दुःख और संत्रास से छुटकारा दिलाना आज की सबसे बड़ी जरुरत है। इस दिशा में ठोस प्रयास किये जाने की बहुत आवश्यकता है। वृद्धों के कल्याण के लिए कार्यक्रमों को विशेष महत्व दिया जाना चाहिए, जो उनमें जीवन के प्रति उत्साह उत्पन्न करे।
भारत में 2007 में माता-पिता एवं वरिष्ठ नागरिक भरण-पोषण विधेयक संसद में पारित किया गया। इसमें माता-पिता के भरण-पोषण, चिकित्सा सुविधा की व्यवस्था और वरिष्ठ नागरिकों के जीवन और संपत्ति की सुरक्षा का प्रावधान किया गया है।
प्रश्न है कि दुनिया में वृद्ध दिवस मनाने की आवश्यकता क्यों हुई? क्यों वृद्धों की उपेक्षा एवं प्रताड़ना की स्थितियां बनी हुई हैं? चिन्तन का महत्वपूर्ण पक्ष है कि वृद्धों की उपेक्षा के इस गलत प्रवाह को कैसे रोकें क्योंकि सोच के गलत प्रवाह ने न केवल वृद्धों का जीवन दुश्वार कर दिया है बल्कि व्यक्ति व्यक्ति के बीच के भावात्मक फासलों को भी बढ़ा दिया है।
विचारणीय है कि अगर आज हम वृद्धों को अपमान करते हैं, तो कल हमें भी अपमान सहना होगा। समाज का एक सच यह है कि जो आज जवान है उसे कल बूढ़ा भी होना होगा और इस सच से कोई नहीं बच सकता। लेकिन इस सच को जानने के बाद भी जब हम बुजुर्ग लोगों पर अत्याचार करते हैं तो हमें अपने मनुष्य कहलाने पर शर्म महसूस होती है। मनुष्यता को शर्मसार करने की स्थिति है। हमें समझना चाहिए कि वरिष्ठ नागरिक समाज की अमूल्य विरासत होते हैं।
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हिन्दू जीवन पद्धति में वृद्धवस्था को सुखी बनाने के लिए, लोक व्यवस्था है, जो जिम्मेवार व जबावदेह भी है। किन्तु पश्चात्य जगत के प्रभाव में सब कुछ धूल धूसरित हो रहा है। कहीं न कहीं आचरणों की चिंता करनी ही होगी...
फ़िल्म एक फूल दो माली का यह गीत बहुत ही सटीक है....
तुझे सूरज कहूं या चंदा
तुझे दीप कहूं या तारा
मेरा नाम करेगा रौशन
जग में मेरा राज दुलारा
तुझे सूरज कहूं या चंदा
तुझे दीप कहूं या तारा
मेरा नाम करेगा रौशन
जग में मेरा राज दुलारा
मैं कब से तरस रहा था
मेरे आँगन में कोई खेले
नन्ही सी हँसी के बदले
मेरी सारी दुनिया ले ले
तेरे संग झूल रहा है
मेरी बाहों में जग सारा
मेरा नाम करेगा रौशन
जग में मेरा राज दुलारा
तुझे सूरज कहूं या चंदा
तुझे दीप कहूं या तारा
मेरा नाम करेगा रौशन
जग में मेरा राज दुलारा
आज उँगली थाम के तेरी
तुझे मैं चलना सिखलाऊँ
कल हाथ पकड़ना मेरा
जब मैं बूढ़ा हो जाऊँ
तू मिला तो मैं ने पाया
जीने का नया सहारा
मेरा नाम करेगा रौशन
जग में मेरा राज दुलारा
तुझे सूरज कहूं या चंदा
तुझे दीप कहूं या तारा
मेरा नाम करेगा रौशन
जग में मेरा राज दुलारा
मेरे बाद भी इस दुनिया में
ज़िंदा मेरा नाम रहेगा
जो भी तुझ को देखेगा
तुझे मेरा लाल कहेगा
तेरे रूप में मिल जायेगा
मुझ को जीवन दोबारा
मेरा नाम करेगा रौशन
जग में मेरा राज दुलारा
तुझे सूरज कहूं या चंदा
तुझे दीप कहूं या तारा
मेरा नाम करेगा रौशन
जग में मेरा राज दुलारा
- आवाज - मन्ना डे
- गीतकार - प्रेम धवन
- संगीतकार - रवि
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