विजयादशमी,दसों दिशाओं पर विजय...





दशहरा (विजयादशमी)
- अरविन्द सीसौदिया , कोटा, राजस्थान


दसों दिशाओं में जायें ..., दल - बादल से छा जायें ।
उमड़ - घुमड़ कर हर धरती को, नंदनवन सा लहरायें।।


बाल संस्कार पर यह लेख बहुत सुन्दर प्रस्तुति से लिखा गया है...
१. दशहरा (विजयादशमी)
अर्थ: दश यानी दस व हरा यानी हार गए हैं । दशहरेके पहले नौ दिनोंके नवरात्रिमें दसों दिशाएं देवीकी शक्तिसे प्रभारित होती हैं व उनपर नियंत्रण प्राप्त होता है, दसों दिशाओंपर विजय प्राप्त हुई होती है । आश्विन शुक्ल दशमीको विजयादशमी कहा जाता है । विजयके संदर्भमें इस दिनके दशहरा, विजयादशमी इत्यादि नाम हैं । यह साडेतीन मुहूर्तोंमेंसे एक है । दुर्गानवरात्रिकी समाप्तिपर यह दिन आता है; इसलिए इसे `नवरात्रिका समाप्ति-दिन' भी मानते हैं । कुछ स्थानोंपर नवराथि नवमीके दिन, तो कुछ स्थानोंपर दशमीके दिन विसर्जित करते है । इस दिन सीमोल्लंघन, शमीपूजन, अपराजितापूजन व शस्त्रपूजा, ये चार विधियां की जाती हैं ।

 १.१. इतिहास
रामके पूर्वज अयोध्याधीश रघुने विश्वजीत यज्ञ किया । सर्व संपत्ति दान कर वे एक पर्णकुटीमें ( पत्तो द्वारा निर्मित कुटिया ) रहने लगे । वहां कौत्स आया । उसे गुरुदक्षिणा देने हेतु १४ करोड सुवर्णमुद्राओंकी आवश्यकता थी । रघु कुबेरपर आक्रमण करने तैयार हो गए । कुबेरने आपटा (अश्मंतक) व शमी (श्वेत कीकर) के वृक्षोंपर सुवर्णका वर्षाव किया । फिर भी कौत्सने केवल १४ करोड सुवर्णमुद्राएं लीं । शेष सुवर्ण प्रजाजन ले गए ।'
श्रीराम प्रभुने इस दिन रावण वधके लिए प्रस्थान किया था । रामचंद्रने रावणपर विजयप्राप्तिके पश्चात् इसी दिन उनका वध किया, ऐसी मान्यता है । अज्ञातवास समाप्त होते ही, पांडवोंने शक्तिपूजन कर शमीके वृक्षमें रखे अपने शस्त्र पुन: हाथोंमें लिए व विराटकी गउएं चुरानेवाली कौरवसेनापर हमला कर इस दिन विजय प्राप्त की ।
दशहरेके दिन इष्टमित्रोंको सोना देनेकी प्रथा है । इस प्रथाका भी ऐतिहासिक महत्त्व है । मराठा वीर शत्रुके देशपर मुहिम चलाकर उनका प्रदेश लूटकर सोने-चांदीकी संपत्ति घर लाते थे । जब ये विजयी वीर या सिपाही मुहिमसे लौटते, तब उनकी पत्नी या बहन द्वारपर उनकी आरती उतारतीं । फिर परदेससे लूटकर लाई संपत्तिकी एक-दो मुद्रा वे आरतीकी थालीमें डालते थे । घर लौटनेपर लाई हुई संपत्तिको वे भगवानके समक्ष रखते थे । तदुपरांत देवता तथा अपने वयोवृद्धोंको नमस्कार कर, उनका आशीर्वाद लेते थे । इस घटनाकी स्मृति अश्मंतकके पत्तोंको सोनेके तौरपर बांटनेके रूपमें शेष रह गई है ।
यह त्यौहार आरंभमें एक कृषिविषयक लोकोत्सव था । वर्षा ऋतुमें बोई गई धानकी पहली फसल जब किसान घरमें लाते, तब यह उत्सव मनाते थे । नवरात्रिमें घटस्थापनाके दिन कलशके स्थंडिल (वेदी) पर नौ प्रकारके अनाज बोते हैं व दशहरेके दिन उनके अंकुरोंको निकालकर देवताको चढ़ाते हैं । अनेक स्थानोंपर अनाजकी बालियां तोड़कर प्रवेशद्वारपर उसे बंदनवारके समान बांधते हैं । यह प्रथा भी इस त्यौहारका कृषिविषयक स्वरूप ही व्यक्त करती है । आगे इसी त्यौहारको धार्मिक स्वरूप दिया गया व इतिहासकालमें यह एक राजकीय स्वरूपका त्यौहार बना ।

 २. त्यौहार मनाकेकी पद्धति
सीमोल्लंघन: अपराह्न काल (तीसरे प्रहर, दोपहर) में गांवकी सीमाके बाहर ईशान्य दिशाकी ओर सीमोल्लंघन हेतु जाते हैं । जहां शमी (जांटी अथवा खेजडा) का वृक्ष या अश्मंतक (कोविदार अथवा कचनार) का वृक्ष होता है, वहां रुक जाते हैं । (शमी (अपराजिता) तथा अश्मंतक, दोनोंका अर्थ है, `शत्रुओंका नाश करनेवाला ।')

शमीपूजन: निम्न श्लोकोंसे शमीकी प्रार्थना करते हैं ।

शमी शमयते पापं शमी लोहितकण्टका ।
धारिण्यर्जुनबाणानां रामस्य प्रियवादिनी ।।
करिष्यमाणयात्रायां यथाकाल सुखं मया ।
तत्रनिर्विघ्नकर्त्रीत्वंभवश्रीरामपूजिते।।

अर्थ: शमी पापोंका शमन करती है । शमीके कांटे तांबेके रंगके होते हैं । शमी रामकी स्तुति करती है तथा अर्जुनके बाणोंको भी धारण करती हैं ।  हे शमी, रामने तुम्हारी पूजा की है । मैं यथाकाल विजययात्रापर निकलूंगा । तुम मेरी इस यात्राको निर्विघ्न व सुखकारक करो ।

अश्मंतकका पूजन: अश्मंतककी पूजामें इस मंत्रका जप करना चाहिए -

अश्मन्तक महावृक्ष महादोषनिवारण । 
इष्टानां दर्शनं देहि कुरु शत्रुविनाशनम् ।।

अर्थ: हे अश्मंतक महावृक्ष, तुम महादोषोंका निवारण करनेवाले हो । मुझे मेरे मित्रोंका दर्शन करवाओ और मेरे शत्रुका नाश करो ।

तदुपरांत उस वृक्षके नीचे चावल, सुपारी व सुवर्ण (पर्यायसे तांबे) की मुद्रा रखते हैं । फिर वृक्षकी प्रदक्षिणा कर उसके मूलके पासकी थोड़ी मिट्टी व उस वृक्षके पत्ते घर लाते हैं ।

अश्मंतकके पत्तोंको सोनेके रूपमें देना: शमीके नहीं; अपितु अश्मंतकके पत्ते सोनेके तौरपर भगवानको अर्पण करते हैं व इष्टमित्रोंको देते हैं । बडे बुजुर्गोंको सोना दें, ऐसा संकेत है ।

अपराजितापूजन: जिस स्थानपर शमीकी पूजा होती है, उसी स्थानकी भूमिपर अष्टदल बनाकर अपराजिताकी मूर्ति रखते हैं व उसकी पूजा कर आगे दिए गए मंत्रद्वारा प्रार्थना करते हैं ।

हारेण तु विचित्रेण भास्वत्कनकमेखला ।
अपराजिता भद्ररता करोतु विजयं मम ।।

अर्थ: गलेमें विचित्र हार धारण करनेवाली, कमरपर जिसके जगमगाती स्वर्णकरधनी (मेखला) है व (भक्तोंके) कल्याण हेतु जो तत्पर रहती है, ऐसी हे अपराजितादेवी मुझे विजयी करे । कुछ स्थानोंपर अपराजिताकी पूजा सीमोल्लंघन हेतु निकलनेसे पूर्व भी करते हैं ।

शस्त्र व उपकरणोंका पूजन: इस दिन राजा व सामंत-सरदार, अपने शस्त्रों व उपकरणोंको साफ कर व कतारमें रखकर उनकी पूजा करते हैं । उसी प्रकार किसान व कारीगर अपने औज़ारों व हथियारोंकी पूजा करते हैं । कुछ लोग यह शस्त्रपूजा नवमीके दिन भी करते हैं ।

राजविधान: दशहरा विजयका त्यौहार है, इसलिए इस दिन राजाओंके लिए विशेष विधान बताया गया है ।

३. श्रीराम, हनुमान तत्त्व तथा क्षात्रवृत्ति जागृत करनेवाला दशहरा

 दशहरेके दिन जीवका क्षात्रभाव जागृत होता है । इस क्षात्रभावसे ही जीवपर क्षात्रवृत्तिका संस्कार होता है । दशहरेके दिन श्रीराम व हनुमानजीके स्मरणसे जीवमें दास्यभक्ति निर्माण होकर प्रभु श्रीरामका तारक तत्त्व अर्थात् आशीर्वादरूपी तत्त्व प्राप्त होता है । 

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सत्य, धर्म और शक्ति का प्रतीक – दशहरा
भारत में इन दिनों त्यौहारों का सीजन चल रहा है. नवरात्र के साथ ही दशहरे का सबको बेसब्री से इंतजार है. रावण-वध और दुर्गा पूजन के साथ विजयदशमी की चकाचौंध हर जगह होगी. दशहरे का त्यौहार जहां बच्चों के मन में मेले के रुप में आता है तो बड़ों को रामलीला की याद और स्त्रियों के लिए पावन नवरात्र के रुप में यादों को जगाता है. यह त्यौहार प्रतीक है कि असत्य और पाप चाहे कितने भी बड़े हों लेकिन अंत में जीत हमेशा सत्य की ही होती है. इस संसार में कहीं भी असत्य और पाप का साम्राज्य ज्यादा नही टिकता.अश्विन मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को दशहरे का आयोजन होता है. भगवान राम ने इसी दिन रावण का वध किया था. इसे असत्य पर सत्य की विजय के रूप में मनाया जाता है. इसीलिये इस दशमी को विजयादशमी के नाम से जाना जाता है. दशहरा वर्ष की तीन अत्यन्त शुभ तिथियों में से एक है, अन्य दो हैं चैत्र शुक्ल की एवं कार्तिक शुक्ल की प्रतिपदा. इसी दिन लोग नया कार्य प्रारम्भ करते हैं, शस्त्र-पूजा की जाती है. प्राचीन काल में राजा लोग इस दिन विजय की प्रार्थना कर रण-यात्रा के लिए प्रस्थान करते थे. इस दिन जगह-जगह मेले लगते हैं. दशहरा का पर्व दस प्रकार के पापों- काम, क्रोध, लोभ, मोह मद, मत्सर, अहंकार, आलस्य, हिंसा और चोरी के परित्याग की सद्प्रेरणा प्रदान करता है.रामलीला का आयोजन 

दशहरा से दस दिन पूर्व ही देश के कोने-कोने में रामलीलाओं का आयोजन शुरू हो जाता है जिसमें प्रभु राम के जीवन का वर्णन दिखाया जाता है और दशहरे वाले दिन रावण का संहार किया जाता है. पूरे देश भर में इस दिन विभिन्न जगहों पर रावण, कुम्भकरण तथा मेघनाथ के बडे-बडे पुतले लगाए जाते हैं और शाम को श्रीराम के वेशधारी युवक अपनी सेना के साथ पहुंच कर रावण का संहार करते हैं. यह आयोजन सभी आयु वर्ग के लिए आकर्षण का केंद्र होते हैं.

राम-रावण युद्ध की अहम वजह थी रावण द्वारा राम की पत्नी सीता का अपहरण एवं रावण का बढ़ता अत्याचार. इस कहानी के सहारे जनता में यह संदेश दिया जाता है कि अगर आम आदमी भी चाहे तो वह पुरुषोत्तम बन सकता है और अत्याचार के खिलाफ लड़ना ही बहादुरी है.
दुर्गा पूजा बंगाल में आज भी शक्ति पूजा के रूप में प्रचलित है. अपनी सांस्‍कृतिक विरासत के लिए मशहूर बंगाल में दशहरा का मतलब है दुर्गा पूजा. बंगाली लोग पांच दिनों तक माता की पूजा-अर्चना करते हैं जिसमें चार दिनों का खासा अलग महत्व होता है. ये चार दिन पूजा का सातवां, आठवां, नौवां और दसवां दिन होता है जिसे क्रमश: सप्तमी, अष्टमी, नौवीं और दसमी के नामों से जाना जाता है. दसवें दिन प्रतिमाओं की भव्य झांकियां निकाली जाती हैं और उनका विसर्जन पवित्र गंगा में किया जाता है. गली-गली में मां दुर्गे की बड़ी-बड़ी प्रतिमाओं को राक्षस महिषासुर का वध करते हुए दिखाया जाता है.

देश के अन्य शहरों में भी हमें दशहरे की धूम देखने को मिलती है. गुजरात में जहां गरबा की धूम रहती है तो कुल्लू का दशहरा पर्व भी देखने योग्य रहता है.दशहरे का सांस्कृतिक पहलू भी है. यह एक पर्व एक ही दिन अलग-अलग जगह भिन्न-भिन्न रुपों में मनाया जाता है लेकिन फिर भी एकता देखने योग्य होती है.इस साल भी हमें आशा है कि दशहरे का त्यौहार आपके जीवन में बुराइयों का अंत करेगा और समाज में नई ऊर्जा और उत्साह का संचार करेगा.

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