लेख की भाषा राहुल से मेल नहीं खाती - अरविन्द सिसोदिया stymn shivmn sundram
लेख की भाषा राहुल से मेल नहीं खाती - अरविन्द सिसोदिया
भगवान विष्णु के प्रथम अवतार चारों सनत कुमारों के नाम से चली सनातन संस्कृति, ईश्वर की व्यवस्थाओं के अनुसंधान का, विवेचना की समझ का एक विराट अनुभव है ओर इसे पश्चात्य जगत समाप्त करना चाहता। " डिसमेंटल हिंदुत्व " के नाम से लगातार कई वर्षों से प्रयत्न चल रहे हैं। अपरोक्षरूप से डीएमके मुख्यमंत्री स्टालीन के पुत्र उदयनिधि के बयान की भी वही भाषा थी। इसलिए भारत के ही नहीं विश्व भर के सभी सनातन - हिन्दुओं को सावधान रहना ही होगा। क्योंकि यह एक बड़ा षड्यंत्र है और इसे अंतर्राष्ट्रीय परोक्ष - अपरोक्ष सहयोग व समर्थन प्राप्त है। विदेशों में इससे जुड़े लोग, भारत के राजनैतिक दलों में भी गहरी पैठ रखते हैं। एजेंडा चलवाते हैं।
हिंदुत्व का कदम - कदम पर विरोध करनें वाली , अवरोध करनें वाली कांग्रेस को जब से यह लगने लगा है कि कांग्रेस हिन्दू विरोधी पार्टी भारत की जनता द्वारा मानी जाने लगी है, वे दिखावे के तौर पर नर्म हिंदुत्व की चादर ओढ़ कर हिन्दू वोट प्राप्त करने के लिए निरंतर प्रयत्नशील हैं। यह लंबे समय से पार्ट टाइम होता है। गंगा स्नान भी हुआ है, जनेऊ धारण भी भी हुआ है, गौत्र प्रगटीकरण भी हुआ है। मगर भारत की जनता नें इन्हे कभी सीरियसली नहीं लिया।
राहुल गाँधी का लेख " सत्यम शिवम सुंदरम " इसी क्रम में एक ओर प्रयास है। लेख की भाषा और शब्द उनके द्वारा बोले जानें वाली भाषा और शब्दों से भिन्न है। इसलिए यह तो माना ही जा रहा है कि संभवतः लेख लिखा किसी और नें है और वह आया राहुल गाँधी के नाम से है। विज्ञापन की तरह ही इसे माना जा सकता l
यह ठीक वैसा ही है जैसा राहुल गाँधी का मंदिर जाना, जनेऊ पहनना या गौत्र बताना था।
बड़े दलों और बड़े लोगों के द्वारा बड़ी - बड़ी विज्ञापन एजेंसियां को, छवि निर्माण का काम बहुत मंहगे दामों पर दिया जाता है। करोड़ों से लेकर सेंकड़ों करोड़ों तक इस तरह के काम पर खर्च होते हैं। जिनका काम छवि उत्थान, छवि सुधार और छवि निर्माण का होता है। ये कंपनिया समय - समय पर उस व्यक्ती के लिए सलाह देती हैं, व्यवस्थाएं बनाती हैं, प्रजेंटेशन करवाती हैं। यही सब चुनाव से पहले होनें लगता है। गुजरात चुनावों में राहुल गाँधी का मंदिर - मंदिर जाना सभी के ध्यान में हैं। भारत जोड़ो यात्रा में भी यह कई जगह देखा गया था ।
जिस पार्टी की युवा इकाई केरल में सार्वजनिक रूप से गो वध करती हो, वह हिंदुत्व की बात करंनें का अधिकार ही नहीं रखती।
जो पार्टी संसद में संम्प्रदायिक हिंसा बिल लाकर बहुसंख्यक हिन्दुओं को नियंत्रित करना चाहती हो, वह पार्टी हिंदुत्व की हित चिंतक तो हो नहीं सकती।
फिर ये " सत्यम शिवम सुंदरम " भी राजनैतिक छल मात्र है। यह मात्र चुनावी हथकण्डा है। इसे गंभीरता से नहीं लेना चाहिए, इसे कोई भी हिन्दू गंभीरता से लेगा भी नहीं। ये मात्र विज्ञापन जैसा है।
कांग्रेस में छवि सुधार और प्रचार के लिए राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत नें एक कंपनी हायर की हुई है, उसके मालिक राहुल गाँधी को पसंद नहीं करते हैं, राहुल गाँधी भी उसे पसंद नहीं करते, मगर गहलोत नें उसे काम दिया हुआ है। इसके चलते राजस्थान कांग्रेस और गहलोत में विवाद भी है। इस बात पर एक विशेष रिपोर्ट " राष्ट्रदूत " में छपी है। इसलिए बड़े नेताओं के टीवीट, भाषण, कार्यक्रम और विचारों के पीछे बनावटीपन होता है। यह मात्र छल होता है। इसीलिए उस व्यक्ती की वास्तविकता और प्रचार की बातों में अंतर होता है। क्योंकि यह सब एक मार्केटिंग का हिस्सा होता है।
एक बहुत ही प्रसिद्ध व्यक्ती था, जिसने देश का विभाजन करवा दिया था, उसकी बहुत ही मंहगी संपत्ती भारत में थी और उसके उत्तराधिकारी भी भारत में रहते थे। उन्होंने उस संपत्ती को प्राप्त करने के लिए देश के एक बहुत बड़े व्यक्ति को अपने फेवर में लिया और छवि सुधार हेतु छवि सुधार पुस्तक लिखवाई, वह छवि सुधार पुस्तक बहुत मोटी और विस्तृत सामग्री से भरपूर थी, लेखक बड़े राजनेता थे सो बिकी भी , खरीदी भी गईं और लोगों नें पढ़ी भी.... पुस्तक पढ़ने पर लगा की इसकी भाषा शैली में, अलग - अलग अध्याय में अलग अलग शैली है और पूरी ही पुस्तक की वह भाषा शैली नहीं है, जो लेखक बोलता या लिखता है। सबूत तो कोई नहीं है, न ही इस तरह के मामलों में सबूत मिलता है, मगर तब चर्चा थी कि पुस्तक उनसे जुड़े अलग अलग अधीनस्थ अधिकारीयों नें लिखी थी, इसलिए भाषा शैली और प्रस्तुतिकरण में भिन्नता थी। यह बड़े लोगों के साथ रहता है। क्योंकि उन्हें तो समय ही नहीं मिलता है कि वे अंतरसाधना कर मर्म को जानें समझे और निर्णय तक पहुँचे।
हलाँकि राहुल गाँधी के इस आलेख पर प्रतिक्रिया भी आई है। न तो उनकी माताजी हिन्दू, न पितृपक्ष हिन्दू....। खैर....
मुख्य विषय यह है कि हिंदुत्व पर हजारों लोगों ने लिखा, मगर अंततः कोई भी उसकी पूर्ण गहराई और अनंतरचेतना तक नहीं पहुँच सका, क्योंकि यह ईश्वरीय है, इसकी रचना और व्यवस्था ईश्वर नें की है। एक मात्र ईश्वर ही परम पूर्ण है और उसकी समस्त व्यवस्था, रचना पूर्ण हैं। किन्तु यह इतनी व्यापक है कि कोई एक आत्मा इसकी थाह नहीं पा सकती। इसलिए इसका एक ही शाश्वत नियम कि नित नूतनता ही सनातन है। प्रति दिन वह नया करता है, नवीनता से सृष्टि को भरता है। यही अंतिम सत्य है।
जय श्रीराम।
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