संयुक्त राष्ट्र संघ विश्व में मानवता की रक्षा में विफल रहा है - अरविन्द सिसोदिया

संयुक्त राष्ट्र संघ विश्व में मानवता की रक्षा में विफल रहा है - अरविन्द सिसोदिया

संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना इस उद्देश्य की गई थी कि विश्व में युद्ध ना हों , शक्तिशाली देश , निर्बल देशों पर अत्याचार नहीं करें और विश्व युद्ध जैसी विभिषिका से पृथ्वी की मानव सभ्यता को फिरसे ना जूझना पड़े।

 किंतु लगातार हम यह देख रहे हैं कि कुछ मामले छोड़ दिए जाएं तो संयुक्त राष्ट्र संघ पूरी तरह से विफल संस्था रहा है । इसका एक कारण यह भी है इसे कठपुतली संस्था बनाया गया ।

संयुक्त राष्ट्र संघ , स्वयं वीटो का शिकार है और अपने आप में भी अव्यवस्थित संस्था के रूप में सामने आया है । 

जब आग लग जाती है तो उसे बुझाने की जगह , मात्र अपील और बैठकें करता है। कैसी भी गंभीर परिस्थिति हो परिणामकारी नियंत्रण नहीं कर पाता है । जिससे इसे सिर्फ विफल तंत्र या असफल तंत्र ही माना जाता है। 

 यह होना यह चाहिए कि संयुक्त राष्ट्र संघ की एक आवाज पर कार्यवाही हो, उसका प्रभाव सामनें आये। वह मानव सभ्यता की सुरक्षा और सुव्यवस्था करती हुई दिखे । उसकी कथनी और करनी एक हो । उसे कोई वीटो रोक नहीं सके ।

ईराक के सद्दाम हुसैन के द्वारा कुबैत हड़पनें की कोशिश वाले मामले  देखा को छोड़ दें तो बाकी ज्यादातर मामलों में संयुक्त राष्ट्र संघ विफल रहा है ।

 विश्व की मानव सभ्यता हिंसा का शिकार होती रही है , युद्ध हुए हैं , वर्षों तक युद्ध चलते रहे हैं । एक देश नें दूसरे देश पर जबरिया कब्जा किये है, उनके हिस्सों पर कब्जा किये है । आर्थिक युद्ध चल रहे हैं , जासूसी और कूटनीतिक युद्ध चल रहे हैं , एक दूसरे को विफल करने की कोशिशें हो रही हैं । 

कभी विश्व का नेतृत्व अमेरिका करना चाहता है , तो कभी चीन करना  चाहता है,  तो अब रूस करना चाहता है। विश्व  का नेतृत्व संयुक्त राष्ट्र संघ क्यों नहीं करे ।

 संयुक्त राष्ट्र संघ का गठन प्रक्रिया में सुधार होने चाहिए। सँख्यातम  लोकतंत्र हो, देश के अलावा देशों से जनसंख्या जनप्रतिनिधियों का चयन होना चाहिए ।

संयुक्त राष्ट्रसंघ में संवैधानिक एवं व्यवस्था संबन्धी कठोर नियम बनानें और बहुआयामी काफी सुधार की जरूरत है । किन्तु संभव होते नजर नहीं आ रहे हैं । 

 अफगानिस्तान में तालिबान द्वारा सत्ता हड़पनें के घटनाक्रम में UN के विफल होने के साथ ही अमेरिकी बर्चस्व समाप्त हो गया है । इस स्थिति का फायदा उठाने और विश्व का नेतृत्व करनें की प्रतियोगिता प्रारंभ हो गई है । अपना वर्चस्व साबित करने के लिए इस समय चीन और रूस में होड़ लग गई है। चीन विचार करता ही रह गया और रूस ने कार्य प्रारंभ कर दिया है। नाटो तो एक बहाना है मुख्य उद्देश्य विश्व वर्चस्व पर कब्जा जमाने का है।और इस मनोकामना की बलि पर यूक्रेन चढ़ा हुआ है । आगे और भी, अनेकों - अनेकों जगह पर ये संक्रमण फैलेगा,  अतिक्रमण करेगा और अनेकों हिंसक घटनाक्रम सामने आयेगें।

 सबसे महत्वपूर्ण यही है क्या प्रत्येक देश अपने देश में सुरक्षा के लिए, हथियारों को चुने । सुरक्षा के हथियार बनाए, सुरक्षा के हथियार विकसित करें, मारक क्षमता को बढ़ाएं ।

 आप अब शस्त्र के बिना जीवित नहीं रह सकते और इसलिए शक्ति की सर्वोपरि उपयोगिता को समझें और शक्तिशाली बने ।

यूएन को भी शक्तिशाली बनना चाहिए, भारत को भी शक्तिशाली बनना चाहिए, जिस देश को जिस सभ्यता को ज़िंदा रहना है । उसे संहारक बनना ही होगा । यह समसामयिक आवश्यकता है ।

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