Death is only of the body मृत्यु तो शरीर की ही होती है ...

- Arvind Sisodia

 Kota Rajasthan.

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मृत्यु तो शरीर की ही होती है

 

मृत्यु..........
मृत्यु तो शरीर की ही होती है,
जिस तरह हम पुराना स्कूटर बेंच कर नई बाईक खरीद ते हैं,
जिस तरह पुराने कपडेे को बदल कर नया पहनते हैं,
ईश्वर की व्यवस्था भी, जर्जर होने पर नया प्रदान करती है।

आत्मा अजर अमर है अविनाशी है, क्यों की उसकी आयु ईश्वर के साथ है। जब तक ईश्वर तत्व है तब तक यह आत्मा भी है, तब तक यह बृम्हाण्ड भी है।

death.........
Death is only of the body,
The way we buy new bikes by selling old scooters, Just like changing old clothes and wearing new ones,God's law, too, provides a new one when it is dilapidated.

The soul is immortal, imperishable, because its age is with God. As long as there is God element, it is also soul, so long it is also the universe.

 

हिन्दू दर्शन में आत्मा को तीन शरीरों में निवास कर्ता बताया गया है।
In Hindu philosophy, the soul is said to reside in three bodies.

प्रथम सूक्ष्म शरीर अर्थात पूरी तरह खाली साफटवेयर स्वरूप
First subtle body i.e. completely empty software form

दूसरा सूक्ष्म शरीर अर्थात विभिन्न प्रकार के सोफ्टवेयरों , क्रिया क्षमताओं से भरा हुआ सॉफटवेयर स्वरूप
Second subtle body i.e. software form full of different types of software, action potentials

तीसरा शरीर मूलतः वह जो हमें भौतिक रूप में हार्ड वेयर स्वरूप में प्राप्त हुआ है।
The third body is basically that which we have received in physical form in the form of hard ware.

मृत्यु सिर्फ, हार्ड वेयर शरीर को सोॅफटवेयर शरीर के द्वारा त्यागता होता है।
Death simply leaves the hardware body through the software body.

सोफटवेयर शरीर विभिन्न प्रकार के ईश्वरीय व्यवस्था के विभिन्न प्रकार के एपस् को अपने साथ रखते हुये, निरंतर अपडेट होता रहता है। यह कभी मरता नहीं है।
The software body is constantly updated, keeping with it different types of apps of different types of divine order. It never dies.

जब बृहम्णाड सिकुड कर एक पिण्ड में होगा । तब इसका विलय ईश्वर रूपी परमआत्मा में हो जायेगा ।
When universe (Brahmanad) shrinks and will be in one body. Then it will merge with the Supreme Soul in the form of God.

जब बृहम्णाड पुनः विस्फोटित होकर नव सृजन करेगा , तब यह उन्ही परमेश्वर के द्वारा पुनः प्रगट कर दिया जायेगा।
When the universe will explode again and create a new one, then it will be manifested again by the same Supreme God.
 
यह सतत है, ईश्वर का अंश है। कभी ईश्वर में कभी ईश्वर की व्यवस्था में कार्यरत रहता है।
It is constant, a part of God. Sometimes in God, sometimes in the law of God.


हिन्दू मान्यताओं में जिन 84 लाख योनियों की चर्चा है, वे यही 84 लाख प्रकार के साफटवेयर शरीर अर्थात सूक्षम शरीर है। जो हार्ड वेयर शरीर के रूप प्राप्त कर प्रकृति का निमार्ण करते है।
The 84 lakh yonis (  bodies ) which are discussed in Hindu beliefs, they are these 84 lakh types of software bodies i.e. subtle bodies. Those who acquire the form of hard ware body create nature.

जब हार्डवेयर शरीर जर्जर होकर अपनी क्षमता खे देता है , तो साफटवेयर शरीर रूपी आत्मा उसे त्याग कर, नये हार्ड वेयर शरीर को ईश्वरीय व्यवस्था से पुनः प्राप्त करती है। इसी को पुर्नजन्म कहा जाता है।
When the hardware body loses its capacity by becoming shabby, then the soul in the form of software body discards it, and retrieves the new hardware body from the divine arrangement. This is called reincarnation.

प्रत्येक आत्मा लाखों करोडों जन्मों को प्राप्त होकर मृत्यु वरण करती रहती है। यह क्रम चलता ही रहता है ।
Every soul after attaining lakhs of crores of births keeps on dying. This sequence continues.

 इससे मुक्ति की इच्छा ही मोक्ष कहलाती है। जो बहुत ही मुश्किल होती है।
The desire for liberation from this is called salvation. Which is very difficult.

क्यों कि ईच्छाओं के मोह से बनी ठनी यह काया इनसे मुक्त नहीं होती है। इसलिये बार बार आत्मा शरीर के रूप में जन्म लेती रहती है।
Because this physique, created out of the attachment of desires, is not free from them. That is why the soul keeps on taking birth in the form of a body again and again.


प्रकृति के रूप में 84 लाख शरीरों की लीला ही है, जो बनती और नष्ट होती हुई , निरंतर कार्यरत है। इसे हिन्दू दर्शन में मृत्युलोक, इसीलिये कहा है कि प्रत्येक शरीर नाशवान है। उसमें व्याप्त आत्म चेतना अमर है। अमर आत्म चेतना ही बार बार भौतिक शरीर के रूप में जन्म लेती और मृत्यु को प्राप्त होती रहती है। इसलिये प्रकृति में मृत्यु सतत और सामान्य क्रिया मात्र है।
In the form of nature, it is the Leela of 84 lakh bodies, which is constantly working, being created and destroyed. In Hindu philosophy it is called the world of death, that is why every body is perishable. The self-consciousness prevailing in him is immortal. It is the immortal self-consciousness that takes birth again and again in the form of a physical body and continues to die. Therefore death is just a continuous and normal action in nature.


इसीलिये भगवान श्रीकृष्ण श्रीमद भगवत गीता में अर्जुन को बता रहे हैं कि इस तरह का कोई समय हीं नहीं रहा है जब में और तुम नहीं रहे हों। अर्थात आत्म चेतना रूपी प्राण हमेशा ही किसी न किसी भौतिक अथवा आत्म शरीर के रूप में विद्यमान रहता है।

That is why Lord Krishna is telling Arjuna in the Shrimad Bhagavad Gita that there has never been a time like this when you and I have not been there. That is, the soul in the form of self-consciousness always exists in the form of some physical or self-body.

 

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