भारत का दृष्टिकोंण सही, रूस को अलग थलग नहीं किया जा सकता - अरविन्द सिसौदिया


भारत का दृष्टिकोंण सही, रूस को अलग थलग नहीं किया जा सकता - अरविन्द सिसौदिया

India's point of view is correct, Russia cannot be isolated



 भारत का दृष्टिकोंण सही, रूस को अलग थलग नहीं किया जा सकता - अरविन्द सिसौदिया

भारत ने संयुक्त राष्ट्रसंघ में अमेरिका का साथ न देकर अपने आपको तटस्थ रखा है। चीन, पाकिस्तान , म्यमांर सहित अनेकों एसियाई देशों का भी दृष्टिकोंण अमेरिका एवं यूरोपीय संघ से भिन्न - भिन्न है, तथा एक सामान्य सी बात है कि जो देश विश्व की दूसरे क्रम की महाशक्ति रहा हो , जिस पर 6000 से अधिक परमाणु हथिययार हों, जो सामरिक एवं तकनीकी साजो सामान की आपूर्ती का बडा संस्थान - प्रतिष्ठान हो। उसे आप अचनाक पूरी तरह अलग - थलग कैसे कर सकते है ? व्यापार , आर्थिक एवं आपूर्ती के अनकों मसले इस तरह के होते है। जिनसे वर्षों तो क्या दसकों भी छुटकारा नहीं पाया जा सकता। विशेषकर जब कोई ब्रांडनेम बडी चीज या बडी मशीनों के कलपूर्जों की,बाद में आवश्यक आपूर्तियां का तथ्य हो तो और भी मुश्किल हो जाता है। रूस निर्मित अनेकों सामरिक उपकरण भारत के पास हैं, उनसे जुडी आपूर्तियों का महत्वपूर्ण प्रश्न है।

जहां तक भारत का प्रश्न है वह तो और भी विशेष है। क्यों कि जब भारत आजाद हुआ तब पाकिस्तान ब्रिटेन-अमेरिका सैन्य गुट में था, इसलिये भारत को रूस के सैन्य गुट में रहना पडा, रूस ने कम से कम 6 बार भारत के पक्ष में विरूद्ध वीटो पावर का उपयोग किया। जबकि इन अवसरों पर अमेरिका भारत के विरूद्ध रहा । रूस ने भारत के पक्ष में अनेकों बार विश्व मंच पर सहयोग एवं समर्थन दिया है, इस व्यवहार को यूं ही समाप्त नहीं किया जा सकता।

सबसे महत्वपूर्ण है राष्ट्रहित जिसे नजर अंदाज कतई नहीं किया जा सकता। भारत का आज भी 50 प्रतिशत सामरिक साजो सामान की आपूर्ती रूस से होती है। रूस ने अपनी विश्वसनीयता को कभी नहीं खोया है। स्वतंत्रता के बाद लगभग 30 साल तक तो अमेरिका भारत विरोधी रहा ही है। अभी भी अमेरिका के लिये भारत की सुरक्षा की कोई प्राथमिकता नहीं है। यह जरूर है कि अमेरिका को चीन के विरूद्ध भारत की जरूरत आज भी है और आने वाले 10 साल बाद भी है।

अफगानिस्तान में तालिबान जैसे हिंसक आतंकी गुट को पूरी तरह से लगभग फ्री हेंड देनें वाले अमेरिका ने अपनी विश्वसनीयता तो स्वयं ही समाप्त की है। अमेरिका जानता था की तालिबान के अगानिस्तान में काबिज होनें का मतलब भारत में अशांती तो है ही , मगर उसने इस बात की कभी कोई चिन्ता नहीं की,जबकि रूस ने यह बात स्विकारी है कि तालिबान पर आंख मूंद कर विश्वास नहीं किया जा सकता।

भारत की वर्तमान चिन्ता उसने नागरिकों को सुरक्षित निकालना है। इसलिये भी उसे तटस्थ ही रहना पडेगा और आवश्यकता हुई तो रूस के साथ खडा भी होना पडेगा। क्यों कि भारत का अपने देश को सुरक्षित रखनें के राष्ट्रीय हित जो हैं उनकी प्राथमिकता है।

जहां तक भारत पर प्रतिबंधों का सवाल है, अमेरिका
ने परमाणु परिक्षण के दौर में वह सारे प्रतिबंध लगा चुका है और वे बेअसर साबित हुये है।

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