प्रभावी सिक्यूरिटी सिस्टम के साथ कश्मीर घाटी में ही बसाये जायें कश्मीरी पण्डितों को
प्रभावी सिक्यूरिटी सिस्टम के साथ कश्मीर घाटी में ही बसाये जायें कश्मीरी पण्डितों को
Kashmiri Pandits should be settled in Kashmir Valley with effective security system
- अरविन्द सिसौदिया Arvind Sisodia
द कश्मीर फाईल्स के द्वारा लगभग 30 साल पहले घटी बेहद ही खौफनाक एवं लोकतंत्र एवं किसी भी शासन व्यवस्था पर कलंक कही जानें वाली घटना पुनः चर्चा में आई है। निश्चित रूप से इस्लामिक आतंक के द्वारा कश्मीर घाटी में इतना भय उत्पन्न किया गया है कि वहां वापस जानें का कोई साहस नहीं जुटा पायेगा। क्यों कि कश्मीर घाटी की जनसंख्या एवं राजनैतिक दलों ने भी कश्मीरी पण्डितों के निष्काशन में महती भूमिका निभाई है। जिसे कहने से सभी सरकारें बचती रहीं है। सवाल यह है कि अब उन्हे न्याय किस तरह से दिया जाये , इस विषय पर गंभीरता से विचार होना चाहिये ।
1- इस घटना क्रम के लिये पाकिस्तान प्रेरित आतंकवाद के साथ साथ जम्मू और कश्मीर के राजनैतिक दल भी जिम्मेवार हैं । विशेषकर अब्दुल्लाह परिवार तो लगातार ही पाकिस्तान परस्ती करता रहा है। इसके लिये उन्हे जेल में भी डाला गया है। 1990 अचानक ही नहीं घटा था, इसकी पूर्व तैयारी थी। वहां के राजनैतिक दलों का संरक्षण आतंकियो को मिलता रहा है, आगे भी मिलेगा। इसलिये वहां सबसे पहले यह स्थापित करना होगा कि जम्मू और कश्मीर में वही रहेगा जिसे भारत में विश्वास होगा । अन्यथा जहां जाना चाहें जा सकते हैं। क्यों कि यह भारत की नागरिकता की पहली शर्त है कि भारत में, भारत के संविधान में विश्वास होना । जो लोग भारत में विश्वास नहीं रखते वे देश छोडें या जेल में डाल दियें जायें।
2- कश्मीर घाटी में 1990 में ही कश्मीरी पण्डितों को भगाया गया है यह नहीं है, यह काम छोटे स्तर पर बहुत पहले से अंजाम में लाया जाता रहा है। हिन्दुओं का प्रताणन और उनकी सम्पत्ती छीनने की घटनायें बहुत पहले से जारी थीं। 1990 में तो इसका बडे स्तर पर प्रयोग किया गया था। यह क्रम तो कमोवेश 2016 तक भी चला है।
इसलिये कश्मीर में सरकार को यह ऐलान करना चाहिये कि जो भी हिन्दू सम्पत्ती किसी के पास है, वह वह सरकार को समर्पित करदे । चाहे उसे उन्होनें खरीदी हो या कब्जाई हो। इस तरह से हिन्दू सम्पत्ती बाहर आये और भविष्य में कोई फिर से इस तरह की कब्जाई नहीं कर सके।
जो हिन्दू सम्पत्ती वापस दी जा सकती हो उसे वापस दिया जाये, जो संरक्षित रखी जा सकती हो उसे संरक्षित की जाये, जिसे बेचान कर दूसरी जगह सम्पत्ती बना कर देनी हो, उसे बेचान किया जाये।
3- कश्मीर घाटी में जिस तरह की हिंसा अंजाम दी गई, जिस तरह मस्जिदों का उपयोग हुआ, जिस तरह वहां का आम आदमी अपराध में सम्मिलित रहा है। जो क्रूरता की गई है, वह सब इसलिये हुई है कि भविष्य में कभी भी कश्मीरी पण्डित कश्मीर की तरफ भूल कर भी न देखें। इस सच का निदान यह है कि व्यापक जांच पुनः हो, जो अपराध में सम्मिलित था उस पर केस दर्ज हो, उन्हे गिरफतार किया जाये। यह संदेश तो देना ही होगा कि भविष्य में यह भारत में नहीं दोहराया जा सकता । इसलिये केन्द्र सरकार को विषेश कार्यवाही करनी ही चाहिये। अपराधी चिन्हित होनें ही चाहिये। उन्हे जेल भेजा जाना चाहिये।
4 - पुर्नवास के लिये नई व्यवस्था करनी चाहिये, कश्मीर घाटी में ही सभी सुविधायुक्त कुछ बडे बडे हिन्दू शहर बसाये जानें चाहिये।
5- निष्कासित कश्मीरी पण्डितों की संख्या 4 से 8 लाख के मध्य है। जम्मू और कश्मीर की सरकार का कोई भी आंकडा सही नहीं है। क्यों कि वहां सही सरकारी मिशनरी नहीं थी।
इसलिये 8 लाख की संख्या मान कर, उनके पुर्नवास एवं सुरक्षा की व्यवस्था की जाये। उन्हे सरकार बन्दूंकें दें तथा सुरक्षा हेतु सिक्युरिटी सिस्टम रखनें की अनुमति दे। एक परिवार एक सशस्त्र सुरक्षा गार्ड रख सके इसकी अनुमति दी जाये।
6- रोजगार, सरकारी नौकरियां एवं व्यवसाय की गारंटी भी दी जाये ।
7- केन्द्र सरकार को लगे कि कश्मीरी हिन्दुओं की सुरक्षा के लिये पूर्व सैनिकों को बसाया जाना चाहिये तो वह पांच दस लाख पूर्व सैनिकों को भी सुरक्षा पटटी के तौर बसा सकती है।
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कश्मीरी पंडितों का सही तरीके से पुनर्वास होना चाहिए
@ जिन्होनें भगाया था उन्हें गिरफ्तार किया जाना चाहिए ।
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सरकार ने इस आग में एक बहुत बड़ा पलीता लगाया.
1986 में गुलाम मोहम्मद शाह ने अपने बहनोई फारुख अब्दुल्ला से सत्ता छीन ली और जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री बन गये. खुद को सही ठहराने के लिए उन्होंने एक खतरनाक निर्णय लिया. ऐलान हुआ कि जम्मू के न्यू सिविल सेक्रेटेरिएट एरिया में एक पुराने मंदिर को गिराकर भव्य शाह मस्जिद बनवाई जाएगी. तो लोगों ने प्रदर्शन किया. कि ये नहीं होगा. जवाब में कट्टरपंथियों ने नारा दे दिया कि इस्लाम खतरे में है. इसके बाद कश्मीरी पंडितों पर धावा बोल दिया गया. साउथ कश्मीर और सोपोर में सबसे ज्यादा हमले हुए. जोर इस बात पर रहता था कि प्रॉपर्टी लूट ली जाए. हत्यायें और रेप तो बाई-प्रोडक्ट के रूप में की जाती थीं. नतीजन 12 मार्च 1986 को राज्यपाल जगमोहन ने शाह की सरकार को दंगे न रोक पाने की नाकामी के चलते बर्खास्त कर दिया.
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1987 में चुनाव हुए. कट्टरपंथी हार गये. ये आखिरी मौका था, जब वहां के समाज को अच्छे से पढ़ा जा सकता था. वही मौका था, जब बहुत कुछ ठीक किया जा सकता था. क्योंकि चुनाव में कट्टरपंथ का हारना इस बात का सबूत है कि जनता अभी भी शांति चाहती थी. पर कट्टरपंथियों ने चुनाव में धांधली का आरोप लगाया. हर बात को इसी से जोड़ दिया कि इस्लाम खतरे में है. जुलाई 1988 में जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट बना. कश्मीर को भारत से अलग करने के लिए. कश्मीरियत अब सिर्फ मुसलमानों की रह गई. पंडितों की कश्मीरियत को भुला दिया गया. 14 सितंबर 1989 को भाजपा के नेता पंडित टीका लाल टपलू को कई लोगों के सामने मार दिया गया. हत्यारे पकड़ में नहीं आए. ये कश्मीरी पंडितों को वहां से भगाने को लेकर पहली हत्या थी. इसके डेढ़ महीने बाद रिटायर्ड जज नीलकंठ गंजू की हत्या की गई. गंजू ने जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट के नेता मकबूल भट्ट को मौत की सजा सुनाई थी. गंजू की पत्नी को किडनैप कर लिया गया. वो कभी नहीं मिलीं. वकील प्रेमनाथ भट को मार दिया गया. 13 फरवरी 1990 को श्रीनगर के टेलीविजन केंद्र के निदेशक लासा कौल की हत्या की गई. ये तो बड़े लोग थे. साधारण लोगों की हत्या की गिनती ही नहीं थी. इसी दौरान जुलाई से नवंबर 1989 के बीच 70 अपराधी जेल से रिहा किये गये थे. क्यों? इसका जवाब नेशनल कॉन्फ्रेंस की सरकार ने कभी नहीं दिया.
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नारे लगते थे-
जागो जागो, सुबह हुई, रूस ने बाजी हारी है, हिंद पर लर्जन तारे हैं, अब कश्मीर की बारी है.
हम क्या चाहते, आजादी.
आजादी का मतलब क्या, ला इलाहा इल्लाह.
अगर कश्मीर में रहना होगा, अल्लाहु अकबर कहना होगा.
ऐ जालिमों, ऐ काफिरों, कश्मीर हमारा है.
यहां क्या चलेगा? निजाम-ए-मुस्तफा.
रालिव, गालिव या चालिव. (हमारे साथ मिल जाओ, या मरो और भाग जाओ.)
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देखा, सुना और महसूस भी किया, अब जरा जान लें कि कश्मीरी पंडितों को बसाने के लिए मोदी सरकार ने क्या-क्या किया?
अभिनय आकाश
सरकार ने कहा कि 1980 और 1990 के दशक में आतंकवाद बढ़ने के कारण जम्मू कश्मीर छोड़कर गये कश्मीरी पंडितों में से 610 को उनकी संपत्तियां वापस कर दी गयी हैं। गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने एक प्रश्न के लिखित उत्तर में राज्यसभा को यह जानकारी दी।
आज देश ही नहीं बल्कि दुनियाभर के हिन्दुस्तानी की जुबां पर 'हम देखेंगे' का तराना है। 'द कश्मीर फाइल्स' अब महज एक फिल्म का नाम भर नहीं रह गया बल्कि ये दास्तां है इस्लामिक कट्टरपंथियों द्वारा कश्मीरी पंडितों पर किए गए बर्बरतापूर्ण अत्याचारों की। जिसे देश के कथित सेक्यूलर राजनीति ने हमेशा से दबाकर, छिपाकर रखा और सही तथ्यों को देश के सामने आने ही नहीं दिया। लेकिन कश्मीरी हिंदुओं के नरसंहार की फाइलों पर पड़ी धूल को विवेक अग्निहोत्री की फिल्म ने हटाने का काम किया। दहशत केवल वही नहीं होती कि कोई आए, अंधाधुंध गोलियां चलाए और अगले पल आदमी ढेर हो जाए। दहशत केवल वह भी नहीं होती कि खचाखच भरी भीड़, बसों, दुकानों में बम रख दिए जाएं और धमाके के साथ पूरी जिंदगी ही हमेशा के लिए फना हो जाए। दहशत वो भी होती है जब एक महिला के पति को उसकी आंखों के सामने गोलियों से भून दिया जाए और फिर उसके खून से लिपटे चावल को उसी महिला की हलक में निवाला बनाकर उतार दिया जाए। सुनने में ये बातें आपको मनगढंत लग सकती हैं लेकिन ये झूठ नहीं बल्कि शाश्वत सत्य है। जिसे भारत माता के मणिमुकुट कहे जाने वाले कश्मीर में अंजाम दिया गया। लोगों को मारकर पेड़ पर टांग दिया गया, बच्चों को सिर के आर-पार गोलियां उतार दी गई थीं। हिंदू महिला को दो टुकड़ों में काट दिया गया।
19 जनवरी 1990 में कश्मीर घाटी में एक रात अचानक पावर कट हो गई, यानी लाइट चली गई। उस अंधेरे में घाटी की मस्जिदों से ऐलान हुआ "असि गछि पाकिस्तान, बटव रोअस त बटनेव सान" मस्जिद में से जो ऐलान किए जा रहे थे और जो आवाजे आ रही थी। वो हमें शांति का पाठ पढ़ाने के लिए नहीं थी। बल्कि डर के शिकंजे में जकड़ने के लिए थी। ऐसा डर जो कश्मीरी पंडितों को मजबूर कर दे। अगली सुबह ही घर छोड़कर भाग जाने के लिए। ऐसा डर जिसमें लाखों कश्मीरी पंडितों की बेबसी, उनके आंसू, उनकी चीखें, और उनकी घुटन छुपी है। कल्पना कीजिए 1990 के जनवरी महीने की वो रात कश्मीर में तो सर्दी भी बहुत होती है। माहौल में एक अजीब सी शांति थी। मानो तूफान से पहले की शांति। हजारों लोग घर के अंदर थे इस उम्मीद के साथ की कश्मीर में सब सही होगा। लेकिन दूसरी तरफ हजार लोग मस्जिद में थे। ठीक रात के दस बजे एक शुरुआत होती है। एक गली में नहीं, एक इलाके में नहीं एक शहर में भी नहीं बल्कि उत्तर से लेकर दक्षिण तक और पूरब से लेकर पश्चिम तक पूरे कश्मीर घाटी मस्जिदों से उठती उन आवाजों से गूंज उठती है। जिसमें वो कहते हैं- बटान्हिन ब्योर खुदायानगुन यानी कश्मीरी पंडितों के बीज अल्लाह ने तबाह कर दिए हैं। रली वेव सलीव या गली वे यानी या तो इस्लाम में कंवर्ट हो या फिर छोड़ के चले जाओ या फिर मार दिए जाओगे। अगर इससे भी रूह नहीं कांपी तो आगे वे कहते हैं दिल में रखो अल्लाह का खौफ, हाथों में रखो क्लासनिकोव। क्लासनिकोव एक प्रकार की राइफल होती है। अगर अचानक ही आपको ये सब सुनने को मिले। ये सुनने को मिले की कश्मीर को पाकिस्तान बनाएंगे। वो भी पंडितों के बिना लेकिन उनकी महिलाओं के साथ। आपकी रूह नहीं कांप जाएगी। सोचिए उन कश्मीरी पंडितों के साथ क्या हुआ होगा। उनके डर को महसूस कीजिए, माथों पर आते पसीने के बारे में सोचिए। ऐसे में आज हम आपको बताते हैं कि 1990 में हुई इस घटना में कितने कश्मीरी पंडितों को कश्मीर से बाहर निकाला गया और कितने पंडितों को फिर से विस्थापित किया गया। इसके साथ ही बताएंगे की सरकार के अब तक के दावे और कश्मीरी पंडितों की मांगें क्या-क्या हैं?
19 जनवरी की रात के बाद चीजें कैसे बदली
19 जनवरी 1990 को वो दिन जब कट्टरपंथियों ने ये ऐलान कर दिया कि कश्मीरी पंडित काफिर हैं। वो या तो कश्मीर छोड़ कर चले जाए या फिर इस्लाम कबूल कर ले नहीं तो उन्हें जान से मार दिया जाएगा। कट्टर पंथियों ने कश्मीरी पंडितों की घरों की पहचान करने को कहा ताकि वो योजनाबद्ध तरीके से उन्हें निशाना बना सके। इसी दौरान बड़े पैमाने पर कश्मीर में हिन्दू अधिकारियों, बुद्धिजीवियों, कारोबारियों और दूसरे बड़े लोगों की हत्याएं शुरू हो गई। 4 जनवरी 1990 को उर्दू अखबार आफताब में हिज्बुल मुजाहिदीन ने छपवाया कि सारे पंडित कश्मीर की घाटी छोड़ दें। अखबार अल-सफा ने इसी चीज को दोबारा छापा। चौराहों और मस्जिदों में लाउडस्पीकर लगाकर कहा जाने लगा कि पंडित यहां से चले जाएं, नहीं तो बुरा होगा। इसके बाद लोग लगातार हत्यायें औऱ रेप करने लगे। नारे लगने लगे कि पंडितो, यहां से भाग जाओ, पर अपनी औरतों को यहीं छोड़ जाओ – असि गछि पाकिस्तान, बटव रोअस त बटनेव सान (हमें पाकिस्तान चाहिए, पंडितों के बगैर, पर उनकी औरतों के साथ) एक आतंकवादी बिट्टा कराटे ने अकेले 20 लोगों को मारा था।इस बात को वो बड़े घमंड से सुनाया करता था। जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट इन सारी घटनाओं में सबसे आगे था। हालात ये हो गए कि फरवरी और मार्च 1990 के दो महीनों में 1 लाख 60 हजार कश्मीरी पंडितों को जिंदगी की आरजू और बहन-बेटियों की आबरू बचाने के लिए घाटी से भागना पड़ा था। बड़े नाज से जिन घरों को उन्होंने बनाया और बसाया था वो अपनी जड़ों से उखड़ गए। जिसके बाद ये कश्मीरी पंडित वहां से भाग कर जम्मू, दिल्ली और देश के दूसरे हिस्सों में आ गए जहां उन्हें राहत कैंपों में रहना पड़ा। ये आंकड़ा बहुत ही चौंकाने वाला है कि कश्मीर से करीब 4 लाख कश्मीरी पंडितों को उनके घरों से भागने के लिए मजबूर कर दिया गया। यानी कश्मीर में कश्मीरी पंडितों की 95 फीसदी आबादी को अत्याचारों के जरिए उस कश्मीर से भगा दिया गया जहां के वो मूल निवासी हैं।
खून से सने चावल खिलाना, महिला का रेप के बाद पेट चीर देना
कश्मीर घाटी में हिंदुओं की हत्या का सिलसिला 1989 से ही शुरू हो चुका था। सबसे पहले पंडित टीका लाल टपलू की हत्या की गई। श्रीनगर में सरेआम टपलू को गोलियों से भून दिया गया। वह कश्मीरी पंडितों के बड़े नेता थे। आरोप जम्मू-कश्मीर लिब्रेशन फ्रंट के आतंकियों पर लगा लेकिन कभी किसी के खिलाफ मुकदमा नहीं हुआ। कश्मीरी हिंदुओं पर इस्लामिक आतंकवाद की बर्बरता की सैंकड़ो कहानियाँ है जिन्हें सुनकर आपके रोंगटे खड़े हो जाएँगे। ऐसी ही एक कहानी है- कश्मीरी पंडित गिरिजा कुमारी टिक्कू की। उनका सामूहिक बलात्कार किया गया, यातनाएँ दी गई, बढ़ई की आरी से उन्हें दो भागों में चीर दिया गया, वो भी तब जब वो जिंदा थी। उनके साथ ऐसा करने वालों में वो लोग शामिल थे, जिन्हें गिरिजा टिक्कू ने पढ़ाया था। लेकिन ये खबर कभी अखबारों में नहीं दिखी। कश्मीरी पंडित बीके गंजू जैसे लोगों को पड़ोसियों पर विश्वास करने के बदले सिर्फ और सिर्फ धोखा मिला। बीके गंजू को आतंकवादियों ने कंटेनर में ही गोली मार दी थी। इसके बाद उनकी पत्नी को खून से सने चावल खिलाए थे। बीके गंजू के बारे में आतंकियों को पूरी जानकारी उनके पड़ोसियों ने दी थी।
कितने लोगों ने किया था पलायन?
कश्मीरी पंडितों के पलायन को लेकर मोदी सरकार ने बजट स्तर के दौरान बताया था कि साल 1990 और उसके बाद कश्मीर घाटी में आतंकवाद और अन्य कारणों से वहां के कितने परिवारों ने पलायन किया। इसके साथ ही अनुच्छेद 370 हटने के बाद कितने परिवारों का पुनर्वास किया गया। गृह मंत्रालय की तरफ से कहा गया कि 44684 कश्मीरी विस्थापित परिवार राहत और पुनर्वास आयुक्त जम्मू के कार्यालय में रजिस्टर्ड हैं। अगर उनकी संख्या की बात की जाए तो 154712 व्यक्ति है।
अनुच्छेद 370 हटने के बाद आया बदलाव?
610 की संपत्तियां की गई वापस: सरकार ने कहा कि 1980 और 1990 के दशक में आतंकवाद बढ़ने के कारण जम्मू कश्मीर छोड़कर गये कश्मीरी पंडितों में से 610 को उनकी संपत्तियां वापस कर दी गयी हैं। गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने एक प्रश्न के लिखित उत्तर में राज्यसभा को यह जानकारी दी। उन्होंने बताया कि प्रधानमंत्री विकास पैकेज 2015 के तहत 1080 करोड़ रुपये के परिव्यय से तीन हजार सरकारी नौकरियों का कश्मीरी विस्थापितों के लिए सृजन किया गया। उन्होंने कहा कि जम्मू कश्मीर सरकार ने प्रधानमंत्री विकास पैकेज 2015 के तहत 1739 विस्थापितों की नियुक्ति कर दी है तथा 1098 अतिरिक्त विस्थापितों का चयन किया गया है। राय ने कहा कि जम्मू कश्मीर सरकार द्वारा मुहैया करायी गयी सूचना के अनुसार पिछले पांच साल में 610 आवेदकों (विस्थापितों) की भूमि को बहाल कर दिया गया है। उन्होंने कहा कि जम्मू कश्मीर विस्थापित अचल संपत्ति (संरक्षण, सुरक्षा एवं हताशा में बिक्री निषेध) कानून,1997 के तहत संबंधित जिलों के जिलाधिकारी विस्थापितों की अचल संपत्ति के कानूनी संरक्षक होते हैं।
जम्मू-कश्मीर में करीब 1,700 कश्मीरी पंडितों की नियुक्ति की गयी: सरकार ने राज्यसभा में कहा कि संविधान का अनुच्छेद 370 निरस्त किए जाने के बाद जम्मू कश्मीर सरकार ने विभिन्न विभागों में करीब 1700 कश्मीरी पंडितों की नियुक्ति की। गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने एक सवाल के लिखित जवाब में उच्च सदन को यह जानकारी दी। उन्होंने कहा कि कश्मीर विस्थापित परिवारों के पुनर्वास के मकसद से, जम्मू कश्मीर सरकार ने पांच अगस्त 2019 के बाद से 1697 कश्मीरी पंडितों की नियुक्ति की है और इस संबंध में अतिरिक्त 1140 लोगों का चयन किया गया है।
घर की व्यवस्था: कश्मीरी पंडितों के लिए नौकरी से साथ घर की भी व्यवस्था की जा रही है। जिसके तहत फिलहाल कश्मीर में 920 करोड़ रुपये की लागत से 6 हजार ट्रांजिट घर बनाए जा रहे हैं। सरकारी नौकरियों में कश्मीरी पंडितों की संख्या में इजाफा के साथ ही उन्हें ये जगहें दी जाएंगी। जिन 19 जगहों पर फ्लैट बनाए जा रहे हैं उनमें बांदीपोरा, बारामूला, बडगाम समेत कई जगहें शामिल हैं। इसके साथ ही अस्थायी व्यवस्था के तौर पर सरकार ने लौटे लोगों के लिए 1025 शेल्टर बनाए हैं।
कश्मीरी पंडितों की क्या है मांगें?
कश्मीरी पंडितों ने बजट पेश होने से पहले मांग की थी कि केंद्र शासित प्रदेश के सालाना बजट में से 2.5 प्रतिशत को प्रवासियों के पुनर्वास के लिए खर्च किया जाना चाहिए। इसके साथ ही उनकी मांग थी कि भारत सरकार कश्मीरी पंडित के पुनर्वास नीति को सामने लाना चाहिए। डोमिसाइल सर्टिफिकेट जारी किया जाना चाहिए। जिससे उन्हें घाटी में अपना हक मिल सके। परिवारों ने मिलने वाली राशि को भी 13 हजार से बढ़ाकर 25 हजार करने की मांग उठाई।
- अभिनय आकाश
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