मुर्दे का अधिकार कानून बनाया जाये - अरविन्द सिसौदिया Right of dead body
मुर्दे का अधिकार कानून बनाया जाये - अरविन्द सिसौदिया
Right of the dead should be made law - Arvind Sisodia
मुर्दे का अधिकार कानून बनाया जाये - अरविन्द सिसौदिया
अब वह समय आ गया है कि मुर्दे का अधिकार कानून बनें और कठोरता से लागू हो। क्यों कि एक और जहां इलाज के दौरान मरीज की मृत्यु पर प्राईवेट चिकित्सालय शव को ही बकाया भुगतान की एबज में रोक लेते हैं। वहीं समय पर शव ले जानें वाली एम्बूलेंस नहीं मिलनें पर शव को कंधे पर, हाथ ठेले पर , साईकिल पर या अन्य अपरम्परागत साधन से ले जानें के कई मामले सामनें आये है। केन्द्र तथा राज्य सरकारें अथवा स्थानीय निकाय व पंचायती राज व्यवस्था एक नागरिक की जीवित रहते तमाम योजनाओं के द्वारा सेवा करती हैं। किन्तु एक मुर्दे की सेवा जो कि अंतिम सेवा है, उसके लिये कोई योजना नहीं है। इसलिये भारत के समस्त सरकारी तंत्र,प्रशासनिक तंत्र, राजनैतिक तंत्र एवं सामाजिक तंत्र को एक मुर्दे की क्या क्या सेवा दी जा सकती है और वह उसे किस प्रकार से मिलें इसकी चिन्ता करनी चाहिये। योजनायें बनानीं चाहिये।
1- प्रत्येक शासकीय अथवा निजि चिकित्सालय को पाबंद किया जाये कि इलाज के दौरान रोगी की मृत्यु हो जानें पर उसका शव कतई नहीं रोका जा सकता । वह उसे तुरंत रिलीज किया जायेगा, सौंपा जायेगा।
2- प्रत्येक शासकीय अथवा निजि चिकित्सालय को पाबंद किया जाये कि इलाज के दौरान रोगी की मृत्यु हो जानें पर तथा शव को उसके निवास स्थान तक पहुंचानें के लिये वाहन व्यवस्था की जायेगी। जिसका व्यय मृतक के निवास वाले राज्य की सरकार भुगतान करेगी। इस हेतु एक संवेदनशील सिस्टम बनाया जायेगा। जिससे मृतक के परिजनों को परेशान न होना पडे।
3- शव के अंतिम संस्कार एवं अन्य क्रियाकलापों के लिये एक सामान्य राशी मृतक के परिवार को पंचायत अथवा पार्षद कोष से तुरंत दी जाये, जिससे परिवार को अर्थाभाव में भटकना न पढे।
4- शव वाहनों की व्यवस्था स्थानीय निकाय अथवा पंचायतीराज संस्थानों को करनी होगी ताकि शव को उसके घर से अंतिम संस्कार स्थाल तक ले जाया जा सके।
विकास के सही मायने यही हैं कि हम सरकार के रूप में सामाजिक स्तर पर नागरिक के कितने सहयोगी हो सके हैं।
हलांकी केन्द्र सरकार ने मरीजों का अधिकर नाम से एक चार्टर बना रहा था। पता नहीं वह बना कि नहीं मगर। मरीजों के अध्किार कहीं नजर नहीं आते, उनके परिजनों के साथ बेहत अेहूदा व्यवहार तमाम जगहों पर देखनें को मिलता है।
1- सरगुजा,छत्तीसगढ में अपनी बेटी का शव कंधे पर उठाये हुए एक व्यक्ति का वीडियो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हुआ । छत्तीसगढ़ के सरगुजा जिले में शव वाहन समय से ना मिलने पर अपनी बेटी के शव को कंधे पर लादकर एक पिता ने 10 किमी पैदल चलकर घर तक लाया।
2 - भुवनेश्वर, के पिछड़े जिले कालाहांडी से दुर्भाग्यपूर्ण खबर आई है । यहां एक आदिवासी व्यक्ति को अपनी पत्नी के शव को कंधे पर लेकर करीब 10 किलोमीटर तक चलना पड़ा. उसे अस्पताल से शव को घर तक ले जाने के लिए कोई एंबुलेंस नहीं मिली. व्यक्ति के साथ उसकी 12 साल की बेटी भी थी।
3-छतरपुर,मध्यप्रदेश के बकस्वाहा में शव वाहन न मिलने पर चाचा भतीजी के शव को कंधे पर लादकर निकल पड़ा। हालांकि बाद में मीडिया के हस्तक्षेप के बाद नगर परिषद ने शव वाहन भेजा। जिससे परिजन शव को लेकर घर पहुंचे।
4- रीवां म.प्र. का ही एक दूसरा वाक्या है कि अपनी मां को लेकर चार बेटियां चिकित्सालय पहुंची जहां उसे मुत घोषित कर दिया, वाहन की कोई व्यवस्था नहीं हो पानें से इस मृतका मोलिया केवट को वे चारों बेटियां चारपाई की सहायता से कंधे पर लाद कर घर लाईं।
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1- झारखण्ड में पल्स होस्पिटल का मामला सामनें आया था जिसमें लाखों रूपये इलाज के दौरान वसूलनें के बाद भी मरीज की मृत्यु के बाद 3 लाख के बिल की एबज में लाश को बंधक बना लिया था । पुलिस के हस्तक्षेप के बाद लाश रिलीज की गई थी।
2- समस्तीपुर ,पोस्टमार्टम कर्मी शव के बदले परिजनों से कह रहे हैं कि 50 हज़ार रुपये लाओ और शव ले जाओ। ऐसे में मज़बूर माता-पिता भीख मांग कर पैसे जमा कर रहे हैं।
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