जहां हुआ था "जलजौहर " छबड़ा गुगोर
गुगोर किला , छबड़ा
जिला बारां राजस्थान ।
पार्वती नदी के किनारे पहाड़ी पर बना विशाल सुदृढ़ किला जो जल जौहर का साक्षी है। किले के नीचे रानी दह है जहां रानियों नें जलजौहर किया था।
नदी किनारे क्षारबाग की छतरियां एवम खूबसूरत भड़का जलप्रपात है।
गुगोर माताजी की प्रतिमा पूर्व में किले के अंदर ही स्थापित थी। मुस्लिम शासन में आने पर ये वर्तमान मन्दिर में स्थापित की गई।
हाड़ोती के वीर हाड़ा राजवंश को भी चुनोती देने की सामर्थ्य रखने वाले खींची राजवंश के हाड़ोती में प्रवेश 12वी सदी में गागरोन से होता है। छः सदी तक हाड़ोती , मालवा के विस्तृत क्षेत्र में राज्य करते हुए महू मैदाना , शेरगढ़ होते हुए गुगोर का किला स्थापित कर 18वी सदी में हाड़ाओ से लगातार आक्रमण की वजह से खिलचीपुर , राघोगढ़ को पलायन कर जाते है।
पार्वती नदी के किनारे पहाड़ी पर स्थित गुगोर दुर्ग देख रेख एवं सार-संभाल के अभाव में खंडहर होता जा रहा है। तीन हिस्सों में बंटा दुर्ग कई वीर गाथाओं को समेटे हुए है। वहीं किले के आसपास स्थित प्राचीन छतरियां, शतरंज का चबूतरा, रानी महल देखरेख के अभाव में खंडहर हाेते जा रहे हैं। वहीं दुर्ग के नीचे पार्वती नदी के किनारे महलों के पास गहरे पानी को रानीदह के नाम से जाना जाता है। यहां भड़का प्रपात है। बरसात के दिनों में बड़ा झरना गिरता है। जो सैलानियों को आकर्षित करता है। किंवदंती के अनुसार मुगलों की ओर से किले पर आक्रमण करने के बाद खींची राजाओं की रानियों ने जल में कूदकर जल जौहर किया था। इसीलिए इस स्थान को रानीदह के नाम से जाना जाता है।
शतरंज का चबूतरा
नदीकिनारे स्थित शतरंज के चबूतरे पर खींची राजा धीरसिंह की महफिल जमा करती थी। चबूतरे पर बैठकर राजा प्रजा की फरियाद सुन न्याय करते थे।
बीजासन माता जी बिराजती हैं गूगौर में...लगता है 15 दिवसीय भव्य मेला.....
बारां के छबड़ा के गुगौर पार्वती नदी पर सैकड़ों साल पुराना बीजासन माता का मंदिर है. इस मंदिर में भव्यं मेला लगता है। इस मेले में राजस्थान और मध्य प्रदेश सहित कई राज्यों से प्रतिदिन हजारों भक्त आते हैं। बीजासन माता मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह की कुलदेवी भी हैं। दिग्विजय सिंह अक्सर यहां परिवार के साथ पूजा-अर्चना करने के लिए आते हैं।
रियासत काल ही इस गुगौर माता के मंदिर की मान्यता है। भक्त यहां सच्ची श्रद्धा से जो भी मन्नत मांगते हैं, वो माँ के आशीर्वाद से पूरी हो जाती है। पंचायत के तत्वाधान में प्रत्येक साल यहां 15 दिवसीय मेले का आयोजन किया जाता है। मेले में चकरी, झूला, सर्कस, मौत का कुआँ और नृत्य के अलावा कई तमाम तरह के मनोरंजन के साधन उपलब्ध रहते हैं।
बारां के छबड़ा के गुगौर पार्वती नदी पर सैकड़ों साल पुराना बीजासन माता का मंदिर है. इस मंदिर में भव्यं मेला लगता है। इस मेले में राजस्थान और मध्य प्रदेश सहित कई राज्यों से प्रतिदिन हजारों भक्त आते हैं। बीजासन माता मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह की कुलदेवी भी हैं। दिग्विजय सिंह अक्सर यहां परिवार के साथ पूजा-अर्चना करने के लिए आते हैं।
रियासत काल ही इस गुगौर माता के मंदिर की मान्यता है। भक्त यहां सच्ची श्रद्धा से जो भी मन्नत मांगते हैं, वो माँ के आशीर्वाद से पूरी हो जाती है। पंचायत के तत्वाधान में प्रत्येक साल यहां 15 दिवसीय मेले का आयोजन किया जाता है। मेले में चकरी, झूला, सर्कस, मौत का कुआँ और नृत्य के अलावा कई तमाम तरह के मनोरंजन के साधन उपलब्ध रहते हैं।
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नाराज हुई तो किले की दीवार फाड़ पार्वती के तट पर हुईं प्रकट
...कभी किले में विराजती थीं गुगोर की बीजासन माता
छबड़ा. राजस्थान एवं मध्यप्रदेश की सीमा पर गुगोर स्थित मां बीजासन मंदिर, जहां बीजासन माता विराजती हैं। नवरात्र पर इन दिनों लोग यहां पर दूर-दूर से श्रद्धालु माता के दर्शन करने के लिए पहुंच रहे हैं।
ग्रामीणों में यह मान्यता है कि मां बीजासन माता पहले गुगोर स्थित किले में विराजती थी। किले में आज भी इनका मंदिर हैं, जो वीरान और खाली है। श्रद्धालुओं का मानना है कि प्राचीन समय में मां बीजासन माता यहां से नाराज होकर चमत्कारिक रूप से किले की दीवार को फाड़ती हुई पार्वती नदी के तट पर प्रकट हुई। श्रद्धालुओं ने जन सहयोग से यहां माता की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा कर मंदिर निर्माण कराया। तब से ही यहां राजस्थान ही नहीं मध्यप्रदेश से भी श्रद्धालु भक्ति भाव से मां के दर्शन करने के लिए पहुंचते हैं।
...कभी किले में विराजती थीं गुगोर की बीजासन माता
छबड़ा. राजस्थान एवं मध्यप्रदेश की सीमा पर गुगोर स्थित मां बीजासन मंदिर, जहां बीजासन माता विराजती हैं। नवरात्र पर इन दिनों लोग यहां पर दूर-दूर से श्रद्धालु माता के दर्शन करने के लिए पहुंच रहे हैं।
ग्रामीणों में यह मान्यता है कि मां बीजासन माता पहले गुगोर स्थित किले में विराजती थी। किले में आज भी इनका मंदिर हैं, जो वीरान और खाली है। श्रद्धालुओं का मानना है कि प्राचीन समय में मां बीजासन माता यहां से नाराज होकर चमत्कारिक रूप से किले की दीवार को फाड़ती हुई पार्वती नदी के तट पर प्रकट हुई। श्रद्धालुओं ने जन सहयोग से यहां माता की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा कर मंदिर निर्माण कराया। तब से ही यहां राजस्थान ही नहीं मध्यप्रदेश से भी श्रद्धालु भक्ति भाव से मां के दर्शन करने के लिए पहुंचते हैं।
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