चैनलों की सीधी डिबेटों का स्तर सुधारा जाये - अरविन्द सिसौदिया debates of channels
चैनलों की सीधी डिबेटों का स्तर सुधारा जाये - अरविन्द सिसौदिया
The level of direct debates of channels should be improved - Arvind Sisodia
चैनलों की स्तरहीन सीधी डिबेट संसोधित होकर प्रसारित होनी चाहिये - अरविन्द सिसौदिया
देश में वातावरण बिगडनें का एक बडा कारण विभिन्न चैनलों पर चलने वाली सीधी डिबेटस् भी हैं। वे देश की एकता एवं कानून व्यवस्था का कतई ध्यान नहीं रखते । स्तरहीनता का यह आलम है कि न तो डिबेट करवानें वालों का बौद्धिकस्तर राष्ट्रीय हितों एवं एकता को बनाये रख पाने वाला होता है। न प्रवक्ता और विचार रखनें वाले भागीदार लोग ही इतनें गंभीर होते हैं। वे भी अपनी पार्टी या संस्था की दिशा के आधार पर शब्द चुनते हैं। सबसे बडी बात बहस के दौरान सामनें वाले के शब्दों पर प्रतिक्रिया भी होती है। एक गलत बोलेगा तो दूसरा मजबूरी में गलत बोलेगा। एक वर्ष की विभिन्न चैनलों की डिबेटस् देखेंगे तो उनमें स्तरहीनता को उबलते हुये देखेंगे। इनके सेंसर होने का प्रश्न ही नहीं होता सो सारा अच्छा बुरा समाज में चला जाता है। गला काट प्रतिस्पर्धा और सनसनीचोज परोसनें के चक्कर में साम्प्रदायिक तनाव परोसनें की इजाजत किसी ने नहीं दी मगर यह धडल्ले से परोसा जा रहा है। क्या रोकश टिकैत की भाषा और धमकियों का स्तर प्रसारण योग्य था।
भारत में कुछ तय बातें रहीं हैं कि महाभारत पुस्तक घर में मत लाओ वर्ना घर में भी महाभारत होगी। इसी तरह बाल्मीकी रामायण के लव कुश काण्ड का वृतांत सामान्यतौर पर नहीं सुनाया जाता है। रामचरित मानस के रचियता तुलसीदास जी ने भी लवकुश काण्ड की रचना नहीं की क्यों कि इससे मर्यादायें भंग होती हैं। अर्थात चैनल्स को भी अपने प्रसारण में मर्यादाओं के भंग होनें को रेाकना चाहिये। वे एक दो घंटे ठीक से बहस को सुनें उसे आवश्यक संसोधित करें और जनहितकारी स्वरूप में प्रसारित करें।
किसी भी डिबेट का पहले पूरा विडियो स्टूडियो में तैयार हो। उस समझ रखने वाले एडीटर उेखें और जो बात गलत है उस आवाज या शब्द को हटा दिया जाये और इसके बाद प्रसारण होना चाहिये।
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