सम्पूर्ण पुर्नजन्म विज्ञान sampoorn purnajanm vigyaan

 


 पूर्वजन्म की स्मृति का विज्ञान science of past birth memory
 
पूर्वजन्म की स्मृति का विज्ञान :-
ईश्वर की व्यवस्था में , ईश्वर का इन्टरनेट है, ईश्वर की रेम, ईश्वर की हार्ड डिस्क है, ईश्वर का डाटा, ईश्वर की मेमेरी ,ईश्वर की वाईफाई, ईश्वर का ईमेल, ईश्वर की गवरमेंट आदि आदि..... अनेक अनंत ईश्वरीय कानून एवं व्यवस्था से परिपूर्ण यह सृष्टि है। 84 लाख यांनियां 84 लाख एप्स भी कहे जा सकते है। कम्प्यूटर सिस्टम , एन्डायड फोन सिस्टम के बाद स्वयं को वहां रख कर देखो तो लगता है। कि सब कुछ संभवकर्ता का नाम ही ईश्वर है।

In God's system, God's internet, God's RAM, God's hard disk, God's data, God's memory, God's WiFi, God's email, God's government etc etc..... many infinite divine laws And this world is full of order. 84 lakh means can also be called 84 lakh apps. After computer system, Android phone system, if you put yourself there and see, it seems. That the name of the one who makes everything possible is God.

भारत में ही सर्वाधिक अघ्ययन चिन्तन मनन अनुसंधान आत्मा और परमात्मा को लेकर हुआ है। इसलिये भारत के पास नतीजे भी अधिकतम श्रेष्ठ हैं। आत्मा और परमात्मा को अमर माना गया है। आत्मा सौफटवेयर स्वरूप है तो शरीर हार्डवेयर स्वरूप है। पुर्नजन्म का मुख्य कारण हार्डवेयररूपी शरीर का जीर्ण शीर्ण होकर खराब होना और अन्त में पूरी तरह से विफल हो जाना, तब आत्मा रूपी सौफटवेयर उसे छोड कर नये शरीर को प्राप्ती का उद्धम करती है।

In India itself, the maximum study, contemplation, research has been done regarding the soul and the Supreme Soul. That's why India has the best results as well. Soul and God are considered immortal. The soul is in the form of software and the body is in the form of hardware. The main reason for rebirth is the wear and tear of the body in the form of hardware and in the end it fails completely, then the software in the form of soul leaves it and initiates to get a new body.

कई बार पुर्वजन्म की याद रह जाती है।  इसका मुख्य कारण ठीक वैसा ही है कि आप कम्प्यूटर पर काम कर रहे हैं अचानक बिजली चली गई और कम्प्यूटर बंद हो गया । जब बिजली आई तो आपके मेल में मैसेज होता है। रीस्टोर ......! न्यू सेसन.....!! यदि आप रिस्टोर पर क्लिक कर देंगे तो आपका कम्प्यूटर जिन फाईलों पर काम कर रहा था । वे फिर खुल जायेंगी। यही पूर्वजन्म की स्मृति का विज्ञान है। जिनकी मृत्यु फाईल पूरी तरह बंद हुये बिना हो गई उन्हे नये जन्म में विशेषकर बचपन में पूर्वजन्म की स्मृति बनी रहती है।

Sometimes the memory of the previous birth remains. The main reason for this is exactly the same that you are working on the computer suddenly the power went out and the computer shut down. When there is power, there is a message in your mail. Restore......! New Season.....!! If you click on restore, the files on which your computer was working will be restored. They will open again. This is the science of past birth memory. Those who died without complete closure of the file, they retain the memory of their previous birth in their new birth, especially in childhood.

माना यह भी जाता है कि हमारे मस्तिष्क रूपी हार्डडिस्क में अनेकानेक जन्मों की मेमेरी भरी रहती है। जो कि सृष्टि के अंत में जब सभी आत्मायें परमात्मा में समा जाती है। तब ही यह मेमेरी खत्म होती है।
It is also believed that the hard disk in the form of our brain is filled with the memory of many births. Which is when all the souls merge in the Supreme Soul at the end of the creation. Only then this memory ends.
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Shreya Mehta   भारत में निवास किया है :-
पुनर्जन्म की कुछ प्रसिद्ध घटनाएँ क्या हैं?
सबसे पहले जवाब दिया गया: पुनर्जन्म की कुछ प्रसिद्ध घटनाएँ क्या है ?

कई मान्यताएं हैं, जिन पर वैज्ञानिक विश्वास नहीं करते. ऐसी ही हिन्दू धर्म में एक पुनर्जन्म की मान्यता है. हिन्दू धर्म के अनुसार व्यक्ति के शरीर की मौत होती है, उसकी आत्मा की नहीं. आत्मा मृत्यु के बाद एक शरीर को छोड़कर दूसरे शरीर में प्रवेश कर जाती है और इसको पुनर्जन्म कहा जाता है. कई लोग इस बात को बेतुकी मानते हैं. यहाँ प्रस्तुत हैं, ऐसी 10 घटनाओं की सूची, जो पुनर्जन्म की मान्यता को सिद्ध करती है.

1- यह घटना सन 1950 में हुई थी. कोसीकला गाँव के रहने वाले भोलेनाथ जैन के पुत्र निर्मल की मृत्यु चेचक से हुई. उसकी मौत के एक साल बाद 1951 में छटा गाँव में एक पुत्र का जन्म हुआ. जब वह 4 साल का हुआ, तब वह अचानक से कोसीकला गाँव का जिक्र करने लगा और बताने लगा कि मैं पिछले जन्म में भोलेनाथ जैन का पुत्र था. उस लड़के को कोसीकला गाँव की सभी बातें याद थी.

2- पुनर्जन्म की यह घटना आगरा शहर की है. आगरा में रहने वाले पोस्ट मास्टर पी. एन. भार्गव के घर में एक लड़की का जन्म हुआ. जब वह लड़की 2 साल की हुई, तो वह अपने पिछले जन्म के घर के बारे में बताने लगी. जब भी उनका परिवार धुलियागंज, आगरा के एक बड़े घर के पास से गुजरता, तो वह कहने लगती कि यह मेरा घर है. अंत में मंजू को उस घर में ले जाया गया. यह घर प्रकाश सिंह चतुर्वेदी का था. बाद में पता चला कि उसी घर में प्रकाश सिंह की चाची रहती थी, जिसकी 1952 में मौत हो गयी थी. उसी ने डाकिये के घर में मंजू के रूप में जन्म लिया था.

3- यह पुनर्जन्म की घटना 1960 में हुई थी. प्रवीन चन्द्र के परिवार में एक लड़की ने जन्म लिया. जब लड़की 3 साल की हुई, तो उसने अपने पिछले जन्म की घटनाओं का जिक्र किया. उसने अपने पिछले जन्म का नाम गीता बताना शुरू कर दिया. उसने बताया कि वह जूनागढ़ में रहती थी. उसके परिवार वालों ने पहले उसकी बातों को हल्के में लिया. लेकिन उसके दादा वजूभाई शाह उसे जूनागढ़ ले गये. काफी छान-बीन के बाद पता लगा कि जूनागढ़ के रहने गोकुलदास की बेटी गीता का देहांत अक्टूबर 1959 में हुआ था. उसने पूरे परिवार को पहचाना और उस मंदिर को पहचाना जिसमें उसकी माँ उसे ले जाती थी.

4- एम् एल मिश्रा मध्यप्रदेश के छत्रपुर जिले में रहते थे. उनकी एक बेटी थी स्वर्णलता. वह बचपन से ही अपने पिछले जन्म की बातें करती रहती थी. जिसमें वह बताती थी कि उसका घर कटनी में है और उसके 2 पुत्र हैं. जब उसके परिवार वाले उसे कटनी लेकर गये. छान-बीन के बाद पता चला कि कटनी में 18 साल पहले एक बिन्दियादेवी नाम की औरत रहती थी जिसका देहांत हार्ट अटैक से हुआ था. उसने अपने पिछले जन्म के पुत्रों को पहचाना और मकान में किये गये बदलाव भी बता दिए.

5- यह घटना 1956 में दिल्ली गुप्ता परिवार में जन्मे गोपाल की है. उसने अपने पिछले जन्म का नाम शक्तिपाल बताया और यह भी बताया कि वह पिछले जन्म में मथुरा में रहता था. उसने बताया वे तीन भाई थे और उसी के एक भाई ने उसकी गोली मारकर हत्या कर दी थी. उसने बताया कि मथुरा में “सुख संचारक” नाम से उसकी दवाईयों की दुकान थी. उसके पिता ने अपने मित्रों की सहायता से छानबीन शुरू कर दी. उनको पता चला की सुख-संचारक के मालिक की गोली मारकर हत्या कर दी गयी थी. मथुरा में उसके परिवार को इस बारे में पता चलने पर उसकी चाची और पत्नी उससे मिली जिन्हें उसने तुरंत पहचान लिया.

6- यह पुनर्जन्म की घटना न्यूयॉर्क की रहने वाली 26 साल की क्यूबा की औरत की है. उसने दावा किया कि वह पिछले जन्म में यूरोप में रहती थी और एक डांसर थी. वह अपना पिछले जन्म का नाम भी जानती थी. हैरानीजनक रूप से वह कमाल के नृत्य-कौशल का प्रदर्शन करती थी, जबकि उसने डांसिंग की कोई विधिवत शिक्षा नहीं ली थी. स्पष्ट रूप से यह उसके पिछले जन्म में सीखे नृत्य का कमाल था.

7- यह घटना भी अमेरिका में रहने वाली औरत के बारे में है. जो बार-बार “जैन” शब्द ही दोहराती थी, जबकि उसे या उसके दोस्तों तक को इस शब्द का अर्थ नहीं पता था. उसको आग से बहुत डर लगता था और बचपन से ही उसके हाथ की उँगलियों पर जलने के निशान थे. एक जैन सम्मलेन के बाद उसे अपने पिछले जन्म के बारे में पता चला. उसने जाना कि पिछले जन्म में वह जैन धर्म की अनुयायी थी और एक जैन-मंदिर में रहती थी. उसकी मौत आग लगने से हुई थी.

8- यह पुनर्जन्म की घटना जापान में 10 अक्टूबर 1815 को वहां पड़ते गाँव नकावो मुरा में हुई थी. नकावो गाँव में एक लड़के का जन्म हुआ था, जिसका नाम कटसुगोरो रखा गया था. जब वह लड़का 7 साल का हुआ, तब वह कहने लगा कि पिछले जन्म में उसका नाम तोजो था और उसके पिता का नाम कुबी, उसकी बहन का नाम फुसा और उसकी मां का नाम शिद्जु था. उसने यह भी बताया था कि पिछले जन्म में उसकी मौत चेचक से हुई थी. बाद में जब कटसुगोरो के परिवार वालों ने उसके पिछले जन्म के बारे में छान बीन की तब सब कुछ सच्च निकला.

9- थाईलैंड में रहने वाली लड़की जिसका नाम सियाम था, उसने अपने पिछले जन्म के बारे में अपने परिवार वालों को बताया. सियाम को चीनी भाषा का अच्छी तरह से ज्ञान था. एक दिन वह कहने लगी कि उसके पिछले जन्म के माता-पिता चीन में रहते हैं और वह चीन में जाना चाहती है. जब वह चीन में गयी, तब उसकी मुलाकात एक परिवार से हुई और वह उस परिवार के हर सदस्य के बारे में अच्छी तरह से जानती थी.

10- यह घटना 1963 में श्री लंका में पड़ते गाँव बतापोला की थी. इस गाँव में रूबी कुसुम नाम की लड़की का जन्म हुआ था. जिसके पिता का नाम सीमेन सिल्वा था. जब रूबी बोलने लगी, तब उसने बताया कि वह पिछले समय में लड़का थी और पिछले जन्म में उसकी मौत कुँए में डूब कर हुई थी. बाद में जब उसके इस दावे की छान बीन की गयी, तो सभी बातें सच्च निकलीं.
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पुनर्जन्म पर शोध : गीता प्रेस गोरखपुर ने भी अपनी एक किताब 'परलोक और पुनर्जन्मांक' में ऐसी कई घटनाओं का वर्णन किया है जिससे पुनर्जन्म होने की पुष्टि होती है। वेदमूर्ति तपोनिष्ठ पं. श्रीराम शर्मा 'आचार्य' ने एक किताब लिखी है, 'पुनर्जन्म : एक ध्रुव सत्य।' इसमें पुनर्जन्म के बारे में अच्छी विवेचना की गई है। पुनर्जन्म में रुचि रखने वाले को ओशो की किताबें जैसे 'विज्ञान भैरव तंत्र' के अलावा उक्त दो किताबें जरूर पढ़ना चाहिए। ओशो रजनीश ने पुनर्जन्म पर बहु‍त अच्छे प्रवचन दिए हैं। उन्होंने खुद के भी पिछले जन्मों के बारे में विस्तार से बताया है।  इसी प्रकार बेंगलुरु की नेशनल इंस्टीटयूट ऑफ मेंटल हेल्थ एंड न्यूरो साइंसेज में क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट के रूप में कार्यरत डॉ. सतवंत पसरिया द्वारा इस विषय पर शोध किया गया था। उन्होंने अपने इस शोध को एक किताब का रूप दिया जिसका नाम है- 'श्क्लेम्स ऑफ रिइंकार्नेशनरू एम्पिरिकल स्टी ऑफ कैसेज इन इंडियास।' इस किताब में 1973 के बाद से भारत में हुई 500 पुनर्जन्म की घटनाओं का उल्लेख मिलता है। आधुनिक युग में पुनर्जन्म पर अमेरिका की वर्जीनिया यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक डॉ. इयान स्टीवेंसन ने 40 साल तक इस विषय पर शोध करने के बाद एक किताब 'रिइंकार्नेशन एंड बायोलॉजी' लीखी थी जिसे सबसे महत्वपूर्ण शोध किताब माना गया है।
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Usha Wadhwa

जयपुर राजस्थान में इतिहास और अंग्रेजी, हिन्दी, उर्दू, फारसी एवं गुरूमुखी की पढ़ाई की है :-
क्या पुनर्जन्म जैसी कोई बात सही है और दुनिया भर के धर्मो में इसके बारे में क्या मत है ?
पुनर्जन्म वाली बात सही है अथवा नहीं इससे पहले यह देख लें कि अन्य धर्मों में इस के बारे में क्या मत है?

इसलाम और ईसाई धर्म में यह माना गया है कि सृष्टि के अन्त में क़यामत के दिन (इसलाम) और The day of Judgement ( ईसाई) सब के कर्मों का फ़ैसला होगा और कर्म अनुसार उन्हें अपने पाप पुण्य का फल भुगतना पड़ेगा। यह सृष्टि के अन्त में एक ही दिन होना है और इसमें पुनर्जन्म वाली बात कहीं नहीं कही गई है।

सिख, बौद्ध और जैन धर्म चूँकि हिन्दु धर्म से ही निकले है अत: इन के दर्शन में कुछ समानता है :-
परन्तु जहाँ हिन्दु मत आत्मा की नित्यता की बात कही गई है- अर्थात आत्मा एक शरीर से निकल कर दूसरे में प्रवेश करती है, बौद्ध धर्म में हर जन्म अपने में एक स्वतंत्र इकाई है। और इसे ‘पुनर्भव’ या पुनरावृत्ति कहा गया है। और यह तब तक चलता है जब तक मनुष्य निर्वाण प्राप्त न कर ले। परन्तु बौद्ध धर्म में पुनर्जन्म की बात कही ज़रूर गई है और बौद्ध जातक कथाओं में महात्मा बुद्ध के पूर्व जन्मों का विवरण मिलता है।

क्या सत्य है क्या नहीं इसका उत्तर देना तो सम्भव नहीं क्योंकि हर धर्म केवल विश्वास पर ही टिका है। परन्तु यह निश्चित है कि जो भी सत्य है वह बात उनके निजी विश्वासों का भेद किए बग़ैर सभी धर्मावलम्बियों पर समान रूप से लागू होती है।

कर्मफल हिन्दु धर्म का एक प्रमुख अंग है और जब हम इस बात पर विश्वास करते हैं तो पुनर्जन्म पर विश्वास करना आवश्यक हो जाता है। यह दोनो आपस में जुड़े हुए हैं। एक वैज्ञानिक सिद्धान्त है न- न्यूटन का- action और reaction वाला ( क्रिया और प्रतिक्रिया) कुछ उसी तरह से सोचिए कर्म फल के सिद्धान्त को। मतलब आपको अपने कर्मों का फल भुगतना ही होगा। इस बात पर कोई प्रश्न कर सकता है- ‘एक बच्चा विकलांग पैदा हुआ है, तो मन स्वभाविक ही पूछता है, उस अबोध ने तो कोई पाप किया ही नहीं फिर उसे यह दण्ड क्यों मिला है। और यहीं पर पुनर्जन्म की बात आती है। ‘यह उसे किसी पूर्व जन्म का दण्ड मिला है।’

हिन्दु धर्म अनुसार आत्मा अजर अमर है। शरीर नष्ट हो जाये आत्मा कभी नहीं मरती। गीता में श्री कृष्ण ने कहा है- जिस तरह हम पुराने वस्त्रों का त्याग कर नये वस्त्र धारण कर लेते हैं ठीक उसी तरह हमारी आत्मा पुराना शरीर त्याग नया शरीर धारण कर लेती है।

पर प्रश्न है क्यों ?
हमारे कुछ कर्मों का फल तो हमें इसी जन्म में मिल जाता है परन्तु जिन -अच्छे बुरे दोनो का- इस जन्म में नहीं मिल पाता इनका हमें अगले जन्म में मिलता है- अच्छे बुरे दोनो का। अर्थात एक बच्चा जिसका जन्म एक फुटपाथ पर हुआ और किसी दूसरे का अति सम्पन्न परिवार में तो वह उनके पिछले जन्मों के कर्मों का फल है।

कर्मफल का यह सिद्धान्त भारत के सब धर्मों में थोड़ा फेर बदल के साथ पाया जाता है। इसके अतिरिक्त ग्रीक दार्शनिकों सुकरात, पलूटो एवं पाइथागोरस ने भी इसे स्वीकार किया है। आजकल पश्चिमी देशों में भी पुनर्जन्म के सिद्धान्त में रुचि जागी है। अमरीकी मनोवैज्ञानिक डा. ब्रायन एल वीस ( Dr. Brian L Weiss) अपने मरीज़ों को हिप्नोटिजम द्वारा पिछले जन्मों में ले जाकर उनकी मनोवैज्ञानिक समस्यायों का हल निकालते हैं।

इन सिद्धान्तों की सत्यता स्थापित करना तो संभव नहीं पर निश्चित तौर पर इसको मानना समाज के हित में है।

१- हमें अपने कर्मों का फल भुगतना ही पड़ता है इस सिद्धान्त में सचाई हो अथवा नहीं वह एक सामान्य मनुष्य को सही राह पर चलने को प्रेरित करती है और देखा जाये तो यही हर धर्म का मुख्य उदेश्य भी होता है।

२- कर्मों का फल भोगने वाले सिद्धान्त का एक और लाभ है। हम यह नहीं कह सकते कि हमारा तो भाग्य ही ख़राब है। हम अपने अच्छे बुरे कर्मों द्वारा अपना भाग्य स्वयं ही लिखते हैं और अपने कर्मों में सुधार कर के अपना भाग्य बदलने की ज़िम्मेदारी भी हमारी स्वयं पर है।

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- योगेश स्वामी की प्रोफाइल (- पूर्व राजस्थान उच्चत्तर न्यायिक सेवा लेखक ) :-
पुनर्जन्म का क्या रहस्य है? क्या पुनर्जन्म होता है?
पुनर्जन्म होता है, धरती के अलावा अन्य जगह/लोकों में भी।
लोक-परलोक : अब सदा यहाँ रहो,कोई मर गया, मरने पर क्या? शरीर तो यहीं है। कोई हलचल नहीं है। यह सोच आई कि शरीर में से कुछ निकल गया, इसलिए मृत्यु हुई।कौन/क्या बाहर गया? यह जो निकला उसे बुद्धि और इंद्रियों से जाना नहीं जा सकता थाl तो कैसे जाने?हमें समझने फिर भगवान का शब्द आया, वेद, बाइबिल, गीता, कुरान आदि के रूप में।

इन्होने यह समझाया कि वह निकलने वाली चीज नित्य है। यमराज नचिकेता को समझाते हुए बताते हैं कि आत्मा ना जन्मती है ना ही मरती है-...... शरीर के नष्ट होने पर भी नष्ट नहीं होती है--- कठ उपनिषद्१/२/ १८। नित्य है तो कहीं रहती भी होगी, शरीर को त्यागने के पश्चात। वह रहने की जगह दूर किसी स्थान पर है, तब तो यह चीज कहीं पर जाती भी होगी। अगर कहीं जाती होगी तो कहीं से आती भी होगी। बस इसी से पुनर्जन्म और परलोक का सिद्धांत पैदा हुआ।

श्रीकृष्ण ने आत्मा का एक शरीर से दूसरे शरीर में जाने को पुराने कपड़े त्यागकर नए कपड़े पहनना बताया ---श्रीमद्भागवत गीता२/२२। हमारा यह शरीर, क्षेत्र का छोटा-सा हिस्सा है, जो 24 तत्वों से बना हुआ है। पाँच महाभूत: पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश, पाँच ज्ञानेंद्रियाँ, पाँच कर्मेंद्रियाँ, पाँच इंद्रियों के विषय और प्रकृति, मन, बुद्धि व अहंकार--श्रीमद् भगवतगीता१३/५ ।

मृत्यु के समय स्थूल शरीर यहाँ रह जाता है। बाकी सब मन बुद्धि इंद्रियाँ आदि इसमें से निकल जाते हैं। विवेक चूड़ामणि 98 के अनुसार यह स्थूल शरीर चमड़े माँस, रक्त, नसें, चर्बी, मज्जा और हड्डियों का समूह है, इसमें मल-मूत्र भी भरा हुआ रहता है। यह शरीर भोगायतन है, भोग का घर है। इसकी अवस्था को जागृत अवस्था कहा गया है। अभिमानी जीव को विश्वपुरुष कहा गया है और सूक्ष्म शरीर पाँच कर्मेंद्रियाँ, पाँच ज्ञानेंद्रियाँ, पाँच प्राण, मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार, अविद्या, काम और कर्म का बना हुआ होता है। इसे लिंग शरीर भी कहते हैं। यह वासना से युक्त होने के कारण कर्म फलों का अनुभव कराने वाला है। इसकी अवस्था स्वप्न अवस्था होती है। इसके अभिमानी जीव को तेजस पुरुष कहते हैं। वेदांती स्थूल शरीर को अन्नमय कोष कहते हैं, सूक्ष्म शरीर को प्राणमय और एक तीसरा शरीर बताते हैं जिसके कारण शरीर और आनंदमय कोष कहते हैं ।

सूक्ष्म शरीर का स्थूल शरीर से बाहर निकल जाना मृत्यु कहलाती है और स्थूल शरीर से युक्त हो जाना जन्म कहलाता है। जीव को एक स्थान से दूसरे स्थान पर अर्थात अन्य लोकों में जाने के लिए अतिवाहिक शरीर दिया जाता है । यह शरीर बिना पृथ्वी और जल तत्व का होता है। इसमें अग्नि वायु और आकाश तत्व होते हैं। कोई कोई विद्वान इस शरीर को केवल आकाश तत्व से बना हुआ मानते हैं। शरीर से बाहर निकलने वाले तत्वों के साथ ही आत्मा, जो की वास्तविक हम हैं, भी निकलती है।

देव ऋषि नारद राजा प्राचीनबर्हि को समझाते हुए बताते हैं कि त्रिगुणमय संघात ही लिंग शरीर है। यही चेतना से युक्त होकर जीव कहा जाता है। इस लिंग शरीर में पाँच ज्ञानेंद्रियाँ, पाँच कर्मेंद्रियाँ, पाँच प्राण और एक मन, ऐसे 16 तत्व नारद जी ने बताए हैं- श्रीमद् भागवत४/२९/७४। कोई कोई अहंकार, बुद्धि और चित्त को भी जोड़ते हैं। सूक्ष्म शरीर के साथ सारे कर्म और संस्कार, जो उसी का हिस्सा हैं, भी जाते हैं। इसके द्वारा पुरुष भिन्न-भिन्न देहों को ग्रहण करता है और त्यागता है तथा इसी से उसको हर्ष, शोक, भय, दुख और सुख आदि का अनुभव होता है। मृत्यु के तुरंत बाद दूसरा शरीर नहीं मिलता, नया शरीर मिलने में थोड़ा समय लगता है। इसलिए जब तक दूसरी योनि नहीं मिलती तब तक अतिवाहिक शरीर में रहता है। इसे उदाहरण से समझें। मान लें गंगदत्त का निधन हो गया। इसका अभिप्राय है कि उसके स्थूल शरीर से लिंग शरीर निकल गया। यह लिंग शरीर कहीं आ जा नहीं सकता। मान लो गंगदत्त को स्वर्ग मिलना है। तो उसे अतिवाहिक शरीर मिलेगा जिससे वह स्वर्ग जाएगा। वहाँ पर उसे स्वर्ग के भोग भोगने के लिए शरीर मिलेगा जिसमें वह, अतिवाहिक शरीर को छोड़कर, लिंग शरीर के साथ प्रवेश करेगा और स्वर्ग के भोग भोगेगा। मान लो उसे नर्क भुगतवाना है तो पहले वह अतिवाहिक शरीर से नर्क में जाएगा, वहाँ उसका लिंग शरीर अतिवाहिक शरीर त्याग कर, नर्क के यातना शरीर में प्रवेश करेगा और नरक की यातना भोगेगा। यही अन्य लोकों के लिए मानें। यह मन प्रधान लिंग शरीर ही जीव के जन्म आदि का कारण है।

‘मरने’ वाले अथवा शरीर त्यागने वाले जीव की क्या-क्या गति हो सकती है, इस पर विचार किया जाए। सबसे उत्तम गति यह है कि शरीर छोड़कर जीव कहीं ना जा कर सीधा ही परम ब्रह्म में लीन हो जाए। ऐसे जीव को कहीं भी नहीं जाना पड़ता। वह यहीं सर्वव्यापक में समा जाता है, उनके प्राण का उत्क्रमण नहीं होता-- बृहद ० उपनिषद।४/ ४/६। कुछ बहुत ही ज्यादा पाप करने वाले जीव होते हैं। ऐसे जीव भी धरती छोड़कर कहीं नहीं जाते। यहीं पर तिनका, पेड़, लता, कीट, पतंग, कीड़ा, पक्षी, पशु बन जाते हैं। इसको तृतीय मार्ग कहा गया है-- छांदोग्य उपनिषद५/१०/८।

बहुत से पापी लोग धुंधकारी की तरह प्रेत बनकर धरती पर ही रहते हैं, कहीं नहीं जाते-- श्रीमद्भागवत माहात्म्य, अध्याय 5। रजोगुण के बढ़े होने पर मरने वाला कर्म-संगी मनुष्य योनि में जन्म लेता है, तमोगुण में मरने वाला मूढ़ योनियों में और सतोगुणी उत्तम वेताओं के उच्च लोकों में जाता है--- श्रीमद् भगवतगीता १४/१४,१५,१८।

आसुरी स्वभाव वालों को भी भगवान बार-बार आसुरी योनियों में और नरकों में गिराते हैं--- श्रीमद् भगवतगीता१६/१९,२० ।

योग भ्रष्ट भी अन्य लोक में न जाकर सीधे ही जीवन मुक्तों /ज्ञानवान योगियों के घर पैदा हो जाते हैं, यह बहुत ही दुर्लभ जन्म है-- श्रीमद्भगवद्गीता ६/४०,४२।

कुछ जीव, यज्ञ, दान, तप आदि सकाम कर्म करने वाले, पितृयान से पितृलोक स्वर्ग आदि लोकों को जाते हैं और पुण्य समाप्त होने पर फिर से धरती पर जन्म लेते हैं--- छांदोग्य उपनिषद५/१०/३-६।

 पुनः मनुष्यशरीर ही मिले ऐसा अनिवार्य नहीं है। योग भ्रष्ट भी उच्च लोकों से लौटने के पश्चात श्रीमानों के घरों में जन्म लेते हैं--गीता ६/४४।

कुछ ऐसे भी जीव है जिन्होंने ज्ञान से, योग से, निष्काम कर्म से, भगवान की आराधना की है। यह लोग देव यान से एक के बाद एक क्रम अनुसार ऊँचे-ऊँचे लोकों में जाते हैं, जहाँ बड़े-बड़े भोग होते हैं। फिर ब्रह्मा जी के लोक में जाते हैं और जब ब्रह्मा जी का समय समाप्त होता है तो ब्रह्मा जी के साथ ही परमब्रह्म में समा जाते हैं (इस पर विस्तार से ब्रह्माजी के प्रसंग में बताया गया है)।--ऋग्वेद १०/८८/१५, ७/३८/८; छांदोग्य उपनिषद५ /१० /१-२।

तपस्या करने वाले तपस्वी पहले ऋषियों के लोक में जाते हैं और उसके पश्चात भगवान के धाम में--11११ /१८/९ l इसके अलावा बहुत से जीव सीधे ही भगवत धाम को जाते हैं और वापस लौट कर नहीं आते धरती पर। आवागमन से छूट जाते हैं। यह भगवान के भक्त हैं। आगे बताया जाएगा कि यह लोग वैकुंठ में जाते हैं।

पापियों की चर्चा :-
ऐसे लोग, कूकर, शूकर, कीट-पतंग पेड़-लता आदि हीन योनियों में जन्म लेते हैं, बार-बार और जन्म-मरण के चक्कर में फंसे रहते हैं या ऐसे लोग नरकों में जाते हैं। इन्हें वहाँ पर यातना शरीर दिया जाता है, जिसमें यह बहुत लंबे काल तक यातना भोगते हैं। पाप समाप्त होने पर यह भी दोबारा जन्म लेते हैं धरती पर। यह जीव जिस भी लोक में जाता है इसको उसी लोक के हिसाब से शरीर दिया जाता है। जैसे स्वर्ग आदि लोकों में देवताओं का तेजोमय शरीर, भगवत धाम गोलोक वैकुंठ आदि में दिव्य शरीर।

जो सकाम कर्म करने वाले पितृयान से जाते हैं उनका क्या होता है ? यह धूम अभिमानी देवता को प्राप्त होते हैं, उनसे रात्रि देवता को प्राप्त होते हैं, इससे कृष्ण-पक्ष अभिमानी देवता को प्राप्त होते हैं, फिर दक्षिणयन के छह महीनों से पितृलोक पहुँचते हैं , वहाँ से आकाश को और फिर चंद्रमा को प्राप्त हो जाते हैं। यह चंद्रमा राजा सोम है, देवताओं का अन्न है। वहाँ पर यह लोग रहते हैं, दिव्य भोग भोगते हैं और कर्म क्षीण होने पर वैसे ही लौटते हैं जैसे गए थे। यह आकाश को प्राप्त होते हैं। फिर वायु को। वायु होकर धूम बनते हैं, धूम होकर अभ्र। अभ्र होकर मेघ। मेघ जब बरसता है तब यह लोग इस लोक में धान, जौ, औषधि, वनस्पति, तिल, उड़द आदि होकर उत्पन्न होते हैं। उनको अन्य प्राणी भक्षण करते हैं। इससे वीर्य बनता है। वीर्य सींचन से गर्भ में जाते हैं और जन्म लेते हैं, उस योनि में जिसके नर ने मादा में वीर्य का सींचन किया है। यह निष्क्रमण अत्यंत कठिन है-- छांदोग्य उपनिषद५/१०/३- ६ । बहुत से योगी कहते हैं कि जीव शरीर में ब्रह्मन्ध्रा से प्रवेश करता है, वीर्य द्वारा नहीं। अपने समर्थन में ऐतरेय उपनिषद का हवाला देते हैं--१/३/१२। यह मानने योग्य नहीं क्योंकि, इस सूत्र में जीव की प्रविष्टि नहीं वरन परमात्मा की प्रविष्टि दर्शाई गई है और भागवत में कपिल भगवान ने भी पुरुष के वीर्य से जीव का माता के गर्भ में प्रवेश करना बताया है ----३ /३१/१। इसलिए सकाम कर्मों को निंदनीय बताया है, तथा स्वर्ग की कामना को मूर्खता।

मनुष्य को भगवान ने कर्त्ता नहीं बनाया है। सारे कर्म सभी प्रकार से प्रकृति के गुणों द्वारा किए जाते हैं। प्रकृति के गुणों से संबंध जोड़कर मनुष्य अपने आप को कर्त्ता मान बैठता है। यही जीव के बंधन का कारण है---श्रीमद्भगवद्गीता३ /२७ ,श्रीमद्भागवत३/२७/१ -४। यह कर्म बंधन ही आवागमन का व एक लोक से दूसरे लोक में जाने का कारण है।

ऊपर जो हमने चर्चा की है, उसके अनुसार इस धरती के अलावा भी बहुत से लोक हैं। श्री मद्भागवत के अनुसार अतल-लोक में मय दानव का पुत्र बल रहता है। वहाँ तरह-तरह की माया है। वहाँ पर स्वैरिणी(अपने वर्ण के पुरुष के साथ रमण करने वाली), कामिनी और पुंशचली नाम की तीन प्रकार की स्त्रियाँ होती हैं जो हाटक नाम का एक पेय पिलाकर पुरुषों को संभोग करने में समर्थ बना लेती हैं। वह अपने आप को हज़ार हाथियों के समान बलवान समझ बैठता है और “मैं ईश्वर हूँ, मैं सिद्ध हूँ” इस प्रकार बातें करने लगता है। इसके नीचे वितल लोक है। महादेवजी अपने पार्षदगणों के साथ रहते हैं। वितल लोक के नीचे सुतल लोक है जहाँ पर विरोचन पुत्र बली रहते हैं। यहाँ बहुत वैभव व ऐश्वर्य है। स्वयं भगवान कहते हैं “वहाँ रहने वाले लोग मेरी कृपा दृष्टि का अनुभव करते हैं, इसलिए उन्हें शारीरिक व मानसिक रोग, थकावट, बाहरी और भीतरी शत्रुओं से डर और किसी प्रकार के विघ्नों का सामना नहीं करना पड़ता।’’ तलातल लोक इसके नीचे हैं। इस लोक में मय दानव रहता है और वह शंकरजी द्वारा सुरक्षित है। इसलिए उसे सुदर्शन चक्र से भी कोई भय नहीं है। महातल उसके नीचे है जहाँ पर तक्षक , कालिया आदि सर्प रहते हैं। पणि नाम के दैत्य और दानव रसातल में रहते हैं जो बहुत साहसी और बलवान हैं, परंतु इंद्र से भय खाते हैं। उसके नीचे पाताल है जहाँ वासुकि आदि बड़े-बड़े नाग रहते हैं। किसी के दस सिर हैं, किसी के सौ और किसी के सहस्त्र, उनके सिरों पर मणियाँ होती हैं जो अंधकार को दूर करती हैं। पाताल के भी नीचे 30 हजार योजन की दूरी पर भगवान की तामसी नि त्य कला है जिसे अनंत कहते हैं। यह दृश्य और दृष्टा को खींचकर एक कर देती है, इसलिए नाम संकर्षण है। इन भगवान के हज़ार मस्तक हैं। श्रीमद्भागवत में इनका वर्णन किया गया है-- स्कन्द पाँचवें अध्याय २३ से २६ ।

धरती के ऊपर भुवरलोक, स्वर् लोक, महर लोक, जनलोक, तपलोक और सत्यलोक होते हैं। वरुण और कुबेर के भी अलग-अलग स्वतंत्र लोक/सभा हैं। यह सब धरती से ऊँचे लोक हैं। सदाशिवसंहिता के अनुसार महरलोक एक करोड़ योजन परिमाण का है, जनलोक दो करोड़ योजन, तपोलोक चार करोड़ योजना और जनलोक आठ करोड़ योजन। यहाँ धरतीलोक से बहुत ज्यादा भोग और ऐश्वर्य है; परंतु यह सब भी अनित्य है। इन लोकों में पुण्य कर्म करने वाले जाते हैं। पातंजल योग प्रदीप के व्यास भाष्य के अनुसार सबसे निम्न स्वर्ग लोक को माहेंद्र लोक कहते हैं। इस लोक में त्रिदश, अग्निश्वात्त, याम्य, तुषित, अपारिनिर्मित-वशवर्ती, परिनिर्मित- वशवर्ती नाम की छह विशेष देव योनियाँ है। यह बिना माता-पिता के शरीर वाले हैं, शरीर दिव्य है। यह सब देवता संकल्प सिद्ध है, अणिमा, गरिमा आदि सिद्धियाँ से संपन्न है। इनकी आयु एक कल्प, 4अरब 32 करोड़ मनुष्य लोक के वर्ष है। इसके ऊपर महान नामक विशेष स्वर्ग लोक है। इसे महालोक या प्रजापति का लोक भी कहते हैं। यहाँ की पाँच विशेष देव योनियाँ है कुमुद, ऋभु, प्रतर्दन, अञ्जनाभव व प्रचिताभ। इनकी इच्छा मात्र से ही महाभूत कार्य रूप में परिणत होते हैं। यह बिना खाए और पिए तृप्त और पुष्ट होने वाले हैं। इनकी आयु 100 कल्प है। इसके आगे जनलोक है, इसे प्रथम ब्रह्मलोक भी कहते हैं। इसमें चार प्रकार की देव योनियाँ है-- ब्रहम पुरोहित, ब्रह्म कायिक, ब्रह्म महाकायिक और अमर। इन की आयु 200 कल्प है। इसके आगे तपोलोक है जिसे द्वितीय ब्रह्मलोक भी कहते हैं जहाँ पर अभास्वर, महाभास्वर और सत्य महाभास्वर रहते हैं जिन की आयु 400 कल्प की है। देवगण महाभूत इंद्रीय, अंतःकरण--- इन तीनों को स्वाधीनकरणशील है। इनका कभी वीर्यपात नहीं होता। कुछ खाने पीने की आवश्यकता नहीं। यह लोग ध्यानाहार हैं। इसके ऊपर तीसरा ब्रह्मलोक, जिसे सत्यलोक भी कहते हैं, स्थित है। यह मुख्य ब्रह्मलोक है। इसमें चार प्रकार के देवता रहते हैं--- अच्युत, शुद्ध निवास, सत्याभ और संज्ञासंज्ञी। अपने शरीर रूपी ग्रह में ही स्थित रह सकते हैं यदि किसी ग्रह का अभाव हो। इसलिए इन्हें अकृत-भवननिवास कहा जाता है। इनकी आयु ब्रह्माजी की आयु के बराबर है।(4अरब 32 वर्षों का ब्रह्माजी का दिन है और इतनी बड़ी ही रात,३०दिन रात का महीना ,१२महीनों का एक साल। ऐसे 100 वर्षों की ब्रह्माजी की आयु ) यह केवल ध्यान मात्र से ही चाहें जो सुख भोग सकते हैं। इनमें से कोई भी ब्रह्मलोक का वासी अभी मुक्त नहीं है। यह लोग महाप्रलय के समय ब्रह्माजी के साथ ही परमब्रह्म में समा जाते हैं। इन सबके अलावा विदेह और प्रकृति लय योगी मोक्ष पद के तुल्य स्थिति में रहते हैं। इसलिए किसी लोक में रहने वाले लोगों से इनकी तुलना नहीं की जा सकती---१७ व १९ समाधिपाद पातंजल योग प्रदीप ।

इसके अलावा नीच लोक भी हैं जहाँ पर पाप कर्म करने वाले जाते हैं। इन्हें नर्क कहते हैं। यहाँ पापियों को तरह तरह की यातनाएँ दी जाती हैं। ऐसे नरकों का वर्णन भागवत में व अन्य पुराणों में भी है। भागवत के अनुसार नर्क पाताल के नीचे दक्षिण में गर्बोधक सागर के पहले हैं । जीव पहले यमलोक में ले जाया जाता है जहाँ उसका फैसला किया जाता है। यम मृत्यु के देवता हैं, यह सूर्य के पुत्र हैं। पदम पुराण के उत्तरखंड के अनुसार यम का लोक मनुष्य लोक से 86 हजार योजन दूर है। वराह पुराण के अनुसार यम का नगर 4000 योजन लंबा और 2000 योजन चौड़ा है, विशाल राजमार्ग है और सुंदर अट्टालिकाएँ हैं।दक्षिण दरवाजे से पापी लोगों को ले जाया जाता है और बाकी दरवाजों से पुण्यात्मा।

इसाई धर्म में भी नरकों का वर्णन है ---मार्क 9.45,’रवलेशन’ revelation 14.10,11; मैथ्यू,25.41-46। यहाँ पर पापियों को जलाया जाता है। शुरू में यह जगह सेटन (satan) और बाकी के गिरे हुए फरिश्तों (fallen angels) के लिए बनाई गई थी, अब यहाँ पापियों को भी भेजा जाता है। इसाई धर्म में एक बात और है कि आत्मा को भी भगवान समाप्त कर सकते हैं। क्यों नहीं, जो चीज एक दिन बनाई गई है वह मिटाई भी जा सकती है-- जेनेसिस (genesis)1.26,27। इसाई धर्म के अनुसार आत्मा (soul) को भगवान ने बनाया है, इसलिए इसे समाप्त भी कर सकते हैं। भगवान के आलावा कोई अन्य इससे मार नहीं सकता ,इसलिए आत्मा ईसाई मत में अविनाशी भी कहलाती है 1 हिंदू धर्म की आत्मा की तरह नहीं, जो कि नित्य है, समाप्त नहीं की जा सकती---श्रीमद् भगवतगीता 2.24। इसाई धर्म के अनुसार न्याय होता है(हीब्रू 9.27) व पापी लोग अनंतकाल के लिए नर्क में रहते हैं, छुटकारा नहीं—मैथ्यू 10.28, 25.46,।

इस्लाम (islam) में भी नरकों का जिक्र है--Quraan 22.19,20, 38.55-58, 74.30, 4.56, और अल बुखारी 87-155। मालिक और उसके साथी, जो कि 19 है, नरकों के पहरेदार है। इस धर्म के अनुसार भी पापियों को यातनाएँ दी जाती है।

स्वर्ग आदि लोकों में भोग दिव्य हैं l स्वर्ग में जाने वाले को उसके पुण्य कर्मों के अनुसार एक चमकीला विमान मिलता हैl उसमें सवार होकर वह सुंदरियों के साथ विहार करता है, गंधर्व उसके गुणों का गान करते हैं, और उसका रूप लावण्य बहुत ही लुभावना होता है, मन के अनुसार उसका विमान जहां वह चाहता है वही चला जाता हैl वह क्रीड़ा करते हुए बेसुध हो जाता है, उसे पता ही नहीं चलता कि उसके पुण्य कब समाप्त हो गएl पुण्य समाप्त होने पर वह नीचे गिरा दिया जाता हैl यहां तक तो सही है कि स्वर्ग लोक के भोग्य दिव्य है परन्तु वहां भी बराबरी वालों में होड़ चलती रहती है ,छोटों से घृणा की जाती है, अपने से ज्यादा भोग भोगने वालों के प्रति असूया होती हैl इस प्रकार से यज्ञ गागादि करके बहुत कठिनाई से उपलब्ध होने वाले धरती के सारे सुख और स्वर्ग के सारे सुखअनित्य हैं और सारहीन है, श्री कृष्ण की दृष्टि में---11/10/21-24 l

ऊपर बताए गए सारे लोक प्राकृत हैं। प्रलय काल में नष्ट हो जाते हैं। यह सभी लोक बनते हैं और बिगड़ते हैं। एक निश्चित अवधि के बाद समाप्त हो जाते हैं, उदाहरण के तौर पर स्वर्ग लोक में इंद्र व अन्य देवता एक मन्वंतर तक ही रहते हैं, बाद में बदल जाते हैं; कार्यकाल या स्वर्ग में रहने की अवधि समाप्त होने पर स्वर्ग से गिरा दिए जाते हैं l (स्वर्गलोक की आयु केवल एक कल्प ही है जो ब्रह्मा जी का एक दिवस है।

एक कल्प में 14 मन्वंतर व 14इंद्र ही होते हैं। एक इंद्र का समय एक मन्वंतर है) । नए देवता नए मन्वंतर में आते हैं। इनके अलावा नित्य लोक भी हैं। यह वैकुंठ लोक कहलाते हैं। यह सप्तर्षियों के बहुत ऊपर शिशुमार चक्र के परे हैं। यहाँ पर सूरज ,चाँद और अग्नि का प्रकाश नहीं होता। यह लोक अपने ही प्रकाश से प्रकाशित हैं। यहाँ जाकर जीव वापस नहीं लौटता। वह आवागमन से छूट जाता है। फिर जन्म नहीं लेना पड़ता। श्रीमद् गीता में वर्णन मिलता है---१५/६ । परमधाम भी कहते हैं इनको। गर्ग संहिता में कहा गया है कि जहाँ से संसार का सबसे बड़ा सुख समाप्त होता है वहाँ से परमधाम के सबसे बड़े दु:ख की सीमा आरंभ होती है।(समझाने के लिए कि “दु:ख’’ शब्द का प्रयोग किया गया है वरना वहाँ पर दु:ख नाम की कोई वस्तु नहीं है ; कहने का तात्पर्य इतना ही है कि भौतिक जगत का सबसे बड़ा सुख भी वहां के सुख के आगे कुछ भी नहीं हैl ) इससे ही अंदाजा लगाया जा सकता है कितना बड़ा सुख परमधाम में है। तैतेरीय उपनिषद में ब्रह्मानंदवल्ली के अष्टम अनुवाक में आनंद का वर्णन किया गया है। “सबसे सुखी मनुष्य वह है मनुष्य लोक में, जिसकी युवावस्था है, कोई रोग नहीं है, शिक्षित है, सदाचारी है, हर प्रकार के बल से संपन्न है। मानों ऐसा सुख 1 नंबर लेता है तो इस सुख से 100 गुणा बड़ा सुख मनुष्य गंधर्व का है, उस से 100 गुणा बड़ा सुख देव गंधर्व का है, इससे सौ गुणा सुख पितृलोक के पितरों का है, उससे सौ गुणा आजानज देवों का, उससे सौ गुणा कर्म देवों का, उससे सौ गुणा इंद्र का सुख, उससे सौ गुणा बृहस्पति पति का सुख, उससे सौ गुणा प्रजापति का सुख, उस से सौ गुणा हिरण्यगर्भ ब्रह्मा का आनंद।’’ परंतु इनमें से कोई भी आनंद ना तो नित्य और ना अनंत है। कुछ अवधि में, चाहे अरबों-खरबों वर्ष ही क्यों ना हो, समाप्त हो जाता है। फिर यह भौतिक सुख है और अनंत मात्रा का नहीं है, जबकि भगवान के धाम का सुख अनंत मात्रा का है, अनंत काल के लिए है और प्रतिक्षण वर्धमान है। भगवत धाम के सुख से यदि बराबरी करें ब्रह्मा जी का सुख ना के बराबर ही है। अनंत के सामने कोई भी संख्या हो, “कुछ नहीं” के बराबर होती है।

वैकुंठ में चार भुजाधारी विष्णु भगवान विराजमान हैं। सुनंद, नंद आदि पार्षद उनकी सेवा में लगे रहते हैं। यह भगवान समस्त धर्म, कीर्ति, श्री, ज्ञान और वैराग्य से संपन्न है। इनके चारों ओर 25 शक्तियाँ-- पुरुष, प्रकृति, महत्व, अहंकार, मन, दस इंद्रियाँ, शब्द आदि पाँच तन्मात्राएँ और पंचभूत चारों ओर खड़े रहते हैं---भागवत द्वितीय स्कंध का नौवां अध्याय। आध्यात्मिक और भौतिक जगत के बीच में भगवान के पसीने से बनी हुई विजरा नदी है। एक चौथाई भाग भौतिक जगत का है, तीन चौथाई आध्यात्मिक जगत का। वैकुंठ में रहने वाले सब परिकर चार भुजाधारी हैं, श्याम वर्ण हैं और विष्णु जैसे ही सुंदर और तेजस्वी है। भगवान के इस धाम में भौतिक परिवर्तन नहीं पाए जाते-- जन्म, बढ़ना, रूपांतर, अस्तित्व घटना और समाप्त हो जाना। कोई बीमारी और दु:ख जब स्वर्ग आदि लोकों में ही नहीं है तो भगवान के नित्य धाम में कैसे होगा? इसी प्रकार दो भुजाधारी कृष्ण जिस स्थान में रहते हैं उस परमधाम को गोलोक, नित्य वृंदावन, श्वेत द्वीप आदि नामों से जाना जाता है; श्रीराम का लोक नित्य अयोध्या आदि नामों से जाना जाता है; शिवजी का कैलाश; देविका मणिद्वीप और इसी प्रकार भगवान के जो-जो रूप हैं उन सबके ही अलग-अलग धाम है। भगवान के रूप अनंत हैं तो उनके धाम भी अनंत हैं।

साकेत धाम के संबंध में हमें जानकारी वशिष्ठ संहिता२६/१ साकेत सुषमा से मिलती है: “अयोध्या के प्रथम घेरे में ब्रह्म ज्योति है जिसमें कैवल्य मोक्ष पाने वाले प्रवेश करते हैं।” इसके दूसरे द्वार पर सरयू नदी क्रीड़ा करती है। तीसरे द्वार पर महाशिव, महाब्रह्मा, सिद्ध, चारण गंधर्व आदि रहते हैं। चौथे में वेद, उपवेद, पुराण ,नाटक, ज्ञान, कर्म, योग वैराग आदि निवास करते हैं । साकेत नगरी के पाँचवें आवरण में मानसिक ध्यान करने वाले योगी और ज्ञानीजन निवास करते हैं, और विद्वान लोग भी। इसी धाम में कौशलपुरी, अयोध्या, श्री कृष्ण का वृंदावन, मिथिलापुरी आदि भी हैं और महाविष्णु का वैकुंठ भी यहीं है। पद्मपुराण उत्तराखंड २२८ में और वर्णन मिलता है कि अयोध्या नगरी के मध्य में बहुत ऊँचा और व्यस्त दिव्य मंडप है जहाँ राजा का सिंहासन है। वेद सिंहासन के चारों ओर खड़े रहते हैं। सिंहासन के बीचो-बीच आठ पंखुड़ियों का एक कमल है, जो उदय काल के सूर्य के रंग का है। इस कमल के बीचोंबीच श्रीराम विराजते हैं जो सबके स्वामी हैं।

महाभारत में नारद जी को श्वेत द्वीप में नारायण के दर्शन हुए हैं। परंतु यह भगवान का मायिक रूप है, दिव्य चिन्मय रूप नहीं। श्वेत द्वीप में दो भुजा वाले श्रीकृष्ण विराजते हैं। यह महावृंदावन भी कहलाता है। महावृंदावन में सहस्त्रदल कमल के आकार की एक भूमि है जिसका नाम गोकुल है, उसके ठीक मध्य में श्रीकृष्ण विराजते हैं। गोकुलधाम के मध्य भाग में भगवान का महासिंहासन है जहाँ पर श्री राधा- कृष्ण युगल स्वरूप में विराजते हैं। ब्रह्मवैवर्तपुराण में भी दिव्य गोलोक धाम का वर्णन आता है। जब सृष्टि नहीं थी तब करोड़ों सूर्य की प्रभा के समान ज्योतिर्पुंज था। यह पुंज सृष्टि कर्ता के उज्ज्वल तेज तथा अनंत ब्रह्माण्डों का हेतु है। इस गोलोक धाम के चार द्वार बताए जाते हैं। गोप लोग इन दरवाजों की रक्षा करते हैं। श्री कृष्ण इस अप्राकृत धाम को अपनी योग शक्ति से धारण किए हुए हैं। यहाँ पर ज़रा, मृत्यु ,शोक, रोग आदि का नामोनिशान नहीं है। प्रलय काल में श्रीकृष्ण यहाँ रहते हैं और सृष्टि काल में यह गोप और गोपियों से भरा रहता है। ब्रह्मसंहिता में इसे चन्तामणि लोक कहा गया है। गोलोक के नीचे पचास करोड़ योजन दूर दक्षिण भाग में वैकुंठ और वाम भाग में शिवलोक हैं। इस प्रकार गोलोक में मुख्य लोक तो गोलोक है और नगण्य रूप से बैकुंठ, शिव आदि लोक हैं। इसी प्रकार अन्य लोकों के लिए भी जाने--- वैकुंठ में मुख्य लोक वैकुंठ है और बाकी के लोक नगण्य रुप से विद्यमान हैं। किसी भी लोक को छोटा या बड़ा ना समझें। भक्त की भावना के अनुसार ही भगवान रूप धरते हैं और यही बात उनके लोक पर भी लागू होती है---श्रीमद् भागवत३/९/११। भगवान अनंत हैं उनके रूप अनंत हैं और हर एक रूप का अलग-अलग धाम है, लिहाजा भगवत धाम भी अनंत हैं ।

ईसाई धर्म के अनुसार हैवन (heaven) भगवान के धाम में जाने वाले हमेशा के लिए भगवान के धाम में रहते हैं-- मैथ्यू 25.46 ।

इन धामों में कैसे प्रवेश किया जाए? आइए इसपर विचार करें। सबसे पहले देखें कि इस धाम में किन को प्रवेश नहीं मिलता। वह लोग यहाँ नहीं जा सकते जो भगवान से विमुख हैं और विषय-भोगों में लगे हुए हैं। श्रीमद्भागवत कहती है “जो लोग पापों का नाश करने वाली भगवान की कथाओं को छोड़कर बुद्धि को नष्ट करने वाली अर्थ-काम संबंधी कथाएँ सुनते हैं वह वैकुंठ को नहीं जा सकते। ऐसी कथाएँ सुनने से उनके पुण्य नष्ट हो जाते हैं और उन्हें नर्क में जाना पड़ता है।”-- ३/१५/23 । इस धाम में जाने के लिए मन हमेशा भगवान में लगा रहे, ऐसा उपदेश श्रीमद् भगवतगीता १८.६५,८.७, श्रीमद् भागवत ३/१५/२५ में दिया गया है। ऐसे भक्तों से यमदूत डरते हैं, ऐसे भक्तगण भगवान के नाम से रोमांचित रहते हैं और आँसू बहाते रहते हैं। नित्य धामों में जो शरीर प्राप्त होता है वह साकार है। प्रकृति से परे, दिव्य साकार है। इसे भौतिक नहीं समझना चाहिए। यह प्रलय के समय नष्ट नहीं होता है। ऐसा श्रीमद्भागवत से प्रतीत होता है--- २.९.११। ऐसे भक्तों को ऋग्वेद में देवयु कहा गया है…. १.१ ५४.५ । यह नित्यधाम सर्वत्र व्याप्त है, ‘ओमनी प्रेजेंट’ (omnipresent) है।

तिनके से लेकर ब्रह्मा का अस्तित्व अनित्य है। ब्रहमा का लोक व स्वर्ग आदि लोक अनित्य हैं... ब्रह्मवैवर्त पुराण का ब्रह्म खंड अध्याय 7 I स्वर्ग की कामना करने वालों को वेदों व पुराणों ने महामूर्ख ‘प्रमूढ़ः’ बताया है--मुंडक उपनिषद१/२/१०, भागवत ११/१८ /१०,११/१४/११ l इनकी कामना छोड़ें और नित्य धाम में जाने की तैयारी करें। भगवान के धाम में कैसे जाया जाए इस पर हम चर्चा ‘मुक्ति’ प्रसंग में कर चुके, उससे भी पहले भक्ति के प्रसंग में ।

पुनर्जन्म संबंधी कुछ कथाएँ :-
पूतना पूर्व जन्म में राजा बलि की पुत्री रत्नमाला थी। जब भगवान वामन अवतार में बलि को ठगने उस के पास पधारे तब रत्नमाला का प्रभु के प्रति वात्सल्य भाव उमड़ा और इच्छा हुई कि बालक को स्तनपान कराऊँ। भगवान ने उसकी इच्छा जानकर द्वापर युग में उसकी इच्छा पूरी की--- गर्ग संहिता, गोलोक १३//३१,३३ तथा ब्रह्मवैवर्तपुराण।

आनंद रामायण के अनुसार कुब्जा पूर्व जन्म में पिंगला नाम की एक वेश्या थी। एक बार सीता जी को अनुपस्थित देखकर, वह रामजी के पैर दबाने पहुँच गई। उन पर प्रेमासक्त हो गई। राम जी ने वरदान दिया कि कृष्ण अवतार में वह कुब्जा बनेगी और तब उसकी इच्छा पूरी की जाएगी।

गर्ग संहिता वृंदावन खंड के अनुसार काग भुसुंडिजी पिछले जन्म में अश्वशिला नाम के योगी थे और कालिया नाग वेदशिरा नाम के मुनि। एक दूसरे को शाप देने से इन दोनों की ऐसी स्थिति हुई।

नारदजी और भक्त प्रहलाद के पूर्व जन्मों की चर्चा पूर्व में भक्तों के संदर्भ में की जा चुकी है।

राजा बलि पूर्व जन्म में महापापी थे। इनकी प्रार्थना पर धर्मराज/ यमराज ने इन्हें नर्क भेजने से पहले, तीन घड़ी के लिए इनके पुण्यों के बदले, स्वर्ग का राज दे दिया। इन्होंने बहुत दान किया, अमरावती का सारा ऐश्वर्य ही लुटा दिया। अगले जन्म में वह विरोचन पुत्र राजा बलि बने और फिर भी खूब दान दिया--- स्कंद पुराण माहेश्वरखंड केदारखंड, अध्याय १८ ।(साधारणतः तो देव शरीर भोग योनि है, इस शरीर से नए कर्म करने का अधिकार नहीं। फिर भी कुछ अपवाद हैं, जैसे इंद्र द्वारा विश्वरूप का वध करने पर उसे ब्रह्महत्या लग जाना व वृत्रासुर के वध से पाप लगना--- श्रीमद् भागवत ६ /१३ /५-२१। सब जानते हैं कि इन्द्र द्वारा अहिल्या को दूषित करने हेतु इंद्र धरा पर आया, वह भी स्थूल शरीर में। ऐसे ही राजा बली धरती पर स्वर्ग प्राप्ति हेतु यज्ञ करने के लिए नर्मदा के तट पर आए। स्वर्ग में व सूक्ष्म शरीर से नवीन कर्म नहीं होते, साधारणतः) ।


नल- दमयंती पूर्व जन्म में भील- भीलनी थे, नाम थे आहुक- आहुआ। एक यति को रात्रि के समय इन्होंने आश्रय दिया। यति और स्त्री घर के अंदर रहे। भील घर के बाहर रहा। उसे जानवर मार गए। भीलनी ने इसका जरा भी दुख नहीं माना और पति के साथ सती हो गई। शिवजी के वरदान से, जो यति के रूप में इनकी परीक्षा लेने आए थे, अगले जन्म में भील राजा वीरसेन का पुत्र नल हुआ और भीलनी विदर्भ के राजा भीमसेन की पुत्री दमयंती हुई--शिवपुराण शतरुद्र संहिता२८वांअध्याय ।

पुनर्जन्म पूर्वजन्म की स्मृति का विज्ञान Dharm science of past birth memory

 

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