पाप नाशनी गंगे मोक्ष दायिनी गंगे : हिन्दू सँस्कृति का अविरल प्रवाह
मानो तो मैं गंगा माँ हूँ
(Mano Toh Main Ganga Maa Hun)
मानो तो मैं गंगा माँ हूँ,
ना मानो तो बहता पानी,
जो स्वर्ग ने दी धरती को,
में हूँ प्यार की वही निशानी,
मानो तो मैं गंगा माँ हूँ,
ना मानो तो बहता पानी ॥
-1-
युग युग से मैं बहती आई,
नील गगन के नीचे,
सदियो से ये मेरी धारा,
ये प्यार की धरती सींचे,
मेरी लहर लहर पे लिखी है
मेरी लहर लहर पे लिखी है
इस देश की अमर कहानी,
मानो तो मैं गंगा माँ हूँ,
ना मानो तो बहता पानी ॥
हरी ॐ, हरी ॐ, हरी ॐ॥
हरी ॐ, हरी ॐ, हरी ॐ॥
-2-
कोई वजब करे मेरे जल से,
कोई वजब करे मेरे जल से,
कोई मूरत को नहलाए,
कही मोची चमड़े धोए,
कही पंडित प्यास बुझाए,
ये जात धरम के झगड़े ओ,
ये जात धरम के झगड़े,
इंसान की है नादानी,
मानो तो मैं गंगा मा हूँ,
ना मानो तो बहता पानी ॥
हर हर गंगे हर हर गंगे ॥
हर हर गंगे हर हर गंगे ॥
-3-
गौतम अशोक अकबर ने,
यहा प्यार के फूल खिलाए,
तुलसी ग़ालिब मीरा ने,
यहा ज्ञान के दिप जलाए,
मेरे तट पे आज भी गूँजे,
मेरे तट पे आज भी गूँजे,
नानक कबीर की वाणी
मानो तो मैं गंगा मा हूँ,
ना मानो तो बहता पानी ॥
मानो तो मैं गंगा माँ हूँ,
ना मानो तो बहता पानी,
मानो तो मैं गंगा माँ हूँ,
ना मानो तो बहता पानी ॥
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*🚩🌹माँ गंगा के प्रवाह में बसती है सनातन धर्म की आत्मा*
*🚩गंगां वारि मनोहारि मुरारिचरणच्युतं।*
*त्रिपुरारिशिरश्चारि पापहारि पुनातु मां॥*
*🚩भगवान विष्णु के चरण कमलों से प्रकट होकर, त्रिपुरारी शिव के शीश पर विराजमान, हे पापहारिणी माँ गंगा आप मुझ दास पर भी कृपा करें- शुद्ध करें। पापनाशिनी माँ गंगा का अविरल प्रवाह मात्र अमृत तुल्य जल नहीं है, अपितु सनातन धर्म की मान्यताओं के अनुसार स्वयं भगवान विष्णु का चरणामृत है। भगवती गंगा के दिव्य सानिध्य में भगवान श्री राम, सप्तऋषि आदि ऋषि- मुनि एवं दिव्य संतों की तपोभूमि रहीं है। ज्ञान और वैराग्य की प्रतिमूर्ति भगवती गंगा जहां से भी गुज़रींं, वह क्षेत्र तीर्थ बन गया।*
*🚩🌹33 कोटि देवता भी माँ गंगा में अर्पित पूजा को प्राप्त कर प्रसन्न हो उठते हैं, माँ गंगा में परम पवित्र सानिध्य एवं प्रवाह में बसती है, सनातन धर्म की आत्मा। माँ गंगा संवाहक हैं ज्ञान-वैराग्य और तप परम्परा की भी। भगवती गंगा के सानिध्य में ज्ञान, वैराग्य, वेदान्त और तप के दर्शन सहज साकार हैं। शास्त्रों में कुम्भ आदि पर्व स्नान के महत्व का तो इतना भावपूर्ण वर्णन है कि संदेह का कोई स्थान ही नहीं है।*
*🚩🌹महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय 13 में विस्तार से वर्णन किया है कि कौन कौन से कर्म पाप की श्रेणी में आते हैं। यदि मात्र इनको ही आधार बना कर देखें तो आज सम्पूर्ण विश्व पाप के घोर अंधकार में डूबा है। धर्म का मूल स्वरूप ही संकट में है। धर्म में भी ढोंग-पाखंड और स्वार्थ ने अपनी पैंठ बना ली है। जीवन के जिस क्षेत्र में देखो अन्याय और पाप का ही तो बोलबाला है। स्पष्ट देख सकते हैं कि पृथ्वी-प्रकृति भी अब इन पापों के बोझ से त्रस्त होकर, अस्थिर और रुष्ट है।*
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भागीरथी माँ गंगा जी का अवतरण
https://arvindsisodiakota.blogspot.com/2012/07/blog-post_5813.html
भगीरथ ने साहस नहीं छोड़ा। वे एक वर्ष तक पैर के अँगूठे के सहारे खड़े होकर महादेव जी की तपस्या करते रहे। केवल वायु के अतिरिक्त उन्होंने किसी अन्य वस्तु का भक्षण नहीं किया। अन्त में इस महान भक्ति से प्रसन्न होकर महादेव जी ने भगीरथ को दर्शन देकर कहा कि हे भक्तश्रेष्ठ! हम तेरी मनोकामना पूरी करने के लिये गंगा जी को अपने मस्तक पर धारण करेंगे।
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*🚩🌹कैसे मुक्त हों इन पापों से पापों के दोष से ?*
*🚩🌹अनेक प्रपंच और पाप कर्मों का दोष यदि माँ गंगा में डुबकी लगाने मात्र से नष्ट हो जाएं तो फिर पाप आदि से भय कैसा? माँ गंगा मोक्षदायिनी भी हैं! सामान्य भाव से कहें तो श्री माँ गंगा में डुबकी लगा ली तो जन्म मरण के चक्र से भी भी मुक्ति मिल ही जाएगी। इस मुक्ति मार्ग में कोई विशेष कष्ट और खर्च भी नहीं है, कौन सी दुर्गम यात्रा करनी है! कौन कठिन तप करना है! समीप में ही गंगातट होगा। जब पापों का क्षय और मोक्ष प्राप्त करना इतना ही सरल है! तो क्या कर्म की शुद्धता, शुचिता और पवित्रता के लिए इतने अनुशासन और नियम क्यों? सामाजिक और धार्मिक कर्म, नियम एवं दायित्व क्यों? जबकि करुणा मूर्ति माँ गंगा का श्रय तो सदैव मिल ही रहा है।*
*🚩🌹रोग-शोक-दुःख -दारिद्रय को माँ गंगा दूर करती हैं, ऐसा शास्त्रों में वर्णन है। फिर माँ गंगा की पवित्र धारा में सिक्कों की खोज में बालक- वृद्ध सभी निरंतर डुबकी क्यों लगा रहे है? जिस पवित्र जल में पाँच डुबकी लगा कर, धन्य धन्य हो शीतल पुण्य से कंपकंपाने लगते हैं। उसी शीतल जल में घंटों गोता लगा लगा कर सिक्के ढूंढ़ते व्यक्तियों को अनंत पुण्य क्यों नहीं मिलेगा? यह दुविधा पूर्ण चिन्तन में माँ पार्वती ने मनुष्यों के कल्याणकारी मार्गदर्शन के लिए भगवान शिव से संवाद कर अनेकानेक मार्ग उद्घाटित किए हैं। उनमें से कुछ लिपिबद्ध हैं, कुछ प्रसंग के रूप में प्रचलित हैं।*
*🚩🌹उन्हीं में से एक प्रसंग ये है –*
*🚩🌹एक बार माँ पार्वती और भोलेनाथ गंगा तट पर भ्रमण कर रहे थे! भगवती ने भगवान शिव से पूछा, नाथ क्या गंगा के प्रताप में कुछ कमी आ गयी है ? सहस्त्र भक्त गंगा स्नान कर रहे हैं , परन्तु पाप पारायण और दुखी ही दिख रहे हैं।*
*🚩🌹भगवान शिव ने कहा, भगवती गंगा की शक्ति किसी भी अवस्था में क्षीण नहीं हो सकती। भगवती गंगा तो रोग-शोक-दुःख दारिद्र्य-पापों का नाश कर मोक्ष प्रदायिनी हैं ही। जिनको तुम देख रही हो, इन्होंने तो सिर्फ़ जल में डुबकी लगायी है! पापनाशिनी गंगा का तो स्पर्श भी नहीं किया है। माँ पार्वती जब उत्तर से संतुष्ट नहीं हुईं तो भगवान शिव ने माँ को सम्मिलित कर एक लीला रची।*
*🚩🌹अगले ही दिन भगवान दीन हीन वृद्ध का रूप रख एक मिट्टी और जल से भरे गड्ढे में असहाय से बन बैठ गए। लग रहा था दलदल में फँस गए हैं। अनन्त सौंदर्य मूर्ति भगवती गड्ढे के किनारे बैठ गंगा स्नान कर आ रहे लोगों से मदद का आग्रह कर कहतीं कि यदि आप निष्पाप हों तो मेरे पति को गड्ढे से निकाल दें। कोई आगे बढ़ता, तो माँ कहतीं कि मेरे पति पूर्णरूपेण निष्पाप हैं, यदि गलती से भी किसी पापी ने इनको छू लिया तो भस्म हो जाएगा। कोई मदद को आगे ही नहीं बढ़ता। लोग अपनी अपनी पापबुद्धि से सुन्दर स्त्री के भाव में सुझाव और प्रलोभन दे रहे थे। सुबह से शाम हो गयी तभी एक युवक गंगा स्नान कर, ठाकुर जी की सेवा के लिए बाल्टी में गंगाजल लेकर जा रहा था।*
*🚩🌹माँ ने उससे सहायता माँगी और वही बात कही! उसने कहा देवी आपको मेरे पूर्णतः निष्पाप होने में संदेह क्यों हुआ ? आप देख नहीं रहीं है कि मैं पापनाशिनी माँ गंगा में स्नान करके आ रहा हूँ ।*
*🚩🌹जैसे ही वह युवक, वृद्ध रूप धारण किए भगवान शिव को बाहर निकालने के लिए आगे बढ़ा, भोले नाथ और भगवती माँ पार्वती ने अपने दिव्य स्वरूप में प्रकट हो ऐसे निष्पाप आत्मा को दर्शन दिए।*
*🚩🌹भेद यहीं खोजना होगा! कोई माँ गंगा की कृपा रूपी धारा में रोटी खोज रहा है! कोई भुक्ति और कोई मुक्ति। कुछ गर्मी में शीतल जल में आनंद विभोर हैं ! किसी के हृदय में व्यापार चल रहा है ! किसी का मन संसार की कामनाओं और वासनाओं में ही अटका है, कोई किनारे पर रखे अपने समान पर टकटकी बांधे डुबकी लगाए जा रहा है, कोई किसी के सौंदर्य पर अटका है, गंगा जी में शरीर डुबकी लगा रहा है अथवा तुम पापनाशिनी माँ गंगा के परम पवित्र जल में स्नान कर रहे हो ? क्योंकि भाव में तो कोई और ही क़ब्ज़ा जमाए बैठा है। तीर्थ में जाना कठिन नहीं है , तीर्थ की प्राप्ति अत्यंत कठिन है।तीर्थ का ज्ञान है नहीं और यदि तीर्थ का माहात्म्य और नियम सुना भी तो सांसारिकता में उलझ कर सब विस्मृत कर बैठे हो। भोंपू के माध्यम से प्राप्त ज्ञान कम ही टिकता है ।*
*🚩🌹लौकिक हो या अलौकिक उपलब्धियां, दोनों ही ज्ञान के कौशल पूर्वक उपयोग अथवा कृपा से ही प्राप्त की जा सकती हैं। माँ गंगा में डुबकी लगाने की इच्छा तो सांसारिक संसाधनों से पूर्ण हो जाएगी किंतु पुण्य स्नान तो आध्यात्मिक कृपा और शुद्ध भाव से ही सम्भव है। हरिद्वार किसी कार्य से आएँ अथवा कहीं जाते समय मार्ग में गंगा जी के दर्शन हो गए, तो चलो डुबकी लगा लो। भाव ही सर्वदा अलग है, स्नान तो यहाँ गौण हो गया है । प्रत्येक अवस्था में निश्चित ही माँ गंगा का स्नान पुण्यप्रद है किंतु प्राप्तियाँ भाव के अनुरूप ही होंगी।*
*🚩🌹संत जन ने उदघाटित किया है कि तीर्थ, मंदिरों, धर्म क्षेत्रों में व्यापार आदि सांसारिक कर्म भी धर्म की ही सेवा है, अतः भाव भी वही रखना चाहिए। जिस प्रकार तीर्थों एवं माँ गंगा के सानिध्य में भाव से किए गए पुण्य कर्म अक्षुण्य पुण्यप्रद होते हैं ! उसी प्रकार तीर्थों में किए गए पाप कर्मों का क्षय भी सहज सम्भव नहीं है।*
*🚩🌹माँ गंगा की पवित्र अविरल धारा में तो असंख्य जीव-जंतु , जन्म और आश्रय प्राप्त कर रहे हैं। फिर यह सभी जीव जंतु भी माँ गंगा के प्रताप से तर ही जाएँगे? विचारणीय है कि जिस प्रकार मनुष्य प्रारब्ध के प्रभाव से कुल और माँ का गर्भ प्राप्त करते हैं। उसी प्रकार जलचर आदि पूर्व जन्म के कर्मों के आधार पर माँ गंगा का पवित्र आश्रय अथवा खारे जल को प्राप्त करते हैं। मनुष्य योनि में कर्म की स्वतंत्रता है! मोक्ष आदि आध्यात्मिक प्राप्तियों का मार्ग मिल सकता है। अन्य जीव जंतु आदि योनियां, भोग योनि मात्र है, स्वयं मुक्ति का मार्ग खोज नहीं सकते! अतः प्रकृति और दया पर ही आश्रित है।*
*🚩🌹यदि मनुष्य योनि में अवसर मिला है भुक्ति और मुक्ति का, तो मनसा वाचा कर्मणा प्राप्ति के लिए कामना और प्रयास करने चाहिए। बिना पाप कर्मों को त्यागे गंगा स्नान का दिव्य फल कैसे मिलेगा ? पाप कर्म लिप्त रह कर, उस कृपा की अनुभूति भी सम्भव नहीं है। जैसे स्वच्छ वस्त्र पहन कर कीचड़ में कूदोगे तो पुनः मैले हो जाओगे। अतः यह भ्रम नहीं होना चाहिए की निरन्तर सांसारिक प्रपंचों एवं पाप कर्म में लिप्त रह कर गंगा में डुबकी लगा लगा कर पापों से मुक्त हो सकते हो। अत: सनातन धर्म की परम्पराओं के अनुरूप धर्माचरण ही एकमात्र मार्ग है।*
*🚩🌹माँ गंगा के सानिध्य में किए गए जप तप आदि कर्म में अनजाने अथवा अभाव में हुई त्रुटि का दोष नहीं लगता। भाव से किए सद्कर्म में हुई त्रुटि के दोष को माँ गंगा तत्क्षण दूर कर, कर्म की पूर्णता देती हैं। अतः यदि कोई भाव से माँ गंगा का आश्रय ले, स्नान आदि सद्कर्म करे तो पापों मुक्त होने में संदेह नहीं होना चाहिए।*
*🚩🌹माँ गंगा का पृथ्वी पर अवतरण मुक्ति और भुक्ति दोनों ही देने वाला है। जब भी माँ गंगा की कृपा प्राप्त होगी, तन मन प्रफुल्लित हो उठेंगे। रोम रोम माँ गंगा की कृपानुभूती से खिल उठेगा। संसार का शोर क्षीण हो जाएगा, मस्त रहोगे अपनी ही आत्म धुन में, बाह्य जगत में भले अमावस की रात हो,तुम्हारे अंतः में तो पूर्णचंद्रोदय होगा।*
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