कांग्रेस फिर बेनक़ाब , धर्मदंड के माध्यम से - अरविन्द सिसोदिया
कांग्रेस इसे झूठा बता रही है मगर एक प्रमाणित संग्राहलय जो पं0 जवाहरलाल नेहरू जी को मिली भेंटों का संग्रह किये हुए है, के द्वारा इस धर्मदण्ड का उपलब्ध करवाना मायनें रखता है। दुनिया में अरबों इस तरह की चीजें हैं जिनके साक्ष्य नहीं हैं। मगर अस्तित्व है। उसी तरह इसे अस्तित्व तो माना ही जा सकता है।
भारतीय संस्कृति का लौटता गौरव : धर्मदण्ड नई संसद में
प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू सेंगोल को हाथों में लिये हुए
पं. नेहरू के 1400 से अधिक उपहार म्यूजियम में मौजूद, गोल्डेन सेंगोल अब नए संसद भवन की बढ़ाएगा शोभा
“ माना जाता है कि जब भारत आज़ाद हुआ तो तत्कालीन प्रधानमंत्री पं0 जवाहरलाल नेहरू बनें और उन्हे सत्ता सौंपे जानें के प्रतीक के रूप में धर्म दण्ड अर्थात राज धर्म के प्रति न्यायपूर्ण व्यवहार की जबावदेही की सनातन परम्परा का प्रतीक सौंपा गया । जब इसे भारत के तत्कालीन गवर्नर जनरल सी. राजगोपालाचारी के सुझाव पर ब्रिटिश हुकूमत की ओर से भारत को सत्ता सौंपे जाने को दर्शाने वाले प्रतीक के रूप में सौंपा गया था। चूंकी राजगोपालाचारी तमिलनाडू से थे उन्होनें इसकी वहां से व्यवस्था करवाई थी। यह वहां के चोल साम्राज्य की उस परंपरा का प्रतीक भी था जिसमें नये राजा के राज्याभिषेक के समय राजा को कर्त्तव्य बोध हेतु ’राजदंड’ सौंपा जाता है। यह परम्परा भारत में अनन्तकाल से है। माना जाता है यह सबसे पहले भगवान शिव शंकर ने भगवान विष्णु जी सृष्टि की संचालन व्यवस्था को न्यायपूर्ण तरीके से चलानें हेजु सौंपी थी। अृम्हाजी ने हवन यज्ञ इत्यादी के बाद यह उन्हे सौंपा था। किन्तु पं0 नेहरू को मिला धर्मदण्ड दिल्ली में संसद अथवा प्रधानमंत्री कार्यालय में होनें के बजाये इलाहावाद इसलिये पहुंच गया कि पं0 जवाहरलाल नेहरू की बहुत सी स्मृतियों का वहां भी संग्रह है। इसका एक कारण यह भी हो सकता है कि पं0 नेहरूजी को धर्म के प्रति विशेषरूची नहीं रही । इसलिये यह अवेहलना हो गई होगी। कोई विशिष्ट साक्ष्य इस पर है नहीं । किन्तु अब सरकार बदल चुकी है, भारत की संस्कृति और धरोहरों का सम्मान करने वाली मोदी सरकार इस परम्परा को पुन। सममान देना चाहती है। , इसलिए अब इसे संसद में रखा जा रहा है। भारतीय स्थापत्य कला का बेजोड नमूना भगवान शिव का राजदंड सेंगोल को संसद में स्पीकर के बाजु में स्थापित किया जा रहा है। यही है रामराज्य की स्थापना। “
ऐतिहासिक क्षण !
आजादी के अमृत महोत्सव के एक विशेष एवं पुनीत कार्य के रूप में आदरणीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी 28 मई, 2023 को देश की नई संसद में न्याय व निष्पक्षता का प्रतीक सेंगोल की स्थापना करने जा रहे हैं। सेंगोल हमारे इतिहास से जुड़ा एक पवित्र प्रतीक है, सेंगोल तमिल शब्द सेम्मई से आता है जिसका अर्थ है न्याय।
माना जाता है कि 14 अगस्त 1947 को प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को तमिलनाडु की जनता से सेंगोल भेंट किया था। पीएम मोदी आजाद भारत की इस बहुमूल्य निशानी को नए संसद में स्थापित करने जा रहे हैं। कांग्रेस नें धर्मदंड को संग्राहालय में रखवा कर भारतीय संस्कृति का अपमान किया था। जिसे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में ठीक किया जा रहा है। इसकी पुनर्स्थापना हो रही है।
यह स्टिक नही हस्तांतरण का राजदंड है
इस राजदंड को बनाने का दावा चेन्नई की आभूषण निर्माता कंपनी वीबीजे (वूम्मीदी बंगारू ज्वैलर्स) ने पिछले दिनों किया था। इस राजदंड पर नए सिरे से सत्ता हस्तांतरण के प्रतीक के तौर पर ब्लॉक लगाने की भी बात सामने आई थी। कंपनी का कहना है कि यह कोई स्टिक नहीं बल्कि सत्ता हस्तांतरण का दंड है। गोल्डन ज्वेलरी कंपनी वीबीजे (वूम्मीदी बंगारू ज्वैलर्स) का दावा है कि 1947 में उनके वंशजों ने ही इस राजदंड को अंतिम वायसराय के आग्रह पर बनाया था। इस कंपनी के मार्केटिंग हेड अरुण कुमार ने संग्रहालय निदेशक से संपर्क किया था। तभी से यह राजदंड चर्चा में आ गया था।
महादेव शिव के हाथ में राजदंड (सेंगोल)
प्राचीन भारत के समृद्ध गौरव के प्रतीक सेंगोल के शीर्ष पर नंदी को बनाया गया है जो कर्म तथा न्याय का प्रतीक है। राजदंड “सेंगोल“ इस समय पूरे देश में नए संसद भवन और उसके उद्घाटन को लेकर बहुत चर्चा हो रही है। नए संसद भवन में राजदंड को भी स्पीकर की सीट के पास स्थापित किया जाएगा।
सेंगोल का इतिहास
सेंगोल का इतिहास भारत में ईसा पूर्व तक जाता है। सबसे पहले इसका प्रयोग मौर्य साम्राज्य (322-185 ईसा पूर्व) में सम्राट की शक्ति के प्रतीक के तौर पर किया जाता था। गुप्त साम्राज्य (320-550 ई.) , चोल साम्राज्य (907-1310 ई.) और विजयनगर साम्राज्य (1336-1946 ई.) में भी सेंगोल के प्रयोग के प्रमाण मिलते हैं। मुगल और ब्रिटिश हुकूमत भी अपनी सत्ता और साम्राज्य की संप्रभुता के प्रतीक की तौर पर सेंगोल (राजदण्ड) का प्रयोग करती थीं। गृहमंत्री अमित शाह ने आपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में जानकारी देते हुए बताया कि आजादी के समय जब नेहरू से पूछा गया कि सत्ता हस्तांतरण के समय क्या आयोजन होना चाहिए तब नेहरू ने अपने सहयोगी सी. गोपालाचारी की सलाह पर तमिलनाडु से सेंगोल मंगाया था. 14 अगस्त की रात को अंग्रेजों ने प्रधानमंत्री नेहरू को सेंगोल सौंप कर ही सत्ता का हस्तांतरण किया था।
आजादी के बाद कहां गया सेंगोल ?
भारत की आजादी के बाद सेंगोल या राजदंड का प्रयोग नहीं किया जाता था। इसे ऐतिहासिक धरोहर मानते हुए, इलाहाबाद संग्रहालय में रख दिया गया । गृहमंत्री अमित शाह ने प्रेस कॉफ्रेंस में कहा कि इस पवित्र सेंगोल को किसी संग्रहालय में रखना अनुचित है। उन्होंने सवाल उठाया कि आजादी के बाद अब तक सेंगोल भारतीयों के सामने क्यों नहीं आया। सेंगोल को शाह ने अंग्रेजों से भारतीयों के हाथों में सत्ता आने का प्रतीक कहा और बताया कि पीएम मोदी को जब इस परंपरा की जानकारी मिली तो गहन चर्चा-विमर्श के बाद उन्होंने सेंगोल को संसद में स्थापित करने का फैसला लिया। 96 साल के तमिल विद्वान जो 1947 में उपस्थित थे, नए संसद में सेंगोल की स्थापना के समय मौजूद रहेंगे।
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