मुरादाबाद दंगे को तत्कालीन प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी नें पाकिस्तान प्रेरित ठहराया था - अरविन्द सिसोदिया Moradabad Riots & PM Indira Gandhi

 

कांग्रेस का स्वतंत्रता संग्राम से ही मुस्लिम लीग और मुस्लिम हिंसा प्रयोग से डरना भारत के लिये बडे नुकसान का कारण बना, देश विभाजित हुआ किन्तु समस्यायें ज्यों कि त्यों बनीं रहीं। इस तुष्टिकरण से जो परिस्थितियां देश में व अर्न्तरार्ष्ट्रीयस्तर पर उत्पन्न हुईं उससे भारत की कई पीढ़ियों के लिये, कई दसकों के लिये खतरे व बाधायें खडी हुई है। अब समय आ गया है कि सच को तोड मरोड कर कहने के बजाये सीधे सीधे कहा जाये, वोट बैंक के चक्कर में राष्ट्रघाती तत्वों की जी हजूरी बंद की जाये। मेरा मानना है कि सक्सेना रिपोर्ट को तभी जारी किया जाना चाहिये था। इसके दबे रहने के कारण ही उत्तरप्रदेश विदेश पोषित हिंसा का केन्द्र बन गया था, जिसे पटरी पर लानें में कठोर मेहनत योगी सरकार को करनी पड रही है।
 
मुरादाबाद दंगे को तत्कालीन प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी नें पाकिस्तान प्रेरित ठहराया था - अरविन्द सिसोदिया

श्रीमती इन्दिरा गांधी की शंका पर ध्यान दिया जाना चाहिये था.....
 उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद में 1980 में ईद की नमाज के बाद भड़के दंगों की जस्टिस सक्सेना आयोग की रिपोर्ट को   43 सालों में राज्य में 15 मुख्यमंत्री बदलनें के बाद अब योगी सरकार सार्वजनिक करेगी । उस समय भी तत्कालीन प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी ने दंगे के लिये पाकिस्तान कनेक्शन को भी जिम्मेवार माना था। तब टाइम्स ऑफ इंडिया के संपादक गिरिलाल जैन नें कहा कि मुसलमानों के बीच “असामाजिक तत्व“ हिंसा के लिए आंशिक रूप से जिम्मेदार थे और तथ्यों को स्वीकार नहीं करने और इसके बजाये आरएसएस को दोष देने के लिए मुस्लिम नेताओं की आलोचना की। उन्होंने इंदिरा गांधी के “विदेशी हाथ“ सिद्धांत को भी श्रेय दिया और उत्तर प्रदेश में पाकिस्तानी आगंतुकों की संख्या को सूचीबद्ध करते हुए एक लेख प्रकाशित किया। यदि तब पाकिस्तान के आगुन्तुकों पर नजर रखनें का काम हो जामा तो बाद में हुई देश की कई हिंसक घटनाओं से देश को बचाया जा सकता था।

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उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) वो काम करने जा रहे हैं वो उनसे पहले के 15 मुख्यमंत्री ने करने की हिम्मत नहीं दिखाई । योगी आदित्यनाथ 43 साल पहले हुए मुरादाबाद दंगे (1980 Moradabad Riots) की जांच रिपोर्ट को सार्वजनिक करने वाले हैं । कहा जा रहा है कि ये रिपोर्ट इतनी विस्फोटक है कि इसे कोई भी मुख्यमंत्री सार्वजनिक करने की हिम्मत नहीं जुटा पाया । 1980 में जिस वक्त मुरादाबाद में दंगे हुए उस वक्त मुख्यमंत्री वीपी सिंह थे और केंद्र में इंदिरा गांधी की सरकार थी। तत्कालीन मुख्यमंत्री वीपी सिंह ने जांच के जस्टिस सक्सेना को जिम्मा सौंपा, जस्टिस सक्सेना ने लगभग तीन साल के अंदर ही, 20 नवंबर 1983 को फाइनल रिपोर्ट जमा कर दी।


मुरादाबाद दंगे प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने पाकिस्तान को निशाने पर लेते हुए कहा कि विदेशी ताकतें


अमेरिका के सीनियर पॉलिटिकल साइंटिस्ट पॉल ब्रास अपनी किताब
The Production of Hindu-Muslim Violence in Contemporary India में लिखते हैं कि "दंगे तब हुए जब कांग्रेस नेता वीपी सिंह सीएम थे। केंद्रीय मंत्री योगेंद्र मकवाना ने RSS, जन संघ और भारतीय जनता पार्टी पर हिंसा भड़काने का आरोप लगाया। प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने पाकिस्तान को निशाने पर लेते हुए कहा कि विदेशी ताकतें और सांप्रदायिक दल हिंसा के पीछे थे। वो ऐसा इस वजह से कर रहे थे, ताकि भारत के अरब देशों के साथ संबंध बिगड़ जाएं।"

दावा किया जा रहा है कि जस्टिस सक्सेना आयोग की रिपोर्ट में इस दंगे में मुस्लिम लीग के तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष शमीम अहमद खान के साथ दो और लोगों को मुख्य किरदार माना है। रिपोर्ट में ये भी कहा गया कि बाकी समुदाय के लोगों को फंसाने, सांप्रदायिक हिंसा भड़काने और इसी का फायदा उठाकर जन समर्थन पाने के लिए दंगे की स्क्रिप्ट लिखी गई।
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मुरादाबाद दंगे को तत्कालीन प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी नें पाकिस्तान प्रेरित ठहराया था - अरविन्द सिसोदिया
घटना के प्रारम्भ का कारण जो माना जाता है -
मार्च 1980 में कुछ मुसलमानों द्वारा एक दलित लड़की के अपहरण कर लिया जाता है। जिससे हिंदुओं और मुसलमानों के बीच तनाव उत्पन्न हो जाता है। दलित हिन्दू व मुसलमान एक ईदगाह के पास अलग-अलग बस्तियों (कॉलोनियों) में वहां रहते थे । इस घटना के बाद उस लड़की को बचा लिया जाता है और उसके अपहरणकर्ताओं को गिरफ्तार कर लिया गया। जुलाई में, उसी लडकी की एक दलित लड़के से विवाह किया जाता है, तक बारात के दिन, कुछ मुसलमानों ने मस्जिद के पास तेज संगीत की शिकायत करते हुए बारात में बाधा डाली। विवाद जल्द ही दो समुदायों के बीच हिंसक झड़प में बदल गया । जिसके बाद कई घरों में लूटपाट की गई।

- 13 अगस्त 1980 को ईद की नमाज के दौरान दलित बस्ती का एक पालतू सुअर ईदगाह में पहुंच गया माना जाता है कि वह भटक कर वहां पहुंचा था। उस स्थान पर लगभग 50,000 मुसलमान ईद की नमाज़ में शामिल हो थे। सूअरों को हराम मानने वाले मुसलमानों का मानना ​​था कि सुअर को हिंदू दलितों ने जानबूझकर छोड़ा था।  उन्होंने एक ऑन-ड्यूटी पुलिसकर्मी से सुअर को भगाने के लिए कहा, लेकिन उसने ऐसा करने से इनकार कर दिया, जिसके कारण गरमागरम बहस हुई। हिंसा तब भड़की जब कुछ मुसलमानों ने पुलिसकर्मियों पर पथराव किया। जब एक पत्थर उनके माथे पर लगा तो वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक (एसएसपी) गिर गए और अतिरिक्त जिला मजिस्ट्रेट (एडीएम) डीपी सिंह को कुछ लोगों ने खींच लिया, वह बाद में मृत पाये गये। इसके बाद पुलिसकर्मियों ने भीड़ पर अंधाधुंध फायरिंग शुरू कर दी।

जिला मजिस्ट्रेट के साथ ट्रकों में पहुंचे ,पुलिस बल को प्रांतीय सशस्त्र कांस्टेबुलरी के सैनिकों द्वारा कानून व्यवस्था हेतु जबावी कार्यवाही की गई, जिसमें गोलीबारी से कई मुसलमान मारे गए , गोलीबारी के बाद हुई भगदड़ में लगभग 50 और लोगों की जान चली गई । तब मुस्लिम नेता सैयद शहाबुद्दीन ने बाद में गोलीबारी की तुलना जलियांवाला बाग हत्याकांड से की थी  ।
 
दंगे :- दरअसल ईदगाह की नमाज में सुअर घुसनें की घटना से वहां दूसरे क्षेत्रों से भी लोग पहुंचे और वहां पर एक भीड़ में बदल गई और इसी भीड नें दलित झुग्गियों में सामूहिक लूटपाट और आगजनी की । मुस्लिम भीड़ ने शहर के विभिन्न इलाकों में पुलिसकर्मियों की पिटाई की। उन्होंने एक पीएसी कांस्टेबल को जलाकर मार डाला। शाम को, एक मुस्लिम भीड़ ने गलशहीद पुलिस चौकी (चौकी) पर हमला किया, आग लगा दी, दो पुलिसकर्मियों की हत्या कर दी और हथियार लूट लिए। इसके बाद पुलिस ने हिंसक जवाबी कार्रवाई को काबू में करनें के लिये प्रभावी कार्यवाहीयां की।

अगले दिन, 14 अगस्त को, जमात-ए-इस्लामी ने विभिन्न राजनीतिक दलों के मुस्लिम नेताओं की एक सभा का आयोजन किया और दंगों की निंदा करते हुए एक बयान जारी किया।  इसके बाद, हिंसा ने एक धार्मिक प्रकृति प्राप्त कर ली और मुरादाबाद जिले के ग्रामीण इलाकों में फैल गई । हिंसा पड़ोसी शहर अलीगढ़ में भी फैल गई ।  हिंसा को नियंत्रित करने के लिए सेना के जवानों को क्षेत्र में तैनात किया गया था। 2 सितंबर तक मुरादाबाद में स्थिति नियंत्रण में आ गई और सेना को हटा लिया गया।
 
मुरादाबाद और आस-पास के जिले हिंसा की आग मे जलते रहे

असंख्य भीड़ की तरफ से की जा रही पत्थरबाजी में एक SSP रैंक के अफसर के सिर पर चोट आई। भीड़ इतनी उग्र हो चुकी थी कि उस वक्त ड्यूटी पर तैनात ADM को खींचकर अपने साथ लेकर गई जिनका बाद में शव बरामद हुआ। दावा ये भी किया जाता है कि स्थानीय पुलिस चौकी को आग लगा दी गई। भीड़ हथियारों के साथ दलित बस्ती में घुस गई। लोगों पर हमला किया गया, बस्ती के घर जला दिए गए। अगले 3 महीने तक मुरादाबाद और आस-पास के जिले हिंसा की आग मे जलते रहे।एक पक्ष का दावा ये भी है कि पहले पुलिस की तरफ से फायरिंग की गई जिसके बाद दंगे भड़के।

मौत का आंकड़ा
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 1980 के मुरादाबाद दंगे में 83 लोगों की जान गई लेकिन दंगों में मारे जाने वालों की संख्या को लेकर कई अलग-अलग दावे भी हैं, एक दावा ये कि खुद तत्कालीन सरकार ने करीब 400 परिवारों को किसी सदस्य की मौत के बाद दिया जाने वाला मुआवजा दिया था।कुछ मुस्लिम संगठनों के हवाले से इन दंगों में 2500 लोगों की मौत का अनुमान बताया।

नवंबर 1980 तक हिंसा छोटे पैमाने पर जारी रही। हिंसा की एक बड़ी घटना सितंबर में हिंदू त्योहार रक्षा बंधन के दिन हुई । अक्टूबर के अंत में, छुरा घोंपने और हत्याओं की एक श्रृंखला के परिणामस्वरूप कम से कम 14 मौतें हुईं।

परिणाम :-
दंगे तब हुए जब कांग्रेस नेता वीपी सिंह मुख्यमंत्री थे। तब केंद्रीय मंत्री योगेंद्र मकवाना ने हिंसा के लिए आरएसएस, जनसंघ और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को जिम्मेदार ठहराया, जैसा कि आम तौर पर होता है। किन्तु तब भी प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने “विदेशी ताकतें“ ( पाकिस्तान का जिक्र ) और “सांप्रदायिक तत्वों “ को हिंसा के पीछे होना स्विकार किया था।

टाइम्स ऑफ इंडिया के संपादक गिरिलाल जैन नें कहा कि मुसलमानों के बीच “असामाजिक तत्व“ हिंसा के लिए आंशिक रूप से जिम्मेदार थे और तथ्यों को स्वीकार नहीं करने और इसके बजाये आरएसएस को दोष देने के लिए मुस्लिम नेताओं की आलोचना की। उन्होंने इंदिरा गांधी के “विदेशी हाथ“ सिद्धांत को भी श्रेय दिया और उत्तर प्रदेश में पाकिस्तानी आगंतुकों की संख्या को सूचीबद्ध करते हुए एक लेख प्रकाशित किया।

भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी ने हिंसा के लिए मुस्लिम संगठनों को जिम्मेदार ठहराया।  सरकार ने दंगों की जांच के लिए इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति सक्सेना को नियुक्त किया। मई 1983 में प्रस्तुत न्यायमूर्ति सक्सेना की रिपोर्ट में मुस्लिम नेताओं और वीपी सिंह को हिंसा के लिए दोषी ठहराया गया था।

UP - 43 साल बाद सामने आया मुरादाबाद में ईद की नमाज के बाद दंगे का सच, 15 CM बदले; योगी सरकार ने उठाया ये कदम

योगी सरकार ने कहा कि पिछली सरकारों ने मुरादाबाद ईद दंगे की रिपोर्ट को दबाए रखा। 13 अगस्त 1980 को ईद की नमाज के बाद दंगा भड़क गया था, जिसमें 83 लोगों की मौत हुई थी।
truth of riots came to light after Eid prayers in Moradabad after 43 years yogi govt

43 साल पहले मुरादाबाद दंगे का सच अब सामने आएगा
43 साल पहले मुरादाबाद जिले में ईद की नमाज के बाद भड़के दंगे का सच अब सामने आएगा। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की अध्यक्षता में शुक्रवार को कैबिनेट ने मुरादाबाद दंगे की एक सदस्यीय न्यायिक जांच की रिपोर्ट को सदन के पटल पर रखने के प्रस्ताव को मंजूरी दी। आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक, मुरादाबाद के डॉ. शमीम अहमद खान इस दंगे का सूत्रधार था। उसने वाल्मीकि समाज, सिख और पंजाबी समाज को फंसाने के लिए 13 अगस्त 1980 को ईद की नमाज के समय पथराव और हंगामा कराया गया था। इसका मकसद राजनीतिक लाभ हासिल करना था।

हैरानी की बात : रिपोर्ट को सार्वजनिक करने की हिम्मत नहीं की
हैरानी की बात यह है कि 1980 से लेकर 2017 के दरम्यान किसी भी दल की सरकार इस रिपोर्ट को सार्वजनिक करने की हिम्मत नहीं जुटा सकी। वित्त मंत्री ने कहा कि जांच आयोग की रिपोर्ट गोपनीय है, उसे अभी सार्वजनिक नहीं किया जा सकता है। राज्य सरकार अब इस रिपोर्ट को सदन में रखेगी, जिसके बाद दंगे का पूरा सच सामने आ सकता है। बता दें कि तत्कालीन मुख्यमंत्री वीपी सिंह ने दंगे की जांच के लिए एक सदस्यीय न्यायिक जांच आयोग का गठन किया था। इस आयोग की रिपोर्ट को 40 साल बाद शुक्रवार को कैबिनेट में प्रस्तुत किया गया। कैबिनेट से अनुमोदन के बाद अब रिपोर्ट विधानमंडल में पेश की जाएगी। वित्त मंत्री ने बताया कि करीब 40 साल पहले शासन में रिपोर्ट प्रस्तुत होने के बाद भी पूर्ववर्ती सरकारों ने रिपोर्ट को कैबिनेट एवं सदन के पटल पर रखने की अनुमति नहीं दी। उल्लेखनीय है कि 1980 से अब तक प्रदेश में 15 मुख्यमंत्री बने, लेकिन कोई भी इस रिपोर्ट को सदन के पटल पर रखने की हिम्मत नहीं जुटा सका।

83 लोग दंगे में मारे गए

मुरादाबाद में 13 अगस्त 1980 को ईद की नमाज के समय पथराव और हंगामा हुआ था। इसके बाद सांप्रदायिक हिंसा भड़कने से 83 लोग मारे गए थे और 112 लोग घायल हुए थे। मामले की जांच के लिए गठित आयोग ने अपनी रिपोर्ट 20 नवंबर 1983 को शासन को सौंपी थी। सूत्रों के मुताबिक जांच में सामने आया था कि मुस्लिम लीग के डॉ. शमीम अहमद खां और उनके समर्थकों ने वाल्मीकि समाज, सिख और पंजाबी समाज के लोगों को फंसाने के लिए अपने समर्थकों के साथ घटना को अंजाम दिया था।

मुख्यमंत्री वीपी सिंह ने गठित किया था आयोग
तत्कालीन मुख्यमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति एमपी सक्सेना की अध्यक्षता में दंगे की जांच के लिए न्यायिक आयोग का गठन किया था। आयोग की रिपोर्ट आने के 43 साल बीतने के बाद भी किसी भी आरोपी पर कार्रवाई नहीं की जा सकी। उस दौरान दंगे में मरने वाले लोगों की संख्या 250 से अधिक बताई गई, हालांकि इसकी आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई थी। दरअसल दो समुदायों के बीच हिंसा भड़ने के बाद पुलिस को गोलियां चलानी पड़ी जिससे कई लोग मारे गए। इसके बाद मुरादाबाद में करीब एक माह तक कर्फ्यू लगा रहा।

आयोग ने डॉ. शमीम को पाया था दोषी
आयोग ने मुस्लिम लीग के तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष शमीम अहमद खान, उनके कुछ समर्थकों और दो अन्य मुस्लिम नेताओं को दंगा भड़काने का दोषी पाया था। उन्होंने अपनी जांच रिपोर्ट में भाजपा या आरएसएस जैसे हिंदू संगठनों के हिंसा भड़काने में कोई भूमिका के प्रमाण नहीं मिलने की बात कही थी। आयोग ने पीएसी, पुलिस और जिला प्रशासन को भी आरोपों से मुक्त कर दिया था। आयोग ने जांच में पाया कि ज्यादातर मौतें पुलिस फायरिंग में नहीं, बल्कि भगदड़ से हुई थी। रिपोर्ट में ये भी जिक्र किया गय था कि सियासी दल मुसलमानों को वोट बैंक के रूप में न देखें। सांप्रदायिक भावनाओं को भड़काने के दोषी पाए जाने वाले किसी भी संगठन के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाए। 

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