बुद्ध पूर्णिमा पर धर्म तत्व रक्षा का संकल्प ही सर्वोपरी - अरविन्द सिसौदिया Buddha Purnima

बुद्ध पूर्णिमा पर धर्म तत्व रक्षा का संकल्प ही सर्वोपरी - अरविन्द सिसौदिया
On Buddha Purnima, the resolve to protect the Dharma element is paramount - Arvind Sisodia

 

बुद्ध

हिन्दू जीवन पद्यती के उच्चतम नैतिक मूल्यों की स्थापना भगवान बुद्ध ने की थी, सत्य,करूणा,दया,अहिंसा,मानवता ये भारतीय संस्कृति के ही जीवन मूल्य हैं। किन्तु इस्लाम ने इसी का फायदा उठा कर,भारतीय प्रायदीप में हिंसा के बल पर अपार धर्मान्तरण कर लिया और बौ़द्ध प्रतिमाओं को तोपों से उडा दिया । भगवान बुद्ध ने भी अपनी सुरक्षा की प्रेरणा दी है। बुद्ध पूर्णिमा पर सबसे अच्छा संकल्प यही होगा कि हम अपनी और अपने मानव मूल्यों की रक्षा के लिये हमेशा शौर्यवान रहेंगें। - अरविन्द सिसौदिया
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भगवान बुद्ध

    भगवान बुद्ध का जन्म, ज्ञान प्राप्ति (बुद्धत्व या संबोधि) और महापरिनिर्वाण ये तीनों वैशाख पूर्णिमा के दिन ही हुए थे। इसी दिन भगवान बुद्ध को बुद्धत्व की प्राप्ति भी हुई थी।

       आज बौद्ध धर्म को मानने वाले विश्व में 200 करोड़ से अधिक लोग है तथा इसे धूमधाम से मनाते हैं। हिन्दू धर्मावलंबियों के लिए बुद्ध विष्णु के नौवें अवतार हैं। अतः हिन्दुओं के लिए भी यह दिन पवित्र माना जाता है। यह त्यौहार भारत, चीन, नेपाल, सिंगापुर, वियतनाम, थाइलैंड, जापान, कंबोडिया, मलेशिया, श्रीलंका, म्यांमार, इंडोनेशिया, पाकिस्तान तथा विश्व के कई देशों में मनाया जाता है।

     बिहार स्थित बोधगया नामक स्थान हिन्दू व बौद्ध धर्मावलंबियों के पवित्र तीर्थ स्थान हैं। गृहत्याग के पश्चात सिद्धार्थ सत्य की खोज के लिए सात वर्षों तक वन में भटकते रहे। यहाँ उन्होंने कठोर तप किया और अंततः वैशाख पूर्णिमा के दिन बोधगया में बोधिवृक्ष के नीचे उन्हें बुद्धत्व ज्ञान की प्राप्ति हुई। तभी से यह दिन बुद्ध पूर्णिमा के रूप में जाना जाता है।

       बुद्ध पूर्णिमा के अवसर पर बुद्ध की महापरिनिर्वाणस्थली कुशीनगर में स्थित महापरिनिर्वाण विहार पर एक माह का मेला लगता है। यद्यपि यह तीर्थ गौतम बुद्ध से संबंधित है, लेकिन आस-पास के क्षेत्र में हिंदू धर्म के लोगों की संख्या ज्यादा है जो विहारों में पूजा-अर्चना करने वे श्रद्धा के साथ आते हैं। इस विहार का महत्व बुद्ध के महापरिनिर्वाण से है। इस मंदिर का स्थापत्य अजंता की गुफाओं से प्रेरित है। इस विहार में भगवान बुद्ध की लेटी हुई (भू-स्पर्श मुद्रा) 6.1 मीटर लंबी मूर्ति है। जो लाल बलुई मिट्टी की बनी है। यह विहार उसी स्थान पर बनाया गया है, जहां से यह मूर्ति निकाली गयी थी। विहार के पूर्व हिस्से में एक स्तूप है। यहां पर भगवान बुद्ध का अंतिम संस्कार किया गया था। यह मूर्ति भी अजंता में बनी भगवान बुद्ध की महापरिनिर्वाण मूर्ति की प्रतिकृति है।

श्रीलंका व अन्य दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों में इस दिन को 'वेसाक' उत्सव के रूप में मनाते हैं जो 'वैशाख' शब्द का अपभ्रंश है। इस दिन बौद्ध अनुयायी घरों में दीपक जलाए जाते हैं और फूलों से घरों को सजाते हैं। विश्व भर से बौद्ध धर्म के अनुयायी बोधगया आते हैं और प्रार्थनाएँ करते हैं। इस दिन बौद्ध धर्म ग्रंथों का पाठ किया जाता है। विहारों व घरों में बुद्ध की मूर्ति पर फल-फूल चढ़ाते हैं और दीपक जलाकर पूजा करते हैं। बोधिवृक्ष की भी पूजा की जाती है। उसकी शाखाओं को हार व रंगीन पताकाओं से सजाते हैं। वृक्ष के आसपास दीपक जलाकर इसकी जड़ों में दूध व सुगंधित पानी डाला जाता है।। इस पूर्णिमा के दिन किए गए अच्छे कार्यों से पुण्य की प्राप्ति होती है। पिंजरों से पक्षियॊं को मुक्त करते हैं व गरीबों को भोजन व वस्त्र दान किए जाते हैं। दिल्ली स्थित बुद्ध संग्रहालय में इस दिन बुद्ध की अस्थियों को बाहर प्रदर्शित किया जाता है, जिससे कि बौद्ध धर्मावलंबी वहाँ आकर प्रार्थना कर सकें।

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बुद्धं शरणं गच्छामि मंत्र -
बुद्धं शरणं गच्छामि।
धर्मं शरणं गच्छामि।
संघं शरणं गच्छामि।


अंग्रेजी में मन्त्र
Buddham saranam gacchami…
Dhamam saranam gacchami…
Sangham saranam gacchami…

मंत्र का अर्थ
ये शब्द केवल उच्चारण करने के लिए नहीं हैं, बल्कि जांच करने के लिए, उनके अर्थ में गहराई तक जाने के लिए हैं। ध्यान करने के लिए। बुद्ध का अर्थ है, जो हमें अंधकार से प्रकाश की ओर, ज्ञान की ओर ले जाए। मन के प्रति उच्च चेतना की ओर। धम्म – हियर – एंड – नाउ ’है, यह कुछ बौद्धिक लेखन या किसी भी चीज़ में शरण नहीं ले रहा है, लेकिन कुछ ऐसा है जिसे हम यहाँ और अभी एक्सेस कर सकते हैं। संघ का अर्थ है समुदाय, समुदाय जहां लोग समर्थन करते हैं, ध्यान साधना में एक-दूसरे की मदद करते हैं। एक समुदाय होना बहुत ज़रूरी है, ताकि जब आप नीचे महसूस कर रहे हों, जब आप अपना 100% महसूस नहीं कर रहे हों, या जब आप कहीं फंस रहे हों, तो समुदाय आपकी सहायता के लिए है, आपको खींचने के लिए।

यह जानने के लिए कि कुछ बड़ा, उच्च बल या ऊर्जा है जो खेल में है, और हम सभी की ऊर्जा तक पहुँच है। और हम उस ऊर्जा तक कैसे पहुंच सकते हैं? समर्पण करने से, उस उच्च स्वर में शरण लेने से, उस बल से, उस ऊर्जा का हिस्सा बनकर। बौद्ध धर्म के तीन यहूदी हैं, बुद्ध, धर्म और संघ और इन तीनों तक पहुंचने या आत्मसमर्पण करने से सभी कष्टों से मुक्ति मिलती है और यह यात्रा बुद्ध धम्म संघ की शरण लेकर शुरू होती है। इस मंत्र को बौद्ध धर्म का तीन रत्न भी कहा जाता है।

बुद्धं शरणं गच्छामि मंत्र जप के लाभ
मन को जागृत करना
पीड़ित से मुक्ति
दैवीय शक्तियों से सीधा संबंध
वर्तमान में रहता है


भगवान के सामने आत्मसमर्पण करने और उच्च स्व में जाने में मदद करता है
यह मंत्र ध्यान अभ्यास में मदद करता है


 

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