माँ - एक कविता maan ek kvita


यह कविता वाट्सएप से मिली है, किसने लिखी है पता नहीं, लेकिन पठनीय है......
माँ.... 

माँ ग्रँथ है, काव्य है, गाथा है।
जन-जीवन भाग्य-विधाता है।
माँ कल-कल बहती सरिता है।
माँ रामायण, भागवद गीता है।
माँ मंदिर और शिवाला है।
हँस कर पीती हाला है।
माँ गज़लों में, रुबाई में।
माँ तुलसी की चौपाई में।
माँ सर्वसुख कल्याणी है।
माँ उपनिषद की वाणी है।
माँ वेदों की ऋचाएं-श्रुति है
माँ प्रभु प्रार्थना-स्तुति है।
माँ मंत्रों का उच्चारण है।
माँ कारण और निवारण है।
माँ क्षमा-धर्म की मूरत है।
माँ प्रभु की सच्ची सूरत है।
माँ तो अंतर्यामी है।
माँ सर्वगुणों की स्वामी है।
माँ करुणा, दया का सागर है।
माँ कुदरत सत्य उज़ागर है।
माँ निर्गुण ब्रह्म साकार है।
माँ भावों का आकार है।
माँ शाश्वत सत्य सनातन है।
माँ चिर-चिरंतन अंतर्मन है।
माँ अमर अमिट अविनाशी है।
माँ खुद में काबा-काशी है।
माँ देवकी, यशोदा, सीता है।
माँ अहिल्या, द्रौपदी पुनीता है।
माँ साथी तुम, सहारा भी।
माँ भवसागर का किनारा भी।
माँ बच्चों की इबारत है।
माँ उनकी आदत, इबादत है।
माँ सत्कर्मों का प्रतिफल है।
माँ पुण्यात्मा निश्छल है।
माँ सब धर्मों का सार है।
माँ संसार का आधार है।
माँ दिल से दिल की आस है।
माँ रब की सच्ची अरदास है।
माँ प्रभु का प्रसाद है।
माँ ईश्वर का आशीर्वाद है।
माँ जीवन में वरदान है।
माँ स्वयं ही भगवान है।

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