गंगा दशहरा : पवित्र गंगा के पृथ्वी पर अवतरण का पर्व
गंगा दशहरा हिन्दुओं का एक प्रमुख त्योहार है
ज्येष्ठ शुक्ला दशमी को दशहरा कहते हैं
गंगा का पृथ्वी पर आगमन
गंगा दशहरा का पर्व
मान्यता है कि राजा भगीरथ को जब अपने पूर्वजों का तर्पण करना था, तो उन्होंने गंगा को पृथ्वी पर लाने के लिए कठोर तप किया था। पुराणों के अनुसार उन्हीं के अनुरोध पर मां गंगा भगवान विष्णु के चरणों से निकली और भगवान शिव की जटाओं में समाई थीं। इसके बाद पुन: तप करने पर भगवान शिव ने अपनी एक जटा को पृथ्वी पर खोला था। तब से मां गंगा का अवतरण पृथ्वी पर माना जाता है। इस दिन गंगा स्नान और दान करने से हजारों अश्वमेघ यज्ञों के समान पुण्य फल मिलता है। शास्त्रों में वर्णित है कि यत्र बहूना योगा: सा ग्राहा।। अर्थात् जहां ज्यादा योग हों वहीं ग्रहण करें, लेकिन इन दोनों दिन ही पांच-पांच योग रहेंगे। इसलिए दोनों दिन समान रूप से पुण्य लाभ कमाया जा सकता है।
मनुष्यों को मुक्ति देने वाली गंगा नदी अतुलनीय हैं। संपूर्ण विश्व में इसे सबसे पवित्र नदी माना जाता है। राजा भगीरथ ने इसके लिए वर्षो तक तपस्या की थी। ज्येष्ठ शुक्ल दशमी के दिन गंगा धरती पर आई। इससे न केवल सूखा और निर्जीव क्षेत्र उर्वर बन गया, बल्कि चारों ओर हरियाली भी छा गई थी। गंगा-दशहरा पर्व मनाने की परंपरा इसी समय से आरंभ हुई थी। राजा भगीरथ की गंगा को पृथ्वी पर लाने की कोशिशों के कारण इस नदी का एक नाम भागीरथी भी है। इसमें स्नान, दान, रूपात्मक व्रत होता है। स्कन्दपुराण में लिखा हुआ है कि, ज्येष्ठ शुक्ला दशमी संवत्सरमुखी मानी गई है इसमें स्नान और दान तो विशेष करके करें। किसी भी नदी पर जाकर अर्घ्य (पूजादिक) एवम् तिलोदक (तीर्थ प्राप्ति निमित्तक तर्पण) अवश्य करें। ऐसा करने वाला महापातकों के बराबर के दस पापों से छूट जाता है।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें