उदघाटन विरोधी विपक्ष औंधे मुंह गिरा : सर्वोच्च न्यायालय नें याचिका खारिज की
उदघाटन विरोधी विपक्ष औंधे मुंह गिरा :
सर्वोच्च न्यायालय नें याचिका खारिज की
जहां तक मुझे जानकारी है कि संसद और विधानसभाओं के अध्यक्ष यथा लोकसभा अध्यक्ष एवं विधानसभा अध्यक्षों को संवैधानिक व्यवस्था ने ही कई प्रकार के विशेषाधिकार प्रदान किये है। न्यायपालिका भी उनके निर्णयों पर सामान्यतः हस्तक्षेप नहीं करती है। जहां तक नई संसद भवन निर्माण का निर्देश भी लोकसभा अध्यक्ष जी की ओर से केन्द्र सरकार को हुआ था। इसलिये भूमिपूजन, शिलान्यास और लोकार्पण के निर्णय का अधिकार लोकसभा सचिवालय को ही है। आमंत्रण भी सही है और उसका उन्हे अधिकार भी है।
कांग्रेस को तो मोदीजी का विरोध करनें की मानसिक बीमारी है, कई वर्षों से दिख रही है। जनता में सर्वे करवा लें। दूध का दूध पानी का पानी हो जायेगा। एक सर्वे इसी बात पर सही । सब जानते हैं कि कांग्रेस का विरोध 2024 के आम चुनाव में किस्मत अजमानें के लिये है। पग चम्पी दलों को उनकी हां में हां भरनें के अतिरिक्त कोई रास्ता नहीं है। अर्थात विरोध नीती सम्मत नहीं है, स्वार्थ सम्मत है।
खिसयानी बिल्ली .....वाली कहावत....
कांग्रेस को देश की स्वतंत्रता के साथ ही स्वदेश संसद भवन बनाना चाहिये था । वे नहीं बना पाये ! कांग्रेस की लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार जी ने तत्कालीन कांग्रेस की केन्द्र सरकार को निर्देश दिये थे । कांग्रेस सरकारों ने ही उनके निर्देशों को नहीं माना । वर्तमान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी नें लोकसभा अध्यक्ष ओम जी बिरला के निर्देशों की पालना की , नया संसद भवन बनावा दिया । वह भी शानदान जानदार भवन , जो कांग्रेस के जलन है। समय निकल गया, कांग्रेस अब खिसयानीं बिल्ली .........वाली कहावत क्यों चरितार्थ कर रही है।
नए संसद भवन का उद्घाटन राष्ट्रपति से कराने की मांग वाली याचिका को सर्वोच्च न्यायालय नें कडी फटकार लगाते हुए खारिज कर दिया । माननीय न्यायालय नें बडी स्पष्टता से कहा कि हम जानते हैं कि यह याचिका क्यों लाई गई है। उन्होनें याचिकाकर्ता से पूछा इस याचिका में जनहित क्या है ? शीर्ष अदालत ने साफ कहा कि ऐसी याचिकाओं को देखना सुप्रीम कोर्ट का काम नहीं है। कोर्ट ने कहा कि हम ऐसी याचिका दायर करने पर जुर्माना लगा सकते हैं। गनीमत है कि हम आप पर जुर्माना नहीं लगा रहे हैं। इस तरह नई संसद के उद्घाटन विवाद से जुड़ी याचिका को याचिकाकर्ता ने वापिस ले लिया।
इस निर्णय से कांग्रेस सहित उन विपक्षी दलों को बडा झटका लगा जो लोकार्पण का विरोध कर रहे थे। इस बीच सूत्रों से यह खबरें आ रही हैं कि राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ उद्घाटन के अवसर पर बधाई संदेश जारी कर सकते हैं।
याचिका में क्या था....
संसद भवन की नई इमारत के उद्घाटन को लेकर उत्पन्न किया गया जबरिया विवाद से संबंधित कथित जनहित की याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने याचिका पर सुनवाई से ही इनकार कर दिया। याचिका खारिज करते हुए कोर्ट ने कहा कि हम जानते हैं कि यह याचिका क्यों दाखिल हुई। ऐसी याचिकाओं को देखना सुप्रीम कोर्ट का काम नहीं है। कोर्ट ने पूछा कि इस याचिका से किसका हित होगा ? इस पर याचिकाकर्ता सटीक जवाब नहीं दे पाए। याचिका में शीर्ष अदालत से नए भवन का उद्घाटन राष्ट्रपति से कराने का निर्देश लोकसभा सचिवालय को देने की मांग की गई थी। याचिका में कहा गया कि लोकसभा सचिवालय का बयान और लोकसभा के महासचिव का उद्घाटन समारोह के लिए जारी निमंत्रण भारतीय संविधान का उल्लंघन है।
सुप्रीम कोर्ट के वकील सीआर जया सुकिन ने यह जनहित याचिका दाखिल की थी। इसमें कहा गया कि उद्घाटन समारोह में राष्ट्रपति को शामिल नहीं करके भारत सरकार ने भारतीय संविधान का उल्लंघन किया है। ऐसा करके संविधान का सम्मान नहीं किया जा रहा है। संसद भारत का सर्वोच्च विधायी निकाय है। भारतीय संसद में राष्ट्रपति और दो सदन (राज्यों की परिषद) राज्यसभा और जनता का सदन लोकसभा शामिल हैं। राष्ट्रपति के पास किसी भी सदन को बुलाने और सत्रावसान करने की शक्ति है। साथ ही संसद या लोकसभा को भंग करने की शक्ति भी राष्ट्रपति के पास है। ऐसे में संसद के नए भवन का उद्घाटन राष्ट्रपति द्वारा किया जाना चाहिए।
याचिकाकर्ता ने याचिका में कहा है कि देश के संवैधानिक प्रमुख होने के नाते राष्ट्रपति ही प्रधानमंत्री की नियुक्ति करते हैं. सभी बड़े फैसले भी राष्ट्रपति के नाम पर लिए जाते हैं. याचिका में कहा गया है कि अनुच्छेद 85 के तहत राष्ट्रपति ही संसद का सत्र बुलाते हैं । अनुच्छेद 87 के तहत उनका संसद में अभिभाषण होता है। जिसमें वह दोनों सदनों को संबोधित करते हैं । संसद से पारित सभी विधेयक राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद ही कानून बनते हैं । इसलिए राष्ट्रपति से ही संसद के नए भवन का उद्घाटन करवाया जाना चाहिए।
विपक्ष के हित के लिये याचिका दायर की गई थी ....
सुप्रीम कोर्ट के वकील सीआर जया सुकिन ने यह जनहित याचिका कांग्रेस सहित विरोध कर रहे विपक्षी दलों की मुहिम के हित हेतु दायर की थी जिसे माननीय न्यायालय नें बहुत साफ साफ कहा कि हम जानते हैं याचिका क्यों लाई गई। उन्होनें याचिकाकर्ता पर जुर्माना तो नहीं लगाया मगर याचिकाकर्ता अधिवक्ता के याचिका करने सम्बंधी अधिकार छीन लिये है। अब यह याचिकाकर्ता भारत के किसी भी न्यायालय में जनहित याचिका नहीं लगा सकेगा।
कौन पक्ष में और किस-किस ने किया विरोध..?
नए संसद भवन पर केंद्र सरकार के साथ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) मिलाकर 25 दल हैं। वहीं, उद्घाटन कार्यक्रम के बहिष्कार की विपक्ष की मुहिम से कई दलों ने किनारा कर लिया है। बसपा, जद-एस और तेलुगू देशम ने समारोह में शामिल होने का एलान किया। उन्होंने कहा, यह जनहित का मुद्दा है, इसका बहिष्कार करना गलत है। एनडीए में भाजपा समेत 18 दलों के अलावा विपक्षी खेमे के सात दलों ने उद्घाटन समारोह में शिरकत करने की रजामंदी दी है।
वे राजनीतिक दल जो विरोध कर रहे हें......
नए संसद भवन के उद्घाटन का विपक्ष बहिष्कार कर रहा है। बहिष्कार करने वाले गुटों में कांग्रेस, द्रविड मुन्नेत्र कषगम (द्रमुक), जनता दल (यूनाइटेड), आम आदमी पार्टी (आप), राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी), शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे), मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा), समाजवादी पार्टी (सपा), राष्ट्रीय जनता दल (राजद), भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा), तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी), ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम), इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग, झारखंड मुक्ति मोर्चा, नेशनल कांफ्रेंस, केरल कांग्रेस (मणि), रिवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी, विदुथलाई चिरुथिगल काट्ची (वीसीके), मारुमलार्ची द्रविड मुन्नेत्र कषगम (एमडीएमके), ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (एआईयूडीएफ) और राष्ट्रीय लोकदल शामिल हैं।
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