कविता - जनधन खाते खुले अपार



कविता
जनधन खाते खुले अपार 

जनधन खाते खुले अपार,
गरीबों को मिला अधिकार।
आजादी को सदियाँ गुजरीं,
पर मोदीजी ने दिया सम्मान।

पहले बैंक थे ऊँची दीवार,
गरीब रहे दर दर लाचार,
काग़ज़, जमानत, बोझ अपार,
सपना का था धुँधला संसार।

मोदी नें बदली सोच महान,
नीति बनी जनहित की शान,
द्वार-द्वार सेवा पहुँची,
उम्मीदों को मिला नया सम्मान।

जनधन खाते खुले अपार,
जनता को मिला अधिकार।
आजादी को सदियाँ गुजरीं,
पर मोदीजी ने दिया सम्मान।

न कोई बंधन, न दूरी अब,
हर व्यक्ती को है अधिकार ,
जहाँ चाहो खाता खुलता,
जीवन में उजियारा भरता।

बदलाव की यह नयी उड़ान,
जन-जन में जगता उत्थान ,
विश्वास का स्वर्णिम संधान,
भारत बढ़े नए अभियान।

जनधन खाते खुले अपार,
जनता को मिला अधिकार।
आजादी को सदियाँ गुजरीं,
पर मोदीजी ने दिया सम्मान।
---


टिप्पणियाँ

इन्हे भी पढे़....

सेंगर राजपूतों का इतिहास एवं विकास

तेरा वैभव अमर रहे माँ, हम दिन चार रहें न रहे।

प्रेम अवतारी श्री सत्य साईं राम

कण कण सूं गूंजे, जय जय राजस्थान

हमारा देश “भारतवर्ष” : जम्बू दीपे भरत खण्डे

‘‘भूरेटिया नी मानू रे’’: अंग्रेजों तुम्हारी नहीं मानूंगा - गोविन्द गुरू

छत्रपति शिवाजी : सिसोदिया राजपूत वंश

कविता - भाग जाएगा अन्याय का शैतान

कविता - हर दिन नया बनाना है

Tital