कविता - जय जय सेना, जय जय मोदी jay jay sena jay jay modi
🇮🇳 ऑपरेशन सिंदूर : जय जय सेना, जय जय मोदी 🇮🇳
(वीर रस – मंचीय रूप में पढ़ी जाने योग्य)
- अरविन्द सिसोदिया 9414180151
मुखड़ा :
मोदीजी के पथ प्रदर्शन में,
सेना नें शत्रु का अस्तित्व झंझोड़ दिया,
आतंकियों को ध्वस्त किया,
शत्रु का मुखड़ा तोड़ दिया।
सिंदूर के बदले सिंदूरी संधान किया,
जय जय सेना, जय जय मोदी,
तुमने वीरत्व और विजय का स्वाभिमान जिया।
अंतरा 1 : प्रतिकार का संकल्प
जब धर्म पूछकर सिंदूर लुटा गया,
तो माँ भारती के कंगनों ने भी संकल्प उठाया था,
शौर्य से कहा — अब उत्तर चाहिए,
और उत्तर “सिंह” सा “भारत की सेनाओं ” ने दिया था !
मोदी की आँखों में दृढ़ता की ज्वालाएं थी,
सेना के हृदय में प्रतिशोध की सुनामी थी,
ज्योंहि संकेत मिला — शत्रु की धरती थर्राई,
त्राहि त्राहि करने लगे आतंकी, पर रहम नहीं दिखलाई,
क्योंकि यह पत्तित अन्याय के विरुद्ध पवित्र न्याय की साधना थी!
अंतरा 2 : सेना का शौर्य
खुनी बलिदानों से प्रतिशोध धधक रहा था ,
जहाँ-जहाँ आतंक का अड्डा था, वहाँ राख झर रही घी ,
शस्त्रों नें बन सुरमा, प्रज्जवलित कहर बरपाया था,
"समय शांति का नहीं था , शौर्य ने जो बुलाया था !"
वायु में गरजते जेटों ने ,
शत्रु की धरती पर कहर बरपाया था ,
भारत की सेना ने वह कर दिखाया
जो विश्व में कोई कर न पाया था ।
अंतरा 3 : मोदी का नेतृत्व
कायरता के खुनी खेल, मोदी नें पग पग देखे घे,
हो गईं घोषणा भारत कठोर दंड देगा,
शत्रु भूले न येशा बदला लेगा।
और यही वाक्य रणबाँकुरों का युद्धघोष बन गया।
मोदी ने नीतियाँ नहीं, नीति-धर्म चलाया,
कूटनीति को भी शौर्य से सजाया,
कहा — "हम किसी से द्वेष नहीं करते,
पर अन्याय अब और नहीं सहते!"
अंतरा 4 : विजय का उजाला
रात ढली, पर विजय का सूरज निकला,
हर सीमा पर गर्व का तिलक सजा,
जो सिंदूर कभी लूटा गया था,
आज उसी सिंदूर से भारत सज गया!
हर माँ ने फिर माथा ऊँचा किया,
हर जन ने जयघोष लगाया,
जय जय सेना, जय जय मोदी,
भारत ने इतिहास बनाया!
समापन :
ये देश न झुकेगा, ये देश न रुकेगा,
जो रण में उतरेगा, वो लौट कर फूलेगा,
मोदी का पथ, सेना का बल,
यही भारत का अमर संबल!
जय हिंद! जय भारत!
जय जय सेना, जय जय मोदी! 🇮🇳
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