सावधान भारत : अमेरिका मोदी विरोधी प्लान में लिप्त है


मोदीजी जब गुजरात के मुख्यमंत्री थे तब भी बिना किसी विशेष बात के अमेरिका नें वीजा बैन कर दिया था...जबकि गोधरा कांड कांग्रेस नें करवाया था और जब वे प्रधानमंत्री बन गये तब यह वैन खोला था.... इसलिए यह याद रहें कि आतंकवाद परस्त ताकतों के साथ अमेरिका के रिश्ते कितने मज़बूत हैँ। वे आतंकवाद विरोधी होनें का मात्र नाटक करती है। वास्तविकता यही है कि अमेरिका ब्रिटेन गठजोड़ ही आतंकवाद और बिभिन्न देशों में अस्थिरता के जनक हैँ। ये अपनी उत्पादन क्षमता को बनाये रखने के लिए दूसरे देशों की उत्पादन क्षमता प्रभावित करते हैँ।



*मोदी और मुसद्दिक*

*ईरान 1951 और भारत 2024, क्या इनमें कोई समानता है...?*

क्या आपने कभी सोचा है कि ईरानी लोग अमेरिका को "शैतानों की भूमि" क्यों कहते हैं...?

कभी ईरान के तेल पर ब्रिटेन का वर्चस्व था। ईरान के तेल उत्पादन का 84% हिस्सा इंग्लैंड को जाता था, और केवल 16% ही ईरान को मिलता था।

1951 में एक सच्चे देशभक्त मोहम्मद मुसद्दिक ईरान के प्रधानमंत्री बने।
वे नहीं चाहते थे कि ईरान की तेल संपदा पर विदेशी कंपनियों का कब्जा रहे।

15 मार्च 1951 को मुसद्दिक ने ईरानी संसद में तेल उद्योग के राष्ट्रीयकरण का विधेयक पेश किया, जो भारी बहुमत से पारित हुआ।
टाइम मैगज़ीन ने उन्हें 1951 का "मैन ऑफ द ईयर" घोषित किया।

लेकिन इस फैसले से ब्रिटेन को भारी नुकसान हुआ। उन्होंने मुसद्दिक को हटाने के कई प्रयास किए। रिश्वत, हत्या की कोशिश, सैन्य तख्तापलट, पर मुसद्दिक की दूरदर्शिता और लोकप्रियता के कारण सब विफल रहे।

जब ब्रिटेन असफल हुआ, तो उसने अमेरिका से मदद मांगी।

CIA ने मुसद्दिक को हटाने के लिए 1 मिलियन डॉलर (लगभग 4,250 मिलियन रियाल) स्वीकृत किए।

योजना थी: जनता में असंतोष फैलाना, मीडिया और धार्मिक नेताओं को खरीदना, और अंततः संसद के भ्रष्ट सांसदों के माध्यम से उनकी सरकार को गिराना।

631 मिलियन रियाल पत्रकारों, संपादकों और मौलवियों को दिए गए, ताकि वे मुसद्दिक के खिलाफ माहौल बना सकें।

हजारों लोगों को फर्जी प्रदर्शन के लिए भुगतान किया गया। प्रमुख वैश्विक मीडिया भी अमेरिका का समर्थन करने लगा।

व्यक्तिगत कार्टूनों से शुरू हुई आलोचना, बिल्कुल वैसी ही जैसे आज भारत में मोदी के निजी जीवन पर हमले होते हैं।

मुसद्दिक को तानाशाह कहा गया। जब उन्हें अहसास हुआ कि संसद के जरिए उनकी सरकार को गिराया जाएगा, तो उन्होंने संसद भंग कर दी।

अमेरिका ने ईरान के शाह पर दबाव बनाया कि वे मुसद्दिक को प्रधानमंत्री पद से हटाएं।

210 मिलियन रियाल की रिश्वत से फर्जी दंगे करवाए गए, और शाह की वापसी के बाद मुसद्दिक ने आत्मसमर्पण कर दिया।

उन्हें जेल में डाला गया और फिर जीवन भर नजरबंद रखा गया।

इसके बाद ईरान के तेल का 40% अमेरिका और 40% इंग्लैंड को दे दिया गया, बाकी 20% अन्य यूरोपीय देशों को।

फिर कट्टरपंथी खुमैनी सत्ता में आए, और आम ईरानी की हालत और खराब हो गई।

मुसद्दिक का अपराध क्या था...?

सिर्फ इतना कि वे चाहते थे कि विदेशी नहीं, बल्कि देश की अपनी कंपनियां तेल और अन्य संसाधनों पर नियंत्रण रखें।

अगर उस समय वहां की मुस्लिम जनता ने मुसद्दिक का साथ दिया गया होता, तो 1955 से पहले ही ईरान एक संपूर्ण लोकतांत्रिक राष्ट्र बन सकता था।
लेकिन पत्रकारों, संपादकों, सांसदों और प्रदर्शनकारियों ने चंद पैसों में देश का भविष्य बेच दिया।

उसी समय ईरान की जनता ने महसूस किया कि अमेरिका ने उनकी सरकार को गिराने में गहरी भूमिका निभाई थी। और तभी से अमेरिका को "शैतानों की भूमि" कहा जाने लगा।

अब सोचिए, ईरान के असली दुश्मन कौन थे...?

वे थे, वही ईरान के बिके हुए पत्रकार, संपादक, सांसद और आंदोलनकारी।

अगर ये नहीं बिकते, और लोग मुसद्दिक के साथ खड़े रहते तो अमेरिका की चालें कभी सफल नहीं होती।

आज भारत भी एक ऐसे ही मोड़ पर खड़ा है।

यह दुर्भाग्य है कि आम जनता को षड्यंत्र तब तक समझ में नहीं आते, जब तक उनके साथ अत्याचार नहीं होने लगते।

नकली मुद्दे, फर्जी आंदोलन, गलत आंकड़े, जातियों को आपस में लड़वाना, अल्पसंख्यकों को भड़काना, और कम्युनिस्ट लॉबी का राष्ट्रविरोधी ताकतों को समर्थन देना, ये सब एक गहरी साजिश का हिस्सा हैं, जिसका मकसद भारत को फिर से विदेशी नियंत्रण में लाना है।

अब समय है कि हम सजग बनें और बिकाऊ मीडिया के झूठे प्रचार का शिकार न बनें।

हर देशभक्त को वर्तमान नेतृत्व पर विश्वास करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ मजबूती से खड़ा होना चाहिए।

अन्यथा, ईरान जैसी तबाही भारत में भी हो सकती है।

आज दुनिया की कई खुफिया एजेंसियाँ भारतीय राजनेताओं को अपने एजेंट बनाने की कोशिश कर रही हैं, ताकि किसी भी तरह मोदी सरकार को हटाया जा सके।

हमारा भाग्य हमारे हाथ में है, बस समय रहते ये समझना होगा।

"न्यूयॉर्क टाइम्स" ने मुसद्दिक को तानाशाह कहा था।
आज वही "टाइम मैगज़ीन" मोदी को "डिवाइडर इन चीफ" कहती है।
क्या ये सब संयोग है...? नहीं, ये एक रणनीति है।
*वैसे गहरा ए सोचें तो मोदी जी जैसा देश भक्त लीडर अगर तानाशाह नही बनेगा तो देशद्रोही शक्तियाँ हिन्दूस्थान को बर्बाद कर देंगी*। 
सोचिए। समझिए। और जागरूक बनिए।

जय हिंद।
कृपया इस संदेश को अन्य देशभक्तों तक अवश्य पहुँचाएँ।
🙏🙏🙏

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