कविता - अमरीका लोकतंत्र का खलनायक है
अमरीका लोकतंत्र का खलनायक है
आतंकवाद और अमरीका में , कैसा घातक यह गठजोड़ है,
जहाँ जहाँ अमरीका चाहे, वहाँ वहाँ आराजकता और विस्फोट है।
यह गिरा हुआ और पतित स्वरूप ही,अमरीका का महा सत्य है।
लोकतंत्र के रक्षक का यह कैसा खूनी परिवेश बन गया है।
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जहाँ तेल की बू आए, वहाँ उसकी नज़र जाती है,
शांति के नाम पर युद्ध की आग लगाई जाती है।
लोकतंत्र का नक़ाब ओढ़े, वो व्यापार सजाता है,
मौतों का यह सौदागर, खुद को जबरिया “रक्षक” कहलवाता है।
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वो हथियारों के साथ साथ , भविष्य से भी खेलता है,
गरीब देशों की मिट्टी में, अपना सिक्का बेलता है।
उसकी नीतियों से खूनी खेल, उसकी चालों से मातम है,
जबरिया मुस्कुराने की धमकियों के पीछे, दुःख का आलम है।
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अब वक़्त है कि सभी पहचानें, ये झूठी सभ्यता का जंजाल,
जहाँ न्याय बिकता डॉलर में, और सच होता बेहाल।
धरती माँ की कोख में जो शांति की लौ जलती है,
वह सनातन एकता से ही फिर प्रबल निकलती है।
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उठो, हम सत्य के प्रहरी हैं, यह स्वर जग में गूँजे,
हर अन्याय की दीवार अब, जनशक्ति से टूटे।
नव आशा का सूरज फिर से, मानवता में झलके,
और हर दिल से यह गूंज उठे —
“ अब न स्वीकार कोई खलनायक होगा ,
अब न इंसानियत का कत्ल होनें देंगे ।”
मानवता की सर्वोच्चता ही पावन धर्म है,
यही भारत की पहली पशंद है।
=== समाप्त ===
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