आपातकाल : में भी था भूमीगत कार्यकर्ता Emergency 1975-77
1975 गुना - आापातकाल के समय हमारा नेतृत्व ग्वालियर महाराज श्रीमंत माधवराव सिंधिया लोकसभा सांसद के नाते एवं ऊमरी राजा साहब शिवप्रतापसिंह जी सिसौदिया विधायक के नाते करते थे । मगर हमारा मुख्य नेतृृत्व भाई साहब गाविन्द जी सुखद (अगवाल) , रामजीलाल जी गोयल एवं नवलकिशोर जी विजयवर्गीय करते थे । मेरे पिताश्री भूपेन्द्र्र सिंह जी सीसौदिया उन दिनों जनसंघ के जिला मंत्री थे। पन्नालाल जी भाई साहब एवं गोपीलाल जी भाई साहब ,शिवचरन जी मंगल , हरीचरन जी तब हमारे अग्रज थे। मेरे पिताश्री जागीरदार थे सो उन्होने गिरफ्तारी न देकर भूमिगत कार्यकर्ता के रूप में कार्य किया । तब में अरविन्द सिंह सिसौदिया जिसे लोग बडे बनाजी के नाम से जानते थे, भूमिगत कार्यकर्ता था । हमारे हाॅली का जबरिया आपरेशन तत्कालीन सरकार ने कर दिया था। जिसका विवाह भी नहीं हुआ था। हम रात्रि शयन किसी पहाडी के वृक्ष के नीचे करते थे। में अपने पैतृक ग्राम मोडका में ही रहता था । मगर सायकिल से रोज गुना जाता था। तब हमारी मुख्यतौर पर मदद श्री लक्ष्मण जी कृष्णनानी ने की थी। चाचीजी का स्नेह अविस्मरणीय है। भूमिगत कार्यकर्ताओं का मिलन स्थल भी कृष्णनानी जी का फार्म हाउस हुआ रहता था। बहुत कुछ अब भूल भी गया |
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आपातकाल पर विशेष : कब और क्यों बिन्दुवार जानकारी
तत्कालीन प्रधानंमत्री श्रीमती इंदिरा गांधी द्वारा भारत में 1975 में लगाया गया आपातकाल भारत के लोकतांत्रिक इतिहास में सबसे बड़ी घटना है। आज की पीढ़ी आपातकाल के बारे में सुनती जरूर है, लेकिन उस दौर में क्या घटित हुआ, इसका देश और तब की राजनीति पर क्या असर हुआ, इसके बारे में बहुत कम ही पता है।
कब लगा आपातकाल...
* अब से 45 वर्ष पहले यानी 25-26 जून की दरम्यानी रात 1975 से 21 मार्च 1977 तक (21 महीने) के लिए भारत में आपातकाल घोषित किया गया था।
* तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के कहने पर भारतीय संविधान की धारा 352 के अधीन आपातकाल की घोषणा कर दी थी।
* स्वतंत्र भारत के इतिहास में यह सबसे विवादास्पद और अलोकतांत्रिक समय था। आपातकाल में चुनाव स्थगित हो गए थे और सभी नागरिक अधिकारों को समाप्त कर दिया गया था।
* इसकी जड़ में 1971 में हुए लोकसभा चुनाव का था, जिसमें उन्होंने अपने मुख्य प्रतिद्वंद्वी राजनारायण को पराजित किया था। लेकिन चुनाव परिणाम आने के चार साल बाद राज नारायण ने हाईकोर्ट में चुनाव परिणाम को चुनौती दी।
* 12 जून, 1975 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश जगमोहन लाल सिन्हा ने इंदिरा गांधी का चुनाव निरस्त कर उन पर छह साल तक चुनाव न लड़ने का प्रतिबंध लगा दिया और उनके मुकाबले हारे और श्रीमती गांधी के चिरप्रतिद्वंद्वी राजनारायण सिंह को चुनाव में विजयी घोषित कर दिया था।
* राजनारायण सिंह की दलील थी कि इन्दिरा गांधी ने चुनाव में सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग किया, तय सीमा से अधिक पैसा खर्च किया और मतदाताओं को प्रभावित करने के लिए गलत तरीकों का इस्तेमाल किया।
* अदालत ने इन आरोपों को सही ठहराया था। इसके बावजूद श्रीमती गांधी ने इस्तीफा देने से इनकार कर दिया। तब कांग्रेस पार्टी ने भी बयान जारी कर कहा था कि इन्दिरा गांधी का नेतृत्व पार्टी के लिए अपरिहार्य है।
* इसी दिन गुजरात में चिमनभाई पटेल के विरुद्ध विपक्षी जनता मोर्चे को भारी विजय मिली। इस दोहरी चोट से इंदिरा गांधी बौखला गईं।
* इन्दिरा गांधी ने अदालत के इस निर्णय को मानने से इनकार करते हुए सर्वोच्च न्यायालय में अपील करने की घोषणा की और 26 जून को आपातकाल लागू करने की घोषणा कर दी गई।
* उस समय आकाशवाणी ने रात के अपने एक समाचार बुलेटिन में यह प्रसारित किया कि अनियंत्रित आंतरिक स्थितियों के कारण सरकार ने पूरे देश में आपातकाल (इमरजेंसी) की घोषणा कर दी गई है।
* आकाशवाणी पर प्रसारित अपने संदेश में इंदिरा गांधी ने कहा था, 'जब से मैंने आम आदमी और देश की महिलाओं के फायदे के लिए कुछ प्रगतिशील कदम उठाए हैं, तभी से मेरे खिलाफ गहरी साजिश रची जा रही थी।
क्या हुआ आपातकाल का असर...
* इस दौरान जनता के सभी मौलिक अधिकारों को स्थगित कर दिया गया था। सरकार विरोधी भाषणों और किसी भी प्रकार के प्रदर्शन पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया गया।
* समाचार पत्रों को एक विशेष आचार संहिता का पालन करने के लिए विवश किया गया, जिसके तहत प्रकाशन के पूर्व सभी समाचारों और लेखों को सरकारी सेंसर से गुजरना पड़ता था। अर्थात तत्कालीन मीडिया पर भी अंकुश लगा दिया गया था।
* आपातकाल की घोषणा के साथ ही सभी विरोधी दलों के नेताओं को गिरफ्तार करवाकर अज्ञात स्थानों पर रखा गया। सरकार ने मीसा (मैंटीनेन्स ऑफ इंटरनल सिक्यूरिटी एक्ट) के तहत कदम उठाया।
* उस समय बिहार में जयप्रकाश नारायण का आंदोलन अपने चरम पर था। कांग्रेस के कुशासन और भ्रष्टाचार से तंग जनता में इंदिरा सरकार इतनी अलोकप्रिय हो चुकी थी कि चारों ओर से उन पर सत्ता छोड़ने का दबाव था, लेकिन सरकार ने इस जनमानस को दबाने के लिए तानाशाही का रास्ता चुना।
* 25 जून, 1975 को दिल्ली में हुई विराट रैली में जय प्रकाश नारायण ने पुलिस और सेना के जवानों से आग्रह किया कि शासकों के असंवैधानिक आदेश न मानें। तब जेपी को गिरफ्तार कर लिया गया।
* यह ऐसा कानून था जिसके तहत गिरफ्तार व्यक्ति को कोर्ट में पेश करने और जमानत मांगने का भी अधिकार नहीं था।
* विपक्षी दलों के सभी बड़े नेताओं जयप्रकाश नारायण,मोरारजी देसाई, अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी, जॉर्ज फर्नांडीज और चन्द्रशेखर को भी जेल भेज दिया गया, जो इन्दिरा कांग्रेस की कार्यकारिणी के निर्वाचित सदस्य थे।
* इसी दौरान सरकार ने संविधान में परिवर्तन कर एक ऐसी व्यवस्था को पनपने का आधार तैयार किया जिसको राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के मुखपत्र 'आर्गनाइजर' ने 'पारिभाषिक दाग' का नाम दिया। पत्र के संपादकीय में कहा गया है कि ये दाग उस कथित धर्मनिरपेक्ष और समाजवादी राजनीति को गढ़ रहे हैं जो कि सत्ता के राजनीतिक दुरुपयोग से लेकर वोट बैंक की राजनीति में बदल गए हैं। ये समाज में वैमनस्यता, भेदभाव को बढ़ाने के साथ-साथ जनता परिवार और उनके गुटों के नाम पर सामने आए हैं।
...और फिर चली इंदिरा गांधी विरोधी लहर...
* आपातकाल लागू करने के लगभग दो साल बाद विरोध की लहर तेज होती देख इंदिरा गांधी ने लोकसभा भंग कर 1977 में चुनाव कराने की सिफारिश कर दी।
* चुनाव में आपातकाल लागू करने का फैसला कांग्रेस के लिए घातक साबित हुआ। खुद इंदिरा गांधी अपने गढ़ रायबरेली से चुनाव हार गईं।
* जनता पार्टी भारी बहुमत से सत्ता में आई और मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बने। संसद में कांग्रेस के सदस्यों की संख्या 350 से घटकर 153 पर सिमट गई और 30 वर्षों के बाद केंद्र में किसी ग़ैर कांग्रेसी सरकार का गठन हुआ।
* कांग्रेस को उत्तर प्रदेश, बिहार, पंजाब, हरियाणा और दिल्ली में एक भी सीट नहीं मिली।
* नई सरकार ने आपातकाल के दौरान लिए गए फैसलों की जांच के लिए शाह आयोग गठित किया।
* नई सरकार दो साल ही टिक पाई और अंदरुनी अंतर्विरोधों के कारण 1979 में सरकार गिर गई। उपप्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह ने कुछ मंत्रियों की दोहरी सदस्यता का सवाल उठाया जो जनसंघ के भी सदस्य थे।
* इसी मुद्दे पर चरण सिंह ने सरकार से समर्थन वापस ले लिया और कांग्रेस के समर्थन से सरकार बनाई, लेकिन उनकी सरकार मात्र पांच महीने ही चल सकी। उनके नाम पर कभी संसद नहीं जाने वाले प्रधानमंत्री का रिकॉर्ड दर्ज हो गया।
* ढाई साल बाद हुए आम चुनाव में इन्दिरा गांधी फिर से जीत गईं।
* हालांकि जनता पार्टी ने अपने ढाई वर्ष के कार्यकाल में संविधान में ऐसे प्रावधान कर दिए जिससे देश में फिर आपातकाल न लग सके।
* इसके बाद देश में क्षेत्रीय दलों का प्रभाव बढ़ा। कांग्रेस की देखादेखी वंशवाद प्रायः सभी दलों में पहुंच गया। ऊपर से देखने पर लोकतंत्र तो है पर वह कुछ परिवारों के पास ही बंधक बनकर रह गया है।
आपातकाल पर विशेष : कब और क्यों बिन्दुवार जानकारी
तत्कालीन प्रधानंमत्री श्रीमती इंदिरा गांधी द्वारा भारत में 1975 में लगाया गया आपातकाल भारत के लोकतांत्रिक इतिहास में सबसे बड़ी घटना है। आज की पीढ़ी आपातकाल के बारे में सुनती जरूर है, लेकिन उस दौर में क्या घटित हुआ, इसका देश और तब की राजनीति पर क्या असर हुआ, इसके बारे में बहुत कम ही पता है।
कब लगा आपातकाल...
* अब से 45 वर्ष पहले यानी 25-26 जून की दरम्यानी रात 1975 से 21 मार्च 1977 तक (21 महीने) के लिए भारत में आपातकाल घोषित किया गया था।
* तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के कहने पर भारतीय संविधान की धारा 352 के अधीन आपातकाल की घोषणा कर दी थी।
* स्वतंत्र भारत के इतिहास में यह सबसे विवादास्पद और अलोकतांत्रिक समय था। आपातकाल में चुनाव स्थगित हो गए थे और सभी नागरिक अधिकारों को समाप्त कर दिया गया था।
* इसकी जड़ में 1971 में हुए लोकसभा चुनाव का था, जिसमें उन्होंने अपने मुख्य प्रतिद्वंद्वी राजनारायण को पराजित किया था। लेकिन चुनाव परिणाम आने के चार साल बाद राज नारायण ने हाईकोर्ट में चुनाव परिणाम को चुनौती दी।
* 12 जून, 1975 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश जगमोहन लाल सिन्हा ने इंदिरा गांधी का चुनाव निरस्त कर उन पर छह साल तक चुनाव न लड़ने का प्रतिबंध लगा दिया और उनके मुकाबले हारे और श्रीमती गांधी के चिरप्रतिद्वंद्वी राजनारायण सिंह को चुनाव में विजयी घोषित कर दिया था।
* राजनारायण सिंह की दलील थी कि इन्दिरा गांधी ने चुनाव में सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग किया, तय सीमा से अधिक पैसा खर्च किया और मतदाताओं को प्रभावित करने के लिए गलत तरीकों का इस्तेमाल किया।
* अदालत ने इन आरोपों को सही ठहराया था। इसके बावजूद श्रीमती गांधी ने इस्तीफा देने से इनकार कर दिया। तब कांग्रेस पार्टी ने भी बयान जारी कर कहा था कि इन्दिरा गांधी का नेतृत्व पार्टी के लिए अपरिहार्य है।
* इसी दिन गुजरात में चिमनभाई पटेल के विरुद्ध विपक्षी जनता मोर्चे को भारी विजय मिली। इस दोहरी चोट से इंदिरा गांधी बौखला गईं।
* इन्दिरा गांधी ने अदालत के इस निर्णय को मानने से इनकार करते हुए सर्वोच्च न्यायालय में अपील करने की घोषणा की और 26 जून को आपातकाल लागू करने की घोषणा कर दी गई।
* उस समय आकाशवाणी ने रात के अपने एक समाचार बुलेटिन में यह प्रसारित किया कि अनियंत्रित आंतरिक स्थितियों के कारण सरकार ने पूरे देश में आपातकाल (इमरजेंसी) की घोषणा कर दी गई है।
* आकाशवाणी पर प्रसारित अपने संदेश में इंदिरा गांधी ने कहा था, 'जब से मैंने आम आदमी और देश की महिलाओं के फायदे के लिए कुछ प्रगतिशील कदम उठाए हैं, तभी से मेरे खिलाफ गहरी साजिश रची जा रही थी।
क्या हुआ आपातकाल का असर...
* इस दौरान जनता के सभी मौलिक अधिकारों को स्थगित कर दिया गया था। सरकार विरोधी भाषणों और किसी भी प्रकार के प्रदर्शन पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया गया।
* समाचार पत्रों को एक विशेष आचार संहिता का पालन करने के लिए विवश किया गया, जिसके तहत प्रकाशन के पूर्व सभी समाचारों और लेखों को सरकारी सेंसर से गुजरना पड़ता था। अर्थात तत्कालीन मीडिया पर भी अंकुश लगा दिया गया था।
* आपातकाल की घोषणा के साथ ही सभी विरोधी दलों के नेताओं को गिरफ्तार करवाकर अज्ञात स्थानों पर रखा गया। सरकार ने मीसा (मैंटीनेन्स ऑफ इंटरनल सिक्यूरिटी एक्ट) के तहत कदम उठाया।
* उस समय बिहार में जयप्रकाश नारायण का आंदोलन अपने चरम पर था। कांग्रेस के कुशासन और भ्रष्टाचार से तंग जनता में इंदिरा सरकार इतनी अलोकप्रिय हो चुकी थी कि चारों ओर से उन पर सत्ता छोड़ने का दबाव था, लेकिन सरकार ने इस जनमानस को दबाने के लिए तानाशाही का रास्ता चुना।
* 25 जून, 1975 को दिल्ली में हुई विराट रैली में जय प्रकाश नारायण ने पुलिस और सेना के जवानों से आग्रह किया कि शासकों के असंवैधानिक आदेश न मानें। तब जेपी को गिरफ्तार कर लिया गया।
* यह ऐसा कानून था जिसके तहत गिरफ्तार व्यक्ति को कोर्ट में पेश करने और जमानत मांगने का भी अधिकार नहीं था।
* विपक्षी दलों के सभी बड़े नेताओं जयप्रकाश नारायण,मोरारजी देसाई, अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी, जॉर्ज फर्नांडीज और चन्द्रशेखर को भी जेल भेज दिया गया, जो इन्दिरा कांग्रेस की कार्यकारिणी के निर्वाचित सदस्य थे।
* इसी दौरान सरकार ने संविधान में परिवर्तन कर एक ऐसी व्यवस्था को पनपने का आधार तैयार किया जिसको राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के मुखपत्र 'आर्गनाइजर' ने 'पारिभाषिक दाग' का नाम दिया। पत्र के संपादकीय में कहा गया है कि ये दाग उस कथित धर्मनिरपेक्ष और समाजवादी राजनीति को गढ़ रहे हैं जो कि सत्ता के राजनीतिक दुरुपयोग से लेकर वोट बैंक की राजनीति में बदल गए हैं। ये समाज में वैमनस्यता, भेदभाव को बढ़ाने के साथ-साथ जनता परिवार और उनके गुटों के नाम पर सामने आए हैं।
...और फिर चली इंदिरा गांधी विरोधी लहर...
* आपातकाल लागू करने के लगभग दो साल बाद विरोध की लहर तेज होती देख इंदिरा गांधी ने लोकसभा भंग कर 1977 में चुनाव कराने की सिफारिश कर दी।
* चुनाव में आपातकाल लागू करने का फैसला कांग्रेस के लिए घातक साबित हुआ। खुद इंदिरा गांधी अपने गढ़ रायबरेली से चुनाव हार गईं।
* जनता पार्टी भारी बहुमत से सत्ता में आई और मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बने। संसद में कांग्रेस के सदस्यों की संख्या 350 से घटकर 153 पर सिमट गई और 30 वर्षों के बाद केंद्र में किसी ग़ैर कांग्रेसी सरकार का गठन हुआ।
* कांग्रेस को उत्तर प्रदेश, बिहार, पंजाब, हरियाणा और दिल्ली में एक भी सीट नहीं मिली।
* नई सरकार ने आपातकाल के दौरान लिए गए फैसलों की जांच के लिए शाह आयोग गठित किया।
* नई सरकार दो साल ही टिक पाई और अंदरुनी अंतर्विरोधों के कारण 1979 में सरकार गिर गई। उपप्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह ने कुछ मंत्रियों की दोहरी सदस्यता का सवाल उठाया जो जनसंघ के भी सदस्य थे।
* इसी मुद्दे पर चरण सिंह ने सरकार से समर्थन वापस ले लिया और कांग्रेस के समर्थन से सरकार बनाई, लेकिन उनकी सरकार मात्र पांच महीने ही चल सकी। उनके नाम पर कभी संसद नहीं जाने वाले प्रधानमंत्री का रिकॉर्ड दर्ज हो गया।
* ढाई साल बाद हुए आम चुनाव में इन्दिरा गांधी फिर से जीत गईं।
* हालांकि जनता पार्टी ने अपने ढाई वर्ष के कार्यकाल में संविधान में ऐसे प्रावधान कर दिए जिससे देश में फिर आपातकाल न लग सके।
* इसके बाद देश में क्षेत्रीय दलों का प्रभाव बढ़ा। कांग्रेस की देखादेखी वंशवाद प्रायः सभी दलों में पहुंच गया। ऊपर से देखने पर लोकतंत्र तो है पर वह कुछ परिवारों के पास ही बंधक बनकर रह गया है।
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*आज 25 जून है*
*लोकतंत्र पर धब्बा 25 जून 1975*
*--इमरजेंसी, संविधान की हत्या, लोकतंत्र की हत्या, प्रेस की आज़ादी पर हमला, नागरिक अधिकारों का हनन-- ये शब्द आजकल बहुत इस्तेमाल किये जा रहे हैं ।*
*इमरजेंसी, संविधान की हत्या, लोकतंत्र की हत्या, प्रेस की आज़ादी पर हमला, नागरिक अधिकारों का हनन क्या होता है हम आपको बताते हैं इस लेख के माध्यम से ।*
*25 जून 1975 को हमारे देश में एक ऐसी घटना हुई थी जिसे लोकतंत्र के इतिहास में एक काले धब्बे के रूप में जाना जाता है । हुआ यह था कि उस दिन तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने इस देश में इमरजेंसी घोषित की थी या दूसरे शब्दों में कहें आपातकालीन घोषित की थी । अब 25 जून 1975 की रात को यह घटना हुई और 26 जून 1975 को जब लोग सो कर उठे तब उन्हें यह पता लगा कि रात को ही देश के बड़े विपक्षी नेताओं श्री मोरारजी देसाई, श्री जयप्रकाश नारायण, ओम मेहता, लालकृष्ण आडवाणी, अटल बिहारी वाजपेई, जार्ज फर्नांडिस, पीलू मोदी - इन सब को गिरफ्तार कर लिया है और रातों-रात और भी हजारों लोगों को गिरफ्तार कर लिया है ! लोगों को समझ नहीं आया कि यह इमरजेंसी होती क्या है ! अगले दिन सुबह सुबह सारे मीडिया हाउसेस को यह संदेश भिजवा दिया गया कि अब तुम वही लिखोगे या प्रसारित करोगे जो सरकार चाहेगी । श्रीमती इंदिरा गांधी के सुपुत्र श्री संजय गांधी ने उस समय के सूचना व प्रसारण मंत्री श्री इंद्र कुमार गुजराल साहब को बुलवाया और कहा कि गुजराल साहब अब अखबारों में और मीडिया में वही आएगा जो हम चाहेंगे ; इसलिए जो भी कुछ छापा जाए या जो भी कुछ प्रसारित हो वह मेरे से होकर जाए हमें पहले दिखाया जाए । इस पर इंद्र कुमार गुजराल साहब ने कहा कि नहीं साहब ऐसा नहीं हो सकता । ऐसा भी बताया जाता है कि श्रीमती इंदिरा गांधी की बड़ी रैली को दूरदर्शन पर ना दिखाने की चूक भी सूचना व प्रसारण मंत्री के रहते उनसे हो गई थी । इस पर श्री इंद्र कुमार गुजराल को सूचना और प्रसारण मंत्री के पद से हटा दिया गया और उनकी जगह विद्याचरण शुक्ल को सूचना व प्रसारण मंत्री बना दिया गया । इस प्रकार की शुरुआत हुई इमरजेंसी की ।*
*इमरजेंसी श्रीमती इंदिरा गांधी को क्यों लगानी पड़ी ? इसकी पृष्ठभूमि में अगर जाएं तो कुछ ऐसी परिस्थितियां थीं जिनके कारण से श्रीमती इंदिरा गांधी को यह लगने लगा था कि अगर इमरजेंसी नहीं लगाई तो उनकी कुर्सी को खतरा हो सकता है । सन 1971 में श्रीमती इंदिरा गांधी बहुमत से चुनाव जीती थीं । उन्होंने गरीबी हटाओ का नारा दिया था ।*
*लेकिन उन दिनों में जो राज्य सरकारें थीं कांग्रेस की वहां पर इस प्रकार से भ्रष्टाचार फैल गया था कि लोगों को वहां आंदोलन के लिए सड़कों पर उतरना पड़ा । बिहार में विद्यार्थियों ने और लोगों ने आंदोलन प्रारंभ किया जिसका नेतृत्व सीधे-सीधे जयप्रकाश नारायण ने अपने हाथों में लिया । उधर गुजरात में भी विद्यार्थियों ने आम जनता के साथ सहयोग करके आंदोलन प्रारंभ कर दिया था । चिमन भाई पटेल की सरकार को अब तक की सबसे भ्रष्ट सरकार माना गया और उसके खिलाफ आंदोलन छेड़ा गया । इस भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन से सीधे-सीधे मोरारजी देसाई जुड़े हुए थे । कुछ और घटनाएं हो रही थीं !* *गोलखनाथ का केस आया था ।* *गोलखनाथ बनाम पंजाब सरकार केस के तहत 1967 में कोर्ट यह कह चुका था कि सरकार किसी भी प्रकार से लोगों के मूल अधिकारों के ऊपर छेड़छाड़ नहीं कर सकती । जो मौलिक अधिकार हैं, उन्हें संसद का उपयोग करके खत्म नहीं किया जा सकता । 1973 में केशवानन्द भारती बनाम केरल सरकार केस आया । उसमें भी हालांकि कुछ राहत सरकार को दी लेकिन सरकार को कहा गया कि आप संविधान के मूल ढांचे से छेड़छाड़ नहीं कर सकते । चीजों को अपने नियंत्रण में रखने की मानसिकता और अपनी सहूलियत के हिसाब से चीजों को बदल देने की मानसिकता से इस प्रकार के फैसले मेल नहीं खा रहे थे । श्रीमती इंदिरा गांधी को सूट नहीं कर रही थी यह न्याय व्यवस्था और न्यायालयों के ये फैसले । यहां भारतीय न्यायिक इतिहास की उस घटना को भी याद करना चाहिये जिसमें श्रीमती इंदिरा गांधी ने भविष्य में इस प्रकार की परिस्थितियों से सामना करने के लिये सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के पद पर बहुत जूनियर श्री ए एन रे को बैठाया । वरिष्ठ न्यायाधीशों को पीछे छोड़ दिया गया ।*
*देशभर में आंदोलन तो चल ही रहे थे कांग्रेस की राज्य सरकारों के खिलाफ ।*
*अब चलते हैं उस घटनाक्रम की ओर जिस कारण से श्रीमती इंदिरा गांधी ने इमरजेंसी लगाई ।*
*12 जून 1975 को यानी कि इमरजेंसी लगने से लगभग 13 दिन पहले तीन घटनाएं इस देश के अंदर हुईं ।*
*पहली घटना में श्रीमती इंदिरा गांधी के सहयोगी श्री डीपी धर का देहांत हो गया । इससे श्रीमती इंदिरा गांधी को बहुत भारी धक्का पहुंचा । उनके बड़े निजी सहयोगी थे श्री डी पी धर ।*
*दूसरी घटना यह हुई कि गुजरात में कांग्रेस की सरकार हार गई । चिमन भाई पटेल को लोगों ने हटा दिया ।* *आंदोलन रत लोगों की यह बहुत बड़ी जीत थी और श्रीमती इंदिरा गांधी की व्यक्तिगत हार ।*
*तीसरी जो सबसे महत्वपूर्ण घटना हुई 12 जून 1975 को, वो थी - उस दिन इलाहाबाद हाईकोर्ट के माननीय न्यायाधीश श्री जगमोहन लाल सिन्हा ने फैसला दिया कि श्रीमती इंदिरा गांधी ने जो 1971 में लोकसभा का रायबरेली से चुनाव जीता है जिसमें उन्होंने श्री राज नारायण को हराया है, वह चुनाव अवैध घोषित किया जाता है । कुल चौदह आरोप थे श्रीमती इंदिरा गांधी पर - 12 आरोपों को महत्वपूर्ण नहीं माना गया । दो आरोपों में से एक था कि उन्होंने संवैधानिक पद का दुरुपयोग करते हुए अपने चुनाव को जीतने के लिये सरकारी मशीनरी का इस्तेमाल किया है । दूसरा आरोप जो माननीय न्यायाधीश ने सही पाया वो था कि उनके चुनाव एजेंट श्री यशपाल कपूर उनके चुनाव एजेंट रहते हुए कम से कम छह दिन तक सरकारी पद पर भी काम करते रहे । फैसले में यह भी लिखा गया कि श्रीमती इंदिरा गांधी आने वाले 6 साल तक किसी भी सदन की सदस्य नहीं रह सकती - ना लोकसभा की ना राज्यसभा की ।* *इसका परोक्ष परिणाम यह हुआ कि श्रीमती इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री रहते हुए भी स्वयं ना लोकसभा में जा सकती थीं ना राज्यसभा में जा सकती थीं और ना ही वह किसी भी कार्यवाही में भाग ले सकती थीं - बड़ा भारी अपमान था यह श्रीमती इंदिरा गांधी के लिए ।*
*चारों तरफ से उनके इस्तीफे की मांग हो गई देश में आंदोलन और तेज हो गया । स्वभाविक था जब कोर्ट ने यह फैसला दे दिया कि श्रीमती इंदिरा गांधी ने भ्रष्ट तरीके से चुनाव जीता है और उनका चुनाव अवैध घोषित कर दिया तो देश के लोगों का और खासतौर से आंदोलनकारियों का तो जोश बढ़ना ही था इसलिए कि श्रीमती इंदिरा गांधी के खिलाफ उनके पास एक और हथियार आ गया था जिससे कि वो उनका इस्तीफा मांगने में अपने औजारों को और पैना कर सकें ।*
*इसके जवाब में श्रीमती इंदिरा गांधी ने इमरजेंसी लगने से 5 दिन पहले यानी 20 जून 1975 को दिल्ली में बहुत बड़ी रैली बुलाई, 10 लाख लोगों* *को दिल्ली में उन्होंने इकट्ठा कर लिया ।*
*उस रैली में श्रीमती इंदिरा गांधी ने एक बड़ा ही भावुक भाषण दिया और कहा कि देखिए मैं देश को आगे बढ़ाने के लिए दिन रात मेहनत कर रही हूं,* *गरीबी हटाओ का मेरा मिशन है, और ये विपक्ष के लोग मुझे हटाना चाहते हैं । देश को अराजकता की ओर ले जाना चाहते हैं ।*
*उसके 2 दिन बाद यानी 22 जून को विपक्ष ने भी दिल्ली में एक बड़ी रैली का आयोजन किया, जिसमें* *जयप्रकाश नारायण और मोरारजी देसाई और विपक्ष के अन्य नेताओं को भी आना था । मोरारजी देसाई दिल्ली पहुंच गए किंतु पटना में उस दिन* *बारिश हो रही थी जिसके कारण से श्री जयप्रकाश नारायण का हवाई जहाज उड़ नहीं पाया । कुछ लोगों का कहना है कि शायद यह षड्यंत्र भी रहा होगा । बहरहाल वहां पर मीटिंग हुई अच्छी खासी मीटिंग हुई उतनी बड़ी नहीं हो पाई जितनी की अपेक्षा थी लेकिन बारिश के बावजूद भी अच्छी खासी भीड़ विपक्ष ने जुटा ली थी ।*
*घटनाक्रम तेजी से चल रहा था । 23 जून को वेकेशन बेंच में श्रीमती इंदिरा गांधी का मामला गया । श्रीमती इंदिरा गांधी ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के खिलाफ वहां पर अर्जी लगाई ।* *जस्टिस वी आर कृष्णा अय्यर के पास यह मामला आया था ।*
*24 जून को श्रीमती इंदिरा गांधी ने एक बैठक बुलाई जिसमें सिद्धार्थ शंकर राय, बंसीलाल , संजय गांधी, स. स्वर्ण सिंह, आरके धवन, पी एन धर इत्यादि उस बैठक में शामिल हुए । तय किया गया कि अब इस देश के अंदर हालात कांग्रेस और कांग्रेस के खिलाफ हो गए हैं । इसका मुकाबला करने के लिये समस्त नागरिक अधिकारों को समाप्त किया जाना चाहिये, प्रेस की आज़ादी को समाप्त किया जाना चाहिये, सरकार के खिलाफ कोई धरना प्रदर्शन नहीं करने पाए । इस सब के लिये इमरजेंसी लगाई जानी चाहिए । बताते हैं कि इमरजेंसी का विचार सिद्धांत शंकर राय की ओर से आया था । उस बैठक में स्वर्ण सिंह ने आपत्ति दर्ज की कि यह तरीका गलत है इमरजेंसी लगाने का । बाद में उन्हें देश के रक्षा मंत्री के पद से हटा दिया गया और बंसीलाल को देश का रक्षा मंत्री बना दिया गया । श्रीमती इंदिरा गांधी ने तत्कालीन राष्ट्रपति *श्री फखरुद्दीन अली अहमद* *के पास इमरजेंसी लगाने वाला फरमान दस्तखत करने के लिये भेजा । थोड़ी सी नानुकर के बाद उन्होंने दस्तखत कर दिए । हालांकि इस प्रकार के आदेशों पर महामहिम राष्ट्रपति तब ही दस्तखत करते हैं जब केंद्रीय मंत्रिमंडल की सामूहिक सिफारिश की गई हो ।*
*25 जून को दिन में विपक्ष ने फिर बड़ी रैली की जिसमें जय प्रकाश नारायण और मोरारजी देसाई के साथ-साथ दूसरे विपक्ष के नेता ओम मेहता, अटल बिहारी वाजपेई, जार्ज फर्नांडीस सभी शामिल हुए । इस बड़ी और शानदार रैली के माध्यम से यह संदेश दिया गया कि श्रीमती इंदिरा गांधी अब तुम्हें प्रधानमंत्री के दायित्व से जाना होगा । कहते हैं उस बैठक के अंदर श्री जयप्रकाश नारायण ने कुछ ऐसी बातें कहीं जिसको श्रीमती इंदिरा गांधी और उसकी गुप्तचर एजेंसियों ने पकड़ लिया । हुआ ये कि श्री जयप्रकाश नारायण ने आह्वान किया कि सरकार जो गलत आदेश दे रही है उन आदेशों को सरकारी कर्मचारी और सुरक्षाकर्मी ना मानें और और यह भी कहा कि अगर श्रीमती इंदिरा गांधी ने अपने मनमाने ढंग जारी रखे और इस्तीफा नहीं दिया, इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले का सम्मान नहीं किया तो 29 जून को हम उनके घर का घेराव करेंगे । श्रीमती इंदिरा गांधी ने जयप्रकाश नारायण के यह शब्द पकड़ लिए । देश भर में जो उनके खिलाफ आंदोलन चल रहे थे, जॉर्ज फ़र्नान्डिस द्वारा रेल रोको आंदोलन चल रहा था, प्रदेशों में कांग्रेस के भ्रष्टाचार के खिलाफ लोगों का गुस्सा उबल रहा था, इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला उनके खिलाफ आ गया था । श्रीमती इंदिरा गांधी ने तो इन्हीं बातों को आधार बना कर देश में अस्थिरता पैदा होने का बहाना बनाया था । किंतु अब उन्हें दुनिया को बताने के लिये यह बहाना और मिल गया कि विपक्ष सरकारी कर्मचारियों और सुरक्षा बलों को सरकार के खिलाफ भड़का रहा है । और उन्होंने देश के अंदर असुरक्षा की बात को लेकर धारा 352 के तहत देश में 25 जून की रात को इमरजेंसी घोषित कर दी ।*
*अनुच्छेद 352 क्या है ? अनुच्छेद 352 संविधान में संविधान के निर्माताओं ने ऐसा प्रावधान किया था कि अगर देश के अंदर कोई बाहरी खतरा आता है, कोई आक्रमण आता है, कोई विद्रोह करता है, देश के अंदर कोई अराजकता पैदा होती है तो सरकार इमरजेंसी लगा सकती है ! लेकिन क्या जून 1975 में ऐसी परिस्थितियां थीं कि जिसमें श्रीमती इंदिरा गांधी कह सकती थी कि हां, देश के ऊपर खतरा था ? आंदोलन तो गांधीवादी नेता चला रहे थे जयप्रकाश नारायण और मोरारजी देसाई ! उनसे क्या खतरा हो सकता था ? सच्चाई सारी दुनिया को मालूम है । श्रीमती इंदिरा गांधी को अपनी कुर्सी बचाने थी और इसी कारण से उन्होंने अंदरूनी खतरे और अंदरूनी अराजकता का बहाना बनाकर देश पर इमरजेंसी लगाई थी, यह अब सर्वविदित हो गया था ।*
*अगले दिन से मीडिया पर कब्जा कर लिया गया । सरकार के खिलाफ कुछ नहीं लिखा जाएगा । अखबारों के दफ्तरों की लाइट काट दी गई, कुछ पत्रकारों को गिरफ्तार कर लिया गया । इंडियन एक्सप्रेस के दफ्तर को तहस नहस कर दिया गया । एक बड़े गायक थे किशोर कुमार, उन्हें एक कार्यक्रम में आकर गाना प्रस्तुत करने के लिये कहा गया ।*
*श्री किशोर कुमार ने कहा कि मैं कोई दरबारी गायक नहीं हूं और मैं वहां पर आकर गाना नहीं गाऊंगा । इस पर दूरदर्शन पर और आकाशवाणी पर श्री किशोर कुमार के गानों को प्रतिबंधित कर दिया गया । यानी जो उनके हिसाब से नहीं चलेगा, उसके खिलाफ सरकार षड्यंत्र करेगी । देश भर में एक ऐसा माहौल बन गया जिसे खौफ का माहौल कहा जाता है डर का माहौल कहा जाता है । मीडिया हाउसेस को डराया गया धमकाया गया सरकारी कर्मचारियों पर ज्यादतियां की गईं । लोगों की जबरन नसबंदी की गई, गरीब लोगों के मकानों को तोड़ा गया सफाई के नाम पर । और तमाम चीजें जो लोकतंत्र के अनुकूल नहीं है वह सब चीजें की गईं । महारानी गायत्री देवी और महारानी विजय राजे सिंधिया को जेल में डाला गया उनके साथ अमानवीय व्यवहार किया गया, उनको सोने नहीं दिया गया, इनसे कई कई घण्टे निरंतर पूछताछ की गई मानो वो कोई अपराधी हों । तमाम नैतिकताओं का उल्लंघन इस इमरजेंसी के दौरान में हुआ ।*
*श्रीमती इंदिरा गांधी ने अपनी कुर्सी बचाने के लिए इमरजेंसी तो लगा दी । अब संविधान का क्या करें ?*
*इलाहाबाद हाई कोर्ट ने जो फैसला दिया था उसका क्या करें ? ये उनके सामने चुनौती थी ।*
*अब उन्होंने निर्णय यह लिया कि संविधान का संशोधन किया जाए और संविधान का संशोधन इस प्रकार से किया जाए कि इलाहाबाद हाई कोर्ट का फैसला शून्य हो जाये ।*
*इसके लिए उन्होंने संविधान में कई संशोधन किए 38 39 40 41 42 आदि ! 42 वां संविधान संशोधन बड़ा कुख्यात संशोधन है । ये संशोधन इस प्रकार से ड्राफ्ट किया गये थे कि इलाहाबाद हाईकोर्ट के तमाम फैसले स्वतः शून्य हो जाएं । यानी श्रीमती गांधी के खिलाफ लगे आरोप उस श्रेणीं में ना रहें, जिन्हें चुनाव रद्द करने का आधार बनाया जा सके ।*
*ऐसा प्रावधान किया गया कि कोई भी देश के प्रधानमंत्री के खिलाफ कोर्ट में नहीं जा सकता ।*
*जो संशोधन किए गए उनसे एक बात साफ थी कि श्रीमती इंदिरा गांधी किसी भी कीमत पर इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला निरस्त करवाना चाहती थीं । राज्यसभा व लोकसभा में जो विपक्ष के नेता थे, वो जेल में थे, और इसलिये संशोधन पास करवाना और भी आसान हो गया था । यह भी प्रावधान किया गया था कि प्रधानमंत्री के चुनाव को देश के किसी भी कोर्ट में नहीं ले जाया जा सकता । संशोधनों को पिछली तारीखों से लागू करने का प्रावधान किया गया जिससे कि इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला स्वतः ही समाप्त हो गया ।*
*और इस प्रकार से संविधान को तहस-नहस करके अपनी बात को ऊपर रखा और इमरजेंसी के दौरान तमाम नैतिकताओं को ताक पर रख कर सत्ता में बनी रहीं ।*
*विपक्षी नेता जेल में थे ही, मीडिया को इन्होंने दबा कर रखा । किंतु सत्य की जीत तो होनी होती ही थी । सारी दुनिया में से दबाव पड़ा श्रीमती इंदिरा गांधी के ऊपर । जिस तरीके से आप लोकतंत्र की हत्या कर रही हैं, उस तरीके से नहीं चलती है लोकतंत्र की सरकारें, आपको चुनाव करवाना होगा । हालांकि 1976 में चुनाव अपेक्षित था लेकिन 1977 में चुनाव करवाया गया । जनवरी 1977 में चुनाव घोषित कर दिया गया, मार्च में सरकार बदल गई जनता पार्टी की सरकार आई पूरे उत्तर भारत से कांग्रेस का सफाया हो गया और कांग्रेस के स्थान पर जनता पार्टी की सरकार केंद्र में आई और लोगों ने श्रीमती इंदिरा गांधी को व्यक्तिगत रुप से भी हरा दिया और उनके बेटे संजय गांधी को भी हरा दिया । कहा जा सकता है कि देश में लोकतंत्र की बहाली हुई । इस प्रकार से एक तानाशाही युग का अंत हुआ । जनता पार्टी की सरकार बनने के बाद जो जो भी अवैध और जबरन संविधान के संशोधन कांग्रेस सरकार के समय में हुए थे, उन्हें पुनः संशोधित किया गया । श्रीमती इंदिरा गांधी की सरकार ने जो संविधान का मखोल उड़ाया था, उसका संज्ञान लिया गया । उसको ठीक किया गया । संविधान के 44वें तथा अन्य संशोधनों के माध्यम से एकतरफा और अधिनायकवादी प्रावधानों को ( जो कि श्रीमती इंदिरा गांधी ने संविधान में शामिल किए थे ) उन्हें समाप्त कर दिया गया । उन तमाम प्रावधानों को संशोधित कर दिया गया जिनके तहत प्रधानमंत्री के खिलाफ न्यायालय जाने से रोकने की व्यवस्था थी । प्रधानमंत्री संविधान से ऊपर है, यह अब नहीं चल सकता था । भविष्य में सरकारें अनुच्छेद 352 का दुरुपयोग करके देश में आसानी से आपात काल ना घोषित कर दें, इस प्रकार से संशोधन किए गए ।*
*शाह कमीशन का गठन किया गया जिससे कि इमरजेंसी की सच्चाई का पता लगाया जा सके । जिन लोगों पर ज्यादतियां हुईं उन का संज्ञान लिया जाए । इमरजेंसी के दौरान जो भी गैरकानूनी काम हुए उनकी विवेचना की जा सके ।*
*प्रदीप कुमार*
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