आपातकाल : में भी था भूमीगत कार्यकर्ता Emergency 1975-77






श्री लक्ष्मण जी कृष्णनानी एवं - अरविन्द सिसौदिया , जिला महामंत्री भाजपा कोटा ।


1975 गुना - आापातकाल के समय हमारा नेतृत्व ग्वालियर महाराज श्रीमंत माधवराव सिंधिया लोकसभा सांसद के नाते एवं ऊमरी राजा साहब शिवप्रतापसिंह जी सिसौदिया विधायक के नाते करते थे । मगर हमारा मुख्य नेतृृत्व भाई साहब गाविन्द जी सुखद (अगवाल) , रामजीलाल जी गोयल एवं नवलकिशोर जी विजयवर्गीय करते थे । मेरे पिताश्री भूपेन्द्र्र सिंह जी सीसौदिया उन दिनों जनसंघ के जिला मंत्री थे। पन्नालाल जी भाई साहब एवं गोपीलाल जी भाई साहब ,शिवचरन जी मंगल , हरीचरन जी तब हमारे अग्रज थे।  मेरे पिताश्री जागीरदार थे सो उन्होने गिरफ्तारी न देकर भूमिगत कार्यकर्ता के रूप में कार्य किया । तब में अरविन्द सिंह सिसौदिया जिसे लोग बडे बनाजी के नाम से जानते थे, भूमिगत कार्यकर्ता था । हमारे हाॅली का जबरिया आपरेशन तत्कालीन सरकार ने कर दिया था। जिसका विवाह भी नहीं हुआ था।  हम रात्रि शयन किसी पहाडी के वृक्ष के नीचे करते थे। में अपने पैतृक ग्राम मोडका में ही रहता था । मगर सायकिल से रोज गुना जाता था। तब हमारी मुख्यतौर पर मदद श्री लक्ष्मण जी कृष्णनानी  ने की थी।  चाचीजी का स्नेह अविस्मरणीय है। भूमिगत कार्यकर्ताओं का मिलन स्थल भी कृष्णनानी जी का फार्म हाउस हुआ रहता था। बहुत कुछ अब भूल भी गया |


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आपातकाल पर विशेष : कब और क्यों बिन्दुवार जानकारी


तत्कालीन प्रधानंमत्री श्रीमती इंदिरा गांधी द्वारा भारत में 1975 में लगाया गया आपातकाल भारत के लोकतांत्रिक इतिहास में सबसे बड़ी घटना है। आज की पीढ़ी आपातकाल के बारे में सुनती जरूर है, लेकिन उस दौर में क्या घटित हुआ, इसका देश और तब की राजनीति पर क्या असर हुआ, इसके बारे में बहुत कम ही पता है।
कब लगा आपातकाल...
* अब से 45 वर्ष पहले यानी 25-26 जून की दरम्यानी रात 1975 से 21 मार्च 1977 तक (21 महीने) के लिए भारत में आपातकाल घोषित किया गया था।

* तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के कहने पर भारतीय संविधान की धारा 352 के अधीन आपातकाल की घोषणा कर दी थी।

* स्वतंत्र भारत के इतिहास में यह सबसे विवादास्पद और अलोकतांत्रिक समय था। आपातकाल में चुनाव स्थगित हो गए थे और सभी नागरिक अधिकारों को समाप्त कर दिया गया था।

* इसकी जड़ में 1971 में हुए लोकसभा चुनाव का था, जिसमें उन्होंने अपने मुख्य प्रतिद्वंद्वी राजनारायण को पराजित किया था। लेकिन चुनाव परिणाम आने के चार साल बाद राज नारायण ने हाईकोर्ट में चुनाव परिणाम को चुनौती दी।

* 12 जून, 1975 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश जगमोहन लाल सिन्हा ने इंदिरा गांधी का चुनाव निरस्त कर उन पर छह साल तक चुनाव न लड़ने का प्रतिबंध लगा दिया और उनके मुकाबले हारे और श्रीमती गांधी के चिरप्रतिद्वंद्वी राजनारायण सिंह को चुनाव में विजयी घोषित कर दिया था।

* राजनारायण सिंह की दलील थी कि इन्दिरा गांधी ने चुनाव में सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग किया, तय सीमा से अधिक पैसा खर्च किया और मतदाताओं को प्रभावित करने के लिए गलत तरीकों का इस्तेमाल किया।

* अदालत ने इन आरोपों को सही ठहराया था। इसके बावजूद श्रीमती गांधी ने इस्तीफा देने से इनकार कर दिया। तब कांग्रेस पार्टी ने भी बयान जारी कर कहा था कि इन्दिरा गांधी का नेतृत्व पार्टी के लिए अपरिहार्य है।

* इसी दिन गुजरात में चिमनभाई पटेल के विरुद्ध विपक्षी जनता मोर्चे को भारी विजय मिली। इस दोहरी चोट से इंदिरा गांधी बौखला गईं।

* इन्दिरा गांधी ने अदालत के इस निर्णय को मानने से इनकार करते हुए सर्वोच्च न्यायालय में अपील करने की घोषणा की और 26 जून को आपातकाल लागू करने की घोषणा कर दी गई।

* उस समय आकाशवाणी ने रात के अपने एक समाचार बुलेटिन में यह प्रसारित किया कि अनियंत्रित आंतरिक स्थितियों के कारण सरकार ने पूरे देश में आपातकाल (इमरजेंसी) की घोषणा कर दी गई है।

* आकाशवाणी पर प्रसारित अपने संदेश में इंदिरा गांधी ने कहा था, 'जब से मैंने आम आदमी और देश की महिलाओं के फायदे के लिए कुछ प्रगतिशील कदम उठाए हैं, तभी से मेरे खिलाफ गहरी साजिश रची जा रही थी।

क्या हुआ आपातकाल का असर...
* इस दौरान जनता के सभी मौलिक अधिकारों को स्थगित कर दिया गया था। सरकार विरोधी भाषणों और किसी भी प्रकार के प्रदर्शन पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया गया।

* समाचार पत्रों को एक विशेष आचार संहिता का पालन करने के लिए विवश किया गया, जिसके तहत प्रकाशन के पूर्व सभी समाचारों और लेखों को सरकारी सेंसर से गुजरना पड़ता था। अर्थात तत्कालीन मीडिया पर भी अंकुश लगा दिया गया था।

* आपातकाल की घोषणा के साथ ही सभी विरोधी दलों के नेताओं को गिरफ्तार करवाकर अज्ञात स्थानों पर रखा गया। सरकार ने मीसा (मैंटीनेन्स ऑफ इंटरनल सिक्यूरिटी एक्ट) के तहत कदम उठाया।

* उस समय बिहार में जयप्रकाश नारायण का आंदोलन अपने चरम पर था। कांग्रेस के कुशासन और भ्रष्टाचार से तंग जनता में इंदिरा सरकार इतनी अलोकप्रिय हो चुकी थी कि चारों ओर से उन पर सत्ता छोड़ने का दबाव था, लेकिन सरकार ने इस जनमानस को दबाने के लिए तानाशाही का रास्ता चुना।

* 25 जून, 1975 को दिल्ली में हुई विराट रैली में जय प्रकाश नारायण ने पुलिस और सेना के जवानों से आग्रह किया कि शासकों के असंवैधानिक आदेश न मानें। तब जेपी को गिरफ्तार कर लिया गया।

* यह ऐसा कानून था जिसके तहत गिरफ्तार व्यक्ति को कोर्ट में पेश करने और जमानत मांगने का भी अधिकार नहीं था।

* विपक्षी दलों के सभी बड़े नेताओं जयप्रकाश नारायण,मोरारजी देसाई, अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी, जॉर्ज फर्नांडीज और चन्द्रशेखर को भी जेल भेज दिया गया, जो इन्दिरा कांग्रेस की कार्यकारिणी के निर्वाचित सदस्य थे।

* इसी दौरान सरकार ने संविधान में परिवर्तन कर एक ऐसी व्यवस्‍था को पनपने का आधार तैयार किया जिसको राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के मुखपत्र 'आर्गनाइजर' ने 'पारिभाषिक दाग' का नाम दिया। पत्र के संपादकीय में कहा गया है कि ये दाग उस कथित धर्मनिरपेक्ष और समाजवादी राजनीति को गढ़ रहे हैं जो कि सत्ता के राजनीतिक दुरुपयोग से लेकर वोट बैंक की राजनीति में बदल गए हैं। ये समाज में वैमनस्यता, भेदभाव को बढ़ाने के साथ-साथ जनता परिवार और उनके गुटों के नाम पर सामने आए हैं।

...और फिर चली इंदिरा गांधी विरोधी लहर...
* आपातकाल लागू करने के लगभग दो साल बाद विरोध की लहर तेज होती देख इंदिरा गांधी ने लोकसभा भंग कर 1977 में चुनाव कराने की सिफारिश कर दी।

* चुनाव में आपातकाल लागू करने का फैसला कांग्रेस के लिए घातक साबित हुआ। खुद इंदिरा गांधी अपने गढ़ रायबरेली से चुनाव हार गईं।

* जनता पार्टी भारी बहुमत से सत्ता में आई और मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बने। संसद में कांग्रेस के सदस्यों की संख्या 350 से घटकर 153 पर सिमट गई और 30 वर्षों के बाद केंद्र में किसी ग़ैर कांग्रेसी सरकार का गठन हुआ।

* कांग्रेस को उत्तर प्रदेश, बिहार, पंजाब, हरियाणा और दिल्ली में एक भी सीट नहीं मिली।

* नई सरकार ने आपातकाल के दौरान लिए गए फैसलों की जांच के लिए शाह आयोग गठित किया।

* नई सरकार दो साल ही टिक पाई और अंदरुनी अंतर्विरोधों के कारण 1979 में सरकार गिर गई। उपप्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह ने कुछ मंत्रियों की दोहरी सदस्यता का सवाल उठाया जो जनसंघ के भी सदस्य थे।
* इसी मुद्दे पर चरण सिंह ने सरकार से समर्थन वापस ले लिया और कांग्रेस के समर्थन से सरकार बनाई, लेकिन उनकी सरकार मात्र पांच महीने ही चल सकी। उनके नाम पर कभी संसद नहीं जाने वाले प्रधानमंत्री का रिकॉर्ड दर्ज हो गया।

* ढाई साल बाद हुए आम चुनाव में इन्दिरा गांधी फिर से जीत गईं।

* हालांकि जनता पार्टी ने अपने ढाई वर्ष के कार्यकाल में संविधान में ऐसे प्रावधान कर दिए जिससे देश में फिर आपातकाल न लग सके।

* इसके बाद देश में क्षेत्रीय दलों का प्रभाव बढ़ा। कांग्रेस की देखादेखी वंशवाद प्रायः सभी दलों में पहुंच गया। ऊपर से देखने पर लोकतंत्र तो है पर वह कुछ परिवारों के पास ही बंधक बनकर रह गया है।

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