कांग्रेसी विपक्ष संसद को बदतमीजी की दुकान न बनादे - अरविन्द सिसोदिया
कांग्रेसी विपक्ष से सहयोग नहीं मिलेगा मोदी सरकार को - अरविन्द सिसोदिया
लोकसभा 18 का शुभारांभ सदन की पूर्व मर्यादा भंग से प्रारंभ हुआ है, शपथ के दौरान भी मनमानी परोसी गईं... लोकसभा अध्यक्ष के लिए इतिहास में दूसरीबार पक्ष और विपक्ष के नामांकन भरे गये। 1952 में पहलीबार लोकसभा अध्यक्ष का निर्वाचन हुआ था, तब से यह परम्परा चली आ रही थी कि लोकसभा अध्यक्ष सर्वसम्मती से बनाया जाये। अर्थात लोकसभा अध्यक्ष पद के लिये चुनाव नहीं होते थे। अब इतिहास में दूसरी बार यह चुनाव होने जा रहे हैं।
शपथ के दौरान फिलिस्तीन की जय ओबेशी द्वारा बोलना तो देश और संविधान दोनों का अपमान है। यह इस बात के संकेत हैँ कि सदन कहीं बदतमीजी की दुकान न बन जाएँ। क्योंकि लोकतान्त्रिक मर्यादाओं का पतन भी देश व लोकतंत्र का अपमान होता है और इसके खतरनाक संकेत मिल रहे हैँ।
भारत को कांग्रेस मुक्त भारत बनाने की जरूरत इसीलिए है कि कांग्रेस का क्रूरतापूर्वक नेहरू खानदान मालिक बना हुआ है और गाँधी परिवार भारत को उनकी व्यक्तिगत संपत्ती मात्र समझती है। कांग्रेस ने कई मौकों पर राष्ट्रहित से समझौता किया, जिसमें देश को नुकसान पहुंचाया। देश का विभाजन हुआ और विभाजन के उपरांत पीओके बना तथा चीन का बहुत बड़ा भूभाग पर कब्जा कर लेंने दिया गया, 1971 में जब बंगलादेश बना तब भारतीय सेना नें पाकिस्तान के 90 हजार से अधिक सैनिक बंदी बना लिए थे किन्तु हमनें शिमला समझौते में अपना पीओके वापस लिए बिना उन्हें छोड़ दिया और परमाणु शक्ति बनने में भारत को लंबे समय तक रोके रखना, मनमोहन सिंह सरकार के समय नेहरू गाँधी परिवार का चीन पहुंच कर एम ओ यू करना और उनसे मोटा चंदा स्वीकार करना और राहुल गाँधी द्वारा विदेशों में जाकर भारत सरकार के खिलाफ अक्सर आरोप लगाना प्रमुख उदाहरण हैँ। जो साबित करते हैँ की कांग्रेस नें देश को कभी भी राष्ट्रहित के दृष्टिकोंण से देखा हो।
यह वही कांग्रेस है जिसको नेहरू परिवार अपनी मिल्कीयत समझता है, निजी पार्टी समझता है। जब ब्रिटेन से भारत 1947 में आजाद हो गया था। तब ब्रिटेन अपने ओपनिंवेशी देशों के संगठन राष्ट्रमण्डल की सदस्यता को लेकर उससे स्वतंत्र हुये राष्ट्रओं के साथ सक्रिय था। उसने अपरोक्ष स्वतंत्र सदस्यों से आग्रह किया था। तब नेहरूजी नें बिना संविधान सभा की अनुमति के सदस्य बने रहने के हस्ताक्षर 1949 में किये थे। जिसे स्वयं भू होना माना गया। तब संविधान सभा के कई सदस्यों नें राष्ट्रमंडल के सदस्य बने रहने के नेहरूजी के हस्ताक्षर बिना संविधान सभा की स्वीकृती के करना गलत माना। संविधान सभा में इस बात पर नाराजगी हुईं की ब्रिटेन के क्राउन की अधीनता स्वतंत्र भारत कैसे स्वीकार कर सकता है। तब कांग्रेस के सर्वेसर्वा और भारत के मनोनीत प्रधानमंत्री नेहरूजी ने संविधान सभा में एक प्रस्ताव रखवा कर लंबा भाषण देकर कॉमन्वल्थ देशों के संगठन में सम्मिलित रहने के पक्ष में प्रस्ताव पारित करवाया। यह कांग्रेस में नेहरूजी का एकाधिकारवादी व्यवहार था। इसी तरह का व्यवहार उनका जम्मू और कश्मीर को 370 के द्वारा लगभग सह राष्ट्र जैसा अस्तित्व देनें का रहा, जबकि वहाँ के शासक महाराजा हरिसिंह नें पूर्ण विलय भारत में किया था। मगर नेहरूजी अपने मित्र शेख अब्दुल्लाह को बराबरी का दर्जा देनें पर आमंदा थे। कश्मीर में संविधान उनका, झंडा उनका, प्रधानमंत्री उनका अलग था और प्रवेश के लिए भी परमिट व्यवस्था थी जो भारत का अपमान थी किन्तु एकाधिकारवादी नेहरूजी नें अपनी मनमानी की, हलाँकि नेहरूजी को गलती भी समझ आई शेख अब्दुलाह को उनने जेल में भी डाला मगर वे 370 से बाहर नहीं निकल पाये। उससे बाहर निकलने का साहस प्रधानमंत्री मोदीजी की सरकार नें किया और जम्मू और कश्मीर 370 की बेड़ियों से बाहर आगया, मुक्त हुआ।
नेहरूजी की बेटी इंदिरा गाँधी ने भी इसी एकाधिकारवाद को जारी रखा। 1969 में इंदिरा गाँधी प्रधानमंत्री थीं, संगठन के अध्यक्ष निजीलिंगप्पा थे, संगठन नें नीलम संजीव रेड्डी को राष्ट्रपति पद का प्रत्याशी बनाया, वहीं इंदिरा गाँधी नें अपना अलग निर्दलीय प्रत्याशी वीवी गिरी को खड़ा किया, अर्थात अपनी पसंद के राष्ट्रपति को समाननंतर चुनाव लड़वा कर जिताया। कांग्रेस संगठन के ही प्रत्याशी को हरवा दिया। इतना ही नहीं कांग्रेस को तोड़ कर अपनी अलग कांग्रेस पार्टी भी बनाई। अपनी पसंद के न्यायाधीश को बिना बारी के भारत का मुख्य न्यायाधीश बना दिया और जब विपक्ष के साथ जनमत खड़ा हुआ तो सारे विपक्षयों को ही जेल में डाल दिया आम नागरिकों तक के मौलिक अधिकार समाप्त कर दिए और प्रेस की आजादी भी समाप्त कर दी थी । अर्थात नेहरू वंश की भारतीयों के प्रति तानाशाही का जो रवैया है, वह उनकी आदत है। वे अपने आपको स्वामी समझ कर काम करते हैँ। वे प्रधानमंत्री मोदी जी को इसी मनोवृति के कारण सहन ही नहीं कर पा रहे हैँ।
इंदिरा गाँधी की हत्या सिख धर्म स्थल स्वर्णमंदिर पर हुईं सैनिक कार्यवाही के कारण हुईं, उनके पुत्र राजीव गाँधी जो प्रधानमंत्री थे ने दिल्ली सहित पूरे देश में सिख नरसंहार होनें दिया और उसे जायज ठहराया। उन्होंने श्रीलंका में शान्ति सेना भेज कर वहाँ रह रहे तमिलनाड़ु मूल के भारतीय लोग जिनका संगठन लिट्टे था के हजारों सदस्यों को मरवाया, जिसके परिणाम स्वरूप राजीव गाँधी पर जानलेवा हमला हुआ, इसे लिट्टे समर्थकों का आतंकी हमला माना जाता है ।
याद रहे की इंदिरा गाँधी नें चौधरी चरण सिँह की सरकार बनवाई और कुछ ही समय में गिरादी, यही राजीव गाँधी नें किया कि चंद्रशेखर की सरकार बनवाई और फिर गिरादी। यही खेल सोनिया युग में देवगौड़ा और गुजराल के साथ हुआ। देश और दूसरे दलों को मात्र खिलौना समझने वाली कांग्रेस और उसके मुखिया गांधी - नेहरू परिवार कभी भी किसी अन्य का शासन स्वीकार नहीं करता।
सोनिया गाँधी ने कहा था की वे राजनीति में नहीं आएगीं मगर उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष दलित नेता सीताराम केसरी को टांगा टोली कर कांग्रेस कार्यालय से बाहर फिकवा दिया। असहिष्णुता और एकाधिकार नेहरू जी के राजनैतिक उत्तराधिकारीयों में भी उतनी ही भरी हुईं है। इसलिए 18 वीं लोकसभा और केंद्र सरकार के विरुद्ध बचकाना और हुल्लड़वाजी का व्यवहार निरंतर देखने को मिलेगा।
राहुल गाँधी मोदीजी के विरुद्ध इस तरह से व्यवहार करते हैँ जैसे बिना चुने राहुल देश के सुप्रीम हों, वे लगातार उनके विरुद्ध अपशब्दों की छड़ी लगाये हुये हैँ। संसद में आँख मारते हैँ। मानों कि भारत की जनता के वोटों से चुना व्यक्ती मोदीजी राहुल गाँधी के गुलाम हो, हमेशा बदतमीजी की भाषा का उपयोग करते हैँ। जबकि मोदीजी को देश की जनता नें संवेधानिक प्रक्रिया से प्रधानमंत्री बनाया है। राहुल की बदतमीजी ही वह कारण है कि लगातार तीसरीबार भी कांग्रेस अंदर 100 पर है और मोदीजी प्रधानमंत्री हैँ और उनके गठबंधन एनडीए को पूर्ण बहूमत प्राप्त है।
कुल मिलाकर 18वीं लोकसभा में कांग्रेस और उसके सहयोगी दलों से कोई सद व्यवहार देखने को नहीं मिलेगा और यह भी तय है कि निरंतर बहुत हल्के किस्म की बदतमीजी पूर्ण अपमानजना व्यवहार भारत की जनता देखेगी।
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