प्रशासन तंत्र पर जवाबदेही कानून पूरे देश में लागू हो- अरविन्द सिसोदिया

प्रशासन तंत्र पर जवाबदेही कानून पूरे देश में लागू हो- अरविन्द सिसोदिया 

सवाल प्रसाशनिक जबावदेही का है ।यही लोकहित का एक महत्वपूर्ण विषय है। क्योंकि एक उदाहरण प्रत्येक आमजन को झकझोर देगा ।

1 - एक कार दूल्हा सहित 9 लोगों को लेकर आ रही है , चंबल की पुलिया कोटा शहर पर सुरक्षा संकेतक नहीं होने से, दिशा सूचक नहीं होने से, सुरक्षा उपाय का कोई साधन नहीं होने से, चंबल में गिर जाती है और सभी नौ लोगों से मर जाते हैं ।

राजनैतिक क्षेत्र में , राजनीतिक दल संवेदनाएं व्यक्त करते हैं । सामाजिक संवेदनाएं हो जाती हैं । राज्यसरकार 
दुर्घटना मुआबजा राशि के कुछ पैसा   देती हैं और बात खत्म हो जाती है।

कुछ दिन बाद उसी जगह कुछ लोग पहुंचते हैं और देखते हैं  कि अभी भी हालत ठीक वैसे के वैसे ही हैं।


उस स्थान पर पुनः दुर्घटना न हो ,इसके लिए कोई भी उपाय नहीं किया गया। जबकि अखबारों में यह बात आती रही कि उस जगह पर भविष्य में दुर्घटना ना हो उसके लिए उपाय किए जा रहे हैं । सवाल यही होता है कि एक प्रशासनिक तंत्र जिसका वेतन सर्वाधिक है । सामान्यतया  ₹50000 से अधिक तनख्वा वाले लोग काम कर रहे हैं । सरकार को और समाज को दोनों को  धोका दे रहे हैं । 

आखिर किसी की जवाब देही तो होनी ही चाहिए, कि इस तरह की दुर्घटना क्यों घटी , उसके लिए कौन जिम्मेवार था , इतनी खतरनाक जगह पर, वहां लाइटें तक नहीं थीं।  कोई सावधानी संकेतक नहीं था । सिर्फ ड्राइवर नहीं अनेक अधिकारियों व विभागों की गलती तो है ही। राज्य सरकार और नगर निगम की जिम्मेवारी तो बनती ही है। किंतु कौन-कौन जिम्मेबार है और उन पर कोई कारवाई कौन करेगा । उन्हें दंड क्यों नहीं मिलना चाहिए ? इसके लिए कोई कार्य होना चाहिए था। लेकिन किसी को कोई चिंता नहीं।

जिला कलेक्टर कोटा तक बात जाती है जिला कलेक्टर के साथ प्तैस में बातचीत भी होती है । 

जिला कलेक्टर भी तैस में आ जाते हैं किंतु वहां की स्थिति वही रही । उस  जगह दुर्घटना फिर ना घटे इसकी कोई चिंता नहीं।

राज्य सरकार ने प्रशासन तन्त्र को संवेदनशील होनें से नहीं रोका है। सरकार लोकतांत्रिक प्रक्रिया से चुनी हुई सरकार है, जिसे जनता की सरकार कहा जा सकता है । जिसे संवेदनशील एवं लोककल्याण कारी होना ही चाहिए था ।

वहीं किसी रजवाड़े की सरकार  अथवा कोई तानाशाही सरकार होती तो यह प्रशासन तंत्र यही सुधार कार्य मात्र 6  घंटे के अंदर ही प्रारंभ कर देता ।  तमाम बचाव उपाय कर देती।

 सवाल फिर वहीं रुकता है कि जवाब देही  किसकी ?

सरकारी तंत्र की गैरजिम्मेवारी के चलते, इन दिनों पूरे देश में जबावदेही तय करने की माग उठ रही है । इच्छाशक्ति में कमीं किसके । लोगों को यूपी सरकार पसन्द ही इस लिए है कि इसमें जबावदेही है, त्वरित कार्यवाही है ।


जवाब देही का कानून होना चाहिए , कार्य करने में अक्षम अधिकारियों के विरुद्ध कार्रवाई होनी चाहिए । चाहे संविधान के कर्तव्यों की पालना की बात हो या वॉच गली में नाली की सफाई की बात तो । सब जगह हे गंभीर गैर जिम्मेवारी व्याप्त है। कार्य नहीं करने की और टालने की प्रवृत्ति हो गई है । लोकतंत्र कल्याणकारी सरकार देनें में पूरी तरह विफल हो गया है । लूट तंत्र जैसी स्थिति बन गई है ।

इस स्थिति को संभालना है जनता को लोक कल्याण देना है तो जवाबदेही तय करनी पड़ेगी । चाहे विषय सर्वोच्च न्यायालय का हो , या सरपंच का । जबावदेही और टाईम बाउंड कार्य संपादन का कानून बनाना ही होगा। पूरे देश में समान रुप से लागू कराना होगा ।




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