नाटो के चक्कर में यूक्रेन की दुर्गति, भारत को सावधान रहना होगा - अरविन्द सिसोदिया

नाटो के चक्कर में यूक्रेन की दुर्गति, भारत को सावधान रहना होगा - अरविन्द सिसोदिया

अफगानिस्तान में तालिबानी शासन और अमेरिका और उसके मित्र सैनिकों की वहां से वापसी और इसके बाद तालिबानी हिंसा में मानवता को हलाल होते हमने देखा है ।  सच माना जाए तो यह अमेरिकी राष्ट्रपति जो बार्डन के नेतृत्व में अमेरिकी वर्चस्व की समाप्ति कहें या समाप्ति का शुभारंभ कहें, हो चुका है ।

 इसके बाद अब नाटो के ही चक्कर में यूक्रेन की दुर्गति हम देख रहे हैं, उसके दो प्रांतों को स्वतंत्र देश घोषित कर दिया गया है, रूस ने उसे मान्यता दे दी है और अब रूस की सेना यूक्रेन की राजधानी पर शासन करने पहुंचने वाली है । कुल मिलाकर देखा जाए तो अमेरिकी ग्रुप की , अमेरिकी शक्ति केंद्र की , यह दूसरी बड़ी हार मान सकते हैं ।

इसलिए भारत को किसी भावावेश में नहीं आना चाहिए और वेट एंड वॉच की नीति अपनानी चाहिए । क्योंकि कि  भले ही अमेरिकी ग्रुप के पास आक्रामक सैन्य शक्ति और शक्तिशाली हथियार है । मगर  उनमें एकजुटता और तेजस्वी नेतृत्व का बड़ा अभाव प्रतीत हो रहा है।

 इसलिए आने वाले समय में खतरा यह है कि साम्यवादी शक्तियां और इस्लामिक विस्तार वादी ताकतें , जिन्हें हम तालिबान मानसिकता भी कहते हैं और भी सर उठाएंगी और इनके द्वारा नए हिंसक प्रयोग ही सामने आते दिख रहे हैं । 

इस स्थिति में भारत को यह सबसे जरूरी हो गया है वे अपनी आंतरिक सुरक्षा ताकत और सैन्य क्षमताओं को भावी सुरक्षा की दृष्टि से अधिक  जवाबदेह एवं अधिक प्रखर , अधिक सक्षम और अधिक त्वरित बनाएं ।

वहीं किसी भी गलत तत्व के जमने और उसके बाद में उसे समाप्त करने में बहुत अधिक और कई गुना ताकत लगानी पड़ती है । इसलिए भारत को एक ऐसी रणनीति से काम भी करना होगा कि कोई भी गलत ताकत जम नें नहीं  पाए । संकेत मिलते ही उसको समाप्त कर दिया जाए।

 भारत को सबसे पहले अपने देश में आंतरिक और अपनी सीमाओं की सुरक्षा की चिंता करनी होगी । क्योंकि यह विश्व में यह शक्ति असन्तुलन बढ़ रहा हैं । कहीं ना कहीं यह आंच भारत की सीमा और भारत के आंतरिक सुरक्षा की तरफ भी बढ़ सकती  है।

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