अकबर को महान,क्रांतिकारियों को आतंकवादी कहनें वालों का असली चेहरा फिर बेनकाब हुआ- अरविन्द सिसौदिया maharana pratap
अकबर को महान और क्रांतिकारियों को आतंकवादी कहनें वालों का असली चेहरा फिर बेनकाब हुआ - अरविन्द सिसौदिया
कांग्रेस का एक ही मतलब है भारत का बुरा करने वाली , बुरा सोचनें वाली पार्टी। इसका एक मात्र उदेश्य भारतीय शौर्य को समाप्त करने वाली नीतियों संचालित करना है। इतिहास में इसने महान क्रांतिकारियों को आतकंवादी बताया और अकबर को महान पढ़ाया । क्यों कि इसका नेतृत्व स्वतंत्रता के बाद से अहिन्दू सोच का ही रहा है।
कांग्रेस पर जब से राजमाता और राजकुमार की अधिपत्य स्थापित हुआ तब से बहुत ही बेशर्मी से खुले आम बहूसंख्यकों के विरूद्ध नीतियां बनीं है। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने अल्पसंख्यकों का भारत के संसाधनों पर प्रथम अधिकार बताया था तो राजमाता के नेतृत्व में साम्प्रदायिक हिंसा बिल बना था, जो बहु संख्यकों को जीते जी मारनें वाला, गुलाम बना देनें वाला था।
कांग्रेस में अपना बर्चस्व बनाये रखनें के लिये अहिन्दू नेतृत्व को खुश रखना जरूरी है। इसी व्यक्ति के नम्बर बड़ते है, जो हिन्दू को अपमानित करे। हिन्दुओं के मान बिन्दुओं पर प्रहार करे । यही सब कांग्रेस के अध्यक्ष एवं पूर्व शिक्षामंत्री गोविन्द सिंह डोटासर ने किया है।
गौरतलब है कि नागौर में बृहस्पतिवार को जिला स्तरीय दो दिवसीय प्रशिक्षण शिविर में कांग्रेस कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए डोटासरा ने कहा था कि महाराणा प्रताप और अकबर की लड़ाई सत्ता संघर्ष के लिये थी, भाजपा ने इसे धार्मिक रंग दे दिया है। उन्होंने बैठक में कहा था कि ‘‘भाजपा हर चीज को हिन्दू मुस्लिम के धार्मिक चश्मे से देखती है।’’
कांग्रेस अध्यक्ष डोटासरा नागौर में कांग्रेस के जिला स्तरीय दो दिवसीय प्रशिक्षण शिविर में कांग्रेस कार्यकर्ताओं को प्रश्सिक्षित करते हुयेे कहा था कि “ महाराणा प्रताप और अकबर की लड़ाई सत्ता संघर्ष के लिये थी, भाजपा ने इसे धार्मिक रंग दे दिया है। भाजपा हर चीज को हिन्दू मुस्लिम के धार्मिक चश्मे से देखती है।’’
कांग्रेस राजकुमार के नेतृत्व में इन दिनों कांग्रेस कार्यकर्ताओं को विशेषरूप से इसबात के लिये प्रशिक्षित किया जा रहा है कि भाजपा एवं हिन्दूत्व के बारे में क्या क्या कांग्रेस दृष्टिकोंण है और क्या क्या प्रचारित किया जाना है। कुल मिला कर मुस्लिम वोट बैंक की खुशी के लिये जो जो करना या होना चाहिये कांग्रेस उसी लाईन पर काम करती है। इसीक्रम में ये भी है। मूलतः यह कांग्रेस के अर्न्तमन का प्रगटीकरण भी है।
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अकबर की कामुकता
जो लोग अकबर को महान पढ़ते हें उन्हें यह भी मालूम है कि अकबर एक कामुक और व्यभिचारी राजा था , जो राजा की भूमिका पर कलंक था । अकबर की 34 रानियाँ थी जिसमें 21 रानियाँ, रजवाड़ों के राजाओं की राजकुमारियां थीं। दुर्गावती जैसी विधवा पर भी उसने कुदृष्टि ही डाली थी , जिसकी जितनी भी निंदा की जाये वह कम होगी। संभत कांग्रेस और कई तथाकथित धर्म निरपेक्षदलों के नेतों को यही सब पसंद है, इसीलिए अकबर को कामुक और व्यभिचारी होनें के बावजूद महान पढ़ाया जाता हे। जबकि वह तो सुन्दर स्त्रियों की खोज में मीना बाजार आयोजित करवाता था। स्वंय नकाब पहन कर उसमें विचरण करता था। जिसे भी राजस्थान की एक राजपूत वीरांगना के शोर्य नें ही बंद करवाया था।
अकबर अपने दरबारियों को अपनी स्त्रियों को वहाँ सज-धज कर भेजने का आदेश देता था। मीना बाज़ार में जो औरत अकबर को पसंद आ जाती, उसके महान फौजी उस औरत को उठा ले जाते और कामी अकबर की अय्याशी के लिए हरम में पटक देते। अकबर महान उन्हें एक रात से लेकर एक महीने तक अपनी हरम में खिदमत का मौका देते थे।
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राजस्थान कांग्रेस अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा का महाराणा प्रताप पर बयान प्रताप का अपमान - पूर्व शिक्षा मंत्री देवनानी
जयपुर, 18 फरवरी । राजस्थान के पूर्व शिक्षा मंत्री और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के विधायक वासुदेव देवनानी ने महाराणा प्रताप पर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा के बयानों के लिए उनकी आलोचना की और कहा कि कांग्रेस नेता का बयान महाराणा प्रताप का अपमान है, जिन्होंने मातृभूमि के गौरव की रक्षा के लिये अपने प्राणों की आहुति दी थी।
कांग्रेस अध्यक्ष डोटासरा ने कांग्रेस आलाकमना को खुश करनें एवं मुस्लिम वोट बैंक को साधने के दृष्टिकोंण से कहा था कि ‘‘महाराणा प्रताप-अकबर की लड़ाई सत्ता संघर्ष के लिए थी और भाजपा ने इसे धार्मिक रंग दे दिया है।’’
भाजपा विधायक देवनानी ने कहा ‘‘ महात्मा गांधी ने लंदन में गोलमेज सम्मेलन में महाराणा प्रताप की बहादुरी की प्रशंसा की थी। यहां तक कि वियतनाम ने भी महाराणा प्रताप के संर्घष एवं हल्दीघाटी युद्ध से प्ररेणा लेने की बात कही। राज्य सरकार बनने के बाद महापुरुषों के गौरवशाली इतिहास को कमजोर करने की लगातार साजिश हो रही है।’’
उन्होंने ट्वीट में कहा कि “ मातृभूमि के गौरव एवं स्वाधीनता के लिये सम्पूर्ण जीवन युद्ध करके और अनेकों कठिनाइयों का सामना करके भी महाराणा प्रताप ने मेवाड़ के स्वाभिमान को गिरने नहीं दिया । ऐसे महावीर एवं बलिदानी के स्वाधीनता के संघर्ष को सत्ता का संघर्ष कहना कुंठित मानसिकता का परिचायक है।’’
देवनानी ने कहा ‘‘प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा मुस्लिम वोटबैंक की ख़ातिर लगातार महाराणा प्रताप के शौर्य एवं बलिदान का अपमान कर रहे हैं। तुष्टिकरण के चक्कर में इन्होंने मातृभूमि के गौरव के संघर्ष को सत्ता का संघर्ष कहकर महाराणा के स्वर्णिम इतिहास को कलंकित करने का प्रयास किया है।’’
महाराणा प्रताप राजस्थान में मेवाड के राजपूत शासक थे। उन्होंने 1576 में आमेर के मानसिंह प्रथम के नेतृत्व में मुगल सम्राट अकबर की सेना के साथ हल्दीघाटी की लड़ाई लड़ी थी।
अकबर की कामुकता
जो लोग अकबर को महान पढ़ते हें उन्हें यह भी मालूम है कि अकबर एक कामुक और व्यभिचारी राजा था , जो राजा की भूमिका पर कलंक था । अकबर की 34 रानियाँ थी जिसमें 21 रानियाँ, रजवाड़ों के राजाओं की राजकुमारियां थीं। दुर्गावती जैसी विधवा पर भी उसने कु द्रष्टि ही डाली थी , जिसकी जितनी भी निंदा की जाये वह कम होगी। संभत कांग्रेस और कई तथाकथित धर्म निरपेक्षदलों के नेतों को यही सब पसंद है, इसीलिए अकबर को कामुक और व्यभिचारी होनें के बावजूद महान पढ़ाया जाता हे। जबकि वह तो सुन्दर स्त्रियों की खोज में मीना बाजार आयोजित करवाता था। स्वंय नकाब पहन कर उसमें विचरण करता था। जिसे भी राजस्थान की एक राजपूत वीरांगना के शोर्य नें ही बंद करवाया था।
अकबर अपने दरबारियों को अपनी स्त्रियों को वहाँ सज-धज कर भेजने का आदेश देता था। मीना बाज़ार में जो औरत अकबर को पसंद आ जाती, उसके महान फौजी उस औरत को उठा ले जाते और कामी अकबर की अय्याशी के लिए हरम में पटक देते। अकबर महान उन्हें एक रात से लेकर एक महीने तक अपनी हरम में खिदमत का मौका देते थे।
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अकबर बालात्कारी-ऐय्याश
चित्तौड़ की पराजय के बाद महारानी जयमाल मेतावाड़िया समेत १२००० क्षत्राणियों ने मुगलों के हरम में जाने की अपेक्षा जौहर की अग्नि में स्वयं को जलाकर भस्म कर लिया। जरा कल्पना कीजिए विशाल गड्ढों में धधकती आग और दिल दहला देने वाली चीखों-पुकार के बीच उसमें कूदती १२००० महिलाएँ।अपने हरम को सम्पन्न करने के लिए अकबर ने अनेकों हिन्दू राजकुमारियों के साथ जबरनठ शादियाँ की थी परन्तु कभी भी, किसी मुगल महिला को हिन्दू से शादी नहीं करने दी। केवल अकबर के शासनकाल में 38 राजपूत राजकुमारियाँ शाही खानदान में ब्याही जा चुकी थीं। १२ अकबर को, १७ शाहजादा सलीम को, छः दानियाल को, २ मुराद को और १ सलीम के पुत्र खुसरो को।
अकबर की गंदी नजर गौंडवाना की विधवा रानी दुर्गावती पर थी
”सन् १५६४ में अकबर ने अपनी हवस की शांति के लिए रानी दुर्गावती पर आक्रमण कर दिया किन्तु एक वीरतापूर्ण संघर्ष के बाद अपनी हार निश्चित देखकर रानी ने अपनी ही छाती में छुरा घोंपकर आत्म हत्या कर ली। किन्तु उसकी बहिन और पुत्रवधू को को बन्दी बना लिया गया। और अकबर ने उसे अपने हरम में ले लिया। उस समय अकबर की उम्र २२ वर्ष और रानी दुर्गावती की ४० वर्ष थी।”
(आर. सी. मजूमदार, दी मुगल ऐम्पायर, खण्ड VII)
सन् 1561 में आमेर के राजा भारमल और उनके ३ राजकुमारों को यातना दे कर उनकी पुत्री को साम्बर से अपहरण कर अपने हरम में आने को मज़बूर किया।औरतों का झूठा सम्मान करने वाले अकबर ने सिर्फ अपनी हवस मिटाने के लिए न जाने कितनी मुस्लिम औरतों की भी अस्मत लूटी थी। इसमें मुस्लिम नारी चाँद बीबी का नाम भी है।अकबर ने अपनी सगी बेटी आराम बेगम की पूरी जिंदगी शादी नहीं की और अंत में उस की मौत अविवाहित ही जहाँगीर के शासन काल में हुई।सबसे मनगढ़ंत किस्सा कि अकबर ने दया करके सतीप्रथा पर रोक लगाई; जबकि इसके पीछे उसका मुख्य मकसद केवल यही था की राजवंशीय हिन्दू नारियों के पतियों को मरवाकर एवं उनको सती होने से रोककर अपने हरम में डालकर एेय्याशी करना।राजकुमार जयमल की हत्या के पश्चात अपनी अस्मत बचाने को घोड़े पर सवार होकर सती होने जा रही उसकी पत्नी को अकबर ने रास्ते में ही पकड़ लिया।
शमशान घाट जा रहे उसके सारे सम्बन्धियों को वहीं से कारागार में सड़ने के लिए भेज दिया और राजकुमारी को अपने हरम में ठूंस दिया ।
इसी तरह पन्ना के राजकुमार को मारकर उसकी विधवा पत्नी का अपहरण कर अकबर ने अपने हरम में ले लिया।अकबर औरतों के लिबास में मीना बाज़ार जाता था जो हर नये साल की पहली शाम को लगता था। अकबर अपने दरबारियों को अपनी स्त्रियों को वहाँ सज-धज कर भेजने का आदेश देता था। मीना बाज़ार में जो औरत अकबर को पसंद आ जाती, उसके महान फौजी उस औरत को उठा ले जाते और कामी अकबर की अय्याशी के लिए हरम में पटक देते। अकबर महान उन्हें एक रात से लेकर एक महीने तक अपनी हरम में खिदमत का मौका देते थे। जब शाही दस्ते शहर से बाहर जाते थे तो अकबर के हरम की औरतें जानवरों की तरह महल में बंद कर दी जाती थीं।अकबर ने अपनी अय्याशी के लिए इस्लाम का भी दुरुपयोग किया था। चूँकि सुन्नी फिरके के अनुसार एक मुस्लिम एक साथ चार से अधिक औरतें नहीं रख सकता और जब अकबर उस से अधिक औरतें रखने लगा तो काजी ने उसे रोकने की कोशिश की। इस से नाराज होकर अकबर ने उस सुन्नी काजी को हटा कर शिया काजी को रख लिया क्योंकि शिया फिरके में असीमित और अस्थायी शादियों की इजाजत है , ऐसी शादियों को अरबी में “मुतअ” कहा जाता है।
अबुल फज़ल ने अकबर के हरम को इस तरह वर्णित किया है-
“अकबर के हरम में पांच हजार औरतें थीं और ये पांच हजार औरतें उसकी ३६ पत्नियों से अलग थीं। शहंशाह के महल के पास ही एक शराबखाना बनाया गया था। वहाँ इतनी वेश्याएं इकट्ठी हो गयीं कि उनकी गिनती करनी भी मुश्किल हो गयी। अगर कोई दरबारी किसी नयी लड़की को घर ले जाना चाहे तो उसको अकबर से आज्ञा लेनी पड़ती थी। कई बार सुन्दर लड़कियों को ले जाने के लिए लोगों में झगड़ा भी हो जाता था। एक बार अकबर ने खुद कुछ वेश्याओं को बुलाया और उनसे पूछा कि उनसे सबसे पहले भोग किसने किया”।
बैरम खान जो अकबर के पिता जैसा और संरक्षक था,
उसकी हत्या करके इसने उसकी पत्नी अर्थात अपनी माता के समान स्त्री से शादी की ।इस्लामिक शरीयत के अनुसार किसी भी मुस्लिम राज्य में रहने वाले गैर मुस्लिमों को अपनी संपत्ति और स्त्रियों को छिनने से बचाने के लिए इसकी कीमत देनी पड़ती थी जिसे जजिया कहते थे। कुछ अकबर प्रेमी कहते हैं कि अकबर ने जजिया खत्म कर दिया था। लेकिन इस बात का इतिहास में एक जगह भी उल्लेख नहीं! केवल इतना है कि यह जजिया रणथम्भौर के लिए माफ करने की शर्त रखी गयी थी।रणथम्भौर की सन्धि में बूंदी के सरदार को शाही हरम में औरतें भेजने की “रीति” से मुक्ति देने की बात लिखी गई थी। जिससे बिल्कुल स्पष्ट हो जाता है कि अकबर ने युद्ध में हारे हुए हिन्दू सरदारों के परिवार की सर्वाधिक सुन्दर महिला को मांग लेने की एक परिपाटी बना रखी थीं और केवल बूंदी ही इस क्रूर रीति से बच पाया था।यही कारण था की इन मुस्लिम सुल्तानों के काल में हिन्दू स्त्रियों के जौहर की आग में जलने की हजारों घटनाएँ हुईं।
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