Kasturba Gandhi माता सीता स्वरूपा कस्तूरबा गांधी
यह एक बहुत बड़ा सच है कि भारत में यदि राम ढूंढें तो करोड़ों में एक दो मिलते हैं। मगर माता सीता ढूंढे तो लगभग हर हिंदू के घर में माता सीता जी के दर्शन हो जाते हैं।
यही इस संस्कृति का महान संस्कार है जो इसको जीवंत बनाए हुए हैं । इसको अमरता प्रदान किए हुए हैं और इसी संस्कार रूपी अमृत से भारतीय संस्कृति अजर और अमर है ।
जब महात्मा गांधी की धर्मपत्नी श्रीमती कस्तूरबा गांधी जिन्हें बा के नाम से जानते हैं, उनकी बात चलती है , तो सामने साक्षात सीता जी के दर्शन ही होते हैं । हिंदू संस्कृति के शौर्य,सहनशीलता, पराक्रम और त्याग का ऐसा अद्भुत नाम है , जिसनें सब कुछ अपनें में संजोया वह कस्तूरबा गांधी है।
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उनकी जीवनी जीवनी डॉट कॉम से साभार ली गईं है ....
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कस्तूरबा गांधी जीवनी
Biography of Kasturba Gandhi
पोरबंदर के गोकुलदास और व्रजकुवर कपाडिया की पुत्री के रूप में का कस्तूरबा का जन्म हुआ। 1883 में 14 साल की कस्तूरबा का विवाह, सामाजिक परम्पराओ के अनुसार 13 साल के मोहनदास करमचंद गांधी के करवा दिया गया। उनके शादी के दिन को याद करते हुए, उनके पति कहते है की, "हम उस समय विवाह के बारे में कुछ नहीं जाते थे, हमारे लिए उसका मतलब केवल नए कपडे पहनना, मीठे पकवान खाना और रिश्तेदारों के साथ खेलना था"।
क्यू की, यह एक प्रचलित परंपरा थी, ताकि किशोर दुल्हन ज्यादा से ज्यादा समय अपने माता पिता के साथ बिता सके और अपने पति से दूर रह सके। मोहनदास का कहना था की शादी के बाद वे कस्तूरबा से प्रेम करने लगे थे और वे स्कूल में भी उन्ही के बारे में सोचते थे उनसे मिलने की योजनाये बनाते रहते थे। वे कहते थे की कस्तूरबा की बाते और यादे अक्सर उनका शिकार कर जाती। जब गांधीजी ने लन्दन में 1888 में अपनी पढाई छोड़ डी, तब कस्तूरबा महात्मा गांधी जी के साथ रहने लगी और एक शिशु को भी जन्म दिया जिसका नाम हरिलाल गांधी था। कस्तूरबा को 3 और बच्चे थे, मणिलाल गांधी, रामदास गांधी और देवदास गांधी।
कस्तूरबा (Kasturba Gandhi) दृढ़ निश्चयी थी | मरणासन्न स्थिति में भी डॉक्टर के परामर्श पर मांस का शोरबा लेने के लिए तैयार नही हुयी क्योंकि मांसाहार उनके वैष्णव संस्कारो में निषिद्ध था | उन्होंने कभी दबकर रहना नही सीखा | वे निर्भीकता से अपना मत प्रकट करती थी | गृह्स्थाव्स्था में कुशल कस्तूरबा की देखरेख में ही गांधीजी के आश्रमों की व्वयस्था चलती थी | चार पुत्रो की माता कस्तूरबा (Kasturba Gandhi) को उनके व्यवहार के कारण सम्पूर्ण राष्ट्र की माता का सम्मान प्राप्त था |
"भारत छोड़ो आन्दोलन" के बाद गांधीजी गिरफ्तार कर लिए गये | उस समय सरकार की ओर से कस्तूरबा (Kasturba Gandhi) से कहा गया कि आप गिरफ्तार नही की गयी है पर चाहे तो अपने पति के साथ रहने के लिए जा सकती है | कस्तूरबा को सरकार की यह कृपा स्वीकार नही था | दुसरे दिन मुम्बई की एक विशाल सभा में उन्होंने ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध जोशीला भाषण दिया | इस पर गिरफ्तार करके उन्हें पुणे के आगा खा महल में जहा गांधीजी कैद में थे , भेज दिया गया |
जेल में बा बीमार बड़ी और 22 फरवरी 1944 को वही उनका देहांत हो गया | सरकार ने उनका शव बाहर नही आने दिया और आगा खा महल के अंदर ही उनका दाह संस्कार किया गया | गांधीजी बा को अपना गुरु मानते थे | 62 वर्ष तक दोनों साथ रहे |
गाँधी जी के साथ जीवन विवाह पश्चात पति-पत्नी सन 1888 तक लगभग साथ-साथ ही रहे परन्तु मोहनदास के इंग्लैंड प्रवास के बाद वो अकेली ही रहीं। मोहनदास के अनुपस्थिति में उन्होंने अपने बच्चे हरिलाल का पालन-पोषण किया।
शिक्षा समाप्त करने के बाद गाँधी इंग्लैंड से लौट आये पर शीघ्र ही उन्हें दक्षिण अफ्रीका जाना पड़ा। इसके पश्चात मोहनदास सन 1896 में भारत आए और तब कस्तूरबा को अपने साथ ले गए। दक्षिण अफ्रीका जाने से लेकर अपनी मृत्यु तक 'बा' महात्मा गाँधी का अनुसरण करती रहीं। उन्होंने अपने जीवन को गाँधी की तरह ही सादा और साधारण बना लिया था। वे गाँधी के सभी कार्यों में सदैव उनके साथ रहीं। बापू ने स्वाधीनता आन्दोलन के दौरान अनेकों उपवास रखे और इन उपवासों में वो अक्सर उनके साथ रहीं और देखभाल करती रहीं।
दक्षिण अफ्रीका में उन्होंने गांधीजी का बखूबी साथ दिया। वहां पर भारतियों की दशा के विरोध में जब वो आन्दोलन में शामिल हुईं तब उन्हें गिरफ्तार कर तीन महीनों की कड़ी सजा के साथ जेल भेज दिया गया। जेल में मिला भोजन अखाद्य था अत: उन्होंने फलाहार करने का निश्चय किया पर अधिकारियों द्वारा उनके अनुरोध पर ध्यान नहीं दिए जाने पर उन्होंने उपवास किया जिसके पश्चात अधिकारियों को झुकना पड़ा। सन 1915 में कस्तूरबा भी महात्मा गाँधी के साथ भारत लौट आयीं हर कदम पर और उनका साथ दिया। कई बार जन गांधीजी जेल गए तब उन्होंने उनका स्थान लिया।
दक्षिण अफ्रीका में 1913 में एक ऐसा कानून पास हुआ जिसके अनुसार ईसाई मत के अनुसार किए गए और विवाह विभाग के अधिकारी के यहाँ दर्ज किए गए विवाह के अतिरिक्त अन्य विवाहों की मान्यता अग्राह्य की गई थी। दूसरे शब्दों में हिंदू, मुसलमान, पारसी आदि लोगों के विवाह अवैध करार दिए गए और ऐसी विवाहित स्त्रियों की स्थिति पत्नी की न होकर रखैल सरीखी बन गई। बापू ने इस कानून को रद कराने का बहुत प्रयास किया।
पर जब वे सफल न हुए तब उन्होंने सत्याग्रह करने का निश्चय किया और उसमें सम्मिलित होने के लिये स्त्रियों का भी आह्वान किया। पर इस बात की चर्चा उन्होंने अन्य स्त्रियों से तो की किंतु बा से नहीं की। वे नहीं चाहते थे कि बा उनके कहने से सत्याग्रहियों में जायँ और फिर बाद में कठिनाइयों में पड़कर विषम परिस्थिति उपस्थित करें। वे चाहते थे कि वे स्वेच्छया जायँ और जायँ तो दृढ़ रहें।
जब बा ने देखा कि बापू ने उनसे सत्याग्रह में भाग लेने की कोई चर्चा नहीं की तो बड़ी दु:खी हुई और बापू को उपालंभ दिया। फिर स्वेच्छया सत्याग्रह में सम्मिलित हुई और तीन अन्य महिलाओं के साथ जेल गर्इं। जेल में जो भोजन मिला वह अखाद्य था अत: उन्होंने फलाहार करने का निश्चय किया। किंतु जब उनके इस अनुरोध पर कोई ध्यान नहीं दिया गया तो उन्होंने उपवास करना आरंभ कर दिया
मृत्यु :
9 अगस्त सन् 1942 ई. को बापू के गिरफ़्तार हो जाने पर कस्तूरबा गाँधी ने, शिवाजी पार्क, मुंबई में, जहाँ स्वयं बापू भाषण देने वाले थे, सभा में भाषण करने का निश्चय किया। किंतु पार्क के द्वार पर पहुँचने पर कस्तूरबा गाँधी गिरफ़्तार कर ली गई। कस्तूरबा गाँधी को दो दिन बाद पूना के आगा खाँ महल में भेज दिया गया। बापू गिरफ़्तार करके पहले ही वहाँ भेजे जा चुके थे। उस समय कस्तूरबा गाँधी अस्वस्थ थीं।
15 अगस्त को जब यकायक महादेव देसाई ने महाप्रयाण किया तो कस्तूरबा गाँधी बार बार यही कहती रहीं महादेव क्यों गया, मैं क्यों नहीं। बाद में महादेव देसाई का चितास्थान कस्तूरबा गाँधी के लिए शंकर-महादेव का मंदिर सा बन गया। कस्तूरबा गाँधी प्रतिदिन वहाँ जाती थीं और समाधि की प्रदक्षिणा कर उसे नमस्कार करतीं। कस्तूरबा गाँधी उस पर दीप भी जलवातीं थीं।
कस्तूरबा गाँधी का गिरफ़्तारी की रात को जो स्वास्थ्य बिगड़ा वह फिर संतोषजनक रूप से सुधरा नहीं और कस्तूरबा गाँधी ने 22 फ़रवरी सन् 1944 को अपना प्राण त्याग दिए। उनकी मृत्यु के उपरांत राष्ट्र ने 'महिला कल्याण' के निमित्त एक करोड़ रुपया एकत्र कर इन्दौर में 'कस्तूरबा गाँधी राष्ट्रीय स्मारक ट्रस्ट' की स्थापना की।
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