Ramanujacharya, scientific truth of Godईश्वर के वैज्ञानिक सत्य के ज्ञाता संत रामानुजाचार्य
Saint Ramanujacharya, the knower of the scientific truth of God
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Saint Ramanujacharya: पीएम ने किया स्टैच्यू ऑफ इक्वलिटी का अनावरण, जानिए इसकी खास बातें
Saint Ramanujacharya: पीएम मोदी ने शनिवार को हैदराबाद में 11वीं सदी के समाज सुधारक और संत रामानुजाचार्य की 216 फुट ऊंची प्रतिमा का अनावरण किया। स्टैच्यू ऑफ इक्वलिटी के उद्घाटन से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हैदराबाद के एक मंदिर में पूजा-अर्चना भी की।
प्रतिमा के अनावरण से पहले पीएम ने वैदिक अनुष्ठान और यज्ञशाला में पूजा-अर्चना की। पीएम मोदी के बाद राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद 13 फरवरी को आंतरिक कक्ष में बने संत रामानुज की स्वर्ण प्रतिमा का अनावरण करेंगे, जिसका वजन 120 किलो है।
स्टैच्यू ऑफ इक्वलिटी की खास बातें- पीएम ने जिस संत रामानुजाचार्य की प्रतिमा का अनावरण किया है वह बैठने की मुद्रा में दुनिया की दूसरी सबसे ऊंची प्रतिमा है। थाईलैंड में भगवान बुद्ध की बैठी हुई प्रतिमा को दुनिया की सबसे ऊंची मूर्ति कहा जाता है। संत रामानुजाचार्य की प्रतिमा ‘पंचलोहा’ नामक पांच धातुओं से बनी हुई है। इन धातुओं में सोना, चांदी, तांबा, पीतल और जस्ता शामिल हैं।
PM Modi in Hyderabad
संत रामानुजाचार्य की प्रतिमा को ‘भद्र वेदी’ नामक 54 फीट ऊंचे आधार भवन पर लगाया गया है। इस इमारत में एक वैदिक डिजिटल पुस्तकालय के साथ-साथ एक अनुसंधान केंद्र, एक थिएटर और श्री रामानुजाचार्य के कार्यों का विवरण देने वाली एक शैक्षिक गैलरी भी बनाया गया है। परिसर में लगभग 300,000 वर्ग फुट के क्षेत्र में रामानुजाचार्य का एक मंदिर भी बनाया गया है, जहां 120 किलो सोने की मूर्ति रखी जाएगी।
प्रतिमा की परिकल्पना श्री रामानुजाचार्य आश्रम के श्री चिन्ना जीयर स्वामी ने की है। इस संरचना की आधारशिला 2014 में रखी गई थी। यह प्रतिमा हैदराबाद के बाहरी इलाके में शमशाबाद के पास मुचिन्तल में 45 एकड़ के दर्शनीय जीयर इंटीग्रेटेड वैदिक अकादमी (JIVA) में स्थित है।
कौन थे संत रामानुजाचार्य- तमिलनाडु के श्रीपेरंबदूर में जन्मे रामानुजाचार्य एक वैदिक दार्शनिक और समाज सुधारक के रूप में जाने जाते हैं। उनका जन्म 1017 में हुआ था। उन्होंने समानता और सामाजिक न्याय की वकालत करते हुए पूरे भारत की यात्रा की थी। शास्त्रों के अनुसार वो 120 साल तक जीवित रहे थे। इनके बारे में कहा जाता है कि इन्होंने भक्ति आंदोलन को पुनर्जीवित किया था। उनके उपदेशों से हजारों लोग प्रभावित हुए थे।
संत रामानुजाचार्य के शिष्य उन्हें एक सामाजिक, सांस्कृतिक, शैक्षिक और आर्थिक भेदभाव के खिलाफ लड़ाई लड़ने वाले गुरु के रूप में जानते हैं। कहा जाता है कि कई विद्वानों ने उनके मार्ग का अनुसरण किया था। जानकारी के अनुसार अन्नामचार्य, भक्त रामदास, त्यागराज, कबीर और मीराबाई जैसे कई प्राचीन कवियों की रचनाएं संत रामानुजाचार्य से प्रेरित थीं। संत रामानुजाचार्य ने तब सबसे ज्यादा भेदभाव के शिकार लोगों सहित सभी लोगों के लिए मंदिरों के दरवाजे खोल दिए थे।
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विशिष्टाद्वैत दर्शन
रामानुजाचार्य के दर्शन में सत्ता या परमसत् के सम्बन्ध में तीन स्तर माने गये हैं - ब्रह्म अर्थात् ईश्वर, चित् अर्थात् आत्म तत्व और अचित् अर्थात् प्रकृति तत्व।
वस्तुतः ये चित् अर्थात् आत्म तत्त्व तथा अचित् अर्थात् प्रकृति तत्त्व ब्रह्म या ईश्वर से पृथक नहीं है बल्कि ये विशिष्ट रूप से ब्रह्म के ही दो स्वरूप हैं एवं ब्रह्म या ईश्वर पर ही आधारित हैं। वस्तुतः यही रामनुजाचार्य का विशिष्टाद्वैत का सिद्धान्त है।
जैसे शरीर एवं आत्मा पृथक नहीं हैं तथा आत्म के उद्देश्य की पूर्ति के लिये शरीर कार्य करता है उसी प्रकार ब्रह्म या ईश्वर से पृथक चित् एवं अचित् तत्त्व का कोई अस्तित्व नहीं हैं। वे ब्रह्म या ईश्वर का शरीर हैं तथा ब्रह्म या ईश्वर उनकी आत्मा सदृश्य हैं।
भक्ति से तात्पर्य
रामानुज के अनुसार भक्ति का अर्थ पूजा-पाठ या कीर्तन-भजन नहीं बल्कि ध्यान करना या ईश्वर की प्रार्थना करना है। इसी गहन भक्ति के तहत संत रामानुजाचार्य को मां सरस्वती के दर्शन भी प्राप्त हुए थे , सामाजिक परिप्रेक्ष्य से रामानुजाचार्य ने भक्ति को जाति एवं वर्ग से पृथक तथा सभी के लिये सम्भव माना है। इसके अलावा रामानुजाचार्य भक्ति को एक आदर्श के रूप में प्रस्तुत कर उसके लिए दार्शनिक आधार भी प्रदान किया कि जीव ब्रह्म में पूर्णता विलय नहीं होता है बल्कि भक्ति के द्वारा ब्रह्म को प्राप्त करके जीवन मृत्य के बंधन से छूटना यही मोक्ष है
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यह रिपोर्ट मूलतः 4 फरवरी 2022 की है लोकापर्ण 5 फरवरी को हुआ
- ऑप इण्डिया डाट कॉम से साभार लिया गया है।
‘Statue Of Equality’ वाले संत रामानुज
उन्होंने हर वर्ग के लोगों के बीच 'मुक्ति और मोक्ष' के मंत्रों के बारे में सार्वजनिक रूप से बताया। उनका कहना था कि ये चीजें गोपनीय नहीं रहनी चाहिए, सभी वर्गों के लोगों को इसका लाभ मिलना चाहिए।
- अनुपम कुमार सिंह
हैदराबाद में संत रामानुजाचार्य (Ramanujacharya) की प्रतिमा का उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हाथों होने वाला है, जिसे ‘Statue Of Equality’ नाम दिया गया है। 11वीं सदी के महान दार्शनिक और समाज सुधारक रामानुज (Ramanuja) की ये प्रतिमा 216 फ़ीट की है। कर्नाटक के रंगा रेड्डी जिले के मुचिंतल स्थित ‘चिन्ना जीयर स्वामी आश्रम’ में इस प्रतिमा का निर्माण किया गया है। 1017 ईस्वी में जन्मे संत रामानुजाचार्य की 1000वीं जन्म जयंती पर ये कार्यक्रम आयोजित किया जा रहा है।
इस प्रतिमा को ‘पंचलौह’ (सोना, चाँदी, ताम्बा, पीतल और जस्ता) से तैयार किया गया है। धातुओं से बनी विश्व की सबसे ऊँची प्रतिमाओं में इसका स्थान होगा। 54 फिट ऊँचे ‘भद्रा वेदी’ को इसका आधार बनाया गया है। उसके अंदर एक वैदिक डिजिटल लाइब्रेरी और रिसर्च सेंटर भी है। इसमें प्राचीन सनातन ग्रंथों से लेकर रामानुजाचार्य के जीवन से सम्बंधित दस्तावेज होंगे। आइए, आज हम आपको बताते हैं कि भक्ति काल को नई दिशा देने वाले संत रामानुजाचार्य थे कौन और उनका जीवन कैसा था।
संत रामानुजाचार्य का जीवनकाल 120 वर्षों का था। उन्होंने 1137 ईस्वी में अपने शरीर का त्याग किया था। वैष्णव समाज के प्रमुख संतों में उनका नाम लिया जाता है। 16 वर्ष की उम्र में उन्होंने विद्वान यादव प्रकाश को कांची में अपना गुरु बनाया था। हालाँकि, वो अपने गुरु के ‘अद्वैत वेदांत’ के सिद्धांतों से सहमत नहीं थे। उन्होंने तमिल के ‘अलवर’ परंपरा के संतों नाथमुनि और यमुनाचार्य के नक्शेकदम पर चलने का निर्णय लिया। उन्हें ‘विशिष्ट अद्वैत’ सिद्धांत का जनक माना जाता है।
रामानुजाचार्य ने जाति विभेद के खिलाफ अभियान चलाया और महिलाओं को सशक्त करने के लिए जीवन भर परिश्रम किया। इस्लामी आक्रांता जब भारत में पाँव पसारने के लिए बेताब थे, ऐसे समय में उन्होंने भारत की जनता के भीतर की धार्मिक भावनाओं को और प्रबल किया। उन्होंने हर वर्ग के लोगों के बीच ‘मुक्ति और मोक्ष’ के मंत्रों के बारे में सार्वजनिक रूप से बताया। उनका कहना था कि ये चीजें गोपनीय नहीं रहनी चाहिए, सभी वर्गों के लोगों को इसका लाभ मिलना चाहिए।
खुद बाबासाहब डॉक्टर भीमराव आंबेडकर ने लिखा है कि हिन्दू धर्म में समता की दिशा में संत रामानुजाचार्य ने महत्वपूर्ण कार्य किए और उन्हें लागू करने का प्रयास भी किया। उनकी 1000वीं जयंती पर डाक टिकट जारी करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसका जिक्र भी किया था। उन्होंने गैर-ब्राह्मण कांचीपूर्ण को अपना गुरु माना। उनके भोजन करने के पश्चात पत्नी द्वारा घर को शुद्ध करते हुए देख कर वो विचलित हुए। संन्यास लेकर उन्होंने जनसेवा को अपना ध्येय बना लिया।
डॉक्टर आंबेडकर लिखते हैं, “तिरुवल्ली में एक दलित महिला के साथ शास्त्रार्थ के बाद उन्होंने उक्त महिला से कहा कि आप मेरे से ज्यादा ज्ञानी हैं। इसके बाद संत रामानुजाचार्य ने उक्त महिला को दीक्षा दी और उसकी मूर्ति बना कर मंदिर में स्थापित किया। उन्होंने धनुर्दास नाम के पिछड़े समाज के व्यक्ति को अपना शिष्य बनाया। नदी में स्नान करने के बाद वो अपने इसी शिष्य के माध्यम से वापस आते थे।” अब समता का सन्देश देने वाले रामानुजाचार्य की प्रतिमा पूरे विश्व को उनके सिद्धांतों का साक्षात्कार करने की प्रेरणा देगी।
रामानुजाचार्य ने वेदों की परंपरा को भक्ति से जोड़ा। जगद्गुरु शंकराचार्य के बाद उनका ही नाम प्रमुखता से लिया जाता है। उन्होंने भक्ति आंदोलन से पिछड़े समाज को जोड़ कर कुलीन वैदिक आंदोलन के साथ उसके सेतु का निर्माण किया। उनका जन्म मद्रास से कुछ दूरी पर स्थित ‘पेरबुधूरम’ में हुआ था। उनके पिता का नाम आसुरीदेव दीक्षित और माता का नाम काँतिमति था। उनका मामा शैलपूर्ण एक संन्यासी थे और माँ के नाना यमुनाचार्य एक बड़े संत थे।
8 वर्ष की उम्र में जनेऊ संस्कार के साथ ही उन्हें वेदों की शिक्षा देने का कार्य शुरू कर दिया गया था। बाल्यकाल में ही सब उनकी बुद्धिमत्ता और स्मरणशक्ति के कायल हो गए थे। 16 वर्ष की उम्र में रक्षाम्बा नामक की लड़की से उनका विवाह हुआ था। उन्हें वैष्णव संप्रदाय की दीक्षा दी गई। श्रीरंगम में अपने निधन से पहले यमुनाचार्य ने रामानुजाचार्य के लिए तीन सन्देश छोड़े थे – वेदांत सूत्रों के भाष्य की रचना करो, आलवारों के भजन संग्रह को संकलित कर ‘पंचम वेद’ के नाम से लोकप्रिय बनाओ और मुनि पराशर के नाम पर किसी विद्वान का नामकरण करो।
इसके बाद उन्होंने कांची लौट कर उन्होंने द्रविड़ भाषा में आलवारों द्वारा रचित 4000 भजन का एक संग्रह तैयार किया। यामुनाचार्य की रिक्त गद्दी पर उन्हें ही स्थान मिला। भगवान रंगनाथ के मंदिर के प्रबंधन की पूरी जिम्मेदारी उनके कन्धों पर आ गई, जिसे उन्होंने अच्छी तरह सँभाला। मंदिर की पूरी आय को वो मंदिर के लिए ही खर्च करते थे और खुद भिक्षा से जीवन व्यतीत करते थे। उन्हें कुछ रहस्य मंत्र इस शर्त पर मिले थे कि वो किसी को बताएँगे नहीं, लेकिन एक सभा में उन्होंने ये मंत्र जनता के लिए सार्वजनिक कर दिया।
उन्होंने कहा कि जब इस मंत्र से स्वर्ग प्राप्त होता है तो ये सभी को सुनना चाहिए। वो इसके लिए संतों द्वारा दंड के लिए तैयार हो गए। उन्होंने वेदांत सूत्रों पर ‘श्री भाष्य’ की रचना की और अपने एक शिष्य कुरेश के बेटे का नाम पराशर रखा। उन्होंने भक्ति को मुक्ति का साधन बताते हुए इसे ज्ञान के ऊपर तरजीह दिया। उन्होंने भारत यात्रा कर के कई विद्वानों से सशस्त्र किया। जब वो श्रीरंगम वापस लौटे, तब तक भारत के कई हिस्सों में उनके असंख्य शिष्य हो गए थे।
उन्होंने श्रीमद्भगवद्गीता पर ही भाष्य लिखा। ‘वेदांत सार’ में उन्होंने अपने सिद्धांतों को आम लोगों को सरल भाषा में समझाया। उन्होंने ईश्वर को सगुण माना और ये भी कहा कि उसमें कोई अवगुण नहीं है। उन्होंने ईश्वर को श्रेष्ठों से भी श्रेष्ठ करार दिया। उन्होंने कहा कि दोषहीन, शुद्ध, सर्वश्रेष्ठ, निर्मल और एकरूप ब्रह्म को जानने वाले को ही सच्चा ज्ञानी बताया। उन्होंने शंकराचार्य के कई सिद्धांतों का खंडन कर के अपने सिद्धांत भी दिए। सनातन परंपरा में ऐसा होता रहा है।
रामानुजाचार्य ने अपने बोधयानवृत्ति को कंठस्थ करने वाले एक शिष्य की मदद से श्रीभाष्य की रचना की थी। उत्तर भारत में श्रीराम की आराधना के पीछे भी उनका योगदान माना जाता है। उनकी ही शिष्य परंपरा की 14वीं पीढ़ी में संत रामानंद हुए थे, जिनके शिष्य कबीर थे। रामानुज तमिल ब्राह्मण समुदाय से ताल्लुक रखते थे। कांचीपुरम के वरदराज पेरुमल मंदिर में वो वर्षों तक पुजारी रहे। वो जीवन भर वैष्णव समाज के स्तंभ रहे। ईर्ष्या और उनके बढ़ते प्रभाव के कारण कई बार उनकी हत्या की भी कोशिश हुई।
रामानुजाचार्य की 1000वीं जयंती उत्सव के मौके पर 2 फरवरी से समारोह का आयोजन किया जाएगा। इसे ‘रामानुज सहस्राब्दी समारोहम’ नाम दिया गया है। इस मौके पर रामानुजाचार्य की दो मूर्ति का अनावरण किया जाएगा। 216 फीट ऊँची मूर्ति सोना, चाँदी, ताँबा, पीतल और जस्ते की बनी हुई है। जबकि दूसरी मूर्ति मंदिर के गर्भगृह में स्थापित की जाएगी। जो रामानुजाचार्य के 120 सालों की यात्रा की याद में 120 किलो सोने से निर्मित की गई है।
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