कम्युनिष्टों की कुदृष्टि : यूक्रेन और ताईवान हडपनें की - अरविन्द सिसौदिया
यूक्रेन के दो प्रांतों को स्वतंत्र राष्ट्र घोषित किया
रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन (Vladimir Putin) द्वारा यूक्रेन के "डोनेट्स्क और लुहान्स्क पीपुल्स रिपब्लिक" को "स्वतंत्र" घोषित किए जाने और इन क्षेत्रों में सेना भेजने के आदेश के बाद तनाव और बढ़ गया है. अमेरिका ने इसका विरोध जताया है.
वहीं, पूर्वी यूक्रेन में सैनिकों और रूस समर्थित अलगाववादियों के बीच लगातार दो दिन हुई गोलाबारी से हमले की आशंका और बढ़ गई है। ... पश्चिमी देशों के नेताओं ने आगाह किया है कि रूस अपने पड़ोसी देश यूक्रेन पर हमला कर सकता है और उसने सीमा के तीनों तरफ लगभग 1,50,000 सैनिकों, युद्धक विमानों और अन्य साजो-सामान की तैनाती कर रखी है।
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कम्युनिष्टों की कुदृष्टि : यूक्रेन और ताईवान हडपनें की - अरविन्द सिसौदिया
जब से अमेरिका में राष्ट्रपति जो बाईडन ने कुर्सी संभाली है तब से विश्व का दूसरा धडा यानी कि कम्यृनिष्ट देश एवं तीसरा धडा यानी कि इस्लामिक देश, आजादी महसूस कर रहे हैं। असी क्रम में अफगानिस्तान पर तालिबान का कब्जा हो गया, वहां क्रूरता की सभी सीमायें लांघ कर , हिंसा का साम्राज्य स्थापित हो चुका है। अमेरिका दुम दबा कर चुप है। यूरोपीय देश भी चुप है।
अब इसी स्थिती का फायदा कम्युनिष्ट देश रूस और चीन उठाने में लग गये है। रूस ने घोषणा की है कि वह एक चीन ही मानता है, अर्थात चीन से इतर ताईवान का अस्तित्व नहीं स्विकारता है। जब कि ताईवान 1940 के दसक से ही अपना अलग अस्तित्व रखता है । मूल चीन ही ताईवान को माना जाता है। इधर चीन के हितों का पक्ष लेकर रूस ने यूक्रेन हड़पनें / अपने हितों की सरकार वहां स्थापित करनें की की साजिश बना रखी है। यूक्रेन विवाद दिनों दिन उग्र हो रहा है। संयुक्त राष्ट्रसंघ की अपनी सीमायें है। वह अमेरिका के बिना पंगु स्थिती में है। चीन इस समय विश्व की आर्थिक सम्प्रभुता को अपनें कब्जे में लेने के लिये जुट गया है। वह पश्चिमी देशों के बच्रसव को समाप्त कर देना चाहता है। इस मामले में भी रूस उसे साथ दे रहा है।
भारत की स्थिती बहुत आसान नहीं है। क्यों कि अमेरिका भारत को समय पर साथ नहीं दे पाता तो रूस भी ज्यादातर मामलों साम्यवादीयों के पक्ष में ही खडा नजर आता है। हलांकी रूस और चीन में भी बहुत कुछ असामान्य है। किन्तु चीन को रोकनें और उसके विरूद्ध रहना ही भारत की मुख्य आवश्यकता है। क्यों कि मूल टकराव भारत का चीन से ही निरंतर रहनें वाला है। इसलिये भारत को चीन का विरोध और रूस के प्रति मित्रता का भाव रखना ही होगा । क्यों कि आगे चल कर चीन और रूस में भी भयंकर टकराव होगा तब भारत को रूस के साथ खडे़ रहना होगा।
तीसरा विश्व युद्ध दस्तक दे रहा प्रतीत होता है।
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रूस की दोस्ती जगजाहिर है। मॉस्को और बीजिंग के बीच कई मसलों पर मतभेद हैं लेकिन दोनों देश के बीच याराना संबंध हैं। अब जब यूक्रेन को लेकर अमेरिका रूस पर प्रतिबंध लगाने की धमकी दे रहा है तो रूस और चीन के बीच दोस्ती और गहरी होती दिख रही है। किन्तु यूक्रेन और ताइवान मसले पर एक-दूसरे को सपोर्ट कर रहे रूस और चीन
श्याम शरण भारत के विदेश सचिव रहे हैं। उन्होंने चीन और रूस की दोस्ती को लेकर अपनी बात दी ट्रिब्यून के एक लेख में लिखी है। उन्होंने कहा है कि रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के वादों के बावजूद यूक्रेन पर सैन्य हमले का खतरा बना हुआ है। रूस का का मकसद कीव में रूसी समर्थक सरकार भी हो सकता है। इससे पहले रूस ने यूक्रेन को नाटो सदस्य नहीं बनाने की गारंटी मांगी है।
उन्होंने कहा है कि अगर गौर किया जाए तो ताइवान और चीन के बीच भी ऐसे ही हालात हैं। 2027 से पहले चीन ताइवान पर हमला कर सकता है। बीजिंग के पास इस क्षेत्र में अमेरिका को हारने के लिए पर्याप्त क्षमताएं हैं। चीन यूक्रेन मसले पर रूस को और रूस ताइवान मसले पर चीन को सपोर्ट करता है।
ताइवान की आजादी का विरोध करता है - रूस
बीजिंग में विंटर ओलंपिक्स जारी है। इसके उद्घाटन समारोह में रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन भी पहुंचे थे। यहां दोनों देशों की दोस्ती दुनिया ने देखी। मॉस्को ने कहा है कि वह ताइवान पर बीजिंग के रुख का पूरी तरह से समर्थन करता है और किसी भी रूप में ताइवान की आजादी का विरोध करता है। वहीं चीन ने कहा है कि वह यूरोप में कानूनी रूप से बाध्यकारी सुरक्षा गारंटी बनाने के रूस के प्रस्तावों का समर्थन करता है। रूस और चीन ने अमेरिका के नेतृत्व वाले नाटो के और विस्तार का विरोध किया है। रूस ने ताइवान को लेकर कहा है कि रूस एक-चीन सिद्धांत को मानता है और ताइवान चीन का एक अविभाज्य हिस्सा है। मॉस्को ताइवान की आजादी के किसी भी रूप का विरोध करता है।
भारत को चीन पॉलिसी पर सोचना चाहिए?
श्याम शरण ने कहा है कि रूस और चीन को लगता है कि मौजूदा जियोपॉलिटिकल हालात उन्हें अमेरिका और अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था के पश्चिमी प्रभुत्व को कमजोर करने और अपने स्वयं के हितों के अनुरूप इसे फिर से आकार देने का अवसर प्रदान करता है।
अगर यूक्रेन में रूसी और ताइवान में चीनी अपने ’मूल हितों’ पर जोर देने में सफल हो जाते हैं, तो भारत और अमेरिका की विश्वसनीयता गंभीर रूप से कम हो जाएगी। क्वाड जैसे ग्रुप पर भी सवाल उठेंगे। ऐसे में भारत को चीन के प्रभुत्व वाले एशिया को वास्तविकता बनने से रोकने के लिए अन्य तरीकों के बारे में सोचना पड़ सकता है।
U.S. President Joe Biden, Russian President Vladimir Putin, and Chinese President Xi Jinping
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