कमजोर अमेरिकी नेतृत्व के चलते अभी नहीं रूकेगे पुतिन - अरविन्द सिसौदिया

कमजोर अमेरिकी नेतृत्व के चलते अभी नहीं रूकेगे पुतिन - अरविन्द सिसौदिया

यह मेरा व्यक्तिगत मत है कि साम्यवादी विचारधारा के लोग समय का फायदा उठानें में बहुत तेज होते है। यही हमें वर्तमान में चीन व रूस के द्वारा देखनें में मिल रहा है। अफगानिस्तान में जैसे ही अमेरिका कमजोर पडा, सबसे पहले तालिवान की हिमाकत को चीन और रूस वहां पहुंचें । यहीं से गठजोड प्रारम्भ हुआ जिसमें रूस ने ताईवान को चीन का हिस्सा माननें की घोषणा की और इधर यूक्रेन के दो प्रांतों को स्वतंत्र देश घोषित कर दिया। यूक्रेन पर हमला भी कर दिया।

शी जिंगपोंग और पुतिन जानते हैं कि इस समय अमेरिका में कमजोर इच्छाशक्ति का राष्ट्रपति है, भोगोलिक फायदे उठानें का यही सही समय है। इसलिये पुतिन अभी नहीं रूकेगे। वे अपने मंसूबे पूरे कर के ही रहेंगे। 

Russia Ukraine Crisis

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यूक्रेन की पूरी कहानी...

पुतिन कब्जा क्यों करना चाहते हैं, क्या तीसरे विश्व युद्ध का कारण बनेगा रूस?


रूस यूक्रेन संकट की वास्तिव शुरुआत 2014 में हुई थी। तभी से दोनों देशों के बीच संबंध सही नहीं है। 2019 में यूक्रेन ने अपने संविधान में संशोधन कर रूस के गुस्से को और ज्यादा बढ़ा दिया था। जिसके बाद से रूसी सेनाएं समय-समय पर यूक्रेनी बॉर्डर पर तनाव बढ़ाती रही हैं। जानिए यूक्रेन के जन्म से लेकर अबतक की पूरी कहानी।
 
यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोडिमिर जेलेंस्की और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन
मॉस्को: रूस-यूक्रेन संकट (Russia Ukraine Crisis) अब तीसरे विश्व युद्ध (Third World War) की ओर बढ़ता दिखाई दे रहा है। रूस के खिलाफ अमेरिका समेत नाटो NATO Countries) के सभी सदस्य देश पूरी ताकत के साथ खड़े हैं। वहीं, रूस का समर्थन करने वाले देशों की भी कोई कमी नहीं है। यूक्रेन के समर्थन में अमेरिका, ब्रिटेन, जापान समेत कई देशों ने तो कठोर प्रतिबंधों (Sanctions on Russia) की झड़ी लगा दी है। जर्मनी ने तो रूस की गैस पाइपलाइन नॉर्ड स्ट्रीम-2 पर ही रोक का ऐलान कर दिया है। इसके बावजूद पुतिन न तो झुकने को तैयार हैं और न ही अपने फैसले से पीछे हटने को। इसके इतर रूस ने तो यूक्रेन के दो इलाकों को स्वतंत्र देश की मान्यता तक दे दी है। खुद व्लादिमीर पुतिन ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर यूक्रेन पर रूसी भाषी लोगों के नरसंहार करने का आरोप लगाया है। उन्होंने यह भी मांग की है कि यूक्रेन को खुद को सैन्यीकरण करने से रोकना चाहिए। ऐसे में सवाल उठता है कि यूक्रेन की पूरी कहानी क्या है और व्लादिमीर पुतिन इस छोटे से देश को कुचलना क्यों चाहते हैं।

यूक्रेन का जन्म कैसे हुआ?
रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन आधुनिक यूक्रेन को बोल्शेविक यानी एक कम्युनिस्ट आविष्कार मानते हैं। बोल्शेविक रूसी कम्यूनिस्ट पार्टी का मार्कसिस्ट ग्रुप है, जिसकी स्थापना व्लादिमीर लेनिन ने की थी। यूक्रेनी राज्य का विचार रूसियों के लिए एक कल्पना है, जो वास्तव में कोई देश है ही नहीं। ऐसे में यूक्रेन पर हमला करना किसी संप्रभु देश में सैन्य हस्तक्षेप करने जैसा कुछ नहीं है। सोमवार को अपने भाषण के दौरान भी पुतिन ने आधुनिक यूक्रेन कहने में काफी सावधानी बरती थी। ऐतिहासिक रूप से, आधुनिक यूक्रेन के कुछ हिस्से काफी समय तक शाही रूस के अधीन थे। वहीं, कुछ अन्य हिस्से लिथुआनिया के ग्रैंड डची के कब्जे में भी रहे। लिथुआनिया का ग्रैंड डची पोलैंड और ऑस्ट्रो-हंगेरियन साम्राज्य का हिस्सा था। 1600 के दशक के अंत में यूक्रेन और क्रीमिया के कई इलाके तुर्की के ओटोमन साम्राज्य के जागीरदार थे। लेकिन एक राजनीतिक इकाई के रूप में यूक्रेन का इतिहास वाइकिंग्स के साथ शुरू हुआ।

वाइकिंग्स और कीव का वाइकिंग्स से क्या संबंध है?
यूक्रेन और रूस एक मध्ययुगीन वाइकिंग फेडरेशन कीवन रस (Kievan Rus) से जुड़े हुए हैं। इस फेडरेशन ने रूस के नोवगोरोड से कीव तक शासन किया था। इनके शासन वाले क्षेत्र में रूस, बेलारूस और यूक्रेन का हिस्सा शामिल है। कीवन रस का अर्थ है रूस की भूमि। रूस शब्द की उत्पत्ति भी कीनव रस के Rus से हुई है। 9वीं शताब्दी में नॉर्समेन एथनिक ग्रुप के लोग पूर्वी तटीय स्वीडन में रोस्लागेन से नोवगोरोड पहुंचे। उन्होंने नोवगोरोड में रुरिकिड राजवंश की स्थापना की। इस राजवंश ने 16वीं शताब्दी में रूस के पहले जार इवान द टेरिबल से पहले 700 साल तक शासन किया। 1237-1242 के बीच मंगोल आक्रमण ने कीवन रस को काफी नुकसान पहुंचाया। मंगोलो ने इन लोगों के काफी बड़े इलाके पर कब्जा भी कर लिया था।

यूक्रेन रूसी शाही झंडे के नीचे कब आया?
1648 ई. में पोलिश-लिथुआनियाई राष्ट्रमंडल के खिलाफ एकोसैक विद्रोह ने कोसैक हेटमैनेट की स्थापना की थी। इसके बाद इस क्षेत्र पर कब्जे के लिए पोलैंड, क्रीमिया, रूस, ओटोमन साम्राज्य के बीच 30 साल तक खूनी युद्ध हुआ। बार-बार युद्ध के कारण पीटर द ग्रेट को अहसास हुआ कि उन्हें इस इलाके में शांति स्थापित करने के लिए कोसैक हेटमैनेट को कुचलना होगा। पीटर द ग्रेट के इस सपने को कैथरीन द ग्रेट ने 1764 में अंजाम तक पहुंचाया। उन्होंने यूक्रेन पर कब्जा कर उसे रूसी साम्राज्य के अधीन कर दिया। जिसके बाद रूसी साम्राज्य ने 1783 में रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण क्रीमिया क्षेत्र पर कब्जा कर लिया।

यूक्रेन संकट की शुरूआत कैसे हुई?
सोवियत संघ के विघटित होने के बाद रूस और यूक्रेन के संबंध काफी मधुर थे। यूक्रेन की विदेश नीति पर रूस का गहरा प्रभाव था। यूक्रेन की सरकार भी रूसी शासन के आदेश पर ही काम करती थी। लेकिन, बिगड़ती अर्थव्यवस्था, बढ़ती महंगाई और अल्पसंख्यक रूसी भाषी लोगों के बहुसंख्यक यूक्रेनी लोगों पर शासन ने विद्रोह की चिंगारी सुलगा दी। 2014 में यूक्रेनी लोगों के विद्रोह ने संसद को अपने रूसी समर्थक राष्ट्रपति विक्टर यानुकोविच को हटाने के लिए बाध्य कर दिया। उसी साल यूक्रेनी लोगों ने अमेरिका और यूरोप समर्थक नेता पेट्रो पोरोशेंको को राष्ट्रपति चुन लिया। तब से विक्टर यानुकोविच रूस में निर्वासन काट रहे हैं। 2019 में यूक्रेन ने संविधान में संशोधन कर खुद को यूरोपीय संघ और नाटो सैन्य संगठन का हिस्सा बनने का ऐलान कर दिया। बस यही बात रूस को नागवार गुजरी और उसे लगने लगा कि यूक्रेन उनके लिए भविष्य में खतरा बन सकता है।

पूर्वी यूक्रेन पर कब्जा क्यों करना चाहते हैं पुतिन?
यूक्रेन रूस और पश्चिमी देशों के बीच बफर जोन का काम करता है। इसके बावजूद यूक्रेन ने 1990 के समझौते को तोड़कर नाटो का सदस्य बनने का फैसला किया। यूक्रेन को लगता है कि वह यूरोपीय संघ और नाटो का हिस्सा बनकर अपने देश की अर्थव्यवस्था को सुधार सकता है। वहीं, रूस को डर है कि अगर यूक्रेन नाटो का सदस्य बन गया तो दुश्मन देशों की पहुंच उसकी सीमा तक हो जाएगी। दूसरी दलील यह है कि पूर्वी यूक्रेन कोयले और लोहे से समृद्ध इलाका है। यहां की भूमि भी काफी उपजाऊ है। पुतिन की नजर पूर्वी यूक्रेन के खदानों पर भी है।

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