खालिस्तान मुद्दे पर कुछ राजनैतिक दलों की भूमिका की समीक्षा भी आवश्यक - अरविन्द सिसौदिया
खालिस्तान मुद्दे पर कुछ राजनैतिक दलों की भूमिका की समीक्षा भी आवश्यक - अरविन्द सिसौदिया
It is also necessary to review the role of some political parties on Khalistan issue - Arvind Sisodia
कनाडा सरकार ने वोट बैंक के स्वार्थ में डूबे प्रधानमंत्री टू्डो ये न भूलें कि खालिस्तान मुद्दे पर भारत ने बहुत कुछ खोया है। एक प्रधानमंत्री , एक मुख्यमंत्री सहित बहुत से देशभक्तों को खोया है। इस क्रम में हुई हिंसा में हजारों निर्दोष सिखों नें जीवन को खोया है। इसलिये अब कनाडा को इस तरह की हिंसा फैलानें के लिए स्वतंत्र नहीं छोडा जा सकता । उसे किसी तरह के भ्रम फैलानें के लिए भी स्वतंत्र नहीं छोडा जा सकता । भारत को प्रखरता से इस मामले में अपना प्रतिरोध व्यक्त किया है यह करना ही चाहिए।
क्यों कि कम - ज्यादा कनाडा की धरती से खालिस्तान के नाम पर हिंसा फैलानें वालों का मौका और सुविधायें मिलती ही रहीं है। वहां इस मूमेंट को जगह दी गई है। जबकि इस अभियान में मेनली / मुख्यतौर पर आतंकवाद की जननी जन्म भूमि पाकिस्तान की भूमिका सर्वविदित है। यह सब कनाडा भी जानता है, मगर वह अपने यहां अपने समर्थक वोट बैंक की गैर कानूनी वृद्धि के लिए , खालिस्तान समर्थकों के साथ खडा है। उनके ऐजेण्डे और उनके टूलकिट का हिस्सा बन गया है। यह सब नहीं चलेगा, न ही स्विकार्य होगा।
भारत को कथित किसान आन्दोलन के समय ही सचेत होना चाहिये था और तब ही इन सभी कनाडाई प्लानों को एक्सपोज करना चाहिये था। चुनावों में भाजपा विरोधी माहौल बनाने के लिए जो टूलकिट चल रहे हैं । यह उसी गणित से चलाये जाते हैं। उत्तरप्रदेश व पंजाब के चुनाव के पहले यह सब चलाया गया, पंजाब ले लिया गया। अब 2023 और 2024 के चुनावों पर दृष्टि है। भारत के कुछ राजनैतिक दलों की गतिविधियों पर देशहित में कडी नजर रखी जानी चाहिए। देश विरोधी गतिविधियों में संलिप्तता पर भारत का संविधान केन्द्र सरकार को अनेकों शक्तियां प्रदान करती हैं। राष्ट्ररक्षा के लिए इनका उपयोग करना चाहिये। इस विषय पर खुल कर बहुत कुछ लिखा व वोला नहीं जा सकता, मगर हमनें प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री एवं अन्य कई बडे देशभक्त खोये हैं। इसलिए कोई ढील भी नहीं दी जानी चाहिये।
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इंदिरा गांधी की हत्या के जश्न पर भड़के विदेश मंत्री जयशंकर, बोले- ये कनाडा के लिए ठीक नहीं Jaishankar Anger over Canada पूर्व पीएम इंदिरा गांधी की हत्या का जश्न मनाने की खबरों पर विदेश मंत्री एस जयशंकर का बयान सामने आया है। जयशंकर ने कहा कि कनाडा में इस तरह की घटना दोनों देशों के लिए सही नहीं है।
- 8 जून 2023
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फन उठाता खालिस्तानी दुष्प्रचार
- Aditya Chopra
खालिस्तान यानी खालसाओं का अलग देश। इस आंदोलन के तार वैसे तो आजादी से 18 साल पहले 1929 में हुए लाहौर अधिवेशन से जुड़े थे, जिसमें शिरोमणि अकाली दल ने सिखों के लिए अलग राज्य की मांग की थी। आजादी के बाद भी जब देश का विभाजन हुआ तो इस मांग को हवा मिली। पंजाबी सूबा आंदोलन तो 1947 में ही शुरू हो गया था। 1966 में जब इंदिरा गांधी की सरकार थी, तब पंजाब तीन टुकड़ों में बंटा। सिखों की बहुलता वाला हिस्सा पंजाब, हिन्दी भाषियों की बहुलता वाला हरियाणा और तीसरा चंडीगढ़ बना।
1980 के दशक में खालिस्तान मूवमेंट हिंसक होती गई। बड़ी मुश्किल से पंजाब के आतंकवाद पर काबू पाया गया। लेकिन इस दौरान हमने बहुत कुछ खोया। किसी ने परिवार खोया, किसी का सुहाग उजड़ा तो किसी की गोद सूनी हुई। जघन्यतम नरसंहार हुए जिनमें बसों से निकालकर हिन्दुओं को एक पंक्ति में खड़ा कर उन्हें मौत के घाट उतारा गया। उग्र खालिस्तान आंदोलन के दौरान पहली हत्या मेरे परदादा अमर शहीद लाला जगत नारायण की हुई थी, उसके बाद मेरे दादा रमेश चन्द्र की हत्या हुई।
1984 में तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी की हत्या उन्हीं के सिख अंगरक्षकों ने की, जिसके बाद देशभर में सिख विरोधी दंगे हुए जिसमें हजारों सिख मारे गए। 1995 में तत्कालीन पंजाब के मुख्यमंत्री बेअंत सिंह की हत्या कर दी गई। इसके बाद से पंजाब काफी हद तक शांत रहा लेकिन हाल ही में दुबई से आकर एक संगठन का मुखिया बनकर सिख युवक अमृतपाल सिंह ने खालिस्तान की विचारधारा को फैलाना शुरू कर दिया। चंद महीनों में ही वह सिखों का हीरो कैसे बन गया इसके पीछे भी कई रहस्य हैं, जिसकी परत प्याज के छिलकों की तरह उधड़ रही है।
सवाल यह है कि आतंकवाद को दृढ़ इच्छा शक्ति से खत्म किया जा सकता है, लेकिन विचारधारा को खत्म करना सहज नहीं होता। किसी समुदाय की विचारधारा को खत्म करने के लिए पीढ़ियां बदल जाती हैं। पंजाब ही नहीं देशभर में सिख समुदाय सत्ता से संतुष्ट है और उन्हें नहीं लगता कि उनके साथ तीसरे दर्जे के नागरिक के तौर पर व्यवहार हो रहा है। पंजाब के सिख खालिस्तान की विचारधारा के समर्थक नहीं हैं। सिख समुदाय मेहनत और प्रगति में विश्वास करता है। लेकिन चन्द भ्रमित युवक पाकिस्तान की खुफिया एजैंसी आईएसआई और विदेशों में बैठे खालिस्तानी तत्वों की मदद से पंजाब का माहौल बिगाड़ने में लगे हुए हैं। इस बात की पुष्टि भगौड़े अमृतपाल सिंह के आईएसआई और विदेशों में सक्रिय आतंकी संगठनों के आकाओं से सम्पर्क के सबूत मिलने से हो जाती है। पंजाब में अमृतपाल सिंह और उसके साथियों पर क्रैकडाउन होते ही विदेशों में सक्रिय भारत विरोधी तत्व बौखला गए हैं। लंदन स्थित भारतीय उच्चायोग और उसके बाद अमेरिका में सैनफ्रांसिस्को में भारत के वाणिज्य दूतावास को खालिस्तान समर्थकों ने जिस तरह निशाना बनाया और भारतीय तिरंगे का अपमान किया उसे सहन नहीं किया जा सकता।
कनाडा और आस्ट्रेलिया में भी खालिस्तानी तत्व बेलगाम हैं। कनाडा और आस्ट्रेलिया में एक के बाद एक हिन्दू मंदिरों को निशाना बनाया जा रहा है। यद्यपि भारत सरकार ने समय-समय पर इन देशों से कड़ा प्रोटैस्ट जताया है, लेकिन इन देशों में भारतीय हितों को चोट पहुंचाने वाले खालिस्तानियों के खिलाफ कार्रवाई में ढिलाई बरती जा रही है। कनाडा में लगभग 14 लाख भारतीय हैं जिनमें से अधिकांश सिख हैं। वहां के राजनीतिक दलों को वोट चाहिए, इसलिए अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर खालिस्तानी खुलकर खेल रहे हैं। ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक भारतीय मूल के हैं। वे भी खालिस्तानी तत्वों के खिलाफ ठोस कार्रवाई करते दिखाई नहीं दे रहे। अमेरिका और आस्ट्रेलिया में भी ढील ही बरती जा रही हैै। विदेशों में पाकिस्तान की आईएसआई खालिस्तानी तत्वों को फंडिंग कर रहे हैं। इस तरह खालिस्तानी दुष्प्रचार का फन फैल रहा है। इस फैलते फन का प्रभाव यह हो रहा है कि जैसे भारत में सिखों के साथ अन्याय हो रहा है, जबकि वास्तव में ऐसा नहीं है। लेकिन इस दुुष्प्रचार का शिकार कट्टरपंथी युवा हो सकते हैं। पाकिस्तान में बैठे खालिस्तानी तत्व जो कंटैंट प्रसारित कर रहे हैं वह काफी विषाक्त है।
भारत सरकार को विदेशों में खालिस्तानी तत्वों पर लगाम कसने के लिए दबाव बनाना होगा। भारत में सिख गुरुओं ने देश की एकता, अखंडता और भारतीय संस्कृति के साथ धर्म की रक्षा की लेकिन कुछ लोग विदेशी ताकतों के बहकावे में आकर गुरुओं के भारत की एकता और अखंडता पर आंच डाल रहे हैं। खालिस्तानी आंदोलन देश विरोधी है। आज तक खालिस्तान की मांग क्यों है, इसका औचित्य भी स्पष्ट नहीं है। हमारी लड़ाई धार्मिक कट्टरता से है, जो भ्रमित युवाओं को बंदूकें उठाने के लिए उकसाती है। भारत के सिख इन साजिशों को समझें और खालिस्तानी तत्वों को अलग-थलग करें, अन्यथा यह फन बहुत जहर फैलाएगा।
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इंदिरा गांधी की हत्या के जश्न पर भड़के विदेश मंत्री, बोले- ये कनाडा के लिए उचित नहीं
Deepak Shukla June 8, 2023 breaking news,
पूर्व पीएम इंदिरा गांधी की हत्या का जश्न मनाने की खबरों पर विदेश मंत्री एस जयशंकर की तीखी प्रतिक्रिया सामने आई है। जयशंकर ने कहा कि कनाडा में इस तरह की घटना दोनों देशों के लिए ठीक नहीं है।
News Jungal Desk: कनाडा में पूर्व पीएम इंदिरा गांधी की हत्या का जश्न मनाने की खबरों पर विदेश मंत्री एस जयशंकर का बयान सामने आया है। जयशंकर ने कहा कि कनाडा में इस तरह की घटना दोनों देशों के मधुर रिश्तों के लिए सही नहीं है।
कनाडा को जयशंकर ने दी चेतावनी
जयशंकर ने इशारों ही इशारों में कनाडा को चेतावनी देते हुए कहा – ”मुझे लगता है कि इसमें एक बड़ा मुद्दा शामिल है और स्पष्ट रूप से हमें वोट बैंक की राजनीति से ऊपर उठना होगा। मुझे लगता है कि ये एक बड़ा मुद्दा है कि क्या कनाडा अपनी जमीन अलगाववादियों, चरमपंथियों, हिंसा की वकालत करने वाले लोगों को दे रहा है। मुझे लगता है कि यह रिश्तों के लिए अच्छा नहीं है और विशेषकर कनाडा के लिए तो बिल्कुल सही नहीं है।”
कनाडा के उच्चायुक्त का बयान आया सामने
उधर, भारत में कनाडा के उच्चायुक्त कैमरून मैके ने इस घटना की निंदा की है। उन्होंने कहा कि वह अपने देश में उस घटना की खबरों से पूरी तरह हैरान हैं कि कनाडा में भारतीय प्रधानमंत्री की हत्या का “जश्न” मनाया गया। मैके ने एक ट्वीट में कहा, “कनाडा में नफरत या हिंसा के महिमामंडन के लिए कोई भी जगह नहीं है। मैं इन गतिविधियों की कड़ी निंदा करता हूं।”
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