शहीदे आजम भगत सिंह के प्रेरणा स्त्रोत Shaheed Azam Bhagat Singh



Source of inspiration of Shaheed Azam Bhagat Singh
शहीदे आजम भगत सिंह के प्रेरणा स्त्रोत
shaheede aajam bhagat sinh ke prerana strot
Bhagat Singh

शहीदे आजम भगत सिंह के प्रेरणा स्त्रोत 

Shaheed Azam Bhagat Singh

 सरदार भगत सिंह के प्रेरणा स्त्रोत 
(शहीदे आजम भगत सिंह विशेषांक, १ नवम्बर २००७ अंक / पाथेय कण ) से
- अरविन्द सिसौदिया 
कभी वो दिन भी आएगा कि आजाद हम होंगे ,
ये अपनी ही जमीन होगी , यह अपना आसमां होगा |
शहीदों कि चिताओं पर , लगेंगे हर बरस मेले ,
वतन पर मरने  वालों  का, यही बांकी निशां होगा |
         
             ये पंक्तियाँ तो १९३० के दौर की हैं, अगर आज भगत सिंह जीवित होते तो सौ वर्ष से अधिक के होते ...!  इतिहास कहता है कि गांधीजी और कांग्रेस चाहती तो ये क्रांतिवीर फांसी से बचाए जा सकते थे और यह भी सच है कि गांधी जी ने क्रांतिवीरों पर हो रहे अंग्रेजी शासन के अत्याचारों पर घोर उपेक्षा बरती | इनके मानवीय अधिकारों के लिए कभी व्रत , भूख हड़ताल , सत्याग्रह आयोजित नहीं किये गए | कलम भी आज यह लिखनें को मजबूर है कि क्रांतिवीरों पर हुए अत्याचारों को गांधी जी और कांग्रेस  की शह थी ...!

            १९४७ से १९६४ तक शासन में रहते हुए पं. नेहरु भगत सिंह और साथी क्रांतिकारियों की समाधी नहीं बना सके , जलियांवाला बाग़ को स्मारक नही बना सके | जिस स्थान पर शहीदों को फांसी लगी थी , उसे पाकिस्तान में संरक्षित नहीं करवाया | लन्दन में इण्डिया हॉउस जो भारतीय क्रांतिकारियों की ऐतिहासिक धरोहर था , नेहरू सरकार के अनिर्णय के कारण अंग्रेजों ने हड़प लिया | जब श्रीमती इंदिरा गांधी शासन में आई , तब उन्होंने उपरोक्त दोनों स्मारक बनवाये | सुभाष की राख तो आज भी गंगा में बहाई जानें की प्रतीक्षा कर रही है |
            ख़ैर , नेताओं की बात छोड़ कर इस पर विचार करें कि सरदार भगत सिंह कैसे शहीदे-आजम बनें ? किनका प्रभाव उनके जीवन पर पड़ा, कौन उनको प्रेरणा देने वाले थे ..?
वीरों की जननी पंजाब...
        प्रथम प्रभाव तो पंजाब की भूमि का था, यह भूमि वीरों की जननी थी, यहाँ लाखों वीरों ने जन्म लिया और हजारों ने बलिदान किया | बलिदान भी ऐसा कि दूसरी मिसाल नहीं मिलाती | गुरु अर्जुनदेव जी कि शहादत , गुरु तेगबहादुर जी की शहादत, गुरु गोविन्दसिंह  जी की शहादत, भाई मतिदास जी जिन्हें शत्रुओं  ने आरे से चीरा था , भाई दयाल जी जिन्हें खौलते पानी में बिठा कर शहीद किया था , भाई सतिदासा जी जिन्हें रुई में लपेट कर जिन्दा जलाया  था , ९ वर्ष की आयु के साहिबजादा जोरावर सिंह और ७ वर्ष की आयु के साहिबजादा फ़तेह सिंह जी ; जिन्हें जिन्दा दिवार में चुनवा दिया था |
        शहीद बाबा बंदा बैरागीजी , भाई विचित्र सिंह जी, शहीद तारा सिंह जी , शहीद मनीसिंह जी , शूरवीर शहीद भाई सुखसिंह जी - महताब सिंह जी , शहीद बाबा बोता सिंह जी - गरसा सिंह जी , शहीद भाई सुबेगसिंह जी  - शाहबाज सिंह जी , बुजुर्गवार जनरैल बाबा दीप सिंह जी , कुका आन्दोलन , ग़दर पार्टी , अकाली आन्दोलन , जलियाँवाला बाग़,... किन किन की गिनती करोगे..? पंजाब की जमीन पर वीरों कि संख्या इतनी  है कि गिनती कम पड जाती है | इन्ही में लाला लाजपतराय , शहीद भगत सिंह और शहीद  उधम सिंह भी थे ! स्वामी राम तीर्थ भी थे !
भक्ता का बेटा भगत सिंह...
        भगत सिंह कि माता बहुत धर्म प्रेमी थीं | उन्हें लोग भक्ता के उप नाम से भी पुकारते थे |  उनका जन्‍म 28 सितंबर 1907 में एक देश भक्‍त क्रान्तिकारी परिवार में हुआ था। सही कह गया कि शेर कर घर शेर ही जन्‍म लेता है। वे अक्सर भगत सिंह को बताया करतीं थीं कि एक धोकेबाज के कारण गुरु गोविन्द सिंह जी के ९ वर्षीय पुत्र  साहिबजादा जोरावर सिंह और ७ वर्षीय पुत्र साहिबजादा फ़तेह सिंह जी और माता गूजरी जी को सरहिंद के सूबेदार नबाव वजीर खां ने पकड़ लिया था | वह इन को इस्लाम कबूलवाना चाहता था,तीन दिन उसनें दरबार में इन बालकों को बुला कर यह प्रयास किया | वह जब भी इन बालकों को प्रलोभन देनें या भयभीत करने का प्रयास करता तो ये  दोनों वीर बालक नारा लगते थे :-
" वाहे गुरुजी का खालसा , वाहे गुरुजी की फ़तेह | "
        अंततः खीज कर नबाव ने इन बच्चों को जिन्दा दीवार में चुनवा दिया था | बाद में बंदा बैरागी नें इस नबाव का वध कर उनका बदला लिया था | भगत सिंह की माँ एक भगति-भाव से परीपूर्ण ही नहीं बल्की पूर्ण वीरता की अवतारी भी थीं .., क्यों कि उनके पति , जेठ  और देवर भी तो क्रांतिवीर थे ..! गुलामी के विरुद्ध संघर्षरत थे ..!
     भगत सिंह पर माता का बहुत असर था और उन्होंने उस वीरता के इतिहास को दोहरानें की ठानी थी |  इसीलिए केन्द्रीय असेम्बली में बम फेंकते वक्त और अदालतों में मुकदमों की सुनवाई के दौरान और फांसी के फंदे को चूमते वक्त ...; वे इन्कलाब  जिंदाबाद  और साम्राज्यवाद ख़त्म हो ' के नारे , उन्ही वीर बालकों कि तरह लगते थे | उन्हें यह नारा " वाहे गुरुजी का खालसा , वाहे गुरुजी की फ़तेह | " जैसा ही था ..!
क्रांतिवीर परिवार और परिस्थितियाँ ...
         भगत सिंह पर परिवार के वातावरण का भी असर पड़ा | दादाजी , पिताजी , दोनों चाचा ..सबके सब तेजस्वी और ओजस्वी राष्ट्र धर्मी थे | उनके लिए भी माँतृ भूमी सबसे पहले थी , सारी बातें बाद में थीं | इनसबकी रग-रग में देश के प्रति स्वाभिमान भरा हुआ था |
         किशोर उम्र में भगत सिंह का अम्रतसर जाना हुआ , उन्होंने जलियांवाला बाग़ देखा उसकी मिट्टी कई वर्षों तक अपनें साथ रखी , वह मिटटी प्रेरणा स्त्रोत थी |
 
         जब वे नेशनल कालेज में पढ़ते थे; तब पंजाब में अमर शहीद मदनलाल धींगडा ( खत्री परिवार ) के चर्चे थे , धींगडा पंजाब के युवाओं के " हीरो " थे | क्योंकि , धींगडा इंग्लैंड में वीर विनायक दामोदर सावरकर के साथी थे , उन्होंने १ जुलाई १९०९ को ब्रिटिश महा साम्राज्य की राजधानी लन्दन में ही , सेकेट्री आफ स्टेट के सहयोगी सर विलियम कर्जन वायली की " इंस्टीट्युट आफ इम्पीरियल स्टडीज " में गोली मार कर हत्या कर दी | वे भागे नहीं , माईक पर गए , भाषण दिया और गिरिफ्तारी दी | अख़बारों में प्रेस नोट वे पहले ही दे चुके थे जो ' दी डेली न्यूज ' में प्रकाशित भी हुआ | ब्रिटिश अदालत का उन्होंने बहिस्कार किया और उन्हें १७ अगस्त १९०९ को फांसी हो गई | भगत सिंह ने इन सारे प्रयोगों को २० साल बाद पुनः अपनाया और दोहराया |
 
        हालाँकि यह तथ्य भी है कि भगत सिंह ने पढ़ा था कि फ़्रांसिसी अराजकतावादी वेंला ( वेलीएंट ) ने फ़्रांसीसी असेम्बली में बम फेंक कर एक बयान दिया था | वह बात भी उनके माँ में रही होगी , भारत में अंगेजों के अत्याचारों की जानकारी विश्व भर में फैलाने के लिये इसी तरह का कोई क्रांतिकारी कदम उठाना चाहिए , जो बाद में उनके द्वारा केन्द्रीय असेम्बली में बम फेंक कर गिरिफ्तारी देनें के रूप में परिणित हुआ |
        भगत सिंह व उनके ज्यादातर साथी गण देश के तत्कालीन राजनैतिक समाचारों पर पैनी नजर रखते थे , वे ज्यादातर महत्वपूर्ण खबरों की कटिंग भी रखते थे | जब दल में समाजवाद , साम्यवाद , प्रजातंत्र पर बहस होती तो अंतिम निर्णय चन्द्रशेखर आजाद , सुखदेव या भगत सिंह यह कह कर देते कि हमारा समाजवाद , साम्यवाद , प्रजातंत्र का अर्थ सिर्फ " देश कि आजादी " है |
 
जेल सुधार का संघर्ष....
        भगत सिंह ने जेल में पहुँचते ही यूरोपीय कैदियों के समकक्ष खानें , रहनें और एनी सुविधों को दिए जानें का संघर्ष प्रारंम्भ किया | इस हेतु ऐतिहासिक भूख हड़ताल प्रारम्भ कर दी , जिसका समर्थन करते हुए जिन्ना ने यह मामला केन्द्रीय असेम्बली में उठाया तथा मोतीलाल नेहरु स्थगन प्रस्ताव लाये | इसी भूख हड़ताल में बंगाल के जतीन्द्र्नाथ कि मृत्यु हो गई | लाश कलकत्ता पहचानें कि व्यवस्था हेतु ६०० रूपये नेताजी सुभाषचन्द्र बोस ने दिए थे | पूरे रास्ते में इस शहीद का अभूतपूर्व स्वागत हुआ , जब शव कलकत्ता पंहुचा तो ६ लाख से ज्यादा नागरिक अंतिम यात्रा में शामिल हुए | भगत सिंह ने जेल में ११६ दिन भूख हड़ताल का विश्व कीर्तिमान बनाया | इससे पहले आयरलैंड के एक क्रन्तिकारी के नाम ९६ दिन भूख हड़ताल का विश्व कीर्तिमान था ..! भगत सिंह के चाचा अतीत सिंह पर २२ केस लगाये गए थे , इतनें ही केस भगत सिंह पर भी लगाये गए |
 
शहीद उधम सिंह की प्रेरणा ...
       उन दिनों जलियाँवाला बाग़ कांड ( १३ अप्रेल १९१९) में अपने माँ बाप की शहादत दे चुका ; तब का बालक उधम सिंह किसी केस में लाहोर सेंट्रल जेल में बंद था, वहां भगत सिंह और उनके बीच जो विचार विमर्श हुआ माना जाता है की वही .., जलियांवाला गोली कांड का आदेश देनें वाले जनरल माइकल ओ डायर की लन्दन में गोली मार कर बदला लेने का कारण बना ..!  
 
जलियांवाला बाग
 
हत्याकांड के 21 साल बाद 13 मार्च 1940 को रायल सेंट्रल एशियन सोसायटी की लंदन के काक्सटन हाल में बैठक थी जहां माइकल ओ डायर भी वक्ताओं में से एक था। उधम सिंह उस दिन समय से ही बैठक स्थल पर पहुंच गए। अपनी रिवॉल्वर उन्होंने एक मोटी किताब में छिपा ली। बैठक के बाद दीवार के पीछे से मोर्चा संभालते हुए उधम सिंह ने माइकल ओ डायर पर गोलियां दाग दीं। दो गोलियां माइकल ओ डायर को लगीं जिससे उसकी तत्काल मौत हो गई। उधमसिंह ने अपनी प्रतिज्ञा पूरी कर दुनिया को संदेश दिया कि अत्याचारियों को भारतीय वीर कभी बख्शा नहीं करते।
भाई परमानन्द और सराबा...
       सरदार भगत सिंह के जीवन पर भाई परमानन्द , शहीद करतार सिंह सराबा तथा स्वातंत्र्यवीर सावरकर का भी गहरा प्रभाव  पड़ा | अमरीका में लाला हरदयाल जी की पहल पर स्थापित ' ग़दर पार्टी ' ने भारत के भारत के क्रांतिकारियों के सहयोग से प्रथम विश्व - युद्ध छिड़ते ही भारत को स्वतंत्र कराने की एक व्यापक योजना बनाई, भारत में रासबिहारी बसु और भाई परमानन्द इसके संचालक थे | योजना के अनुसार बड़ी संख्या में अमरीकी भारतीय भारत में आने लगे | उनमें एक अठारह वर्ष का नौजवान करतार सिंह सराबा भी था | सैनिक छ्वानियों में विप्लव के सन्देश जानें लगे | २१ फरवरी १९१५ को विप्लव का शंखनाद करना तय हुआ |  दुर्भाग्यवश  अंग्रजों के एक गुप्तचर कृपाल सिंह ने ग़दर पार्टी में घुस पैठ कर ली | परिणाम स्वरूप समय से पहले ही इस महती योअजना का पता लग गया तथा धर - पकड़ शुरू हो गई | मुक़दमा शिरू हुआ और ' प्रथम लाहोर षड्यंत्र केस ' के नाम से प्रशिद्ध हुआ |  इसमें इकसठ क्रांतिकारियों पर अभियोग चला , जिनमें से २४ को फांसी तथा २६ को आजन्म कारावास का दंड सुनाया गया |
         भाई परमानन्द की फांसी की सजा बाद में आजीवन कारावास कला पानी में बदल दी गई | १६ अन्य का भी मृत्युदण्ड आजन्म कैद में बदल गया | जिन सात देश भक्तों को फांसी दी गई करतार सिंह सराबा भी थे | १९ वर्ष की आयु में उन्होंने मस्ती के साथ फांसी का फंदा चूमा और स्वंय गले में दल लिया | भगत सिंह उनके इस निर्भीक बलिदान से बड़े प्रभावित थे और 'नौजवान भारत सभा ' में हर साल १६ नवम्बर को करतार सिंह सराबा का शाही दिवस उत्साह से मनाया जाता था |
        भाई परमानन्द सैट वर्ष अंडमान की सजा भोगनें के बाद रिहा कर दिए गए थे | काले पानी से मुक्ति के बाद वे लाला लाजपत राय द्वारा लाहोर में स्थापित नेशनल कालेज में प्रोफ़ेसर हो गए | मेट्रिक पास न होनें के बाद भी भगत सिंह को ऍफ़ ए ( ११ वीं ) में प्रवेश भाई परमानन्द जी ने ही दीया | शहादत की परम्परा भाई परमानन्द के परिवार में भी मातादीन के समय से थी , जो नवम गुरु तेगबहादुर के साथ औरन्गजेब से मिलनें गए थे और जिन्हें उस क्रूर मुग़ल नें आरे से चिरवाया था | सरदार भगत सिंह भाई जी की देश भक्ति , उनके त्याग , सादगी और विद्वता से बहुत प्रभावित थे |
वीर सावरकर...
         वीर सावरकर का अदभुत ग्रन्थ ' १८५७ का प्रथम भारतीय स्वातंत्र्य समर ' उस समय के क्रांतिकारियों के लिय गीता की तरह था | अंग्रेज सरकार नें इस ग्रन्थ पर प्रतिबन्ध लगा दिया था , फिर भी भगत सिंह ने इसे खोज कर कई बार पढ़ा , इसके तृतीय संस्करण का प्रकाशन गुप्त रूप से भगत सिंह ने ही करवाया था | तब भगत सिंह ने कानपुर में प्रताप प्रेस में काम करते हुए; अत्यंत गुप्त रीति से तृतीय संस्करण निकला तथा इसकी पहली प्रति राजर्षि पुरुषोतम दास टंडन के पास भिजवाई | भगत सिंह पर सावरकर के जीवट और  लन्दन में किये गए उनके कार्यों से अत्यधिक प्रभावित थे |
अदालत सिर्फ औपचरिकता
        भगत सिंह और उनके साथी अच्छी तरह जानते थे कि अंग्रेज अदालतें वही फैसला करती हैं , जो अंग्रेज अफसर चाहते हैं , मगर हमें इस परिस्थिति का लाभ उठाना है | इस मंच का उपयोग भी अपनें मिशन को , लक्ष्य को समर्पित करना है | जेल में भी इनकी एक रणनीति कमेटी थी , जिसमें भगत सिंह , विजय कुमार सिन्हा और सुखदेव प्रमुख थे | योजनानुसार अदालत में इस तरह का व्यवहार किया जाता था , जिससे आजादी के आन्दोलन को अधिकतम बल मिले सके |
        लाहौर केस का फैसला ट्रिब्यूनल  ने तय समय के तीन हफ्ते पूर्व ही दे दिया था | भगत सिंह , राजगुरु और सुखदेव को फांसी और किशोरी लाल ] महावीर सिंह , विजय कुमार सिन्हा , शिव वर्मा , गया प्रशाद , जयदेव और कमलनाथ तिवारी को आजीवन कारावास की सजा दी गई | कुंदन लाल को ७ साल और प्रेमदत्त को ५ साल की कैद दी गई |
         मदन मोहन मालवीय उस समय के एक बड़े नेता थे , वाईसराय से उन्होंने तार भेज कर फांसी कि सजा को काम करके आजीवन कारावास में बदलने का आग्रह किया | पूरे देश में इस तरह कि मांग हो रही थी , मगर यह भी सच है कि उस फांसी कि सजा को आजीवन कारावास में बदलनें की मांग को लेकर कांग्रेस ने कोई आन्दोलन नहीं किया था | हालाँकि बाद में बहुत से स्पष्टिकरण दिए गए , मगर देश ने यही माना कि कांग्रेस के प्रयत्न दिखावटी थे,अन्दर कोई और ही बात रही होगी |
आजाद द्वारा बचने की कोशिश
         जिस समय भगत सिंह जेल में थे ,चन्द्रशेखर आजाद बहुत बेचैन थे | जेल में भगत सिंह के साथ भूख हड़ताल के दौरान बंगाल के साथी जतिन्द्र्नाथ दास कि मृत्यु हो गई थी | अतः लार्ड वायसराय इरविन से प्रतिशोध लेना तय हुआ | लार्ड वायसराय इरविन जिस रेल से दिल्ली लौट रहे थे , उस रेल को २३ दिसंबर १९२९ को यशपाल और उनके साथी ने उदा दिया , तीन डिब्बे क्षति ग्रस्त हुए और एक डिब्बे का तो ढांचा  मात्र बचा था , पटरी भी उड़ गई , मगर वायसराय बच गया |
       पंजाब के गवर्नर को गोली मरनें का भी तय हुआ | गवर्नर एक विश्व विद्यालय के दीक्षांत समारोह को संबोधित करने आया था , गोली चली , गवर्नर घायल भी हुआ , क्रन्तिकारी हरिकिशन पकड़ा गया पर उसे फांसी दे दी गई | यह सच है कि भगत सिंह को आजाद करानें के लिए सेनापति आजाद हर हद से गुजर जाना चाहते थे | उन पर सथितों का दबाव था; कि  वे अपना ठिकाना मुम्बई बना लें अथवा विदेश चलें जाएँ अन्यथा वे पकडे गए तो दल के समक्ष नेतृत्व का संकट खड़ा हो जायेगा | मगर वे दिल्ली के निकट ही डटे  रहे | उनका कहना था ' जिस मिट्टी से यह शरीर बना , उसी मिट्टी को उसे लेने का हक़ है , में यहाँ जन्मा हूँ ,यहीं मरुंगा ! '
       चन्द्रशेखर आजाद ,यशपाल और भगवती भाई जेल तोड़ कर अपने साथियों को बहार लानें कीई एक के बाद दूसरी योजनाएं बना रहे थे | जेल की मजबूत  दीवार को तोड़ने के लिए शक्तिशाली बम बनाते हुए भगत सिंह केअत्यंत प्रिय साथी भगवती भाई जो की दुर्गा भाभी के पति थे , ने बम परिक्षण में अपनी जान गँवा दी | अंततः दल के ही एक गद्दार के कारण २७ फरवरी १९३१ को इलाहबाद में पुलिस मुठभेड़ में आजाद भी शहीद हो गए |
स्वामी रामतीर्थ और स्वामी विवेकानंद ....
       भगत सिंह के वारे में यह अनावश्यक ही लाद दिया गया कि वे वाम पंथी थे , सच यह है कि बचपन से लेकर किशोर वस्था तक वे उग्र आर्य समाजी थे , किशोरावस्था से लेकर युवावस्था तक वे सक्रीय अकाली थे और इसके बाद शुद्ध राष्ट्रवादी थे | राष्ट्र के हित के लिए तमाम दुनिया कि तमाम क्रांतियों का उन्होंने अध्ययन किया | देश के अन्दर के राष्ट्रवाद के समस्त नायकों के विचार जानें - समझे|
        भगत सिंह स्वामी रामतीर्थ और स्वामी विवेकानंद को बहुत मानते थे | उन्हें इस बात पर गर्व था कि इन दोनों महान संतों ने विदेश में जाकर यश प्राप्त किया और आत्म तत्वों का ज्ञान फैला कर ख्याती प्राप्त की |
भगत सिंह की आशंका सही निकली ...
       भगत सिंह के एक भाई की मृत्यु हो गई थी , दो भाई कुलवीर सिंह और कुलतार सिंह तथा तीन बहनें अमर कौर , सुमित्रा कौर और शकुंतला कौर थीं | उन्हें अपनी माँ से बहुत प्यार था | उन्होंने एक बार अपनी माँ को एक पत्र लिखा " माँ , मुझे इस बात में बिलकुल भी शक नहीं की एक दिन मेरा देश आजाद होगा | मगर मुझे दर है की 'गोरे साहबों'  की खाली हुई कुर्सियों पे काले  / भूरे साहब बैठनें जा रहे हैं |  " उनका शक सही निकला ,आज भारत का सिंहासन चंद काले अंग्रेजों और उनकी हाँ में हाँ मिलाने वाले राजनैतिज्ञों के हाथ की काठ पुतली बन चूका है |
      लोग कहते हैं की भगत सिंह नास्तिक थे मगर सच यह था की वे आस्तिक थे | अनावश्यक कर्मकांड के लिए उनके पास समय जरुर नहीं था | जब उनके वकील प्राणनाथ मेहता नें फांसी वाले दिन पूछा था कि उनकी अंतिम इच्छा क्या है तो भगत सिंह ने जबाव  था कि ' में दुबारा इस देश में पैदा होना चाहता हूँ |' अर्थात वे पुर्न जन्म में विश्वास रखते थे | इसके अतिरिक्त वे युवावस्था में श्री कृष्ण विजय नाटक का मंचन भी किया करते थे , जो अंग्रेजों के खिलाफ बनाया गया था |
वन्देमातरम ...
      आज वन्देमातरम को साम्प्रदायिक कहने वाले मार्क्सवादियों को भगत सिंह के ये विचार भी पढ़ लेने चाहिए - " ए भारतीय युवक ! तू क्यों गफलत की नींद में पड़ा बेखबर सो रहा है | उठ ,आँख खोल ,देख प्राची दिशा का ललाट सिंदूरी रंजित हो उठा है | अब अधिक मत सो ! सोना हो  तो अनंत निद्रा कि गोद में जाकर सो रह !! कापुरुषता  के खोल में क्यों सोता है ? माया और मोह त्याग कर गरज उठ - वन्देमातरम - वन्देमातरम !  "

वे आगे लिखते हैं " तेरी माता ,तेरी प्रातः स्मरणीय,तेरी परम पवन वंदनीया , तेरी जगदम्बा , तेरी अन्नपूर्णा, तेरी त्रिशूल धारणी, तेरी सिन्हवाह्नी, तेरी शस्य श्यामला , आज फूट फूट कर रो रही है | क्या उसकी विकलता मुझे तनिक भी चंचल नहीं करती | धिकार है तेरी निर्जिविता पर | तेरे पितर भी नतमस्तक हैं इस नपुंसकत्व  पर | यदि अब भी तेरे किसी अंग में तुक हया बांकी हो, तो उठ कर माता के दूध की लाज रख, उसके उद्धार का बीड़ा उठा , उसके आंसुओं की एक - एक बूँद की सौगंध ले , उसका बेडा पार कर और बोल मुक्त कंठ से .., वन्दे मातरम ..! "
 
- राधा - कृष्ण मंदिर रोड , डडवाडा, कोटा जन . (राजस्थान)


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