पुराने संसद भवन को संभाल कर रखा ही जाना चाहिए - अरविन्द सिसोदिया sansad bhawan
पुराने संसद भवन को संभाल कर रखा ही जाना चाहिए - अरविन्द सिसोदिया snsad bhavn
19 सितंबर 2023 तक जो भारत का संसद भवन था वह अचानक पूर्व हो गया, देसी वासी भाषा में पुराना हो गया। किन्तु यह भवन अपने आप में अनूठा है, क्योंकि इसमें भारतीयता है, यह इस तरह का एक मात्र संसदीय कार्यों का भवन है, विश्वभर में इसके जैसा या इससे अच्छा संसदीय कार्य का कोई भी भवन नहीं है।
हलाँकि हमारे पुराने संसदीय भवन की मूल डिजाइन पूरी तरह से भारतीय दर्शन का सम्मान करता है, मध्यप्रदेश के मुरैना जिले के चौरासी जोगणीयों के मंदिर की डिजाइन ही इसकी डिजाइन है। यह लोकतंत्र का मंदिर ही साबित भी हुआ।
इसमें 64 गोल खंभे, मध्य प्रदेश के मुरैना में योगिनी मंदिर से प्रभावित हैं, हालांकि इसका कोई आधिकारिक प्रमाण नहीं है। जब निर्माण अपने चरम पर था, 2,500 मूर्तिकार और राजमिस्त्री कार्यरत थे।
माना जाता है कि इस भवन के निर्माण की अनुमति तत्कालीन ब्रिटिश सरकार से बहुत मुश्किल से मिली थी, अंग्रेज एक गुलाम देश पर इतनी बड़ी राशि खर्च नहीं करना चाहते थे, किन्तु जब उन्हें बताया गया कि भारत में लगभग 1000 रजबाड़े राज करते हैं और सभी के पास अच्छे भवन, महल हैं, भव्य इमारते हैं, और उन पर शासन करने वाले शासक को और अधिक भव्य भवन होना चाहिए, तब इस भवन के निर्माण की अनुमति मिली थी।
इस भवन के अनेक खट्टे मीठे अनुभव हैं, जैसे संविधान का निर्माण, स्वतंत्रता की प्राप्ति, संबिधान संसोधन, आपातकाल, कांग्रेस के एकछत्र राज्य का समापन, बिना नेहरू परिवार का जनता पार्टी के समय का सदन, कई उठती गिरती सरकारें, कांग्रेस की नेता प्रतिपक्ष नहीं बन पाने तक के दुराभव..... संस्कृति राष्ट्रभाव का उत्थान....।
कुल मिला कर गुलामी का दौर आजादी का उदय और सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के उद्भव को इस इमारत नें देखा है, इसे संभाल कर रखा ही जाना चाहिए।
पीएम मोदी ने भारत की संसद की समृद्ध विरासत का जश्न मनाने के लिए केंद्रीय कक्ष में आयोजित एक समारोह को संबोधित करते हुए कहा, ‘‘मेरा सुझाव है कि जैसा कि हम नए भवन में जा रहे हैं, इस इमारत की महिमा कभी कम नहीं होनी चाहिए। इसे सिर्फ पुरानी संसद नहीं कहा जाना चाहिए। इसे संविधान सदन का नाम दिया जा सकता है।'' लोकसभा और राज्यसभा के सदस्य मंगलवार को समारोह के लिए पुराने संसद भवन के ऐतिहासिक केंद्रीय कक्ष में एकत्र हुए।
पुराने संसद भवन का इतिहास
संसद भवन की आधारशिला 12 फरवरी, 1921 को महामहिम द डय़ूक ऑफ कनाट ने रखी थी । इस भवन के निर्माण में छह वर्ष लगे और इसका उद्घाटन समारोह भारत के तत्कालीन गवर्नर जनरल लॉर्ड इर्विन ने 18 जनवरी, 1927 को आयोजित किया । इसके निर्माण पर 83 लाख रूपये की लागत आई थी।--
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संसद की 96 साल पुरानी इमारत में कार्यवाही का आज आखिरी दिन था। आजादी और संविधान को अपनाने की गवाह इस इमारत को विदाई देने पक्ष-विपक्ष के तमाम सांसद पहुंचे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सबके साथ फोटो खिंचवाई।
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जो भी चीज बनती है वह एक दिन नष्ट होती है, समय, काल परिस्थिवश प्रत्येक वस्तु का अंत होता है और नवनिर्माण होता है। पुराने संसद भवन के स्थान पर नये संसद भवन का आना इसी सिद्धांत का प्रतिपादन है। अभी जो नया बना है वह भी 100 साल बाद हो सकता है अनुपयोगी हो जाये और कोई और दूसरा बन जाये। यह एक सामान्य प्रक्रिया है। उसी तरह इस पर विचार होना चाहिए।
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