राष्ट्रभाषा को स्थापित करने का तरीका अटल जी ने बताया था Hindi

अंग्रेजी भाषा को ,विदेशी  स्वार्थ बनाये रखने के लिए, 
कांग्रेस ने,देश को गूंगा और बहरा करके रख दिया
-- अरविन्द सीसोदिया  
विदेशी हितों को बनाये रखने के लिए अंग्रेजी को भारत में बनाये रखा गया । 

      १२ दिसम्बर १९६७ क़ी तारीख में सरकारी भाषा संशोधन विधेयक और प्रस्ताव  पर हुई चर्चा में भाग लेते हुए , तत्कालीन लोकसभा के सदस्य और भारतीय जनसंघ के नेता जो बाद में प्रधानमंत्री भी बने, अटलबिहारी वाजपेयी जी का भाषण पढ़ रहा था, इस भाषण में उनने राजभाषा हिंदी के पक्ष में जो कुछ  कहा  उसके कुछ सार्थक अंश निम्न प्रकार से हैं.....
       अध्यक्ष महोदय , जब मैं श्री फ़्रेंक एंथनी का भाषण सुन रहा था तो मुझे १६५० के  इंग्लैंड  की याद आ रही थी | उस समय इग्लैंड  मैं दो भाषाएँ चलतीं थी | एक फ्रेंच भाषा और दूसरी  लैटिन भाषा | जितने भी कानून बनते थे फ्रेंच भाषा मैं बनते थे और उंची शिक्षा की भाषा लैटिन थी | उस समय फ्रेंच और लैटिन को बनाये रखने के लिए, अंग्रेजी को नहीं लाने के लिए वही तर्क दिए जा रहे थे जो आज भारत मैं अंग्रेजी को बनाये रखने के लिए और भारतीय भाषाओँ को न लाने के लिए  दिए जा रहे हैं | 
   अध्यक्ष महोदय , ताज्जुब तो यह है क़ी अंग्रेजी का विरोध करने वाले १६५० मैं इंग्लैंड मैं थे डाक्टर , वकील , बुद्धिजीवी और ऐसे लोग जिनका फ्रेंच और लैटिन से निहित जुडाव था , उन्होंने अंग्रेजी भाषा को एक बार " बैरिक लेंगुएज " कहा था | बड़े प्रयत्नों से में एक किताब ढूढ़ कर लाया हूँ , " ट्रायम्फस आफ दी इंग्लिश लेंगुएज  " | इस किताब के लेखक हैं मि.जोन्स , यह किताब हमारे पुस्तकालय मैं उपलब्ध  नही है | 
एक माननीय सदस्य : कहाँ से लाए ?
    श्री वाजपेयी जी : यह ब्रिटिश हाई कमीशन के पुस्तकालय से प्राप्त की गई  है, इसके एक अंश को में आपके माध्यम से सदन के सामने रखना चाहता हूँ | १६५० मैं इंग्लैंड  की पार्लियामेंट को एक पेटीशन , एक याचिका , दी गई | इस पेटीशन मैं क्या कहा गया , यह मैं पढ़ना चाहता हूँ : " इसे नार्मन विजेता के प्रति हमारी गुलामी का बिल्ला मानते हुए, फ्रेंच भाषा मैं हमारे कानून होना , और यह क़ी उन कानूनों के अनुसार चलना, जिनको जनता नहीं जान सकती, पाशविक  ग़ुलामी से कुछ ही कम है , क़ी इसलिए इस शासन के क़ानून और परम्पराएँ बिना शब्दों को संझिप्त किए तत्काल मातृभाषा मैं लिखे जाने चाहिए | "
    श्री वाजपेयी जी ने आगे कहा, इस सम्बन्ध मैं इंग्लैंड की पार्लियामेंट ने जो निर्णय किया , उसको भी इस सदन को ध्यान मैं रखना चाहिए |  यह २२ नवम्बर १६५० का फैसला है | " संसद ने यह घोषित करना और क़ानून बनाना उचित समझा है, और इस वर्तमान संसद द्वारा, इसके अधिकार द्वारा यह घोषित हो और कानून बनें , क़ी सभी रिपोर्ट बुक और न्यायाधीशों के निर्णयों और इंग्लैंड के कानून की पुस्तकों का इंग्लिश भाषा मैं अनुवाद हो , और पहली जनवरी १६५१ से और उसके वाद से न्यायाधीशों के निर्णयों की सभी ' रिपोर्ट बुक ' और कानून  की अन्य सभी पुस्तकें जो प्रकाशित होगी , इंग्लिश भाषा मैं होंगी | "
   इंग्लैंड  मैं भी अंग्रेजी को लाने के लिए लडाई लडनी पड़ी थी |
श्री  मनोहरन  : वह एकात्मवादी राज्य है | हमारा संघीय ढांचा है |
श्री  वाजपेयी : में उस बात की भी चर्चा करूँगा |
      इंग्लैंड मैं भी यह तर्क दिया गया था कि अगर डाक्टरों की पढ़ी अंग्रेजी मैं की गई तो मरीज मर जाएंगे , अंग्रेजी इस योग्य नहीं है कि वह क़ानून की और शिक्षा क़ी माध्यम बन सके |  लेकिन  इंग्लैंड की जनता ने अंग्रेजी को लाने का स्वाभिमान पूर्ण निर्णय लिया और आज अंग्रेजी को इतना विकसित कर दिया गया है क़ी हम उस अंग्रेजी के मोह मैं पड  गए हैं , हम उस अंग्रेजी को नहीं छोड़ना चाहते हैं | मेरी मातृभाषा हिन्दी है | 
श्री एन . श्री कान्तन नायर : मेरी नहीं है | 
श्री वाजपेयी जी :
    ...........हिन्दी का किसी भारतीय भाषा से झगडा  नहीं है , हिन्दी सभी भारतीय भाषाओं को विकसित देखना चाहती है | लेकिन यह निर्णय संविधान सभा का है कि हिन्दी केंद्र की भाषा बनें | जब संविधान सभा ने यह निर्णय किया, तो संविधान का जो प्रारूप बना था, उसमें अंग्रेजी के प्रयोग  के लिए केवल पांच  साल रखे गए थे | बाद मैं अहिन्दी - भाषी लोगों की कठिनाई को ध्यान मैं रख कर पांच साल की अवधी बढाकर पन्द्रह साल की गई |
श्री जी भा कृपलानी : यही बेवकूफी थी |
 श्री वाजपेयी जी : आचार्य जी ठीक कह रहे हैं | यह गलती की गई | किछ लोग इस मत के हैं - और इसमें सच्चाई भी हो सकती है - कि अगर अंग्रेजी जानी थी , तो एक बार मैं ही चली जानी चाहिए थी | अंग्रेजी को धीरे धीरे हटाना मुश्किल है | लेकिन जनता की कठिनाइयों का विचार करके यह निर्णय किया गया कि पन्द्रह साल तक अंग्रेजी चले | ........ 
यह जो ब्रिटेन का अपनी भाषा को स्थापित करो फार्मूला था , उससे तो अटलजी ने हमें यहाँ परिचित करवा दिया है ! सवाल यह है कि हम इस पर चल कर कितना आगे बढ़ सकते हैं ....
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टिप्पणियाँ

  1. बहुत ही अच्छी जानकारी दी है आपने, इसके लिए धन्यबाद| मै वाजपाई जी का ब्लाइंड सपोर्टर हू| उनके जैसे नेता आज तक नहीं खोज पाया शायद मिलेगा भी नहीं | जय हिंद

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