गणेश चतुर्थी : गणेश जी का अवतरण दिवस Ganesh Chaturthi: Birthday of Lord Ganesha
गणेश चतुर्थी : गणेश जी का अवतरण दिवस
Ganesh Chaturthi: Incarnation day of Lord Ganesha
गणेश चतुर्थी : गणेश जी का जन्म दिवस
Ganesh Chaturthi: Birthday of Lord Ganesha
गणपति को सभी देवों में प्रथम पूजनीय कहा गया है. भगवान गणपति का जन्म भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी के दिन हुआ था. इसलिए इस दिन को गणेश चतुर्थी के रूप में मनाया जाता है.
गणेश चतुर्थी को बहुत पवित्र और फलदायी त्योहार माना जाता है. पूरे देश में गणपति उत्सव शुरू हो जाएगा जो लगभग 10 दिनों तक चलेगा. इसके बाद 11वे दिन अनंत चतुर्दशी को गणपति का विसर्जन किया जाएगा है. इस बार गणेश चतुर्थी के दिन एक खास संयोग बन रहा है जिससे इस दिन का महत्व और बढ़ गया है.महाराष्ट्र में यह पर्व गणेशोत्सव के तौर पर मनाया जाता है. दस दिनों तक गणेश जी को भव्य रूप से सजाकर उनकी पूजा की जाती है.
ऐसे करें गणपति को प्रसन्न
गणपति जी की पूजा बेहद सरल मानी जाती है. इस दिन मिट्टी के गणपति विराजमान किए जाते हैं. इसके पीछे मान्यता है कि हमारा शरीर पंचतत्व से बना है और पंचतत्व में ही विलीन हो जाता है. इसलिए दस दिनों तक गणपति की पूजा करने के बाद उन्हें जल में विसर्जित कर दिया जाता है.
मिट्टी के गणपति में हरे, लाल और पीले रंग का इस्तेमाल जरूर होना चाहिए क्योंकि इन रंगों को शुभता का प्रतीक माना जाता है. इन रंगों के प्रयोग से जीवन में खुशहाली आती है.
इस दिन गणपति को मोदक जरूर अर्पित करें. जितनी आपकी उम्र है उतने मोदक आप गणेश जी को अर्पित करें और उसके बाद अपनी मनोकामना याद करते हुए मोदक को गरीबों में बांट दें. इससे आपकी मनोकामना पूरी हो जाएगी.
इस दिन गणेश जी को दूर्वा जरूर अर्पित करें. गणेश जी बुद्धि के देवता माने जाते हैं. इस दिन छात्रों को पारदर्शी कलम गणेश दी को चढ़ानी चाहिए. इससे आपके तरक्की के रास्ते खुल जाएंगे.
अगर आपको नौकरी से जुड़ी कोई दिक्कत आ रही है तो गणेश चतुर्थी पर गणेश स्तुति जरूर करें. इससे आपके काम में किसी तरह की रूकावट नहीं आएगी.
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गणेश चतुर्थी
भारत के सबसे बड़े त्योहारों में से एक माना जाता है। गणेश चतुर्थी को गणेश उत्सव और विनायक चतुर्थी भी कहा जाता है। हिंदू पंचांग के अनुसार भाद्रपद मास में शुल्क पक्ष की चतुर्थी तिथि को भगवान श्री गणेश का जन्म हुआ। भगवान शिव और पर्वाती के पुत्र गणेश को ज्ञान, बुद्धि समृद्धि और सौभाग्य का देव कहा जाता है। गणेश चतुर्थी का पर्व वैसे तो पूरे भारत में मनाया जाता है, लेकिन महाराष्ट्र में गणेश उत्सव/गणेश चतुर्थी व्यापक रूप से मनाया जाता है। गणेश चतुर्थी का पर्व 11 दिनों तक मनाया जाता है, गणेश स्थापना से लेकर 10 दिनों तक भगवान गणेश जी को घर में रखते हैं और 11वें दिन गणेश विसर्जन करते हैं। गणेश उत्सव पर लोग एक दूसरे को गणेश चतुर्थी की हार्दिक शुभकामनाएं देते हैं.
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गणेश चतुर्थी का इतिहास
गणेश चतुर्थी का त्योहार मराठा शासनकाल में अपनी उत्पत्ति पाता है, जिसके साथ ही छत्रपति शिवाजी महाराज उत्सव शुरू करते हैं। यह विश्वास भगवान शिव और देवी पार्वती के पुत्र गणेश के जन्म की कहानी में है। पेशवाओं ने गणेशोत्सव को बढ़ावा दिया। कहते हैं कि पुणे में कस्बा गणपति नाम से प्रसिद्ध गणपति की स्थपना शिवाजी महाराज की मां जीजाबाई ने की थी। परंतु लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने गणोत्सव को को जो स्वरूप दिया उससे गणेश राष्ट्रीय एकता के प्रतीक बन गये। तिलक के प्रयास से पहले गणेश पूजा परिवार तक ही सीमित थी। पूजा को सार्वजनिक महोत्सव का रूप देते समय उसे केवल धार्मिक कर्मकांड तक ही सीमित नहीं रखा, बल्कि आजादी की लड़ाई, छुआछूत दूर करने और समाज को संगठित करने तथा आम आदमी का ज्ञानवर्धन करने का उसे जरिया बनाया और उसे एक आंदोलन का स्वरूप दिया। इस आंदोलन ने ब्रिटिश साम्राज्य की नींव हिलाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने 1893 में गणेशोत्सव का जो सार्वजनिक पौधरोपण किया था वह अब विराट वट वृक्ष का रूप ले चुका है। 1893 में जब बाल गंगाधर जी ने सार्वजानिक गणेश पूजन का आयोजन किया तो उनका मकसद सभी जातियो धर्मो को एक साझा मंच देने का था जहा सब बैठ कर मिल कर कोई विचार कर। सके तब पहली बार पेशवाओ के पूज्य देव गणेश को बाहर लाया गया था , वो तब भारत में अस्पृश्यता चरम सीमा पर थी, जब शुद्र जाती के लोगो को देव पूजन का ये अपने में पहला मौका था, सब ने देव दर्शन किये और गणेश प्रतिमा को चरण छु कर आशीर्वाद लिया , उत्सव् के बाद जब प्रतिमा को वापस मंदिर में स्थापित किया जाने लगा (जैसा की पेशवा करते थे मंदिर की मूर्ति को आँगन में रख के सार्वजानिक पूजा और फिर वापस वही स्थापना) तो पंडितो ने इसका विरोध किया के ये मूर्ति को अछूतों ने छु ली है ये अपवित्र है इसको वापस मंदिर में नहीं रखा जा सकता तब बवाल न बढे तो निर्णय लिया गया इसको सागर में विसर्जित कर दिया जाए,से दोनों पक्षों की बात। रह जायगी तब से मूर्ति पोज से मूर्ति विसर्जन शुरू हो गया या अब काफी फैल गया है इस में केवल महाराष्ट्र में ही 50 हजार से ज्यादा सार्वजनिक गणेशोत्सव मंडल है। इसके अलावा आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और गुजरात में काफी संख्या में गणेशोत्सव मंडल है।
स्वतंत्रता संग्राम और गणेशोत्सव
वीर सावरकर और कवि गोविंद ने नासिक में ‘मित्रमेला’ संस्था बनाई थी। इस संस्था का काम था देशभक्तिपूर्ण पोवाडे (मराठी लोकगीतों का एक प्रकार) आकर्षक ढंग से बोलकर सुनाना। इस संस्था के पोवाडों ने पश्चिमी महाराष्ट्र में धूम मचा दी थी। कवि गोविंद को सुनने के लिए लोगों उमड़ पड़ते थे। राम-रावण कथा के आधार पर वे लोगों में देशभक्ति का भाव जगाने में सफल होते थे। उनके बारे में वीर सावरकर ने लिखा है कि कवि गोविंद अपनी कविता की अमर छाप जनमानस पर छोड़ जाते थे। गणेशोत्सव का उपयोग आजादी की लड़ाई के लिए किए जाने की बात पूरे महाराष्ट्र में फैल गयी। बाद में नागपुर, वर्धा, अमरावती आदि शहरों में भी गणेशोत्सव ने आजादी का नया ही आंदोलन छेड़ दिया था। अंग्रेज भी इससे घबरा गये थे। इस बारे में रोलेट समिति रपट में भी चिंता जतायी गयी थी। रपट में कहा गया था गणेशोत्सव के दौरान युवकों की टोलियां सड़कों पर घूम-घूम कर अंग्रेजी शासन विरोधी गीत गाती हैं व स्कूली बच्चे पर्चे बांटते हैं। जिसमें अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ हथियार उठाने और मराठों से शिवाजी की तरह विद्रोह करने का आह्वान होता है। साथ ही अंग्रेजी सत्ता को उखाड़ फेंकने के लिए धार्मिक संघर्ष को जरूरी बताया जाता है। गणेशोत्सवों में भाषण देने वाले में प्रमुख राष्ट्रीय नेता थे - वीर सावकर, लोकमान्य तिलक, नेताजी सुभाष चंद्र बोस, बैरिस्टर जयकर, रेंगलर परांजपे, पंडित मदन मोहन मालवीय, मौलिकचंद्र शर्मा, बैरिस्ट चक्रवर्ती, दादासाहेब खापर्डे और सरोजनी नायडू।
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गणेशोत्सव
गणेशोत्सव (गणेश + उत्सव) हिन्दुओं का एक उत्सव है। वैसे तो यह कमोबेश पूरे भारत में मनाया जाता है, किन्तु महाराष्ट्र का गणेशोत्सव विशेष रूप से प्रसिद्ध है। महाराष्ट्र में भी पुणे का गणेशोत्सव जगत्प्रसिद्ध है। यह उत्सव, हिन्दू पंचांग के अनुसार भाद्रपद मास की चतुर्थी से चतुर्दशी तक 11 दिनों तक चलता है। भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को गणेश चतुर्थी भी कहते हैं।
गणेश की प्रतिष्ठा सम्पूर्ण भारत में समान रूप में व्याप्त है। महाराष्ट्र इसे मंगलकारी देवता के रूप में व मंगलपूर्ति के नाम से पूजता है। दक्षिण भारत में इनकी विशेष लोकप्रियता ‘कला शिरोमणि’ के रूप में है। मैसूर तथा तंजौर के मंदिरों में गणेश की नृत्य-मुद्रा में अनेक मनमोहक प्रतिमाएं हैं।
गणेश हिन्दुओं के आदि आराध्य देव है। हिन्दू धर्म में गणेश को एक विशष्टि स्थान प्राप्त है। कोई भी धार्मिक उत्सव हो, यज्ञ, पूजन इत्यादि सत्कर्म हो या फिर विवाहोत्सव हो, निर्विध्न कार्य सम्पन्न हो इसलिए शुभ के रूप में गणेश की पूजा सबसे पहले की जाती है। महाराष्ट्र में सात वाहन, राष्ट्रकूट, चालुक्य आदि राजाओं ने गणेशोत्सव की प्रथमा चलायी थी। छत्रपति शिवाजी महाराज भी गणेश की उपासना करते थे।
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गणेश जी का अवतरण दिवस
वहीं शिवपुराण के मुताबिक माता पार्वती ने अपने शरीर पर हल्दी लगाई थी, इसके बाद जब उन्होंने अपने शरीर से हल्दी उबटन उतारी तो उससे उन्होंने एक पुतला बना दिया। पुतले में बाद में उन्होंने प्राण डाल दिए। इस तरह से विनायक पैदा हुए थे। इसके बाद माता पार्वती ने गणेश को आदेश दिए कि तुम मेरे द्वार पर बैठ जाओ और उसकी रक्षा करो, किसी को भी अंदर नहीं आने देना। अर्थात वे माता पार्वती के पुत्र के साथ साथ गण थे यानि कि सुरक्षा अधिकारी और इसी कारण वे गणेश कहलाये |
कुछ समय बाद शिवजी घर आए तो उन्होंने कहा कि मुझे पार्वती से मिलना है। इस पर गणेश जी ने मना कर दिया। शिवजी को नहीं पता था कि ये कौन हैं। दोनों में विवाद हो गया और उस विवाद ने युद्ध का रूप धारण कर लिया। इस दौरान शिवजी ने अपना त्रिशूल निकाला और गणेश का सिर काट डाला।
पार्वती को पता लगा तो वह बाहर आईं और रोने लगीं। उन्होंने शिवजी से कहा कि आपने मेरे बेटा का सिर काट दिया। शिवजी ने पूछा कि ये तुम्हारा बेटा कैसे हो सकता है। इसके बाद पार्वती ने शिवजी को पूरी कथा बताई। शिवजी ने पार्वती को मनाते हुए कहा कि ठीक है मैं इसमें प्राण डाल देता हूं, लेकिन प्राण डालने के लिए एक सिर चाहिए। इस पर उन्होंने गरूड़ जी से कहा कि उत्तर दिशा में जाओ और वहां जो भी मां अपने बच्चे की तरफ पीठ कर के सोई हो उस बच्चे का सिर ले आना। गरूड़ जी भटकते रहे पर उन्हें ऐसी कोई मां नहीं मिली क्योंकि हर मां अपने बच्चे की तरफ मुंह कर के सोती है। अंतत: एक हथिनी दिखाई दी। हथिनी का शरीर का प्रकार ऐसा होता हैं कि वह बच्चे की तरफ मुंह कर के नहीं सो सकती है। गरूड़ जी उस शिशु हाथी का सिर ले आए। भगवान शिवजी ने वह बालक के शरीर से जोड़ दिया। उसमें प्राणों का संचार कर दिया। उनका नामकरण कर दिया। इस तरह श्रीगणेश को हाथी का सिर लगा।
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क्यों मनाते हैं गणेश चतुर्थी
त्योहार से लगभग एक महीने पहले गणेश चतुर्थी की तैयारी शुरू हो जाती है। यह उत्सव लगभग दस दिनों तक चलता है (भाद्रपद शुद चतुर्थी से अनंत चतुर्दशी तक)। पहले दिन घरों में भगवान गणेश की मिट्टी की मूर्ति स्थापित की जाती है। घरों को फूलों से सजाया गया है। मंदिर बड़ी संख्या में भक्तों की यात्रा के गवाह हैं। पूजा होती है और भजन किए जाते हैं। अक्सर, परिवार त्योहार मनाने के लिए इकट्ठा होते हैं। स्थानीय लोग पंडालों का आयोजन और व्यवस्था करते हैं और दोस्तों और परिवार के साथ त्योहार मनाने के लिए भगवान गणेश की बड़ी मूर्तियां स्थापित करते हैं। समारोहों के अंतिम दिन, भगवान गणेश की मूर्ति को सड़कों पर ले जाया जाता है। लोग मूर्ति के साथ सड़कों पर नृत्य और गायन के रूप में अपने उत्साह और खुशी का प्रदर्शन करते हैं। मूर्ति को अंत में नदी या समुद्र में विसर्जित कर दिया जाता है। इस दिन बड़ी संख्या में भक्त अपनी खुशी का इजहार करते हैं और अपनी प्रार्थना करते हैं।
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गणेश चतुर्थी पूजन विधि
गणेश पूजन आपके घर में भगवान गणेश की मिट्टी की मूर्ति स्थापित करने से शुरू होता है। विभिन्न व्यंजनों को भोग (भोग) के लिए पकाया जाता है। मूर्ति को शुद्ध जल से स्नान कराया जाता है और फिर फूलों से सजाया जाता है। ज्योति जलाई जाती है और फिर आरती शुरू होती है। इस समय विभिन्न भजन, और मंत्रों का जाप किया जाता है। माना जाता है कि पूरी श्रद्धा के साथ मंत्रों का जाप करने से मूर्ति में प्राण-प्रतिष्ठा होती है। यह भी माना जाता है कि इस अवधि के दौरान, गणेश अपने भक्तों के घर जाते हैं और उनके साथ समृद्धि और सौभाग्य लाते हैं। इसी कारण से इस दिन को बहुत शुभ दिन के रूप में मनाया जाता है। गणपति यंत्र की पूजा करने से आपको जीवन में बहुत सफलता मिलेगी।
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गणेश चतुर्थी महोत्सव व्यंजन
हालाँकि पूजन के दौरान भगवान गणेश को बड़ी संख्या में मिठाइयाँ दी जाती हैं, लेकिन मोदक को भगवान की पसंदीदा मिठाई के रूप में जाना जाता है और इसलिए यह इस दिन बने मुख्य व्यंजनों में से एक है। अन्य व्यंजनों में करंजी, लड्डू, बर्फी और पेड शामिल हैं।
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इस त्योहार के दौरान कई अनुष्ठान और रीति-रिवाज होते हैं, जिन्हें लोग मानते हैं-
गणेश चतुर्थी के पहले दिन के बाद एक लोकप्रिय परंपरा चंद्रमा को देखने से बचने के लिए है। गणेश चतुर्थी पर चंद्रमा को देखने से मिथ्या दोशम या मिथ्या कलंक का निर्माण होता है, जिसका अर्थ है किसी चीज़ को चुराने का झूठा आरोप।
1: इस त्यौहार के दौरान, लोग भक्ति गीत गाते हैं, नृत्य करते हैं, उपवास करते हैं, अपने घरों में बिस्तर लगाते हैं, और पटाखे फोड़ते हैं। दिन की शुरुआत पूजा-अर्चना करने वाले लोग करते हैं और गणेश की पूजा करने के लिए नए कपड़े दान करते हैं। किसी भी प्रकार की पूजा करने के लिए शरीर और मन की स्वच्छता और पूर्व आवश्यकता होती है। एक गणेश की मूर्ति को सुगंधित जल (अभिषेकम) में स्नान कराया जाता है और फिर नए केसरिया कपड़े से ढंक दिया जाता है। यह सुरक्षित रूप से एक कुरसी पर रखा गया है और चंदन के पेस्ट और ताजे फूलों की माला से सजी है।
2: मोदक, चावल या आटे की पकौड़ी जो कि कसे हुए गुड़, नारियल और सूखे मेवों से भरी होती है, इस त्योहार का एक लोकप्रिय भोजन है और भगवान गणेश को अर्पित मुख्य 'प्रसाद' है। यह भगवान की पसंदीदा मिठाई मानी जाती है इस त्योहार की अन्य व्यंजनों में अप्पम, पेड़ा, सुंदल, बर्फी, लड्डू और करंजी शामिल हैं।
3: मध्याह्न गणेश पूजा
4: भगवान गणेश की पूजा सोलह अनुष्ठानों के साथ की जाती है। प्रार्थनाओं का पालन "पुराणिक मंत्र" द्वारा किया जाता है, जो गणेश चतुर्थी पूजा के दौरान जप किया जाता है। इस दिन भक्तों द्वारा गाए जाने वाले कुछ लोकप्रिय गणेश पूजा मंत्र 'गणेश शुभ लाभ मंत्र', 'गणेश गायत्री मंत्र' और 'वक्रतुंड गणेश मंत्र' के समेत अन्य कई मंत्र हैं। इसके बाद, भक्त भगवान गणेश के सामने झुकते हैं और सभी की भलाई के लिए प्रार्थना करते हैं। वे किसी भी गलती के लिए माफी भी मांगते हैं और भगवान से अपने पापों को साफ करने के लिए कहते हैं।
5: गणेश चतुर्थी अनुष्ठान भगवान गणेश की आरती के साथ संपन्न होता है। आरती हिंदू धर्म में पूजा की एक रस्म है जिसमें एक पवित्र मिट्टी का दीपक, जिसमें एक सूती बाती होती है, जिसे शुद्ध घी में डुबोकर जलाया जाता है, देवता के चारों ओर प्रसारित किया जाता है। उस दिन दो बार आरती की जाती है, एक बार सुबह और फिर शाम को। उत्सव के 11 वें दिन, गणेश विसर्जन मनाया जाता है, जिसमें मूर्ति पानी में डूबा दी जाती है।
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गणेश चतुर्थी व्रत कथा
गणेश चतुर्थी, जिसे विनायक चतुर्थी के रूप में भी जाना जाता है, भगवान गणेश के सम्मान में पूरे विश्व में, विशेष रूप से भारत में बहुत धूमधाम से मनाया जाता है। उन्हें शुरुआत के भगवान के रूप में जाना जाता है और माना जाता है कि यह बाधाओं का निवारण है। त्योहार हिंदू चंद्र कैलेंडर माह भाद्रपद के चौथे दिन से शुरू होता है, जो ग्रेगोरियन कैलेंडर के अगस्त या सितंबर के महीने में पड़ता है। महाराष्ट्र में त्योहार 10 दिनों तक मनाया जाता है। यहां चल रहे गणेशोत्सव के साथ, भगवान गणेश की कुछ दिलचस्प छोटी कहानियों पर नज़र डाल रहे हैं। पार्वती ने हल्दी के पेस्ट से गणेश भगवान गणेश के जन्म के चारों ओर घूमने वाली कई कहानियां हैं, जिनमें से एक सबसे लोकप्रिय है कि पार्वती ने गणेश को हल्दी के पेस्ट से ढाला था जिसके साथ वह अपने शरीर को साफ करती थीं। कहानी के अनुसार, एक बार पार्वती ने नंदी को स्नान करने के लिए द्वार की रक्षा करने के लिए कहा। लेकिन भगवान शिव के वफादार होने के कारण उन्हें प्रवेश करने की अनुमति दी गई। इस घटना के साथ, उसने सभी में विश्वास खो दिया और इसलिए उसने हल्दी के पेस्ट को इकट्ठा किया जो उसने अपने शरीर को साफ करने के लिए इस्तेमाल किया। क्यों गणेश जी को ज्ञान का देवता कहा जाता है एक बार भगवान शिव और देवी पार्वती ने अपने दोनों पुत्रों - गणेश और कार्तिकेय - को ब्रह्मांड के तीन चक्कर लगाने और वापस आने के लिए एक चुनौती दी। जो पहले चुनौती को पूरा करेगा, उसे 'ज्ञान के फल'से सम्मानित किया जाएगा। कार्तिकेय अपना वज्र मोर लेकर उड़ गए। जबकि गणेश ने अपने माता-पिता के चारों ओर तीन प्रदक्षिणा (परिक्रमा) की और उन्हें समझाया कि उनके लिए पूरा ब्रह्मांड उनके चरणों में है। उनके उत्तर ने शिव और पार्वती को प्रभावित किया और इसलिए उन्हें फल प्रदान किया गया। जब चंद्रमा को गणेश के क्रोध का सामना करना पड़ा पौराणिक कथाओं के अनुसार, भाद्रपद महीने के चौथे दिन (चतुर्थी) को भगवान गणेश मूषक के साथ घर लौट रहे थे, चंद्रमा भगवान चंद्र जोर से हंसने लगे और उनके पेट और छोटे चूहे पर टिप्पणी करने लगे। चंद्रमा को सबक सिखाने के लिए, भगवान गणेश ने उन्हें शाप दिया कि कोई भी प्रकाश उन पर कभी नहीं पड़ेगा। इस प्रकार, चंद्रमा आसमान में गायब हो गया। चंद्रमा और अन्य देवताओं ने क्षमा मांगी और भगवान ने प्रणाम किया। हालाँकि, एक बार शाप देने के बाद इसे पूरी तरह से वापस नहीं लिया जा सकता है। इसे केवल कम किया जा सकता है। तो भगवान गणेश ने अपना श्राप कम कर दिया और कहा कि जो कोई भी दिन चंद्रमा को देखता है, हिंदू महीने के चौथे दिन भाद्रपद को मिथ्या दोष के साथ शाप दिया जाएगा। एक गणेश का वाहन कैसे एक चूहा बन गया एक बार, जब भगवान गणेश को महर्षि पराशर के आश्रम में आमंत्रित किया गया था। क्रौंच ने आश्रम पर कदम रखा और उसे नष्ट कर दिया। भगवान गणेश ने विशालकाय चूहे से मिलने और उसे सबक सिखाने का फैसला किया। उन्होंने अपने एक हथियार को 'पाशा' कहा था, जो क्रौंच की गर्दन के चारों ओर लूपिंग को समाप्त करता है और उसे गणेश के चरणों में ले जाता है। क्रोंचा ने माफ़ी मांगी और गणेश को अपने वाहन के रूप में स्वीकार करने के लिए कहा। हालांकि, करुणा भगवान गणेश का वजन सहन नहीं कर सकीं और उन्होंने उनसे हल्के वजन वाले होने का अनुरोध किया जो कि मुस्कराता है। तब से मूषक भगवान गणेश का वाहन है।
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गणेश चतुर्थी व्रत कथा
गणेश चतुर्थी, जिसे विनायक चतुर्थी के रूप में भी जाना जाता है, भगवान गणेश के सम्मान में पूरे विश्व में, विशेष रूप से भारत में बहुत धूमधाम से मनाया जाता है। उन्हें शुरुआत के भगवान के रूप में जाना जाता है और माना जाता है कि यह बाधाओं का निवारण है। त्योहार हिंदू चंद्र कैलेंडर माह भाद्रपद के चौथे दिन से शुरू होता है, जो ग्रेगोरियन कैलेंडर के अगस्त या सितंबर के महीने में पड़ता है। महाराष्ट्र में त्योहार 10 दिनों तक मनाया जाता है। यहां चल रहे गणेशोत्सव के साथ, भगवान गणेश की कुछ दिलचस्प छोटी कहानियों पर नज़र डाल रहे हैं। पार्वती ने हल्दी के पेस्ट से गणेश भगवान गणेश के जन्म के चारों ओर घूमने वाली कई कहानियां हैं, जिनमें से एक सबसे लोकप्रिय है कि पार्वती ने गणेश को हल्दी के पेस्ट से ढाला था जिसके साथ वह अपने शरीर को साफ करती थीं। कहानी के अनुसार, एक बार पार्वती ने नंदी को स्नान करने के लिए द्वार की रक्षा करने के लिए कहा। लेकिन भगवान शिव के वफादार होने के कारण उन्हें प्रवेश करने की अनुमति दी गई। इस घटना के साथ, उसने सभी में विश्वास खो दिया और इसलिए उसने हल्दी के पेस्ट को इकट्ठा किया जो उसने अपने शरीर को साफ करने के लिए इस्तेमाल किया। क्यों गणेश जी को ज्ञान का देवता कहा जाता है एक बार भगवान शिव और देवी पार्वती ने अपने दोनों पुत्रों - गणेश और कार्तिकेय - को ब्रह्मांड के तीन चक्कर लगाने और वापस आने के लिए एक चुनौती दी। जो पहले चुनौती को पूरा करेगा, उसे 'ज्ञान के फल'से सम्मानित किया जाएगा। कार्तिकेय अपना वज्र मोर लेकर उड़ गए। जबकि गणेश ने अपने माता-पिता के चारों ओर तीन प्रदक्षिणा (परिक्रमा) की और उन्हें समझाया कि उनके लिए पूरा ब्रह्मांड उनके चरणों में है। उनके उत्तर ने शिव और पार्वती को प्रभावित किया और इसलिए उन्हें फल प्रदान किया गया। जब चंद्रमा को गणेश के क्रोध का सामना करना पड़ा पौराणिक कथाओं के अनुसार, भाद्रपद महीने के चौथे दिन (चतुर्थी) को भगवान गणेश मूषक के साथ घर लौट रहे थे, चंद्रमा भगवान चंद्र जोर से हंसने लगे और उनके पेट और छोटे चूहे पर टिप्पणी करने लगे। चंद्रमा को सबक सिखाने के लिए, भगवान गणेश ने उन्हें शाप दिया कि कोई भी प्रकाश उन पर कभी नहीं पड़ेगा। इस प्रकार, चंद्रमा आसमान में गायब हो गया। चंद्रमा और अन्य देवताओं ने क्षमा मांगी और भगवान ने प्रणाम किया। हालाँकि, एक बार शाप देने के बाद इसे पूरी तरह से वापस नहीं लिया जा सकता है। इसे केवल कम किया जा सकता है। तो भगवान गणेश ने अपना श्राप कम कर दिया और कहा कि जो कोई भी दिन चंद्रमा को देखता है, हिंदू महीने के चौथे दिन भाद्रपद को मिथ्या दोष के साथ शाप दिया जाएगा। एक गणेश का वाहन कैसे एक चूहा बन गया एक बार, जब भगवान गणेश को महर्षि पराशर के आश्रम में आमंत्रित किया गया था। क्रौंच ने आश्रम पर कदम रखा और उसे नष्ट कर दिया। भगवान गणेश ने विशालकाय चूहे से मिलने और उसे सबक सिखाने का फैसला किया। उन्होंने अपने एक हथियार को 'पाशा' कहा था, जो क्रौंच की गर्दन के चारों ओर लूपिंग को समाप्त करता है और उसे गणेश के चरणों में ले जाता है। क्रोंचा ने माफ़ी मांगी और गणेश को अपने वाहन के रूप में स्वीकार करने के लिए कहा। हालांकि, करुणा भगवान गणेश का वजन सहन नहीं कर सकीं और उन्होंने उनसे हल्के वजन वाले होने का अनुरोध किया जो कि मुस्कराता है। तब से मूषक भगवान गणेश का वाहन है।
गणेश जी के अवतरण दिवस की बहुत अच्छी विस्तृत जानकारी
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