गणेश चतुर्थी भगवान गणेश जी का प्रगटोत्सव Ganesh Chaturthi Festival of Lord Ganesha
गणेश चतुर्थी भगवान गणेश जी का प्रगटोत्सव
Ganesh Chaturthi Festival of appearance of Lord Ganesha
गणेश चतुर्थी : गणेश जी का अवतरण दिवस
Ganesh Chaturthi: Incarnation day of Lord Ganesha
गणेश चतुर्थी : गणेश जी का जन्म दिवस
Ganesh Chaturthi: Birthday of Lord Ganesha
गणेश चतुर्थी भगवान गणेश का प्रगटोत्सव !
भगवान गणेश के प्रगटोत्सव को गणेश चतुर्थी के रूप में जाना जाता है। गणेश चतुर्थी के दिन, भगवान गणेश को बुद्धि, समृद्धि और सौभाग्य के देवता के रूप में पूजा जाता है। यह मान्यता है कि भाद्रपद माह में शुक्ल पक्ष के दौरान भगवान गणेश का जन्म हुआ था। अंग्रेजी कैलेण्डर के अनुसार गणेश चतुर्थी का दिन अगस्त अथवा सितम्बर के महीने में आता है।
गणेशोत्सव अर्थात गणेश चतुर्थी का उत्सव, १० दिन के बाद, अनन्त चतुर्दशी के दिन समाप्त होता है और यह दिन गणेश विसर्जन के नाम से जाना जाता है। अनन्त चतुर्दशी के दिन श्रद्धालु-जन बड़े ही धूम-धाम के साथ सड़क पर जुलूस निकालते हुए भगवान गणेश की प्रतिमा का सरोवर, झील, नदी इत्यादि में विसर्जन करते हैं।
गणपति स्थापना और गणपति पूजा मुहूर्त
ऐसा माना जाता है कि भगवान गणेश का जन्म मध्याह्न काल के दौरान हुआ था इसीलिए मध्याह्न के समय को गणेश पूजा के लिये ज्यादा उपयुक्त माना जाता है। हिन्दु दिन के विभाजन के अनुसार मध्याह्न काल, अंग्रेजी समय के अनुसार दोपहर के तुल्य होता है।
हिन्दु समय गणना के आधार पर, सूर्योदय और सूर्यास्त के मध्य के समय को पाँच बराबर भागों में विभाजित किया जाता है। इन पाँच भागों को क्रमशः प्रातःकाल, सङ्गव, मध्याह्न, अपराह्न और सायंकाल के नाम से जाना जाता है। गणेश चतुर्थी के दिन, गणेश स्थापना और गणेश पूजा, मध्याह्न के दौरान की जानी चाहिये। वैदिक ज्योतिष के अनुसार मध्याह्न के समय को गणेश पूजा के लिये सबसे उपयुक्त समय माना जाता है।
मध्याह्न मुहूर्त में, भक्त-लोग पूरे विधि-विधान से गणेश पूजा करते हैं जिसे षोडशोपचार गणपति पूजा के नाम से जाना जाता है।
Meaning Of Lord GANESHA
G- GetA- AlwaysN- NewE- EnergyS- Spirit &H- HappinessA- At All Times!Happy Ganesh Chaturthi!
गणेश चतुर्थी पर निषिद्ध चन्द्र-दर्शन
गणेश चतुर्थी के दिन चन्द्र-दर्शन वर्ज्य होता है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन चन्द्र के दर्शन करने से मिथ्या दोष अथवा मिथ्या कलंक लगता है जिसकी वजह से दर्शनार्थी को चोरी का झूठा आरोप सहना पड़ता है।
पौराणिक गाथाओं के अनुसार, भगवान कृष्ण पर स्यमन्तक नाम की कीमती मणि चोरी करने का झूठा आरोप लगा था। झूठे आरोप में लिप्त भगवान कृष्ण की स्थिति देख के, नारद ऋषि ने उन्हें बताया कि भगवान कृष्ण ने भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी के दिन चन्द्रमा को देखा था जिसकी वजह से उन्हें मिथ्या दोष का श्राप लगा है।
नारद ऋषि ने भगवान कृष्ण को आगे बतलाते हुए कहा कि भगवान गणेश ने चन्द्र देव को श्राप दिया था कि जो व्यक्ति भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी के दौरान चन्द्र के दर्शन करेगा वह मिथ्या दोष से अभिशापित हो जायेगा और समाज में चोरी के झूठे आरोप से कलंकित हो जायेगा। नारद ऋषि के परामर्श पर भगवान कृष्ण ने मिथ्या दोष से मुक्ति के लिये गणेश चतुर्थी के व्रत को किया और मिथ्या दोष से मुक्त हो गये।
मिथ्या दोष निवारण मन्त्र
चतुर्थी तिथि के प्रारम्भ और अन्त समय के आधार पर चन्द्र-दर्शन लगातार दो दिनों के लिये वर्जित हो सकता है। धर्मसिन्धु के नियमों के अनुसार सम्पूर्ण चतुर्थी तिथि के दौरान चन्द्र दर्शन निषेध होता है और इसी नियम के अनुसार, चतुर्थी तिथि के चन्द्रास्त के पूर्व समाप्त होने के बाद भी, चतुर्थी तिथि में उदय हुए चन्द्रमा के दर्शन चन्द्रास्त तक वर्ज्य होते हैं।
अगर भूल से गणेश चतुर्थी के दिन चन्द्रमा के दर्शन हो जायें तो मिथ्या दोष से बचाव के लिये निम्नलिखित मन्त्र का जाप करना चाहिये -
सिंहः प्रसेनमवधीत्सिंहो जाम्बवता हतः।
सुकुमारक मारोदीस्तव ह्येष स्यमन्तकः॥
गणेश चतुर्थी को विनायक चतुर्थी और गणेश चौथ के नाम से भी जाना जाता है।
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श्री गणपतिजी की कथा
- अरविन्द सीसौदिया
भारतीय संस्कृति
में निहित भक्ति एवं शक्ति का पर्व अनन्त चतुर्दशी महोत्सव, मूलतः दो
प्रमुख पर्वों के मध्य मनाया जाता है। यह गणेश जी के जन्मोत्सव ‘गणेश
चतुर्थी‘‘ से प्रारंभ हो कर ‘‘श्री अनन्त चतुर्दशी‘‘ तक के 10-11 दिन की
अवधि में मनाया जाता है। इस दौरान गणेश चतुर्थी को घरों में गणेश जी की
प्रतिमाओं तथा मोहल्लों में झांकियो की स्थापना होती है। नित्य प्रातः सायं
पूजा अर्चना एवं आरती होती है, भक्ति संध्याएं आयोजित की जाती हैं तथा
श्री अनन्त चतुर्दशी के दिन इन गणेश प्रतिमाओं का विसर्जन किया जाता है।
अनेकानेक स्थानों पर यह विसर्जन शोभा यात्रा के रूप में सम्पन्न होता है।
कोटा में भी इसी तरह श्री अनन्त चतुर्दशी महोत्सव आयोजन होता है एवं शोभा
यात्रा के रूप में सम्पन्न होता है।
श्री गणेश जन्मोत्सव
ऐसा माना जाता है कि भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी (चौथ) को आदि शक्ति, पंच देवों
में प्रथम पूज्य, गणपति का जन्म शिव-पार्वती की द्वितीय संतान के रूप में
हुआ तथा इसी कारण यह दिन धार्मिक रूप से ‘‘गणेश चतुर्थी व्रत‘‘ के रूप में
सम्पूर्ण देश में मनाया जाता है। लोक मान्यता यह भी है कि गणेश जी के जन्म
के 10 दिन तक उत्सवों का आयोजन हुआ था और इसी कारण प्रतिवर्ष इस अवधि में
आमजन के द्वारा श्रद्धा एवं आस्था से पूजा अर्चना की जाती है। जन मान्यता
यह भी कि इस दौरान जो गणेश स्तुति करते हैं, उन पर गणपति की विषेश कृपा
होती है।
सर्व देवाध्यक्ष श्री गणेश
प्रचलित आख्यान एवं
धार्मिक मान्यता यह है कि आदि महाशक्ति माता पार्वती ने अपने अंतःपुर
(आवास) कैलाश पर्वत पर पुत्र गणेश को द्वारपाल नियुक्त किया और किसी को भी
प्रवेश नहीं देने की आज्ञा देकर, वे स्नान करने चली गई थी। इसी दौरान भगवान
शिव शंकर द्वार पर आ पहुंचे, श्री गणेश ने उन्हें समझाया कि माता अभी
स्नान पर बैठी हैं। उनकी आज्ञा है कि किसी को भी प्रवेश नहीं दिया जाये,
अतः आप कुछ समय पश्चात पधारें।
शिव जी के अनेकानेक बार समझाने
पर भी गणेश जी ने प्रवेश की अनुमति नहीं दी। फिर गणों और देवों के द्वारा
गणेश जी को हटाने का प्रयत्न किया गया, जिसमें वे सफल नहीं हुए और अन्त में
शंकर भगवान ने त्रिशुल से गणेश जी का सिर काट कर उनका वध कर दिया।
ज्यों ही यह बात आदि महाशक्ति पार्वती को ज्ञात हुई तो वे शोक ग्रस्त
होकर क्रोधित हो उठी। उन्होंने अपनी शक्तियों को प्रलय मचाने का आदेश दे
दिया। ब्रह्माण्ड में हाहाकार मच गया, कोई भी देव शक्ति इस उत्पाद को रोक
नहीं सकी और अन्त में महर्षि नारद जी की सलाह पर माता पार्वती की शरण में
पहुंच कर देव शक्तियों ने अनुनय विनय स्तुतियां की, तब माता पार्वती ने देव
शक्तियों को आज्ञा दी कि 1. श्री गणेश को पुनः जीवित किया जाये, 2. सभी
देवीय शक्तियां गणेश से पराजित हुई है इसलिये देवगण उन्हें अपना अध्यक्ष
माने एवं प्रथम पूजन का अधिकार दें, और 3. समस्त पूजाओं, अनुष्ठानों एवं
मंगल आयोजनों में जब तक गणेश की पूजा न हो जाये तब तक वे फलीभूत न हों।
उपरोक्त तीनों मांगों को देवों ने स्वीकार किया भगवान विष्णु जी ने
गणेश जी को नया मस्तक प्रदान किया। भगवान शिव जी ने उनमें प्राणों का संचार
कर पुनः जीवित किया एवं भगवान ब्रह्मा जी ने उन्हें सभी देवों का अध्यक्ष
(देवों का भी देव, देवा ओ देवा) तथा प्रथम पूज्य घोषित किया। (शिवपुराण से)
गणेशोत्सव
भगवान श्री गणेश की प्रतिष्ठा सम्पूर्ण भारत में समान रूप से व्याप्त
है, महाराष्ट्र में मंगलकारी देवता के रूप में ‘‘मंगल मूर्ति‘‘ के नाम से
पूज्य हैै। महाराष्ट्र में अष्टगणपति के आठ तीर्थ स्थान प्रसिद्ध हैं जहॉ
की परिक्रमा करना प्रत्येक महाराष्ट्रीयन हिन्दू अपना पवित्र कर्म मानता
है। दक्षिण भारत में भी इनकी विषेश लोकप्रियता ‘कला शिरोमणि‘ के रूप में
है। मैसूर तथा तंजौर के मंदिरों में गणेश की नृत्य मुद्रा में अनेक मनमोहक
प्रतिमाएं हैं।
गणेष हिन्दुओं के आदि आराध्य देव हैं। हिन्दू
धर्म में गणेश को एक विशिष्ठ स्थान प्राप्त है, कोई भी धार्मिक उत्सव हो
यज्ञ पूजन इत्यादि सत्कर्म हों या फिर विवाहोत्सव हो, जन्मोत्सव हो अथवा
व्यापार या किसी अन्य कार्य का शुभारंभ हो उसे निर्विघ्न सम्पन्न करने के
लिये “शुभ” के रूप में गणेश की पूजा सबसे पहले की जाती है।
महाराष्ट्र में तो सात वाहन, राष्ट्रकूट, चालुक्य आदि राजवंशों ने
गणेशोत्सव की प्रथा को विशेष रूप से प्रचलित करवाया। महाराज छत्रपति शिवाजी
के शासन काल में गणेश उत्सवों तथा गणेश उपासना का विशेष विकास हुआ।
गणेश महिमा
गणेश जी पंचदेवों में प्रथम पूज्य हैं, गुरू पूजा से भी पूर्व आराधना
योग्य हैं। सभी मतों व पंथों में मौखिक व आध्यात्मिक कर्मों में प्रथम
पूज्य के रूप में लोकमान्य हैं। सर्वाधिक लोकप्रिय देवताओं में एक गणेश या
गणपति को बुद्धि का प्रतीक और सौभाग्य लाने वाला माना जाता है। उनकी दोनों
पत्नियां रिद्धि और सिद्धि उनके दांये - बांये विराजती हैं, उनके पुत्र शुभ
और लाभ हैं। इसलिये ये सुख, समृद्धि और वैभव के देव माने गये हैं, इसी
कारण ये मंगल करने वाले और अमंगल हरने वाले, प्रभावशाली देव के रूप में
पूज्य हैं।
कहा जाता है कि उनका हाथीनुमा मस्तिष्क विराट ज्ञान
और बुद्धि का प्रतीक हैं, नटखट आंखे, लम्बे कानों से संसार में घटित हो
रहा कुछ भी उनसे बचता नहीं है उनकी नाक रूपी लम्बी संूड अनहोनी को सूंघ
लेती है। उनका लम्बा उदर हर प्रकार की बुराई को पचाने की क्षमता रखता है।
उनका वाहन चूहा हमें यह बताता है कि एक बुद्धिमान व्यक्ति जीवन में छोटी से
छोटी चीजों को भी बराबर महत्व देकर अपने कार्य को सिद्ध कर सकता है।
एक मान्यता यह भी प्रचलित है कि कुकर्मों में रत बुद्धि जो चुहे की
भांति व्यक्ति व समाज को कुतरती हुई सद्कार्यों में बाधा डालती है। वह केवल
गणेश जैसे विराट बुद्धि बल के आरोही के ही बस में आ सकती है।
गणेश चतुर्थी के दिन गणपति के विग्रह की स्थापना शुद्धि व बुद्धि की साधना
का प्रारंभ है। यह भी मान्यता है कि दांई तरफ झुकी हुई सूंड समृद्धि एवं
रिद्धि सिद्धि की दात्री है। वहीं बायीं तरफ झुकी सूंड ऐष्वर्य व शत्रु
विजय देने वाली है।
गणपति जी को सिखाने वाला देवता भी माना
जाता है। उन्हें विघ्नहर्ता कह कर पुकारा जाता है, प्रवेश द्वारों पर और
मार्गों पर अक्सर उनकी तस्वीर या प्रतीक चिन्ह देखने का मिलते हैं। मान्यता
रही है कि उगते सूरज की तरफ जिस भी घर के सामने उनकी तस्वीर लगी होती है,
वहां वास्तु दोष नहीं होता है।
गणपति का मूल रूप से
शासनाध्यक्ष के रूप में भी शासन व्यवस्था सूत्र देते हैं जो एक राष्ट्र
प्रमुख की गुणवत्ताएं होनी चाहिए वह सभी गुणवत्ताएं गणेश जी के मस्तिष्क,
कान, आंख, सूंड, उदर और सवारी रूपी मूषक के रूप में अपनी - अपनी क्षमताओं
का प्रदर्शन करती हैं।
पूर्वार्द्ध...
यूं तो
अन्तर्राष्ट्रीय स्तर हुए अनेकों शोधों में माना गया है कि श्री गणेश
प्राचीनतम आराध्य देवों में से एक हैं तथा उन्हें सम्पूर्ण पृथ्वी पर किसी न
किसी रूप में जाना, पहचाना और पूजा जाता रहा है। वर्तमान समय में सर्वाधिक
प्रतिमायें और प्रतिदिन सर्वाधिक पूजनीय देव श्री गणेश ही हैं।
कहते हैं कि पुणे में कस्बा गणपति नाम से प्रसिद्ध गणपति की स्थापना
शिवाजी महाराज की मां जीजा बाई ने की थी। मराठा पेशवाओं ने गणोत्सव को
बढ़ावा दिया। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने
गणेशोत्सव को जो विशेष स्वरूप दिया उससे गणेश राष्ट्रीय एकता के प्रतीक बन
गये। तिलक जी के प्रयास से जो गणेश पूजा पहले परिवार तक सीमित थी, वह
सार्वजनिक महोत्सव बन गई। इस दौर में वह केवल धार्मिक कर्मकाण्ड तक ही
समिति नहीं रही, बल्कि आजादी की लड़ाई, छुआछूत दूर कर सामाजिक समरसता लाने
वाली,समाज को संगठित करने और आम आदमी का ज्ञानवर्द्धन करने की विधा भी बनी।
यह सम्पूर्ण महाराष्ट्र में एक आन्दोलन बन कर प्रकट हुई, इस आन्दोलन ने
ब्रिटिश साम्राज्य की नींवें हिलाने का महत्वपूर्ण कार्य किया, जिसकी चर्चा
रोलेट समिति रपट में भी आई है।
लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने
1893 में गणेशोत्सव का जो सार्वजनिक पौधा रोपण किया था, वह अब विराट वट
वृक्ष का रूप ले चुका है। अकेले महाराष्ट्र में ही 50 हजार से ज्यादा
सार्वजनिक गणेशोत्सव मण्डल हैं। इसके अलावा आंध्र प्रदेश, कर्नाटक,
मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश और गुजरात में भी हजारों की संख्या में
गणेशोत्सवों का आयोजन होता है। इस अवसर पर सम्पूर्ण देश में कहीं ना कहीं,
कोई ना कोई विशेष आयोजन /उत्सव आयोजित किया जाता है।
रोलेट
समिति रपट की रिपोर्ट में तब आया था कि गणेशोत्सव के दौरान युवकों की
टोलियां सडकों पर घूम घूम कर देश की स्वतंत्रता, राष्ट्रभक्ति और अंग्रेजी
शासन के विरोधी गीत गाती थी, स्कूली बच्चे पर्चे बांटते थे तथा अंग्रेजी
शासन से मुक्त होने के लिये शिवाजी की तरह विद्रोह का आहृान करते थे। इसके
द्वारा गुलामी से मुक्ति के लिये धार्मिक संघर्ष को जरूरी बताया जाता था।
वीर सावरकर और कवि गोविन्द ने नासिक में मित्र मेला संस्था बनाई थी।
इस संस्था का काम देश भक्तिपूर्ण लोक गीतों को सुनाना, आकर्षक ढंग से बोलकर
नाट्य मंचन करना एवं राम - रावण कथा, कृष्ण - कंस कथा जैसे प्रसंगों के
द्वारा समान कर्त्तव्य का भाव जागृत कर समाज में चेतना लाने का कार्य किया
गया।
इन गणेशोत्सवों में भाषण देने के लिये देश के बडे़ बड़े
नेताओं और महापुरूषों ने भाग लिया है। जिनमें वीर विनायक दामोदर सावरकर,
लोकमान्य बालगंगाधर तिलक, नेताजी सुभाष चन्द्र बोस, डाक्टर केशवराव बलिराम
हेडगवार, पंडित मदन मोहन मालवीय, श्रीमती सरोजिनी नायडू , बेरिस्टर जयकर,
रेंगलर परांजपे , बेरिस्टर चक्रवर्ती , दादासाहेब खापर्डे, डाक्टर मुंजे
आदि प्रमुख थे।
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