पितृ सूक्त पाठ - पितृ दोषों से मुक्ति Pitra Sookta

 

पितृ सूक्त पाठ - पितृ दोषों से मुक्ति

सैकड़ों पितृ दोषों से मिल जाएगी मुक्ति, 

पितृ पक्ष में सुबह-शाम कर इस पितृ स्त्रोत वंदना का पाठ


पितृ पक्ष में इस स्त्रोत के पाठ मात्र से पितृ दोष के कारण होने वाली सैकड़ों परेशानियां दूर हो जाती है

सैकड़ों पितृ दोषों से मिल जाएगी मुक्ति, पितृ में सुबह-शाम कर इस पितृ स्त्रोत वंदना का पाठ

अगर किसी को पितृ दोष जैसी समस्या हो तो वे पितृ पक्ष में इस पितरों के दिव्य कृपा स्त्रोत का सुबह एवं शाम को दोनों समय एक सरसों के तेल का दीपक जलाकर श्रद्धा पूर्वक अर्थ सहित पाठ करें। पितृ पक्ष में इस स्त्रोत के पाठ मात्र से पितृ दोष के कारण होने वाली सैकड़ों परेशानियां दूर हो जाती है।


पितृ सूक्त पाठ की विधि 

(Pitra Suktam Path Vidhi)

पितृ सूक्त में पितरों को प्रसन्न करने के लिए श्लोक दिए गए हैं, जिसमें देव, मनुष्य, ऋषि, मुनि समेत सभी पितरों का गुणगान किया गया है. पितृ पक्ष में रोजाना स्नान के बाद दक्षिण दिशा में मुख करके कुशा के आसान पर बैठ जाएं. एक तेल का दीपक लगाएं. फिर पितरों को ध्यान करके पितृ सूक्त का पाठ प्रारंभ करें. पितृ सूक्त पाठ दोपहर में करना श्रेष्ठ होगा. संध्याकाल में इसे कर सकते हैं. पाठ संपन्न हो जाने के बाद पीपल में जल जरुर चढ़ाएं.


पितृ सूक्त पाठ  ( Pitra Suktam Path )


उदिताम् अवर उत्परास उन्मध्यमाः पितरः सोम्यासः।

असुम् यऽ ईयुर-वृका ॠतज्ञास्ते नो ऽवन्तु पितरो हवेषु॥

अंगिरसो नः पितरो नवग्वा अथर्वनो भृगवः सोम्यासः।

तेषां वयम् सुमतो यज्ञियानाम् अपि भद्रे सौमनसे स्याम्॥

ये नः पूर्वे पितरः सोम्यासो ऽनूहिरे सोमपीथं वसिष्ठाः।

तेभिर यमः सरराणो हवीष्य उशन्न उशद्भिः प्रतिकामम् अत्तु॥

त्वं सोम प्र चिकितो मनीषा त्वं रजिष्ठम् अनु नेषि पंथाम्।

तव प्रणीती पितरो न देवेषु रत्नम् अभजन्त धीराः॥

त्वया हि नः पितरः सोम पूर्वे कर्माणि चक्रुः पवमान धीराः।

वन्वन् अवातः परिधीन् ऽरपोर्णु वीरेभिः अश्वैः मघवा भवा नः॥

त्वं सोम पितृभिः संविदानो ऽनु द्यावा-पृथिवीऽ आ ततन्थ।

तस्मै तऽ इन्दो हविषा विधेम वयं स्याम पतयो रयीणाम्॥

बर्हिषदः पितरः ऊत्य-र्वागिमा वो हव्या चकृमा जुषध्वम्।

तऽ आगत अवसा शन्तमे नाथा नः शंयोर ऽरपो दधात॥

आहं पितृन्त् सुविदत्रान् ऽअवित्सि नपातं च विक्रमणं च विष्णोः।

बर्हिषदो ये स्वधया सुतस्य भजन्त पित्वः तऽ इहागमिष्ठाः॥

उपहूताः पितरः सोम्यासो बर्हिष्येषु निधिषु प्रियेषु।

तऽ आ गमन्तु तऽ इह श्रुवन्तु अधि ब्रुवन्तु ते ऽवन्तु-अस्मान्॥

आ यन्तु नः पितरः सोम्यासो ऽग्निष्वात्ताः पथिभि-र्देवयानैः।

अस्मिन् यज्ञे स्वधया मदन्तो ऽधि ब्रुवन्तु ते ऽवन्तु-अस्मान्॥

अग्निष्वात्ताः पितर एह गच्छत सदःसदः सदत सु-प्रणीतयः।

अत्ता हवींषि प्रयतानि बर्हिष्य-था रयिम् सर्व-वीरं दधातन॥

येऽ अग्निष्वात्ता येऽ अनग्निष्वात्ता मध्ये दिवः स्वधया मादयन्ते।

तेभ्यः स्वराड-सुनीतिम् एताम् यथा-वशं तन्वं कल्पयाति॥

अग्निष्वात्तान् ॠतुमतो हवामहे नाराशं-से सोमपीथं यऽ आशुः।

ते नो विप्रासः सुहवा भवन्तु वयं स्याम पतयो रयीणाम्॥

आच्या जानु दक्षिणतो निषद्य इमम् यज्ञम् अभि गृणीत विश्वे।

मा हिंसिष्ट पितरः केन चिन्नो यद्व आगः पुरूषता कराम॥

आसीनासोऽ अरूणीनाम् उपस्थे रयिम् धत्त दाशुषे मर्त्याय।

पुत्रेभ्यः पितरः तस्य वस्वः प्रयच्छत तऽ इह ऊर्जम् दधात॥


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