सनातन आदि अनन्त है, दक्षिण से अब हिन्दू विरोधियों के पांव उखडने वाले हैं - अरविन्द सिसौदिया

 Sanatan

भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी ने सनातन के विषय में कहा है कि “ सनातन सिर्फ एक शब्द नहीं है, नित्य नूतन है,पविर्तन शील है। इसमें बीते हुए कल से खुद को और बेहतर बनानें की अंतर चेष्ठा है। इसलिए सनातन अजर - अमर है।“

Indian Prime Minister Narendra Modi has said about Sanatan that “Sanatan is not just a word, it is always new and changing. In this there is an inner effort to make oneself better than yesterday. Therefore Sanatan is ( Ajar & Amar )immortal.




“सनातन केवल एक शब्द नहीं है, यह नित्य-नूतन है, नित्य-परिवर्तनशील है। इसमें अतीत से स्वयं को बेहतर बनाने की इच्छा शामिल है और इसलिए सनातन अजर - अमर है।”

“Sanatan is not just a word, it is ever-new, ever-changing. It involves the desire to improve oneself from the past and is therefore eternal – immortal.”

सामान्य रूप से कोई भी व्यक्ति यह कहे कि , में सनातन को जानता है, हिंदू और हिंदुत्व को जानता हूँ, भारतीय संस्कृति को जानता हूँ, वैदिक संस्कृति को जानता हूँ , तो मेरा मानना है कि वह वास्तविक सनातन को, वास्तविक हिंदुत्व को, नहीं जानता बल्कि वह सुनी सुनाई बातें ही कह रहा हे अथवा कर रहा है। क्यों कि पिछले लगभग एक हजार वर्षों से सनातन अपने अस्तित्व की रक्षा का युद्ध लड़ रहा है, उसे समाप्त करने वालों से वह संघर्षरत है। सनातन के पूरे सामर्थ्य को, सही सामर्थ्य को समान्यतः बताने की क्षमता वाले लोग या तो चुप रहते हैं, या राजनैतिक कारणों से उद्घोषित नहीं कर पाते हैं। बहुत कम लोग हैं जो पूरी ताकत से सनातन का उद्घोष कर पाते हैं। इसलिए इन -जनरल आम हिन्दू के पास अधूरा ज्ञान  होता है अथवा विदेशी साजिशों के तहत फैलाया झूठ उसके पास होता है। जबकि सनातन पूर्ण है, परिपक्व है, परमार्थ करने वाला है  पुरषार्थ पूर्ण है।

जैसे कि सनातन नाम भगवान विष्णु जी के प्रथम अवतार जो कि सनतकुमारों के रूप में हुआ था, जिनमें एक नाम सनातन था । इसलिये मानव सभ्यता को प्रथम उद्भव सनतकुमारों से हुआ और उन्ही के कारण यह मानव सभ्यता सनातन नाम से जानी गई । हिन्दु कुश पर्वत जो कि हिमालय पर्वत श्रृंखला का हिस्सा है और पश्चिमी छोर पर स्थित है, उसके पूर्व में समुद्र पर्यन्त रहने वाले हिन्दू कहलाये। यह भौगोलिक पहचान है। इसी तरह देव कन्या आर्या की संतानों ने शासन किया तब यह क्षैत्र आर्यावर्त भी कहलाया । यू तो सम्पूर्ण पृथ्वी की सभ्यता सनातन ही है, इसके सातों महादीपों पर सनातन का ही साम्राज्य रहा है। एसिया महादीप आसमान से जामुन के आकर का दिखता है, इसलिये यह जम्बूदीप भी कहा जाता है, हमारे संकल्प श्लोक में आता है। जम्बू दीपे भरत खण्डे आर्यावर्ते..... सनातन बहुत गहरा है, हजारों संस्कृत ग्रन्थ इसके रहे है। जब विदेशियों नें नालंदा को तक्षशिला को नष्ट किया तब सनातन संस्कृति को सब कुछ नष्ट हुआ है, जो कुछ हमारी परंम्पराओं में बचा रहा है, वही हमारा मार्ग दर्शन करता है।


विशेष कर राजनीति में काम करने वाले ज्यादातर लोगों को, उनके राजनैतिक दल के द्वारा जो कुछ परोसा जाता है, वे उसी के इर्द गिर्द होते हैं। कांग्रेस और कम्युनिष्ट पार्टियों में हिन्दू विरोधी विचारों के साथ चलने वालों का तेजी से राजनैतिक उत्थान होता है। जवाहरलाल नेहरू स्वंय साम्यवादी विचारों से बुहत अधिक प्रभावित थे। कांग्रेस के शासन में साम्यवाद नें जम कर भारत की बौधिक विरासत को नष्ट किया अपवित्र किया और उसमें बहुत कुछ गलत फहमियों उत्पन्न करनेवाली सामग्री को मिला दिया गया ताकि सनातन ग्रंथों को आधार बना कर हिन्दूओं पर दोषारोपण किया जा सके।  कांग्रेस जैसी ही सोच वोट बैंक पोलिब्क्सि के कारण सपा, आरजेड़ी, टीएमसी, आप पार्टी की है। केरल और तमिलनाडु में भी यही राजनैतिक स्थिति है। अर्थात अल्पसंख्यक वोट बैंक के लिए हिन्दू विरोधी दिखना बहुत आवश्यक है और यही नीती नये नये बनें कांग्रेस के गठबंधन की है। उन्हें अल्पसंख्यक मुस्लिम और ईसाई वोटों के लिए हिन्दू विरोधी दिखना जरूरी है। और हाल ही में डी एम के के राजकुमार उदयनिधि स्टालीन और फिर उनके समर्थन में प्रियांक खरगे के द्वारा सनातन विरोधी बयान दिए गये, किन्तु ये दोनों और इनके समर्थक सनातन को, हिंदुत्व को, भारतीय संस्कृति को तिनके भर भी नहीं जानते है, ये सनातन पर बहस में 5-5 मिनिट भी टिक नहीं सकते, महज राजनैतिक फायदे के कारण बकवास कर रहे हैं। ये दोनों वहाँ की राज्य सरकारों में मंत्री है, पुलिस कोई कार्यवाही करेगी नहीं, इसलिए ये निश्चिन्त भी हैं।

यह बात सिर्फ राजनैतिक राजकुमारों की ही नहीं वरन आम हिन्दू की भी है कि धर्म संस्कृति और उसकी गहराई की जानकारी ही नहीं होती है। और ज्यादातर लोग सुनी सुनाई बातों के आधार पर ही कुछ तो भी कहते रहते हैं।

सनातन धर्म का पृथ्वी पर वर्तमान प्रादुर्भाव लगभग दो अरब वर्ष पूर्व से माना जाता है, किंतु जब हम रामचरितमानस और भागवत सहित अनेक अनेक धर्म ग्रंथो का अध्ययन करते हैं तो पाते हैं कि सनातन अनादि कालीन है और अनन्त तक है। जो अनन्तकाल से रहा है और अनन्तकाल तक रहेगा। जो शास्वत है, निरंतर है। नित नव नूतनता के साथ है। 

मोटे तौर पर हम माने तो सनातन सृष्टि के सर्जन से ही अस्तित्व में है। सृष्टि में व्याप्त ज्ञान, विज्ञान और अनुसंधान के अनुभवों का एक विराट संग्रह भी है और इस तरह का संग्रह एकमात्र सनातन के पास ही है,जो उसके संस्कृत साहित्य में मौजूद है। मानव सभ्यता के लम्बे जीवन में अनुभव से प्राप्त श्रैष्ठताओं के कारण सनातन संपूर्ण विश्व का सबसे शांति प्रिय, समन्वयवादी और मानवतावादी समाज का निर्माता व हित चिंतन को करने वाला है। यही एकमात्र जीवन पद्धति है जिसने सम्पूर्ण विश्व को मार्ग दिखाया, समाज व्यवस्था दी जिसे हम सनातन के नाम से,  हिंदूके नाम से, भारतीय नाम से अथवा वैदिक के नाम जानते हैं। 

सनातन वहीं से शिरू होता है जहां से ईश्वर का अस्तित्व प्रारम्भ होता है। ईश्वर और ईश्वर की शक्तियों, उनके सहायक देवी देवताओं आदि के कर्त्तव्यों , भूमिकाओं पर जो अनुसंधान सनातन नें किया है, वह अन्य किसी के पास नहीं है। विश्व की सबसे प्राचीन पुस्तक जिसे ऋग्वेद कहा गया है को संयुक्त राष्ट्रसंघ ने स्विकार किया है। इस संपूर्ण सृष्टि को उत्पन्न करने वाले देव ऋषि बृम्हा जी, संचालन करने वाले देव भगवान विष्णु जी,और जब यह अपना अनुशासन खो देती है तब इसको नष्ट करने वाले भगवान महादेव की भूमिकाओं को सबसे पहले जानने वाले सनातनी ही हैं। अंग्रजी में जो गॉड शब्द है वह भी जनरेट,आपरेट, डिस्ट्राय की शोर्ट फोर्म ही है। यह सर्जन, संचालन और संहार का क्रम अनादि काल से अनेको बार निरंतर चला रही है और अनन्तकाल तक चलते रहने वाला है। जिसका कोई ठीक ठीक काल कभी कोई वैज्ञानिक निश्चित नहीं कर सकता, क्योंकि यह ईश्वरीय शक्तियां स्वयं विज्ञान की निर्माता हैं, विज्ञान के नियमों को बनाने वाली हैं और विज्ञान के नियमों को ही पालन करने वाली है। आदि अनन्त है सनातन !

सनातन ही सबसे पहले उदघोष करता है कि एक नहीं तीन शक्तियां मिल कर जगत को चलाती हैं। संसार की संपूर्ण सृष्टि में विद्वान एक परमाणु के अंदर भी इलेक्ट्रॉन न्यूट्रॉन और प्रोटोन नाम से तीन शक्तियों अलग-अलग रहते हुए भी एक साथ होना प्रमाणित करते है। सनातन कहता है प्रणव अक्षर में तीनों एका अर्थात इन्हीं तीन शक्ति और इन्हीं तीन देवों के आधार पर चलता है जिसे ना कोई आज तक चुनौती दे पाया न भविष्य में कोई दे पाएगा । - ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका, प्रणवाक्षर के मध्ये ये तीनों एका, इसका अर्थ है ब्रह्मा विष्णु शिव को जो अलग मानता है वो बुद्धिहीन है। क्योंकि ये स्वयं परमात्मा के तीन स्वरुप हैं।

इस संस्कृति का हिंदू नाम पढ़ने के पीछे भी, हिंदू कुश पर्वत जो कि हिमालय पर्वत का पश्चिमी छोर है उसी के कारण हम हिंदू कहलाए हैं। संस्कृत साहित्य में हिन्दुकुश पर्वत हिमालय ही माना गया है। हिंदू एक प्रकार से यहां मौजूद सनातन संस्कृति का भौगोलिक नाम कहा जा सकता है। क्योंकि सनातन संस्कृति अनन्तकाल प्राचीन , विराट और विशाल रही है, इस पृथ्वी लोक के अलावा भी अन्य लोकों  पर भी उसके अस्तित्व एवं प्रभु सत्ता का वर्णन हमें मिलता है। इस सनातन का अपना स्वभाव है समाज है उत्पत्ति है विराटता है वैभव है यह पूर्ण है सम्पूर्ण है। इसके बहुत छोटे अंश के आधार पर ही हम संपूर्ण विश्व में सर्वश्रेष्ठ मानव प्रजाति बने हुए हैं, जो लोग इसमें कमियां ढूंढ रहे हैं, जो लोग इसमें बुराइयां ढूंढ रहे हैं । जो लोग इस पर मिथ्या आरोप लगाना चाहते हैं। उनसे आग्रह है कि पहले मानव समाज के अन्य पंथ्यों पर भी निगाह डाललें, अन्य जीवन पद्धतियों को देखलें और अन्य जीवन शैलियों पर भी निगाह डाललें। याद रखें 60 लाख यहूदियों को गैस चेम्बंर में डाल कर मारने वाले हिन्दू नहीं थे। याद रहे हिरोशिमा और नागाशाकी पर परमाणु बम गिरा कर लाखों निर्दोष मानवों की हत्या करने वाले हिन्दू नहीं थे। याद रहे कई कई धर्म युद्ध लडने वाले हिन्दू नहीं थे। स्त्रियों का धार्मिक आधार पर अपमान करने वाले हिन्दू नहीं थे। सनातन सत्य का, धर्म का, धर्म के दसगुणों का अनरत आचरण करने वाला समाज है। 


जिस तरह हर देश में कानून और सरकार होनें के बाद भी हत्या,बलात्कार,अपहरण,लूट-डकैती-चोरी , मारपीट आदि जघन्य अपराध होते ही हैं। ठीक उसी तरह से ही मानव स्वभाव के कारण सभी पंथ्यों, संप्रदायों , परंपराआ,ें जीवन पद्धतियों और सामाजिक पद्धतियों मैं अच्छा और बुराई दोनों तरह से लोग मिलते है। बुरे लोग मिलते हैं तो इसके कारण जो अच्छाई का संदेश है, नियम कानून है , उसे बुरा नहीं माना जा सकता । यह देवदानव प्रकृति है , यह दिन और रात की तरह है यह पॉजिटिव और नेगेटिव है,यह हमेशा होती ही है। जो समाज सदगुणों के संस्कार देकर बुराईयों से बचा लेता है। वह श्रेष्ठ कहलाता है। सनातन इसीलिये श्रेष्ठ है कि वह संस्कारित है।

स्टालिन या खड़गे के पुत्रों के द्वारा अहंकार के अंधकार में, जो कुछ कहा गया है वह आसमान पर थूकने जैसा है जो उन पर ही वापस आकर के गिरना है, भारत के किसी भी सामाजिक ढांचे में कोई भी उनका समर्थन नहीं कर रहा है। न ही भविष्य में कोई उनके समर्थन में खड़ा होगा । क्योंकि भारत के 140 करोड लोगों में कोई भी सनातन को समाप्त नहीं कर सकता और ना करना चाहता। यह सिर्फ एक राजनीतिक वोट बैंक की मक्कारी मात्र है जिसे इस देश का जन्मा बच्चा बच्चा समझता है। यह भी याद रहे कि अपनी समझ के आधार पर भारत का वोटर, अपनी वोट की शक्ति से सबक भी सीखाना है। दक्षिण से अब हिन्दू विरोधियों के पांव उखडने वाले हैं। यह घटना इसी ओर संकेत कर रही है।

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ओली अमितः

11 फ़रवरी 2021  · 

सृष्टि के आरम्भ से लेकर आज तक का सनातन धर्म का

वैदिक केलेंडर (सनातन 4 वेदो की तारीख)

1 अरब 96 करोड 8 लाख 53 हजार 122 वा वर्ष सृष्टी का अभी चल रहा है (1,96,8,53,122वा साल) / 11 फ़रवरी 2021

हिन्दुओ..अपने सनातन वेदो को जानो, वापस सनातन बनो

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ओली अमित : 10 जुलाई 2020

सनातन धर्म क्या है ?

सनातन धर्म क्या है ?


सनातन धर्म क्या है ?

'सनातन' का अर्थ है - शाश्वत या 'हमेशा बना रहने वाला', अर्थात् जिसका न आदि है न अन्त।सनातन धर्म मूलत: भारतीय धर्म है, जो किसी ज़माने में पूरे वृहत्तर भारत तक व्याप्त रहा है

, जिस बातों का शाश्वत महत्व हो वही सनातन कही गई है, जैसे सत्य सनातन है, ईश्वर ही सत्य है, आत्मा ही सत्य है, मोक्ष ही सत्य है और इस सत्य के मार्ग को बताने वाला धर्म ही सनातन धर्म भी सत्य है, वह सत्य जो अनादि काल से चला आ रहा है और जिसका कभी भी अंत नहीं होगा वह ही सनातन या शाश्वत है, जिनका न प्रारंभ है और जिनका न अंत है उस सत्य को ही सनातन कहते हैं, यही सनातन धर्म का सत्य है।

वैदिक या हिंदू धर्म को इसलिये सनातन धर्म कहा जाता है, क्योंकि? यही एकमात्र धर्म है जो ईश्वर, आत्मा और मोक्ष को तत्व और ध्यान से जानने का मार्ग बताता है, आप ऐसा भी कह सकते हो कि मोक्ष का कांसेप्ट इसी धर्म की देन हैं, एकनिष्ठता, योग, ध्यान, मौन और तप सहित यम-नियम के अभ्यास और जागरण मोक्ष का मार्ग है, अन्य कोई मोक्ष का मार्ग नहीं है, मोक्ष से ही आत्मज्ञान और ईश्वर का ज्ञान होता है, यही सनातन धर्म का सत्य है।

सनातन धर्म के मूल तत्व सत्य, अहिंसा, दया, क्षमा, दान, जप, तप, यम-नियम हैं जिनका शाश्वत महत्व है, अन्य प्रमुख धर्मों के उदय के पूर्व वेदों में इन सिद्धान्तों को प्रतिपादित कर दिया गया था- "असतो मा सदगमय, तमसो मा ज्योर्तिगमय, मृत्योर्मा अमृतं गमय" यानी हे ईश्वर, मुझे असत्य से सत्य की ओर ले चलो, अंधकार से प्रकाश की ओर ले चलो, मृत्यु से अमृत की ओर ले चलो।

जो लोग उस परम तत्व परब्रह्म परमेश्वर को नहीं मानते हैं वे असत्य में गिरते हैं, असत्य से जीव मृत्युकाल में अनंत अंधकार में पड़ जाता हैं, उनके जीवन की गाथा भ्रम और भटकाव की ही गाथा सिद्ध होती है, वे कभी अमृत्व को प्राप्त नहीं होते, मृत्यु आये इससे पहले ही सनातन धर्म के सत्य मार्ग पर आ जाने में ही भलाई है, अन्यथा अनंत योनियों में भटकने के बाद प्रलयकाल के अंधकार में पड़े रहना पड़ता है।

पूर्णमद: पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्णमुदच्यते।

पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते।।

सत्य सत् और तत् से मिलकर बना है, सत का अर्थ यह और तत का अर्थ वह, दोनों ही सत्य है, "अहं ब्रह्मास्मी और तत्वमसि" यानी मैं ही ब्रह्म हूँ और तुम भी ब्रह्म हो, यह संपूर्ण जगत ब्रह्ममय है, ब्रह्म पूर्ण है, यह जगत् भी पूर्ण है, पूर्ण जगत् की उत्पत्ति पूर्ण ब्रह्म से हुई है, पूर्ण ब्रह्म से पूर्ण जगत् की उत्पत्ति होने पर भी ब्रह्म की पूर्णता में कोई न्यूनता नहीं आती, वह शेष रूप में भी पूर्ण ही रहता है, यही सनातन सत्य है।

जो तत्व सदा, सर्वदा, निर्लेप, निरंजन, निर्विकार और सदैव स्वरूप में स्थित रहता है उसे सनातन या शाश्वत सत्य कहते हैं, वेदों का ब्रह्म और गीता का स्थितप्रज्ञ ही शाश्वत सत्य है, जड़, प्राण, मन, आत्मा और ब्रह्म शाश्वत सत्य की श्रेणी में आते हैं, सृष्टि व ईश्वर (ब्रह्म) अनादि, अनंत, सनातन और सर्वविभु हैं।

जड़ पाँच तत्व से दृश्यमान है- आकाश, वायु, जल, अग्नि और पृथ्वी, यह सभी शाश्वत सत्य की श्रेणी में आते हैं, यह अपना रूप बदलते रहते हैं किंतु समाप्त नहीं होते, प्राण की भी अपनी अवस्थायें हैं, प्राण, अपान, समान और यम, उसी तरह आत्मा की अवस्थायें हैं- जाग्रत, स्वप्न, सुसुप्ति और तुर्या।

ज्ञानी लोग ब्रह्म को निर्गुण और सगुण कहते हैं, उक्त सारे भेद तब तक विद्यमान रहते हैं जब तक ‍कि आत्मा मोक्ष प्राप्त न कर ले, यही सनातन धर्म का सत्य है, ब्रह्म महाआकाश है तो आत्मा घटाकाश, आत्मा का मोक्ष परायण हो जाना ही ब्रह्म में लीन हो जाना है, इसीलिये भाई-बहनों, कहते हैं कि ब्रह्म सत्य है, और जगत मिथ्‍या, यही सनातन सत्य है और इस शाश्वत सत्य को जानने या मानने वाला ही सनातनी कहलाता है।

विज्ञान जब प्रत्येक वस्तु, विचार और तत्व का मूल्यांकन करता है तो इस प्रक्रिया में धर्म के अनेक विश्वास और सिद्धांत धराशायी हो जाते हैं, विज्ञान भी सनातन सत्य को पकड़ने में अभी तक कामयाब नहीं हुआ है किंतु वेदांत में उल्लेखित जिस सनातन सत्य की महिमा का वर्णन किया गया है, विज्ञान धीरे-धीरे उससे सहमत होता नजर आ रहा है।

हमारे ऋषि-मुनियों ने ध्यान और मोक्ष की गहरी अवस्था में ब्रह्म, ब्रह्मांड और आत्मा के रहस्य को जानकर उसे स्पष्ट तौर पर व्यक्त किया था, वेदों में ही सर्वप्रथम ब्रह्म और ब्रह्मांड के रहस्य पर से पर्दा हटाकर 'मोक्ष' की धारणा को प्रतिपादित कर उसके महत्व को समझाया गया था, मोक्ष के बगैर आत्मा की कोई गति नहीं इसीलिये ऋषियों ने मोक्ष के मार्ग को ही सनातन मार्ग माना है।

धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष में मोक्ष अंतिम लक्ष्य है, यम, नियम, अभ्यास और जागरण से ही मोक्ष मार्ग पुष्ट होता है, जन्म और मृत्यु मिथ्‍या है, जगत भ्रमपूर्ण है, ब्रह्म और मोक्ष ही सत्य है, मोक्ष से ही ब्रह्म हुआ जा सकता है, इसके अलावा स्वयं के अस्तित्व को कायम करने का कोई उपाय नहीं, ब्रह्म के प्रति ही समर्पित रहने वाले को ब्राह्मण और ब्रह्म को जानने वाले को ब्रह्मर्षि और ब्रह्म को जानकर ब्रह्ममय हो जाने वाले को ही ब्रह्मलीन कहते हैं।

सनातन धर्म के सत्य को जन्म देने वाले अलग-अलग काल में अनेक ऋषि हुयें हैं, उक्त ऋषियों को दृष्टा कहा जाता है, अर्थात जिन्होंने सत्य को जैसा देखा, वैसा कहा, इसीलिये सभी ऋषियों की बातों में एकरूपता है, और जो ऋषियों की बातों को नहीं समझ पाते वही उसमें भेद करते हैं, भेद भाषाओं में होता है, अनुवादकों में होता है, संस्कृतियों में होता है, परम्पराओं में होता है, सिद्धांतों में होता है, लेकिन सत्य में नहीं।

वेद कहते हैं ईश्वर अजन्मा है, उसे जन्म लेने की आवश्यकता नहीं, उसने कभी जन्म नहीं लिया और वह कभी जन्म नहीं लेगा, ईश्वर तो एक ही है यही सनातन सत्य हैं, सत्य को धारण करने के लिये प्रात: योग और प्राणायाम करें तथा दिनभर कर्मयोग करें, वेद-पुराणों को समझे, गौ माता और ब्राह्मण को सम्मान दें, ऋषि परंपराओं को जीवन में अपनायें, सज्जनों, यही सनातनी जीवन हैं।

हरि ओऊम् तत्सत्

जय श्री लक्ष्मीनारायण! 

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भास्कर ओपिनियन

नेताओं का धर्म क्या ?

उदयनिधि की सनातन पर टिप्पणी उचित नहीं

लेखक: नवनीत गुर्जर, नेशनल एडिटर, दैनिक भास्कर

तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन के बेटे उदयनिधि स्टालिन के बयान पर बवाल मचा हुआ है। विवाद सनातन धर्म को लेकर है। हालाँकि उदयनिधि ने अपने बयान पर स्पष्टीकरण दिया है, लेकिन सनातन को ख़त्म करने पर वे अब भी तुले हुए हैं। सवाल यह है कि जो सनातन है उसे कोई ख़त्म कैसे कर सकता है? नेताओं को इस तरह के बयानों से बाज आना चाहिए।

उदयनिधि का कहना है कि सनातन लोगों में, महिला-पुरुषों में भेदभाव करता है, जबकि यह सफ़ेद झूठ है। भेदभाव धर्म नहीं करता, लोग करते होंगे। सनातन ने हमेशा समभाव को ही पल्लवित और पोषित किया है।

मुण्डक उपनिषद में आदि शंकराचार्य और अन्य शंकराचार्यों द्वारा समय-समय पर लिखे गए भाष्य को लेकर पुरी पीठ के जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती ने सभी धर्मों के तुलनात्मक अध्ययन को विद्वत्ता के साथ समझाया है।

वे कहते हैं - वे जो चित्तोजनित शारीरिक सुख को, अनुभूति को ही आत्मा मानते हैं, वे जो केवल चित्त या प्रकारांतर से केवल शरीर को ही आत्मा मानते हैं, उनकी आत्मा शव के समान है।

जैसे शरीर मरता है, उनकी आत्मा भी मर जाती है (वे ऐसा मानते हैं)। सनातन में ऐसा नहीं है। शरीर मरता है, सब कुछ मरता है, लेकिन आत्मा अज है। ब्रह्म है। वह नहीं मरता या मरती।

मुण्डक उपनिषद के मुताबिक सनातनियों का ईश्वर जगत बना भी सकता है और जगत बन भी सकता है। वह राम और कृष्ण की तरह अवतार भी ले सकता है। कहा जा सकता है कि सनातन धर्मियों को जैसा ईश्वर सुलभ है, वैसा और किसी को सुलभ नहीं।

सनातनियों को तीनों तरह के ईश्वर सुलभ हैं। एक निर्गुण-निराकार, दूसरा सगुण-निराकार और तीसरा सगुण-साकार।

ये तीन ईश्वर कौन से हैं ? पहला निर्गुण- निराकार ईश्वर वह है जो सच्चिदानंद है। वेदों-शास्त्रों और उपनिषदों में विद्यमान या ये कहें कि जो भी भगवद् तत्व है वह निर्गुण-निराकार ईश्वर है।

दूसरा सगुण- निराकार ईश्वर वह है जिसका आह्वान महाकवि तुलसीदास ने इस चौपाई में किया है- उमा दार दोषित की नाई, सबहिं नचावत राम गोसाईं।

इस चौपाई में ईश्वर की उपादेयता तो नज़र आ रही है पर वह स्वयं नहीं दिखता। इसलिए यह रूप सगुण- निराकार हुआ। इसी तरह राम, कृष्ण, ये सब ईश्वर के सगुण- साकार रूप हैं। इनकी उपादेयता भी है और ये दिखते भी हैं।

शंकराचार्य कहते हैं - परमात्मा तत्व अपने आप में निर्गुण- निराकार है और यही ईश्वर समय- समय पर सगुण- निराकार और सगुण- साकार भी हो ज़ाया करता है। सनातन की व्यापकता देखिए कि एक अवतार के भी कई रूप हैं। उदाहरण के लिए गौड़ी सम्प्रदाय के संतों ने कृष्ण के पाँच रूप माने।

पहला द्वारिकाधीश कृष्ण, जिसके पास अपार ऐश्वर्य है। दूसरा मथुराधीश कृष्ण, जिसके पास ऐश्वर्य तो है, लेकिन द्वारका से कम। तीसरा बृज मण्डलाधीश कृष्ण, जिसके पास ऐश्वर्य भी है और माधुर्य भी। चौथा निकुंज मंदिराधीश्वर कृष्ण, जो राधा और सखियों के साथ बैठा है।… और पाँचवाँ निवृत्त- निकुंज मंदिराधीश्वर कृष्ण, जिसके पास राधा और रुक्मिणी के सिवाय किसी की पहुँच नहीं है। अलग-अलग भाव और क्रिया के माध्यम से अलग-अलग रूप हो गए।

कुल मिलाकर इतने विस्तृत और महान सनातन के बारे में कोई नेता टिप्पणी करे, यह ठीक नहीं है। इस तरह की टिप्पणियों पर प्रतिबंध लगना चाहिए।

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सनातन धर्म एक ऐसा दर्शन है, जो जीवन को उद्देश्य देता है. ये इस बात को जानने की कोशिश करता है कि हमारे जीवन में पीड़ा क्यों है और फिर इस पीड़ा को खत्म करने का प्रयास करता है. हिंदुइज्म के बारे में आचार्य प्रशांत बताते हैं कि सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा है कि ये विभिन्न प्रकार की मान्यताओं और विश्वासों का समूह है.

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