गठबंधन में फंसे स्वाभिमानी दल, जल्द अलग हो जायेंगे - अरविन्द सिसोदिया I.N.D.I.A.

गठबंधन में फंसे स्वाभिमानी दल, जल्द अलग हो जायेंगे - अरविन्द सिसोदिया  I.N.D.I.A.
I.N.D.I.A. वास्तविक रूप में यह कांग्रेस गठबंधन है, यह इससे पूर्व में यू पी ए था, उससे पहले कांग्रेस ही था। मूलरूप से नेहरू परिवार जन कांग्रेस इसे कहना अधिक उचित होगा।

महात्मा गाँधी नें जब कांग्रेस को भंग करने की सलाह दी तो प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू नें इसे अस्वीकार कर दिया। इसी तरह एक समय जब सरदार वल्लभ भाई पटेल नें संघ को कांग्रेस में विलय की बात रखी तब भी पंडित जवाहरलाल नेहरू नें ही इसका विरोध किया था।

स्वतंत्र भारत में भी कांग्रेस पर पूर्ण कब्जा नेहरू परिवारों नें ही रखा, इसके लिए प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी नें कांग्रेस के अधिकृत राष्ट्रपति प्रत्याशी को, समानांतर प्रत्याशी से हरवाया था, वहीं एक समय उन्होंने कांग्रेस आई बनाई कर कोंग्रेसीयों को हराया था। यह भाव आज भी नेहरू परिवार में है  इसलिए कांग्रेस में कोई बहुत कुछ पा जायेगा यह सोचना भी मूर्खता है।

नेहरू परिवार के बर्चस्व के लिए, सीताराम केसरी को टांगा टोली कर कार्यालय के बाहर फेंक दिया गया था। वरिष्ठ कोंग्रेसियों के ग्रुप जी 23 को दूध में गिरी मक्खी की तरह फेंक दिया गया। कोई तब्बजो नहीं दी गईं।

कांग्रेस से ही अपमानित होकर बाहर निकले शरद पँवार, ममता बैनर्जी सहित कई नेता व दल हैं जो क्षेत्रीय राजनीती में प्रभावी भूमिका निभा रहे हैं। लेकिन कांग्रेस के नेहरू परिवार नें कभी कोई समझौता नहीं किया।
 कांग्रेस में तय है कि नेहरू परिवार ही सर्वोच्च है, इसे मानना ही होगा।

जब गठबंधन बन रहा था, तब पहली बैठक हेतु तय तारीख बदलवा कर राहुल - खरगे नें यही संदेश दिया था कि गठबंधन कांग्रेस बिना शून्य है। नीतीश को राहुल द्वारा दी तारीख ही रखनी पड़ी थी। पटना में हुई इस बैठक में भी राहुल कि भूमिका अघोषित प्रधान जैसी ही थी।

इसी तरह बेंगलुरु में दूसरी बैठक में गठबंधन के नाम करण पर नितीश और ममता की किसी नें सुनी नहीं।राहुल और खरगे नें जो करना था वह कर दिया।

तीसरी मुंबई बैठक में भी यही हाल  रहा, लोगो पसंद नहीं आया, तो विचार नहीं हुआ, पत्रकारवार्ता के द्वारा अडानी मुद्दा भी बिना सहमती के उठाया गया। माना जाता है कि ममता वहाँ से पहले ही चली गईं।

गठबंधन में कांग्रेस का बिना कहे स्पष्ट संदेश है कि जिसे कांग्रेस पार्टी पसंद हो, जो कांग्रेस पार्टी के आदेश निर्देश स्वीकारने की क्षमता रखता हो , जिसे कांग्रेस पार्टी के सभी किरदार पसंद हो, इस तरह के यश मैन दलों की, इस तरह के स्वामी भक्त दलों का ही यह गठबंधन है ।

इस गठबंधन में अपने आप को महत्वपूर्ण मानने की आशा पाल रहे नीतीश कुमार, ममता बनर्जी, शरद पँवार और अरविंद केजरीवाल....को कोई बड़ा चांस नहीं है। भले ही यह सहज बने रहनें का दिखावा करते रहें, अथवा भले ही नाराजगी व्यक्त करते रहें,  मगर उनकी वहां कोई भी सुनने वाला नहीं है। क्योंकि गठबंधन के निर्माण के 20 साल पहले से भी यह तय हो चुका है कि कांग्रेस का अगला नेता राहुल गांधी ही होगा।

कांग्रेस मै बहुत स्पष्ट है कि राहुल - सोनिया ही कांग्रेस के सर्वे सर्वा हैं। वे ही गठबंधन के सर्वेसर्वा भी रहेंगे। जिन्हे स्वीकार है आओ वर्ना जाओ।

राहुल गांधी - सोनिया गांधी कांग्रेस का भविष्य हैं, नेहरू वंश ही कांग्रेस के मुख्य प्रधान हैं, कांग्रेस के पूर्ण स्वामित्व धारी भी राहुल सोनिया प्रियंका हैं। इस संदर्भ में किसी भी तरह की कोई सौदेबाजी स्वीकार नहीं है और इसीलिए गठबंधन से अंततः हार थक कर ममता, नितीश और केजरीवाल अलग हो जायेंगे अथवा नष्ट हो जायेंगे।

भारत में कांग्रेस राज आये इसके लिए बहुत सी विदेशी ताकतें भी सक्रिय हैं। उनका लाभ कांग्रेस को निरंतर मिलता रहेगा। कांग्रेस का चीन की कम्युनिस्ट पार्टी से जो MOU हुआ है, वह भी कांग्रेस के हितों की चिंता करने का ही होगा...? नुकसान पहुंचानें की सन्धि तो हो नहीं सकती। इसका लाभ भी कांग्रेस को ही मिलना है।

तमाम टूलकिट आधारित कार्यक्रम कांग्रेस को ही फायदा पहुंचानें के लिए चल रहे हैं... चाहे शाहीन बाग थे, चाहे दिल्ली में किसानों का आंदोलन रहा हो, हिड्नेवर्ग की रिपोर्ट रही हो, बहुत सारे टूलकिट आधारित कार्यक्रमों के पीछे विदेशी ताकतें हैं, उनका उद्देश्य कांग्रेस को ही फायदा पहुंचाना रहता है।

इसलिए गठबंधन में सिर्फ कांग्रेस की ही चलेगी, अन्य किसी की नहीं चलेगी और छोटी माझलियों को बड़ी मछली अंततः निंगल जायेगी।

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