क्या, विधानसभा चुनावों के बाद कांग्रेस गठबंधन बिखर जायेगा - अरविन्द सिसोदिया congress gathbandhn
क्या, विधानसभा चुनावों के बाद कांग्रेस गठबंधन बिखर जायेगा - अरविन्द सिसोदिया
इसलिए सोनिया गांधी नें यह चैलेंज के रूप में लिया हुआ है और एक मां अपने बेटे के लिए यह करंनें से पीछे क्यों हटे।
राहुल गांधी जब नाबालिग थे तब से वे अपने आपको भारत का प्रधानमंत्री मान रहे हैं, क्योंकि उन्हें कहा ही यह गया है कि तुम्हे भारत का अगला प्रधानमंत्री बनना है।
इसलिए नीतीश कुमार या ममता बैनर्जी या अरविन्द केजरीवाल या कोई यह सोचे कि कांग्रेस की तरफ से किसी अन्य को प्रधानमंत्री बना दिया जायेगा तो यह गलत होगा।
कांग्रेस की तरफ से तो अपरोक्ष स्पष्ट रूप से यह तय है कि उनका नेता, उनका पी एम प्रत्याशी केवल और केवल राहुल गांधी ही होगा।
अभी भी देखे तो राष्ट्रीय अध्यक्ष मलिकार्जुन खड़गे हो या पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी हो, मगर गठबंधन में मुख्य रूप से प्रत्येक स्थान पर राहुल जी ही होते हैं, चाहे वह कोई पत्रकार वार्ता हो, नामकरण सहित कोई निर्णय लेना हो, या संसद में उठाने वाले प्रश्न हों। चाहे कोई वह अन्य कार्य।
इसलिए गठबंधन के प्रमुख घटकों के लोगों का बहुत जल्द ही मूड बदलने लग जायेगा। क्योंकि गठबंधन यह समझे कि उनमें से किसी को कुछ मान लिया जाएगा, किसी से कुछ पूछा जाएगा,किसी की कोई सलाह मानी जाएगी। तो यह संभव नहीं है, वहां तो कांग्रेस के लोगों को भी यह पता नहीं है कि राहुल जी उनकी सलाह मानेंगे या नहीं। राहुल गांधी किसी दूसरे दल के लोगों की सलाह माने यह भी संभव नहीं लगता।
गठबंधन में कितनी ही ज्ञान कि बड़ी बड़ी बातें होती रहे, कितनी ही समझदारी से बातें रखी जाए किन्तु असल बात यह है कि जो कुछ भी निर्णय लेना है वह राहुल गांधी को लेना है। राहुल गांधी को बैकअप कर रही टीम को लेना है। यह टीम कौन है, कहां है, किस तरह से नीतियां बनाती है, किस तरह से निर्णय लेते हैं। यह सब कुछ भी बहुत गुप्त रहता है। किसी को कुछ मालूम ही नहीं है।
प्रधानमंत्री मोदी जी नें भोपाल में महा जनआशीर्वाद यात्रा के समापन रैली को संबोधित करते हुए कांग्रेस से जिस अर्बन नक्सलबाद को जोड़ा है, वह यही तंत्र है जिसके सहारे कांग्रेस युवराज चल रहे हैं। क्योंकि जवाहरलाल नेहरू सम्यवादी विचारों से बहुत ज्यादा प्रभावित थे वे सपरिवार मोतीलाल जी नेहरू सहित रूस की यात्रा किया करते थे, उनके चीन से संबध भी सम्यवादी प्रेम से ही बने थे, इसलिए नेहरू परिवार के इन उत्तराधिकारीयों का सम्यवादी विचारों से जुडा होना आश्चर्य की बात नहीं है।
कांग्रेस एक बहुत पुरानी पार्टी है, बड़ी समझ वाली पार्टी है। उसका जन आधार, उसके सूत्र, उसके पास संसाधन बहुत ही मज़बूत है, सरकारी तंत्र, मीडिया और न्यायपालिका में उनके प्रति अगाध श्रद्धा रखने वाले लोग बैठे हुए हैं।
कांग्रेस की स्थापना मूलतः ब्रिटिश सरकार के राजभभक्ति हेतु हुई थी। आज भी वह इंटरनेशनल स्तर के वह अपने आप का वजूद रखती है, कांग्रेस के रसूख विश्व स्तरीय है और इसलिए उसके के पास, उनके लिए काम करने वाले बहुत से विदेशी और स्वदेशी संस्थान है। जो उनके लिए अनेकों काम करते हैं। यह सब बहुत व्यवस्थित एवं गुप्त है जिसका ज्ञान भी किसी को नहीं है और इसलिए यह अच्छी तरह से समझ लिया जाना चाहिए कि कांग्रेस किसी दल विशेष पर अवलंबित नहीं है। वह आंतरिकरूप से बहुत मज़बूत और आर्थिक रूप से अत्यंत सम्पन्न है। इनकी मुख्य कमजोरी सोनिया गाँधी का ईसाई होना और भारत के आम जनमत का इनसे विश्वास उठ जाना ही है।
एक अनुमान यह है कि लोकसभा चुनाव से पहले ही टिकिट बंटवारे में यह बिखर जायेगा। लेकिन इस वर्ष के अंत तक होनें वाले विधानसभा चुनावों तक कांग्रेस सब कुछ गोलमाल रख कर चलेगी ताकी वह इन बड़े राज्यों में ताकत बड़ा सके और सरकार में बनी रहे। क्योंकि राजस्थान और छतीसगढ़ में उसकी ही सरकारें हैं। मिजोरम में और तेलंगाना में भाजपा का कोई अस्तित्व फिलहाल है नहीं, मात्र मध्यप्रदेश में ही भाजपा सरकार है, इसलिए जहां भाजपा को बहुत कुछ खोने को नहीं है, वहीं कांग्रेस को पाने के लिए अधिक मेहनत करनी है।
एक अनुमान यह भी है कि लोकसभा चुनाव के परिणाम आने के बाद यह गठबंधन स्वतः ही बिखर जायेगा।क्योंकि क्षेत्रीय दल भी अधिकतम सीटों को प्राप्त करने के लिए चिपके हुए हैं। उन्हें अपने अस्तित्व की भी रक्षा करनी है।
भविष्य में यह गठबंधन कतई नहीं रहेगा, बल्कि इसके कई बड़े दल राहुल जी के खिलाफ भी खड़ा दिखेंगे।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें