वन नेशन वन इलेक्शन देशहित में लागू होना चाहिए - अरविन्द सिसोदिया One Nation One Election

वन नेशन - वन इलेक्शन, को लेकर के इतनी हाय तौबा की जरूरत अभी नहीं है, क्योंकि गठित कमेटी की रिपोर्ट का आना मात्रा काफी नहीं होगा, इसको संसद और विधान मंडलों के द्वारा पारित कराया जाना भी एक बहुत बड़ी चुनौती होगी। यह सब बहुत आसान नहीं है, बल्कि एक बहुत ही कठिन चुनौती पूर्ण कार्य है।

किंतु यह सच है कि चुनाव अगर एक बार में करवाए जाएं तो न केवल देश का बहुत भारी धन की बचत होगी बल्कि साथ ही  देश हित के कार्यों का करने का मन भी बनता है।  मन इसलिए बनता है कि बार-बार चुनाव का आना और उनमें नेताओं का जुट जाना देशहित  के कार्यों को बाधित करता है। काम करने के क्रम को बाधित करता है।

राष्ट्रहित के दृष्टिकोण से तो वन नेशन वन इलेक्शन बहुत ही अच्छी चीज है,  बहुत आसान भी है। हमारे देश नें वर्षो तक एक साथ चुनाव करवाये भी हैं और सफल सरकारें चलाईं हैं।

ऐसा भी नहीं है की यह दुर्लभ है,देश मन बनाले तो बहुत आसान भी है। इसमें सभी प्रकार के इलेक्शन एक-  एक  करके करवा लिए जाए।

प्रति 5 वर्ष के अंतराल से एक इलेक्शन मंथ ( माह ) आना चाहिए, जिसमें सबसे पहले निकायों के चुनाव हो जाए, फिर ग्रामीण सरकार के चुनाव हो जाएं, इसके बाद विधानसभा के चुनाव हो जाएं और फिर लोकसभा के चुनाव हो जाए, मुझे नहीं लगता कि इसमें कोई बहुत बड़ी दिक्कत हो यह मात्र एक व्यवस्थापन का कार्य है जिसे व्यवस्थित विधि ईजाद  कर प्रयोग में लाना होगा और सब कुछ व्यवस्थित हो सकता है।

यह सही है कि इसके लिए हमको विधान मंडल और लोकसभा मैं सरकार चुनने के लिए एक नया तरीका अपनाना होगा, अभी सरकार चुनने का जो तरीका है वह बहुत ही गैर जिम्मेवार और खर्चीली  है तथा अव्यवस्थित है। यह देश के लिए ठीक भी नहीं है। एक मजबूत राष्ट्र के लिए कुछ स्पष्ट नियमावली वाली निर्वाचन प्रणाली होनी ही चाहिए।

जैसे की कोई व्यक्ति किसी पार्टी विशेष के सिंबल पर चुनाव में वोट लेता है, तो उसको 5 साल तक वह पार्टी और पद छोड़ने का अधिकार नहीं होना चाहिए, किसी कारण उसे पार्टी छोड़ना ही है और उस पद को छोड़ना है तो पद से त्यागपत्र दो और अगले 5 साल तक चुनाव लड़ने का अधिकार नहीं होना चाहिए। फ्रेश एंड फेयर  पॉलिटिक्स के लिए यह जरूरी होना चाहिए, कि उसमें भ्रष्टता और षडयंत्रकारिता का कोई भी स्थान नहीं हो त्यागपत्र दे दो और फिर दोबारा से दूसरी पार्टी से चुनाव लड़ लो यह गंभीरतम पाखंड है। जनता के साथ, देश के साथ, मतदाताओं के साथ और नैतिकता के साथ इस तरह के दुष्कृत को करने की इजाजत नहीं दी जा सकती।

सदन में जो नेता चुना जाए उसे आप दूसरे चौथे दिन ही गिरा दो या 2 महीने 4 महीने में ही समर्थन वापस लेकर गिरा दो, यह नहीं होना चाहिए, इसके लिए एक निश्चित समय अवधि उसको कम करने को दी ही जानी चाहिए, जनता जब पांच साल देती है तो सदन भी कम से कम ढाई साल तो दे। जिसे प्रथम बार सदन में नेता चुनाव है उसे कम से कम ढाई वर्ष पद पर बने रहने का अधिकार दिया जाना चाहिए। इसके बाद एक बार और सदन में नेता चुनने का अधिकार होना चाहिए, बार-बार नेता बदलने चुनने और सरकार गिराने का खेल कांग्रेस ने खूब किया है। यह सब ठीक नहीं है,  उचित नहीं है और इसे रोका जाना पहले भी जरूरी था और आप भी जरूरी है।

कोई भी सरकार  चुनो, जनता ने किसी व्यक्ति को चुना है तो उसे 5 साल के लिए चलाएं, काम करने का अवसर दिया जाना चाहिए, उसको अनैतिक तरीके से न हटाया जा सकता हटाना चाहिए।

सरकार केंद्र में हो, चाहे सरकार राज्य में हो, चाहे स्थानीय निकायों और ग्रामीण क्षेत्र की,उन्हें काम करने का अवसर, जनता की सेवा करने का अवसर दिया ही जाना चाहिए। यह तभी होगा जब बार-बार के चुनाव को रोका जाएगा, सरकारों को छल कपट से गिराए जाने को रोका जाएगा, सदनों को अव्यवहारिक बनने और अवस्थित होनें से रोका जाएगा। जरूरी है कि वन नेशन वन इलेक्शन जैसी फार्मूला व्यापक सुधारों के साथ लागू हों।

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वन नेशन वन इलेक्शन One Nation One Election


 केंद्र सरकार वन नेशन वन इलेक्शन (One Nation One Election) को लेकर कमेटी गठित कर चुकी है और उस कमेटी का अध्यक्ष पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद (Ramnath Kovind) को बनाया है. इसके बाद से सियासी गलियारों में सुगबुगाहट है कि सरकार इलेक्शन को लेकर संसद के विशेष सत्र के दौरान बिल ला सकती है. इसके अलावा समय से पहले लोकसभा चुनाव कराने के कयास भी लगाए जाने लगे हैं. विपक्ष की तमाम पार्टियों ने इसका एक सुर में विरोध किया है. लेकिन इस बीच I.N.D.I.A. गठबंधन में शामिल जेडीयू के चीफ और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने चौंकाने वाला बयान दिया है. नीतीश कुमार (Nitish Kumar) ने कह दिया कि वन नेशन वन इलेक्शन बहुत अच्छा है. इससे साफ हो गया है कि वन नेशन वन इलेक्शन पर विपक्षी गठबंधन की राय एक नहीं है.


वन नेशन वन इलेक्शन पर क्या बोले नीतीश ?

वन नेशन वन इलेक्शन के सवाल पर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा कि मुंबई में I.N.D.I.A. की बैठक बहुत अच्छी रही. अब हम सब मिलकर लड़ेंगे. 5 तरह के कामों के लिए कमेटी बन गई है. केंद्र सरकार बहुत कुछ कर रही है. लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ कराने की बात हो रही है, ये तो पहले भी होता था, ये बहुत अच्छा है।

‘लोकतंत्र की हत्या’, एक देश-एक चुनाव पर भड़का विपक्ष, कहा- ये मोदी सरकार का षडयंत्र

'वन नेशन, वन इलेक्शन' पर कमेटी बनाए जाने के बाद विपक्षी नेता खुले तौर पर इसके विरोध में आ गए हैं. आज मुंबई में इंडिया गठबंधन की मीटिंग भी चल रही है, जहां तय है कि इस मुद्दे पर चर्चा होगी. एक तरफ विपक्षी पार्टियां इसका विरोध कर रही हैं तो बीजेपी के नेता इसका स्वागत कर रहे हैं और प्रधानमंत्री मोदी का शानदार कदम बता रहे हैं.

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INDIA गठबंधन की तीसरी बैठक मुंबई में चल रही है. यह बैठक ऐसे समय में हो रही है जब केंद्र सरकार ने ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ को लेकर एक कमेटी बनाई है. पांच दिनों के लिए संसद का स्पेशल सत्र बुलाया है. संभावना है कि इस दौरान सरकार संसद में विधेयक पेश कर सकती है. विपक्षी दलों में इसको लेकर हलचल है. विपक्षी नेता ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ को षड्यंत्र बता रहे हैं.

विपक्षी नेताओं की मीटिंग से पहले बातचीत में उद्धव ठाकरे गुट के शिवसेना नेता संजय राउत ने कहा कि ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ चुनाव को आगे बढ़ाने की साजिश है. उन्होंने बताया कि आज की मीटिंग में संयोजक पद और समितियों पर चर्चा होगी. उन्होंने कहा कि सरकार ने कल ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ का गुब्बारा छोड़ा है. यह चुनाव न कराने की साजिश है, चुनाव आयोग तनाव में है, इंडिया गठबंधन से वे घबराए हुए हैं, हमारी ही मीटिंग पर उनका (बीजेपी) का ध्यान है.

‘एक देश, एक चुनाव’ इस देश में संभव नहीं!

मुंबई मीटिंग से पहले बातचीत में संसद के विशेष सत्र और सत्र के एजेंडे की अटकलों पर समाजवादी पार्टी के सांसद राम गोपाल यादव का कहना है कि ‘अगर वे (सरकार) विशेष सत्र बुलाना चाहती थी, तो विपक्षी दलों से बात करनी चाहिए थी. अब इसके बारे में (सत्र का एजेंडा) कोई नहीं जानता लेकिन सत्र बुला लिया गया है.” जनता दल युनाइटेड के नीरज कुमार ने कहा कि ‘इंडिया गठबंधन से घबराकर भाजपा यह दांव चलने की कोशिश कर रही है.’ राजद नेता मृत्युंजय तिवारी ने कहा कि ‘एक देश, एक चुनाव’ इस देश में संभव नहीं है.

‘वन नेशन-वन इलेक्शन’ को लेकर कांग्रेस नेता अशोक चव्हाण ने कहा कि हमारी मोहब्बत की दुकान है. उन्होंने कहा कि हम जीतेंगे, मैनडेट हमारे साथ है. केंद्र में जो हो रहा है, लोग परेशान हो गए हैं और लोग तंग आ चुके हैं. वन नेशन-वन इलेक्शन चुनाव के दौरान लाकर सरकार मुद्दों को डायवर्ट करने की कोशिश कर रही है. जब भी हो, हम हमेशा रेडी हैं.

प्रधानमंत्री मोदी ने उठाए शानदार कदम!

हालांकि, उत्तर प्रदेश के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य ने सरकार के कदम का स्वागत किया है. उन्होंने कहा कि ‘देश के हित में एक देश, एक चुनाव के लिए उठाया गया शानदार कदम है! प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में ऐतिहासिक कदम है!’ केंद्रीय मंत्री प्रह्लाद जोशी ने साफ किया है कि संसद के स्पेशल सत्र से विपक्षी दलों को घबराने की जरूरत नहीं है. नए विषय आते रहते हैं और चर्चा होनी चाहिए. विपक्षी नेताओं में ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ के मुद्दे पर हलचल मची थी. इस मुद्दे पर चर्चा के लिए 18-22 सितंबर तक संसद का स्पेशल सत्र बुलाया गया है.

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दुनिया के कई देशों में लागू में है 'वन नेशन, वन इलेक्शन'

दुनिया के कई देशों में लागू में है ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’, जानिए भारत में इसे लागू करने के रास्ते में क्या हैं मुश्किलें

देश में आजादी के बाद लोकसभा और सभी विधानसभाओं के चुनाव एक साथ होते थे। देश में पहली बार जब 1951-52 में चुनाव हुए तो पूरे देश में एक साथ चुनाव हुए थे। ये सिलसिला 1957, 1962 और 1967 के आम चुनाव तक चला। साल 1968 और 1969 में समय से पहले कई राज्यों में विधानसभाएँ भंग हो गईं। वहीं, साल 1970 में लोकसभा भी भंग हो गई।

'एक देश, एक चुनाव' पर बहस हुई तेज

'एक देश, एक चुनाव' पर बहस हुई तेज

भारत सरकार ने पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ की संभावनाओं पर विचार करने के लिए एक कमेटी की घोषणा की गई है। यह कमेटी सुझाव देगी कि क्या देश में एक साथ लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव कराए जा सकते हैं। इस बीच, केंद्र सरकार 18-22 सितंबर तक संसद का विशेष सत्र बुलाया है। इन दोनों चीजों के साथ शुरू होने के बाद कयास लगने शुरू हो गए हैं।

ये पहली बार नहीं है कि ‘एक देश-एक चुनाव’ की बात हो रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस मुद्दे को कई बार उठा चुके हैं। चुनाव आयोग कई बार इस मुद्दे को उठा चुका है। केंद्र सरकार भी चुनाव आयोग, नीति आयोग और लॉ कमीशन से इस बारे में सवाल पूछ चुकी है। कई समितियाँ भी इसके पक्ष में अपने सुझाव सरकार को सौंप चुकी हैं। ऐसे में ये मुद्दा अचानक से सामने आ है, ऐसा भी नहीं है।

अब चूँकि सरकार ने इसकी संभावनाओं की जाँच के लिए पूर्व राष्ट्रपति की अध्यक्षता में पैनल बनाया है तो ये जानना जरूरी हो जाता है कि क्या ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ संभव है भी? अगर संभव है तो क्या 2024 में ही इसे अमल में लाया जाएगा? क्या इसके लिए देश की सभी एजेंसियाँ तैयार हैं? इस खास लेख में हम इन्हीं सवालों के जवाब आपको दे रहे हैं।

क्या देश में एक साथ सभी चुनाव कराना संभव है?

केंद्र सरकार ने साल 2015 में चुनाव आयोग, नीति आयोग और विधि आयोग से इस बारे में जानकारी माँगी थी कि क्या ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ संभव है? इसके बाद तीनों एजेंसियों ने अपने जवाब सरकार को सौंप दिए थे। इस विषय पर सभी एजेंसियों ने कहा था कि ये बिल्कुल संभव है।

चुनाव आयोग ने कहा था कि इसके लिए संविधान में कुछ परिवर्तन करना होगा। जनप्रतिनिधित्व कानून में कुछ परिवर्तन करने होंगे। अतिरिक्त ईवीएम, वीवीपैट खरीदने या बनवाने के लिए अतिरिक्त धनराशि देनी होगी और एक साथ चुनाव कराने के लिए जो मैन पॉवर चाहिए, जो फोर्स चाहिए उसे बढ़ाना होगा।

इसे लागू करने के लिए कानून में बदलाव की जरूरत पड़ेगी, जिसके लिए सबसे पहले जरूरी है कि सभी राजनीतिक पार्टियों में इसके लिए सहमति बने। सहमति के बगैर चुनाव आयोग पुराने ढर्रे पर ही चलने को मजबूर रहेगा। इसके लिए राज्यों की भी सहमति लेनी पड़ेगी, जिसके लिए कम से कम 50 प्रतिशत राज्यों की सहमति जरूरी है।

साल 2024 में एक साथ चुनाव कराने में सबसे बड़ी समस्या ?

साल 2018 के आँकड़ों के मुताबिक, चुनाव आयोग के पास लगभग 25 लाख ईवीएम-वीवीपैट हैं। फिलहाल इससे भी काम चल जाता है, क्योंकि अभी पूरे देश में एक साथ चुनाव नहीं होते हैं। अगर पूरे देश में लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराने की बारी आएगी तो हर मतदान केंद्र पर दो-दो ईवीएम और 2-2 वीवीपैट एक साथ लगाने होंगे।

ईवीएम-वीपीपैट तुरंत ऑर्डर देने पर बनाए नहीं जा सकते। उसके लिए एक-दो साल का समय लगेगा। अभी जितने भी ईवीएम-वीवीपैट हैं, उससे दोगुने यानि 50 लाख ईवीएम-वीवीपैट की जरूरत होगी। इस सीमा तक पहुँचने में एक से दो साल लग जाएँगे। वहीं, उनकी ट्रेनिंग से लेकर हैंडलिंग तक बड़ी संख्या में मैनपॉवर की जरूरत होगी, जिसकी व्यवस्था करनी पड़ेगी।

विधि आयोग की क्या है राय?‘

वन नेशन, वन इलेक्शन’ को लेकर विधि आयोग ने साल 2018 में अपनी रिपोर्ट सौंपी थी। आयोग ने रिपोर्ट में कहा था कि देश में बार-बार चुनाव कराए जाने से धन और संसाधनों की जरूरत से अधिक बर्बादी होती है। संविधान के मौजूदा ढाँचे के भीतर एक साथ चुनाव करना संभव नहीं है, इसलिए कुछ जरूरी संवैधानिक संशोधन के सुझाव दिए गए हैं।

विधि आयोग ने कहा कि लोकसभा और विधानसभाओं के एक साथ चुनाव कराए जाने से जनता का पैसा बचेगा, प्रशासनिक भार कम होगा और साथ में सरकारी नीतियाँ बेहतर तरीके से लागू होंगी। एक साथ चुनाव कराए जाने से स्टेट मशीनरी पूरे साल चुनाव की तैयारियों में जुटे रहने के बजाए, विकास के कार्यों में जुट सकेंगी।


देश के शुरुआती चार चुनाव हुए थे साथ

देश में आजादी के बाद लोकसभा और सभी विधानसभाओं के चुनाव एक साथ होते थे। देश में पहली बार जब 1951-52 में चुनाव हुए तो पूरे देश में एक साथ चुनाव हुए थे। ये सिलसिला 1957, 1962 और 1967 के आम चुनाव तक चला। साल 1968 और 1969 में समय से पहले कई राज्यों में विधानसभाएँ भंग हो गईं। वहीं, साल 1970 में लोकसभा भी भंग हो गई।


इसके साथ ही ‘वन नेशन-वन इलेक्शन’ का ये सिलसिला टूट गया। इसके बाद साल 1999 में विधि आयोग ने एक साथ चुनाव की सिफारिश की थी। साल 2015 में संसदीय समिति ने भी इसके लिए सुझाव दिया। इसके बाद केंद्र सरकार ने विधि आयोग, चुनाव आयोग और नीति आयोग से इस संबंध में राय माँगी थी।


‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ के फायदे और नुकसान (पक्ष और विपक्ष)

वन नेशन, वन इलेक्शन के पक्ष में जाने वाली बातें

पैसे और समय की बचत: एक साथ चुनाव कराने से बहुत सारे पैसे बचेंगे क्योंकि लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के लिए अलग-अलग चुनाव होने वाले चुनाव समाप्त हो जाएँगे। यह समय भी बचाएगा, क्योंकि सरकार को पाँच साल के भीतर कई चुनावी चक्र से होकर नहीं गुजरना पड़ेगा। ऐसे में सरकार को शासन पर ध्यान केंद्रित करने के लिए अधिक समय देगा।


सही उम्मीदवार, पार्टी का चुनाव: एक साथ चुनाव मतदाताओं के लिए उम्मीदवारों को चुनना आसान बनाएगा, क्योंकि वे एक ही समय में राष्ट्रीय और राज्य सरकारों के लिए मतदान करेंगे। इससे मतदाताओं को यह तय करने में मदद मिलेगी कि किसे वोट देना है।


संघीय प्रणाली होगी मजबूत: एक साथ चुनाव संघीय प्रणाली को मजबूत करेगा, क्योंकि यह राज्यों को राष्ट्रीय राजनीति में अधिक कहने का अधिकार देगा। यह सुनिश्चित करने में मदद करेगा कि सभी राज्यों के हितों का राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिनिधित्व हो।


वन नेशन, वन इलेक्शन के खिलाफ जा सकने वाली बातें:

एक साथ चुनाव कठिन काम: एक साथ चुनाव कराना मुश्किल होगा, क्योंकि इसके लिए संविधान में संशोधन और केंद्र एवं राज्य सरकारों के बीच समन्वय की आवश्यकता होगी। यह एक जटिल और समय लेने वाली प्रक्रिया होगी।


मतदान प्रतिशत में गिरावट : एक साथ चुनाव मतदान में गिरावट का कारण बन सकता है, क्योंकि लोग अपने स्थानीय प्रतिनिधियों के लिए मतदान नहीं कर रहे होंगे तो वे कम प्रेरित हो सकते हैं। यह एक वैध चिंता है और इसे एक साथ चुनाव लागू किए जाने पर सावधानी से संबोधित करने की आवश्यकता होगी।


राष्ट्रीय दलों को हो सकता है फायदा : राष्ट्रीय दलों के पास क्षेत्रीय दलों की तुलना में अधिक संसाधन, नाम और पहचान है। यह उन्हें एक साथ चुनावों में फायदा दे सकता है, क्योंकि वे अधिक प्रभावी ढंग से प्रचार कर सकते हैं।

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दुनिया के कई देशों में ‘वन नेशन-वन इलेक्शन’ सिस्टम

भारत में ‘वन नेशन-वन इलेक्शन’ को लेकर चर्चा तेज हो गई है तो बताते चलें कि यह व्यवस्था दुनिया के कई देशों में पहले से लागू है। स्वीडन में संसदीय चुनाव के साथ ही काउंटी और म्यूनिसिपल इलेक्शन होते हैं। साउथ अफ्रीका, होंडुरस, स्पेन, स्लोवेनिया, अल्बानिया, पोलैंड में भी यही व्यवस्था है।


ब्रिटेन में हाउस ऑफ कॉमन्स, लोकल इलेक्शन और मेयर इलेक्शन एक साथ होते हैं, तो इंडोनेशिया में राष्ट्रपति और संसदीय चुनाव। इनके अलावा जर्मनी, फिलिपींस, ब्राजील, बोलीविया, कोलंबिया, कोस्टा रिका, ग्वाटेमाला, गुआना, और बेल्जियम जैसे देशों में भी ‘वन नेशन-वन इलेक्शन’ सिस्टम काम करता है।


आखिरकार, एक साथ चुनाव कराने या न कराने का निर्णय एक राजनीतिक निर्णय है। सरकार को पक्ष और विपक्ष को सावधानी से तौलने की आवश्यकता होगी, इससे पहले कि वह कोई निर्णय ले। इस विषय पर सभी राजनातिक पार्टियों का साथ आना भी जरूरी है। हालाँकि आगामी लोकसभा चुनाव यानि 2024 से ही इसे लागू कर दिया जाए, फिलहाल ऐसा होता संभव नहीं दिख रहा है।

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