पूर्वजों के लिए श्रद्धा के भाव का पर्व : श्राद्ध पक्ष Hindu Shrrdhdpaksh






  
 हिन्दू श्राद्ध पक्ष : Pitra Paksha
इस साल पितृपक्ष की शुरुआत 29 सितम्बर से
पंडित अरुणेश मिश्रा ने बताया कि शास्त्रों में बताया गया है की जो परिजन अपना शरीर त्याग कर चले जाते हैं उनकी आत्मा की शांति के लिए सच्ची श्रद्धा के साथ तर्पण किया जाता है उसे श्रद्धा कहा जाता है. उन्होंने बताया कि पितृपक्ष में मृत्यु के देवता यमराज सभी जीवो को मुक्त कर देते हैं, ताकि वो अपने स्वजनों के यहां जाकर तर्पण ग्रहण कर सकें. पितृपक्ष में पितरों की आत्मा की शांति के लिए उनका तर्पण किया जाता है, इससे प्रसन्न होकर पितर अपने घर को सुख समृद्धि और शांति का आर्शीवाद प्रदान करते हैं.

श्राद्ध की तिथियां 
29 सितंबर 2023 : पूर्णिमा श्राद्ध.
30 सितंबर 2023 : प्रतिपदा श्राद्ध , द्वितीया श्राद्ध.
01 अक्टूबर 2023 : तृतीया श्राद्ध.
02 अक्टूबर 2023 : चतुर्थी श्राद्ध.
03 अक्टूबर 2023 : पंचमी श्राद्ध.
04 अक्टूबर 2023 : षष्ठी श्राद्ध.
05 अक्टूबर 2023 : सप्तमी श्राद्ध.
06 अक्टूबर 2023 : अष्टमी श्राद्ध.
07 अक्टूबर 2023 : नवमी श्राद्ध.
08 अक्टूबर 2023 : दशमी श्राद्ध.
09 अक्टूबर 2023 : एकादशी श्राद्ध.
11 अक्टूबर 2023 : द्वादशी श्राद्ध.
12 अक्टूबर 2023 : त्रयोदशी श्राद्ध.
13 अक्टूबर 2023 : चतुर्दशी श्राद्ध.
14 अक्टूबर 2023 : सर्व पितृ अमावस्या.

     पूर्वजों के लिए सम्मान व श्रद्धा के भाव का पर्व श्राद्ध पक्ष है। ज्योतिषियों की मानें तो श्राद्ध पक्ष की तिथि का बढ़ना सुख व सौभाग्यदायी है। शहरवासी शनिवार से पूर्वजों को जलअर्पित करेंगे।

पितृपक्ष में पूर्वजों को जल अर्पित करने की परंपरा वर्षो पुरानी है। पूर्वज जिस तिथि को दिवंगत होते है, पितृपक्ष की उसी तिथि को उनके निमित्त विधि विधान से श्राद्ध कार्य संपन्न करने का रिवाज है। भाद्र मास की पूर्णिमा तिथि शुरू होगी। 

गंगाधाम मंदिर के पुजारी व ज्योतिषाचार्य निरंजन पराशर का कहना है कि ऐतिहासिक नगरी पानीपत के लिए सौभाग्य की बात है कि यमुना नदी निकट में स्थित है। जब सूर्य कन्या राशि में हो तो पितरों का श्राद्ध करना चाहिए। शास्त्रों के मुताबिक श्राद्ध पक्ष में दिवंगत पूर्वजों के निमित्त श्राद्ध, तर्पण, पिंडदान, यज्ञ व भोजन का विशिष्ट महत्व है। श्रद्धापूर्वक पकाए हुए शुद्ध पकवान, दूध दही व घी को प्रेम पूर्वक पितरों को दान करने का नाम ही श्राद्ध है। पितर इससे प्रसन्न होकर मनुष्य को पुत्र, धन, विद्या, आयु, आरोग्य, सुख व मोक्ष प्रदान करते हैं। पितृ दोष से भी छुटकारा मिलता है। पितरों की तृप्ति ब्राह्माण के द्वारा ही होती है। ब्राह्माणों को भोजन, वस्त्र व दक्षिणा देकर ही श्राद्ध संपन्न करें।

श्राद्ध की विधि
श्राद्ध कर्म व पूजा में गंगाजल, दूध, शहद, तिल, जौ व कुश का विशेष महत्व है। तांबे व कांसे के पात्र में श्राद्ध करना उत्तम माना गया है। नदी या तालाब में दक्षिणाभिमुख होकर अंजलि में तिल-जौ मिश्रित जल लेकर नभ की तरफ देखकर पितर को जल अर्पित करना चाहिए। तर्पण अपने घर व तीर्थ स्थान में करना चाहिए। श्राद्ध के दौरान कुश व रेशमी आसन का ही उपयोग करें।

नए कार्य वर्जित
श्राद्ध पखवाड़े के दौरान नए कार्य पूरी तरह से वर्जित रहेंगे। देवी देवताओं की प्राण प्रतिष्ठा, उदयापन, भूमि, भवन व विवाह सहित कोई भी नया कार्य नहीं हो सकेगा। इसे शुभ नहीं माना जाता है।

इन पदार्थो का उपयोग न करें
श्राद्ध पखवाड़े के दौरान खट्टे पदार्थ का उपयोग पूरी तरह से वर्जित है। इसके अतिरिक्त चना, मसूर दाल, मूली, काली उड़द, लौकी, खीरा व बासी फल का उपयोग न करें। दही न बिलोएं, आटा न पीसे तथा बाल भी न कटवाएं।

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