चीन के राष्ट्रपति क्या MOU की शर्तो के कारण G-20 में नहीं आ रहे ? - अरविन्द सिसोदिया
- अरविन्द सिसोदिया 9414180151
चीन के राष्ट्रपति क्या MOU की शर्तो के कारण G-20 में नहीं आ रहे - अरविन्द सिसोदियाखबर आरही है कि चीन के राष्ट्रपति जिंगपिंग भारत में सम्पन्न होनें जा रहे G-20 देशों की बैठक में नहीं आरहे हैं, वे संभवतः अपने प्रधानमंत्री को भेजेंगे, वहीं युक्रेन युद्ध के कारण रूस के राष्ट्रपति पुतिन भी नहीं आ रहे हैं।
विश्व राजनीति के दृष्टिकोण से एक शक्तिकेंद्र अमेरिकी धडा है तो दूसरा चीन - रूस का है। यूँ भी देशों की संख्या की दृष्टि से अमेरिकी धडा बड़ा भी है और शक्तिशाली भी है। किन्तु एशिया महादीप के भौगोलिक समीकरण में चीन - रूस पर बड़ा भूभाग है, इस समय दोनों ही देश विस्तारवाद के कारण बदनाम हैं और इनके पड़ोसी देशों से अच्छे संबंध भी नहीं हैं।
चीन से भारत के संबंध 1962 युद्ध से ही खराब हैं किन्तु भारत में चीन का व्यापार खूब फला फूला इसका कारण 1962 के बाद अधिकांश सरकारें कांग्रेस या कांग्रेस पर निर्भर ही रहीं। चीन नें भारत में अपने व्यापारिक की पकड़ इतनी मज़बूत की कि भारतीय व्यापारियों नें अपने उत्पादन, वस्तु निर्माण बंद कर चीन निर्मित वस्तुओं कि बिक्री प्रारंभ करदी, गुणवत्ता की दृष्टि से भी बेहद बेकार वस्तुओं को भारत में बड़ा बाजार रहा।
कांग्रेस के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की सरकार के समय तो कांग्रेस के सर्वेसर्वा नेहरूवंश के सोनिया गाँधी, राहुल गाँधी सहित पूरा परिवार चीन पहुंचा, उनके साथ प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भी थे, नें तत्कालीन उपराष्ट्रपति जिनपिंग के साथ करार साइन किये जिसे MOU कहा जाता है। ये mou क्या है इसे कोई नहीं जानता, यह कभी सर्बजनिक भी नहीं हुआ, इतना तय है कि mou अपने अपने हितों की रक्षार्थ व सहयोग का ही हुआ होगा। एक दूसरे का बुरा करने का तो हुआ नहीं होगा। इसके बाद चीन से राजीव गांधी फ़ौण्डेशन में चंदा आने की भी चर्चा रही है।
* तब यह समाचार सुर्खियों में रहा था.......
2008 में, कांग्रेस पार्टी और चीन की कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीसी) ने उच्च स्तरीय सूचनाओं के आदान-प्रदान और उनके बीच सहयोaग के लिए बीजिंग में एक समझौते पर हस्ताक्षर किए थे। समझौता ज्ञापन (एमओयू) ने दोनों पक्षों को "महत्वपूर्ण द्विपक्षीय, क्षेत्रीय और अंतर्राष्ट्रीय विकास पर एक-दूसरे से परामर्श करने का अवसर" भी प्रदान किया।
जब से देश में मोदी सरकार है, अर्थात जब से देश में कांग्रेस सत्ता से बाहर है तब से ही चीन का व्यवहार सीमा पर तनाव उत्पन्न करने वाला चला आरहा है और उसे बैकअप करते कांग्रेस राजकुमार नजर आरहे हैं। यह आपसी सांठगांठ, अपरोक्ष रूप से लगातार बनीं हुई है, जिसे हम mou का प्रभाव मन सकते हैं और इसी क्रम में चीन के राष्ट्रपति का भारत न आना भी माना जा सकता है।
कांग्रेस को अपना mou सार्वजनिक करना चाहिए, ताकी देश में स्थिति स्पष्ट हो। यूँ भी भारत के एक राजनैतिक दल को चीन के एक राजनैतिक दल से कोई समझौता करना उसे अविश्वसनीय बनाता है।
कुल मिला कर चीन के राष्ट्रपति के भारत आने न आनें से कोई फर्क नहीं पड़ता, वह शत्रु राष्ट्र था और है। उससे भविष्य में संघर्ष ही रहेगा। किन्तु भारत को फर्क पड़ता है भारत के किसी भी राजनैतिक दल के चीन के साथ होनें से.... इसलिए भारत को सावधान तो रहना ही होगा।
- अरविन्द सिसोदिया 9414180151
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