कनाडा में खालिस्तान , आतंकवाद का नया पाकिस्तान - अरविन्द सिसोदिया khalistani terrorism in canada
कनाडा में खालिस्तान , आतंकवाद का नया पाकिस्तान - अरविन्द सिसोदिया
पहली बात तो भारत और कनाडा अभिन्न मित्र राष्ट्र कई दशकों से हैं, किन्तु वर्तमान प्रधानमंत्री ट्रूड़ो की सरकार को सत्ता में रहने के लिए, वहाँ कई सिख पार्टी के राजनैतिक समर्थन की आवश्यकता के कारण, कनाडा खालिस्तान समर्थक आतंकवाद का ट्रेनिंग केंम्प, केम्पन केंप और अघोषित मुख्यालय बन गया है।
कनाडा में भारतीय मूल के लाखों की संख्या में सिख रहते हैं। जो मुख्यरूप से कनाडा में क़ृषिकार्य सहित बहुत सारे काम करते हैं।
दूसरा कनाडा में लाखों भारतीय छात्र शिक्षा ग्रहण करते हैं। जिनमें लगभग आधे भारतीय हैं।
तीसरे कनाडा से भारत बड़ी संख्या में टूरिस्ट आते हैं जो ज्यादातर केरल की यात्रा करते हैं.
चौथा पंजाब और दिल्ली के सिखों की विदेशों में पहली पसंद कनाडा है।
इस तरह से कनाडा से भारत के संबंध बिगड़ते हैं, तो कनाडा को भी बड़ा नुकसान होगा।
समस्या इस तरह से है कि - जिस तरह भारत में कांग्रेस हमेशा वोट बैंक के कारण तुष्टिकरण की राजनीति करती रही और उससे एक वर्ग विशेष की गुंडागर्दी पूरे देश में सिरदर्द बन गई , पहले देश बंटा और अब सर तन से जुदा सहित कई तरह के जिहाद चल रहे हैं......ठीक उसी तरह कनाडा के वर्तमान प्रधानमंत्री की सरकार, जो कनाडा के सिखों की पार्टी पर निर्भर है और वर्तमान में उनके समर्थन से सरकार में है। उसकी भी तुष्टिकरण की ही नीती है। इस कारण कनाडा सिख आतंकवाद का नया हब बन गया। पाकिस्तान में जिस तरह आतंकी ट्रेनिंग केंप है उसी तरह कनाडा में भी हो रहा है। कनाडा का कानून भी लिवरल है, सरकार का तंत्र भी बहुत कमजोर है उसका फायदा भी उठाया जाता है।
कनाडा में मिनी पंजाब बना हुआ है वहाँ सिखों की बड़ी संख्या है जो कनाडा के नागरिक हैं और वहाँ की राजनीति में बड़ी भूमिका निभाते हैं। वे शान्ति प्रिय हैं। किन्तु कुछ तत्व उनमें से ही खालिस्तान के नाम पर दूसरे देशों के पैसों से आतंकी मूमेंट चला रहे हैं। यह कई दसकों से है। इनमें अलग अलग गुट ही हैं और आपसी संघर्ष भी है। इसमें धन उपलब्ध करवानें क़ी मुख्य भूमिका पाकिस्तान क़ी रहती है।
विदेशनीति में अक्सर वहुत से सच देखने और सबूतों से स्पष्ट होनें के बावजूद, नजर अंदाज करंनें पड़ते हैं। यही बात कनाडा के संदर्भ में भारत क़ी चुप्पी का रहा है।
सवाल यह है कि कनाडा में जो खालिस्तानी आतंकवाद पनप रहा है, उस पर भारत सरकार को अब खुलकर बोलने पड़ेगा , अधिकतम बोलना पड़ेगा, सबूत उजागर करंनें पड़ेंगे। इससे विश्व शांति और मानवता को होने वाले नुकसान के बारे में बताना पड़ेगा। ताकि विश्व भी समझ सके, सिख समाज भी यह समझ सके, देश भी समझ सके और जरूरी सावधानियों को अपना सकें। क्यों कि इस संदर्भ को देश भी अभी तक ठीक से नहीं समझ सका है। जबकि कथित किसान आंदोलन और लालकिले पर खालिस्तानी झंडा लगाने तक कि साजिस हो चुकी है।
भारत में पहले भी कांग्रेस नें सत्ता से हटनेँ के बाद सिख मूमेंट खड़ा करवाया था उसकी अंतिम परिणती स्वर्ण मंदिर में सेना का भेजना और फिर श्रीमती इंदिरा गाँधी की हत्या के रूप में देश नें देखा है।
कनाडा की धरती से भारत में कथित किसान आंदोलन के खड़े किए जानें में कांग्रेस की संलिप्तता थी, आम आदमी पार्टी भी इसमें व्यवस्थापक बनी थी। कांग्रेस आपसी लड़ाई में सत्ता से बाहर हो गईं और आम आदमी पार्टी नें सरकार बनाली। कहीं न कहीं ख़ालिस्तानी आतंकवाद को भारत में आंतरिक राजनैतिक समर्थन परोक्ष रूप से मिला हुआ है।
हलाँकि कनाडा की वर्तमान ट्रूड़ो सरकार को अगले चुनाव में इस तुष्टिकरण की नीती का खामियाजा उठाना पड़ेगा। कनाडा में इस तुष्टिकरण की नीती का विरोध चालू हो गया है। भारत जितना कनाडा सरकार को एक्सपोज करेगा, उतना ही वहाँ ट्रूड़ो का विरोध बड़ेगा। इसलिए भारत सरकार को अब बिना किसी किन्तु परन्तु के कनाडा की धरती से चल रहे षड्यंत्रो को उजागर करना चाहिए।
कनाडा की धरती से होनें वाले षड्यंन्त्रों से ज्यादा सावधान, इन्हे अपरोक्ष और गुप्त सहयोग देनें वाली भारत की पार्टियों और संस्थाओं से रहना होगा, उन पर निगाह रखना होगा।
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खालिस्तानी अलगाववादी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या पर भारत और कनाडा के बीच बढ़ती तल्खी के बीच भारतीय विदेश मंत्रालय नें एक एडवाइजरी जारी की है। एडवाइजरी में कनाडा में रह रहे भारतीय नागरिकों और छात्रों को वहां बढ़ती भारत विरोधी गतिविधियों और आपराधिक हिंसा को देखते हुए अत्यधिक सावधानी बरतने की अपील की गई है।
खालिस्तान समर्थक नेता हरदीप सिंह निज्जर (Hardeep Singh Nijjar) ही हत्या को लेकर भारत-कनाडा आमने-सामने हैं, इस बीच कनाडा में एक और खालिस्तानी नेता सुखदूल सिंह गिल उर्फ सुक्खा दुनेके (Sukhdool Singh) का भी कत्ल हो गया है,सूत्रों की मानें तो सुक्खा दुनेके आपसी गैंगवार में मारा गया है.
इस सच को कतई नहीं भूलना चाहिए कि कनाडा में खालिस्तानी आतंकवाद को पनपाने में पाकिस्तान का बडा हाथ है। भारत में अस्थिरता फैलानें वाले सभी कारगुजारियों में पाकिस्तान - चीन व विश्वव्यापी साम्यवादियों का गठजोड अक्सर पाया जाता है।
अधिकारों और सुरक्षा के लिए अंतर्राष्ट्रीय मंच (आई.एफ.एफ.आर.ए.एस.) ने खालिस्तानी आतंकवाद के प्रभाव और इस खतरे को लेकर टोरंटो में एक सम्मेलन आयोजित किया था । अधिकारों और सुरक्षा के लिए अंतर्राष्ट्रीय मंच (आई.एफ.एफ.आर.ए.एस.) ने खालिस्तानी आतंकवाद के प्रभाव और इस खतरे को लेकर टोरंटो में एक सम्मेलन आयोजित किया था । इसमें आतंकवाद के खिलाफ लड़ने और रणनीतियों पर टोरंटो के विशेषज्ञों, नीति निर्माताओं और विद्वानों को आमंत्रित किया गया था। सम्मेलन में मुख्य वक्ताओं ने पाकिस्तान से खालिस्तानी समूहों को प्रदान किए जाने वाले बाहरी समर्थन और टैरर फंडिग पर भी चिंता जाहिर की।
वित्तपोषण को ट्रैक करने की आवश्यकता
इसी तरह अन्य वक्ता ब्रॉडन रोथ ने आतंकवाद के वित्तपोषण पर पाकिस्तान द्वारा निभाई गई भूमिका पर विशेष ध्यान देने के साथ खालिस्तानी आतंकवाद के महत्वपूर्ण मुद्दे पर प्रकाश डाला। उन्होंने उन विभिन्न चैनलों पर चर्चा की जिनके माध्यम से खालिस्तानी आतंकवादी समूहों को धन दिया जाता है। उन्होंने कहा कि इन वित्तीय प्रवाहों को बाधित करने के लिए मजबूत उपायों की आवश्यकता है। उन्होंने विशेष रूप से पाकिस्तान से सीमा पार वित्त पोषण का मुकाबला करने में आतंकवादी वित्तपोषण को ट्रैक करने और रोकने में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के महत्व पर बल दिया।
जस्टिन ट्रूडो जब वर्ष 2015 में पहली बार कनाडा के पीएम बने तो उन्होंने मज़ाकिया लहज़े में ये कहा था कि भारत की मोदी सरकार से ज़्यादा उनकी कैबिनेट में सिख मंत्री हैं.उस समय ट्रूडो ने कैबिनेट में चार सिखों को शामिल किया था. ये कनाडा की राजनीति के इतिहास में पहली बार हुआ था.
फ़िलहाल प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो के संसद में दिए एक बयान के बाद भारत के साथ कनाडा के रिश्ते गंभीर संकट में पहुँचते दिख रहे हैं.
जस्टिन ट्रूडो ने वहाँ की संसद में खालिस्तान समर्थक हरदीप सिंह निज्जर की हत्या के पीछे भारत सरकार का हाथ होने की आशंका जताई, जिसके बाद दोनों देशों ने एक-दूसरे के शीर्ष राजनयिकों को निष्कासित कर दिया. भारत सरकार लंबे समय से कनाडा को खालिस्तानी अलगाववादियों पर कार्रवाई करने के लिए कहती रही है.
भारत का मानना है कि ट्रूडो सरकार अपने वोट बैंक की राजनीति को ध्यान में रखते हुए खालिस्तान पर नरम है. विदेश मंत्री एस. जयशंकर भी ये दावा कर चुके हैं. कनाडा के साथ भारत के रिश्तों में खालिस्तान की वजह से संबंधों में उतार-चढ़ाव पहले भी आते रहे हैं, लेकिन इससे पहले कभी ये इतना आगे नहीं बढ़े थे कि संसद में तनाव का ज़िक्र हो.
जस्टिन ट्रूडो महज़ 44 साल की उम्र में पहली बार कनाडा के प्रधानमंत्री बने थे. साल 2019 में वो दोबारा इस कुर्सी पर बैठे लेकिन उस वक़्त तक उनकी लोकप्रियता काफ़ी कम हो चुकी थी.
2019 में कोरोना महामारी आई. ट्रूडो की लिबरल पार्टी को भरोसा था कि इस महामारी से निपटने में उनकी काबिलियत को देखते हुए हाउस ऑफ़ कॉमन्स (कनाडा की संसद का निचला सदन) में उन्हें आसानी से बहुमत मिल जाएगा.वर्ष 2019 में समय से पहले चुनाव कराए गए. ट्रूडो की लिबरल पार्टी की 20 सीटें कम हो गईं.
लेकिन इसी चुनाव में जगमीत सिंह के नेतृत्व वाली न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी को 24 सीटें मिली थीं. जगमीत सिंह पार्टी के नेता बनने से पहले खालिस्तान की रैलियों में शामिल होते थे.
"ट्रूडो के प्रधानमंत्री बने रहने के लिए जगमीत सिंह का समर्थन बहुत ज़रूरी हो गया था. शायद ये भी एक बड़ी वजह है कि ट्रूडो सिखों को नाराज़ करने का ख़तरा मोल नहीं ले सकते थे."
"ट्रूडो एक ऐसी सरकार चला रहे हैं, जिसे बहुमत नहीं है लेकिन जगमीत सिंह का समर्थन हासिल है. राजनीति में बने रहने के लिए ट्रूडो को जगमीत सिंह की ज़रूरत है. जगमीत सिंह को अब ट्रूडो के ऐसे भरोसेमंद सहयोगी के तौर पर देखा जाता है, जो हर मुश्किल वक़्त में उनके साथ खड़ा हो."
कनाडा की आबादी में सिख 2.1 फ़ीसदी हिस्सेदारी रखते हैं. पिछले 20 सालों में कनाडा के सिखों की आबादी दोगुनी हुई है. इनमें से अधिकांश भारत के पंजाब से शिक्षा, करियर, नौकरी जैसे कारणों से ही वहां पहुंचे हैं
अब सवाल ये है कि अल्पसंख्यक सिख कनाडा की राजनीति में इतनी अहम क्यों हैं.
ट्रिब्यून इंडिया की एक रिपोर्ट में विशेषज्ञों ने कहा है, "सिखों की एक ख़ासियत ये है कि एक समुदाय के तौर पर वो एकजुट हैं, उनमें संगठनात्मक कौशल है, वो मेहनती हैं और पूरे देश में गुरुद्वारों की ज़बरदस्त नेटवर्किंग के ज़रिए वो अच्छा-ख़ासा फंड जुटा लेते हैं. चंदा एक वो पहलू है जो सिखों और गुरुद्वारों को किसी भी कनाडाई राजनेता के लिए सपोर्ट सिस्टम बना देता है."
वैनकुवर, टोरंटो, कलगैरी सहित पूरे कनाडा में गुरुद्वारों का एक बड़ा नेटवर्क है.
वैनकुवर सन में कुछ साल पहले डफ़लस टॉड ने एक लेख लिखा. इसके अनुसार, "वैनकुवर, टोरंटो और कलगैरी के बड़े गुरुद्वारों में सिखों का जो धड़ा जीतता है, वो अक्सर अपने पैसों और प्रभाव का इस्तेमाल कुछ लिबरल और एनडीपी के चुनावी उम्मीदवारों को समर्थन देने में करता है."
भारत-कनाडा के रिश्तों में तनाव को लेकर वॉशिंगटन पोस्ट ने एक लेख प्रकाशित किया, जिसमें यूनिवर्सिटी ऑफ़ कलगैरी के रिलीजन डिपार्टमेंट में पढ़ाने वाले हरजीत सिंह ग्रेवाल ने कनाडा सिखों की पसंद होने के पीछे की वजह समझाई है
वो कहते हैं, "भारत-पाकिस्तान के 1947 में बँटवारे के बाद जो अस्थिरता आई, उसने पंजाब के सिखों को पलायन के लिए मजबूर किया. हालांकि, सिख ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका जाकर भी बसे लेकिन उनकी बड़ी संख्या में कनाडा में रहते हैं। क्योंकि कनाडा कृषि के विशेष अवसर थे.
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