सर्वकार्य सिद्ध करने वाली सफला एकादशी ekadashi lord vishnu

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सफला एकादशी
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पौष कृष्ण एकादशी को सफला एकादशी कहा जाता है 

                  पौष मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को सफला एकादशी के नाम से जाना जाता है. मान्यता है कि सफला एकादशी का व्रत अपने नाम स्वरूप फल प्रदान करता है इसके प्रभाव से हर कार्य सफल हो जाते हैं. श्रीहरि विष्णु की कृपा से सभी अधूरी इच्छाएं पूर्ण होती है.
                  पुद्मपुराण के अनुसार चंपावती नगरी के राजा महिष्मान का राज था. राजा के पांच पुत्र थे जिसमें सबसे बड़ा बेटा लुंभक चरित्रहीन था, वह हमेशा पाप कर्मों में लिप्त रहता था. नशा करना, तामसिक भोजन करना, वैश्यावृति, जुआं, ब्राह्मणों का अनादर और देवताओं की निंदा करना उसकी आदत बन चुकी थी. राजा ने परेशान होकर उसे राज्य से बेदखल कर दिया.

                  पिता ने राज्य से बाहर निकाल दिया तो लुंभक जंगल में रहने लगा. एक बार भीषण ठंडी की वजह से वह रात में सो नहीं पाया. रातभर ठंड में कांपता रहा जिसके कारण वह मूर्छित हो गया. उस दिन पौष माह के कृष्ण पक्ष की दशमी तिथि थी. अगले दिन जब होश आया तो अपने पाप कर्मों पर पछतावा हुआ और उसने जंगल से कुछ फल इक्ट्‌ठा किए और पीपल के पेड़ के पास रखकर भगवान विष्णु का स्मरण किया. इस सर्द रात को भी उसे नींद नहीं आई वह जागरण कर श्रीहरि की आराधना में लिप्त था. ऐसे में अनजाने में उसने सफला एकादशी का व्रत पूरा कर लिया.

भगवान विष्णु को नारायण और हरि के नाम से भी जाना जाता है। ऐसे में आइये जानते हैं भगवान विष्णु के इन नामों के पीछे का रहस्य। Lord Vishnu: भगवान विष्णु को इस संसार के पालनहार के रूप में पूजा जाता है। भगवान विष्णु की आराधना से व्यक्ति के जीवन में सुख, समृद्धि और शांति स्थापित होती है।

धर्म की प्रथम  अनिवार्यता ही सतकर्म और सत्यमार्ग है।

                  सफला एकादशी व्रत के प्रभाव से उसने धर्म का मार्ग अपना लिया और सत्कर्म करने लगा. राजा महिष्मान को जब इसकी जानकारी हुई, तो उन्होंने लुंभक को राज्य में वापस बुलाकर राज्य की जिम्मेदारी सौंप दी. कहते हैं तभी से सफला एकादशी का व्रत किया जाता है. ये सर्वकार्य सिद्ध करने वाली एकादशी मानी जाती है।

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